सूर्य-देव पूजन विधि | सूर्य उपासना | सूर्य साधना
नवग्रहों में सूर्य देव को राजा माना गया है. जिनकी साधना-आराधना करने से कुंडली के सभी दोष दूर हो जाते हैं. सूर्य देव का नाम सविता भी है. सूर्य सिंह राशि का स्वामी है और इनकी महादशा छह साल की होती है. कुंडली में सूर्य यदि मजबूत अवस्था में हो तो व्यक्ति को समाज में खूब मान-सम्मान और सुख-समृद्धि मिलती है. विशेष रूप से पिता का पूरा साथ मिलता है. सूर्य देव की कृपा पाने के लिए सबसे उत्तम उनके मंत्रों का जाप और सूर्योदय के समय अर्घ्य देना माना गया है. सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं, जिनका दर्शन पृथ्वी पर कहीं भी रहते हुए किया जा सकता है.
सूर्य को मजबूत बनाए रखने के लिए पिता
का सम्मान करना बहुत आवश्य होता है। जहां कुंडली में मजबूत सूर्य आपको हर ओर से सफलता
दिला सकता है तो वहीं कुंडली में अशुभ सूर्य के कारण पिता-पुत्रों के संबंधों में
दरार आ सकती है। सूर्य से पीड़ित जातक को रक्तचाप, अस्थिरोग, नाखून, हृदय से संबंधित रोग हो सकते हैं।
सूर्य को कमजोर होने पर आपके मान-सम्मान को ठेस लग सकती है इसलिए सूर्य का बलवान
होना आवश्यक होता है। आप कुछ मंत्रों के जाप से सूर्य को मजबूत बना सकते हैं।
जिससे आपको हर कार्य में सफलता प्राप्त होगी।
सूर्य को जल देने की विधि:-
सूर्य का पहला नक्षत्र कृत्तिका नक्षत्र, दूसरा नक्षत्र उत्तराफाल्गुनी, तीसरा नक्षत्र
उत्तराषाढ़ा
रविवार, सूर्य की होरा में विशेष रूप
से सूर्य पूजन, मंत्र जाप अवश्य करें |
किस समय दें
भगवान सूर्य को अर्घ्य:-
सूर्य देव को जल चढ़ाने का सबसे पहला नियम यह है कि उनके दिखने के एक
घंटे के अंदर उनको अर्घ्य देना चाहिए। या फिर यह समय सुबह 8
बजे तक का ही है। सूर्योदय हो जाने के पश्चात आप दो घंटे तक भगवान सूर्य नारायण को
अर्घ्य दे सकते हैं उसमें कोई दोष नहीं लगता है। सूर्योदय हो जाने के बाद यदि आप
अर्घ्य देते हो तो आपको एक और अर्घ्य देना है जिसे हम प्रायश्चित का अर्घ्य भी
कहते हैं।
अर्घ्य कैसे
देना चाहिए:-
सूर्य को जल
चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे का उपयोग करना चाहिए, गिरते जल की धारा में सूर्यदेव
के दर्शन करना चाहिए | अर्घ्य देते समय अपना मुंह पूर्व दिशा
की ओर रखना है। थोड़ा सा सिर झुकाकर मंत्र बोलते-बोलते भगवान सूर्य नारायण को
अर्घ्य देना चाहिए। और ध्यान रहे अर्घ्य किसी पवित्र जगह पर ही देना चाहिए। या फिर
किसी ताम्र पात्र में अर्घ्य दें। अर्घ्य देने के बाद उस जल से अपनी दोनों
आंखें और कानों को स्पर्श करें। उसके बाद फिर उस जल में से थोड़ा सा जल आपको ग्रहण
करना चाहिए। यानि जल आपको पीना है।
अर्घ्य
देने की विधि:-
नारद पुराण के
अनुसार जल, दूध, कुशा, थोड़ासा घी,
शहद, लाल चंदन, लाल कनेर
के पुष्प और गुड़ ये आठों दृव्य मिलाकर एक ताम्र पात्र में उसे रखना है। और उसे
मिश्रित करना है। और पूर्व दिशा की ओर अपना मुख करके सूर्य मंत्र से अर्घ्य देना
है। यह अर्घ्य देने का सबसे उत्तम विधि मानी जाती है।
सूर्य मंत्र -
ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घ्यं नमोस्तुते।
·
अगर नारद पुराण के अनुसार आठ सामग्री को
इक्ट्ठा करने में आप असमर्थ हैं तो नारद मुनि ने एक संक्षिप्त विधि भी अर्घ्य देने
की बताई है जोकि बहुत ही सरल है। इस विधि के अनुसार आपको सिर्फ जल में चंदन या
कुमकुम, पुष्प, अक्षत (चावल) डालना है जल में रोली या लाल चंदन और लाल पुष्प डाल सकते हैं। दोनों हाथों से सूर्य
को जल देते हुए ये ध्यान रखें की उसमें सूर्य की किरणों की धार जरूर दिखाई दे।
पूर्व दिशा की ओर ही मुख करके ही जल देना चाहिए।
सूर्य को जल देते समय साथ ही साथ अगर आप सूर्य मंत्र
का जाप भी करते रहेंगे तो आपको विशेष लाभ प्राप्त होगा
·
अर्घ्य देते समय जल धरती पर न गिरे इसके लिए एक
ओर तांबे का बर्तन नीचे रखें। लाल वस्त्र पहनकर सूर्य को जल देना ज्यादा प्रभावी
माना गया है,
अर्घ्य देते समय हाथ सिर से ऊपर होने चाहिए। ऐसा करने से सूर्य की
सातों किरणें शरीर पर पड़ती हैं। सूर्य देव को जल
अर्पित करने से नवग्रह की भी कृपा रहती है। इसके बाद तीन परिक्रमा करें।
- मनोवांछित फल पाने के लिए प्रतिदिन इस मंत्र का उच्चारण करें- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय
सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि
स्वाहा
·
जल अर्पित करने के बाद धूप, अगबत्ती से पूजा भी करनी चाहिए। सूर्य मंत्र का 108
बार जाप करें।
ऐसे करें
सूर्यदेव का पूजन
·
रविवार वाले दिन खुले आसमान के नीचे बैठें।
पूर्व दिशा की ओर मुख करके साफ ऊन के बने आसन पर बैठने के पश्चात काले तिल, जौ, गूगल, कपूर और शुद्ध घी को
मिश्रित करके हवन सामग्री तैयार करें। हवन कुंड में आम की लकड़ियों से आग
प्रज्वलित करके मंत्रोच्चारण के साथ 108 आहुतियां दें।
·
रविवार के दिन इस मंत्र के जाप से सुख-समृद्धि
में बढ़ौतरी, दुख- द्ररिद्रता का नाश और बीमारी एवं दोषों से मुक्ति मिलती है। ॐ ह्रीं
घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ आसन पर बैठ कर इस मंत्र का 100
बार उच्चारण करें। जप करते वक्त दोनों भौंहों के बीच सूर्यदेव का ध्यान करें। 11 दिन इस प्रकार करने से यह मंत्र सिद्ध होता है।
छठ
में सूर्य को अर्घ्य
·
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को देते
हैं डूबते सूर्य को अर्घ्य
·
सुबह, दोपहर और शाम तीन समय सूर्य
देव विशेष रूप से प्रभावी होते हैं
·
सुबह के वक्त सूर्य की आराधना से सेहत बेहतर
होती है
·
दोपहर में सूर्य की आराधना से नाम और यश बढ़ता
है
·
शाम के समय सूर्य की आराधना से जीवन में
संपन्नता आती है
·
शाम के समय सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा
के साथ रहते हैं
·
इसलिए प्रत्यूषा को अर्घ्य देना तुरंत लाभ देता
है
·
जो डूबते सूर्य की उपासना करते हैं, वो उगते सूर्य की उपासना भी जरूर करें
·
छठ के अंतिम दिन सूर्य को अरुण वेला में अर्घ्य
दिया जाता है
·
यह अर्घ्य सूर्य की पत्नी 'ऊषा' को दिया जाता है
·
ये अर्घ्य देने के साथ ही छठ पर्व का समापन हो
जाता है
·
इस अर्घ्य के बाद महिलाएं जल पीकर और प्रसाद
खाकर व्रत खोलती हैं
·
छठ का केवल
·
अंतिम अर्घ्य देने से भी पूरी होती है मनोकामना
स्नान
द्वारा उपाय
·
जब गोचर में सूर्य अनिष्टकारक हों तो व्यक्ति
को स्नान करते समय जल में खसखस या लाल फूल या केसर डालकर स्नान करना शुभ रहता है।
खसखस, लाल फूल या केसर ये सभी वस्तुएं सूर्य की कारक वस्तुएं हैं
·
सूर्य की वस्तुओं से स्नान करने पर सूर्य की
वस्तुओं के गुण व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करते हैं तथा उसके शरीर में सूर्य के
गुणों में वृद्धि करते हैं।
·
सूर्य की दान देने वाली वस्तुओं में तांबा, गुड़, गेहूं, मसूर दाल दान की
जा सकती है। यह दान प्रत्येक रविवार या सूर्य संक्रांति के दिन किया जा सकता है।
सूर्य ग्रहण के दिन भी सूर्य की वस्तुओं का दान करना लाभकारी रहता है।
मंत्र जाप
सूर्य के उपायों में मंत्र जाप भी किया जा सकता है। सूर्य के मंत्रों में 'ॐ घूणि:
सूर्य आदित्य: मंत्र'
का जाप किया जा सकता है। इस मंत्र का जाप प्रतिदिन भी किया जा सकता है तथा
प्रत्येक रविवार के दिन यह जाप करना विशेष रूप से शुभ फल देता है। प्रतिदिन जाप
करने पर मंत्रों की संख्या 10,
20 या 108 हो सकती है।
मंत्रों की संख्या को बढ़ाया भी जा सकता है तथा सूर्य से संबंधित अन्य कार्य जैसे
हवन इत्यादि में भी इसी मंत्र का जाप करना अनुकूल रहता है।
रविवार को तेल और नमक
नहीं खाना चाहिए
शुक्ल पक्ष के
किसी भी रवि से साधना को शुरू कर सकते है और अगले सात रविवार तक साधना को लगातार
करे|
सूर्य मंत्र
इस मंत्र का
जाप आप रविवार के दिन सूर्य के समक्ष करें। इससे आपका सूर्य मजबूत होता है। भगवान
सूर्य नारायण प्रसन्न होते हैं। सूर्य मंत्र का जाप आप मन ही मन कार्य आदि करते
हुए भी कर सकते हैं।
ॐ सूर्याय नम:
। ॐ भास्कराय नम:।
ॐ रवये नम: ।
ॐ मित्राय नम: ।
ॐ भानवे नम: ॐ
खगय नम: ।
ॐ पुष्णे नम:
। ॐ मारिचाये नम: ।
ॐ आदित्याय
नम: । ॐ सावित्रे नम: ।
सूर्य का
वेदोक्त मंत्र
ऊँ
आकृष्णेनेति मंत्रस्य हिरण्यस्तूपऋषि, त्रिष्टुप छनद:
सविता देवता, श्री सूर्य प्रीत्यर्थ जपे विनियोग: ।
मंत्र : ऊँ आ
कृष्णेन राजसा वत्र्तमानों निवेशयन्नमृतं मत्र्य च ।
हिरण्ययेन
सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ।
सूर्य गायत्री
मंत्र
1.ऊँ आदित्याय
विदमहे प्रभाकराय धीमहितन्न: सूर्य प्रचोदयात् ।
2.ऊँ सप्ततुरंगाय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि तन्नो रवि: प्रचोदयात् ।
अर्थ मंत्र ‘ऊँ एहि सूर्य ! सहस्त्रांशो तेजोराशि
जगत्पते ।
करूणाकर में
देव गृहाणाध्र्य नमोस्तु ते ।
सूर्य यंत्र की स्थापना
सूर्य यंत्र की स्थापना करने के लिए सबसे पहले तांबे के पत्र या भोजपत्र पर
विशेष परिस्थितियों में कागज पर ही सूर्य यंत्र का निर्माण कराया जाता है। सूर्य
यंत्र में समान आकार के 9 खाने बनाए
जाते हैं। इनमें निर्धारित संख्याएं लिखी जाती हैं। ऊपर के 3 खानों में 6, 1, 8 संख्याएं क्रमश:
अलग-अलग खानों में
होना चाहिए।
मध्य के खानों में 7,
5, 3 संख्याएं लिखी जाती हैं तथा अंतिम लाइन के खानों में 2, 9, 4 लिखा जाता है। इस यंत्र
की संख्याओं की यह विशेषता है कि इनका सम किसी ओर भी किया जाए उसका योगफल 15 ही आता है। संख्याओं को निश्चित खाने
में ही लिखना चाहिए।
तांबे के पत्र पर ये खाने बनवाकर इनमें संख्याएं लिखवा लेनी चाहिए या फिर
भोजपत्र या कागज पर लाल चंदन, केसर, कस्तूरी से इन्हें स्वयं ही बना लेना
चाहिए। अनार की कलम से इस यंत्र के खाने बनाना उत्तम होता है। सभी ग्रहों के यंत्र
बनाने के लिए इन वस्तुओं व पदार्थों से लेखन किया जा सकता है।
सूर्य हवन कराना
सूर्य का मंत्र हवन में प्रयोग किया जा सकता है।
आदित्य ह्रदय
स्तोत्र का पाठ नियमित करने से
अप्रत्याशित लाभ मिलता है। आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों
में सफलता मिलती है। हर मनोकामना सिद्ध होती है। सरल शब्दों में कहें तो आदित्य
ह्रदय स्तोत्र हर क्षेत्र में चमत्कारी सफलता देता है। पढ़ें संपूर्ण पाठ...
विनियोग
ॐ अस्य
आदित्यह्रदय स्तोत्रस्य अगस्त्यऋषि: अनुष्टुप्छन्दः आदित्यह्रदयभूतो
भगवान्
ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च
विनियोगः
पूर्व पिठिता
ततो
युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय
समुपस्थितम् ॥1॥
दैवतैश्च
समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥
राम राम
महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् । येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
आदित्यहृदयं
पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् । जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥
सर्वमंगलमागल्यं
सर्वपापप्रणाशनम् । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥5॥
मूल – स्तोत्र
रश्मिमन्तं
समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् । पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥
सर्वदेवात्मको
ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥7॥
एष ब्रह्मा च
विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः
॥8॥
पितरो वसव:
साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥
आदित्य: सविता
सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान् । सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥
हरिदश्व: सहस्त्रार्चि:
सप्तसप्तिर्मरीचिमान् । तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥
हिरण्यगर्भ:
शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: । अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥
व्योमनाथस्तमोभेदी
ऋग्यजु:सामपारग: । घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥
आतपी मण्डली
मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो
विश्वभावन: । तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥
नम: पूर्वाय
गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥
जयाय जयभद्राय
हर्यश्वाय नमो नम: । नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥
नम उग्राय
वीराय सारंगाय नमो नम: । नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय
सुरायादित्यवर्चसे । भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥
तमोघ्नाय
हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥
तप्तचामीकराभाय
हरये विश्वकर्मणे । नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
नाशयत्येष वै
भूतं तमेष सृजति प्रभु: । पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥
एष सुप्तेषु
जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23॥
देवाश्च
क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च । यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥
एनमापत्सु
कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
पूजयस्वैनमेकाग्रो
देवदेवं जगप्ततिम् । एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥
अस्मिन्
क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥
एतच्छ्रुत्वा
महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥ धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥28॥
आदित्यं
प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् । त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय
वीर्यवान् ॥29॥
रावणं
प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् । सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्
॥30॥
अथ
रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: । निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा
सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥
।।सम्पूर्ण ।।
संक्रांति
क्या है?
·
संक्रांति एक सौर घटना है। हिन्दू कैलेंडर के
अनुसार पूरे वर्ष में प्रायः कुल 12 संक्रान्तियाँ होती हैं और
प्रत्येक संक्रांति का अपना अलग महत्व होता है। शास्त्रों में संक्रांति की तिथि
एवं समय को बहुत महत्व दिया गया है
·
सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने
को संक्रांति कहते हैं। सूर्य हर महीने अपना स्थान बदल कर एक राशि से दूसरे राशि
में चला जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 12 राशियाँ होती हैं, जिन्हें मेष, वृष, मिथुन,
कर्क, सिंह, कन्या,
तुला, वृश्चिक, धनु,
मकर, कुम्भ और मीन के नाम से जाना जाता है।
सूर्य के हर महीने राशि परिवर्तन करने की प्रक्रिया को संक्रांति के नाम से जाना
जाता है। 12 राशियों में सूर्य के प्रवेश को ही संक्रांति की
संज्ञा दी गई है। सूर्य बारी-बारी से इन 12 राशियों से हो कर
गुजरता है।
·
हिन्दू धर्म में संक्रांति का समय बहुत
पुण्यकारी माना गया है। संक्रांति के दिन पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का काफ़ी महत्व है। इस वैदिक
उत्सव को भारत के कई इलाकों में बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
महत्वपूर्ण
संक्रातियाँ
·
जैसा कि हमने आपको बताया सूर्य का इन सभी
राशियों से होकर गुजरना शुभ माना जाता है लेकिन हिन्दू धर्म में कुछ राशियों में
सूर्य के इस संक्रमण को बेहद खास मानते हैं। आइये जानते हैं कुछ महत्वपूर्ण
संक्रांतियों के बारे में–
·
मकर संक्रांति– संक्रांति करते समय जब सूर्य
देवता मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इस दिन को मकर सक्रांति कहा जाता है। मकर
संक्रांति भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख और लोकप्रिय पर्व है। इस त्यौहार को
हर साल जनवरी के महीने में मनाया जाता है। मकर संक्रांति को उत्तरायण भी कहते हैं,
उत्तरायण मतलब जिस दिन सूर्य उत्तर की ओर से यात्रा शुरू करता है।
मकर संक्रांति 14 जनवरी या कभी-कभी, 15
जनवरी को मनाते हैं।
·
मेष संक्रांति–पारंपरिक हिंदू सौर कैलेंडर मेंइसे
नए साल की शुरुआत के तौर पर माना जाता है। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता
है। यह आम तौर पर 14 या 15 अप्रैल को
मनाई जाती है। इस दिन को भारत के कई राज्यों में त्योहार के रूप में मनाते हैं।
जैसे पंजाब में बैसाखी, ओडिशा में पाना संक्रांति और एक दिन
बाद मेष संक्रांति, बंगाल में पोहेला बोइशाख आदि जैसे
प्रचलित नामों से।
·
मिथुन संक्रांति–भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर
प्रांतों में मिथुन संक्रांति को माता पृथ्वी के वार्षिक मासिक धर्म चरण के रूप
में मनाया जाता है, जिसे राजा पारबा या अंबुबाची मेला के नाम
से जानते हैं।
·
धनु संक्रांति–इस संक्रांति को हेमंत ऋतु शुरू
होने पर मनाया जाता है। दक्षिणी भूटान और नेपाल में इस दिन जंगली आलू जिसे तारुल
के नाम से जाना जाता है, उसे खाने का रिवाज है। जिस दिन से
ऋतु की शुरुआत होती है उसकी पहली तारीख को लोग इस संक्रांति को बड़े ही धूम-धाम से
मनाते हैं।
·
कर्क संक्रांति–प्रायः 16
जुलाई के आस-पास सूर्य के कर्क राशि में प्रवेश करने पर कर्क संक्रांति मनाई जाती
है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसे छह महीने के उत्तरायण काल का अंत माना जाता है।
साथ ही इस दिन से दक्षिणायन की शुरुआत होती है, जो मकर
संक्रांति में समाप्त होता है।
संक्रांति
का महत्व
संक्रांति, ग्रहण, पूर्णिमा और अमावस्या जैसे दिनों पर गंगा
स्नान को महापुण्यदायक माना गया है। माना जाता है कि ऐसा करने पर व्यक्ति को
ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। देवीपुराण में यह कहा गया है- जो व्यक्ति
संक्रांति के पावन दिन पर भी स्नान नहीं करता वह सात जन्मों तक बीमार और निर्धन
रहता है।
रविवार का
व्रत
रविवार का
व्रत किसी भी मास के शुक्ल पक्ष से प्रारंभ करना चाहिए. इसे कम से कम 12 व्रत
अवश्य रखना चाहिए. हालांकि यदि संभव हो तो पूरे साल रखना चाहिए. सूर्य को जल देने
के बाद भगवान सूर्य के बीज मंत्र की कम से कम पांच माला का जाप जरूर करें. इसके
बाद रविवार व्रत की कथा पढ़ें. व्रत के दिन सुबह स्नान-ध्यान करके लाल रंग के
कपड़े पहने और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दें. इस दिन केवल गेहूं की रोटी या गेहूं
का दलिया और गुड़ का सेवन करें. ऐसा करते हुए जब आपके व्रत का संकल्प पूरा हो जाए
तो कम से कम दो ब्राह्मणों को आदर के साथ भोजन कराएं एवं अपने सामर्थ्य के अनुसार
सूर्य से संबंधी दान और दक्षिणा दें.
रविवार को नमक
तेल नहीं खाना है |
रविवार व्रत
का फल
रविवार का
व्रत रखने से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है. इस व्रत को करने से आंख से
संबंधी दोष दूर होते हैं और आयु बढ़ती है.
एकाक्षरी बीज
मंत्र- 'ॐ घृणि: सूर्याय नम:'।
तांत्रिक
मंत्र- 'ॐ हृां हृीं हृौं स: सूर्याय नम:'।
जप संख्या-
7,000 (सात हजार)।
(कलियुग में 4
गुना जाप एवं दशांश हवन का विधान है।)
दान सामग्री-
लाल वस्त्र, गुड़, माणिक्य, गेहूं, लाल पुष्प, केसर, स्वर्ण आदि।
(उक्त सामग्री
को लाल वस्त्र में बांधकर उसकी पोटली बनाएं तत्पश्चात उसे मंदिर में अर्पण करें
अथवा बहते जल में प्रवाहित करें।)
दान का समय-
सूर्योदय।
हवन हेतु
समिधा- आक।
औषधि स्नान-
इलायची, केसर, रक्त चंदन, मुलेठी, लाल पुष्प मिश्रित जल से।
अशुभ प्रभाव
कम करने हेतु अन्य उपयोगी उपाय
*250 ग्राम
गुड़ रविवार को जल में प्रवाहित करें।
* नित्य सूर्य
को कुमकुम मिश्रित जल से अर्घ्य दें।
* 11 रविवार 1
नारियल और 8 बादाम मंदिर में चढ़ाएं।
* रविवार को
बिना नमक वाला भोजन सूर्यास्त से पूर्व करें।
* लाल
वस्त्रों का प्रयोग न करें।
* सवत्सा लाल
गाय दान करें।
* सूर्य मंत्र
को ताम्रपत्र या भोजपत्र पर उत्कीर्ण करवाकर नित्य पूजा करें।
एकाक्षरी बीज
मंत्र- 'ॐ घृणि: सूर्याय नम:'।
तांत्रिक
मंत्र- 'ॐ हृां हृीं हृौं स: सूर्याय नम:'।
जप संख्या-
7,000 (सात हजार)।
(कलियुग में 4
गुना जाप एवं दशांश हवन का विधान है।)
दान सामग्री-
लाल वस्त्र, गुड़, माणिक्य, गेहूं, लाल पुष्प, केसर, स्वर्ण आदि।
(उक्त सामग्री
को लाल वस्त्र में बांधकर उसकी पोटली बनाएं तत्पश्चात उसे मंदिर में अर्पण करें
अथवा बहते जल में प्रवाहित करें।)
दान का समय-
सूर्योदय।
हवन हेतु
समिधा- आक।
औषधि स्नान-
इलायची, केसर, रक्त चंदन, मुलेठी, लाल पुष्प मिश्रित जल से।
अशुभ प्रभाव
कम करने हेतु अन्य उपयोगी उपाय
*250 ग्राम
गुड़ रविवार को जल में प्रवाहित करें।
* नित्य सूर्य
को कुमकुम मिश्रित जल से अर्घ्य दें।
* 11 रविवार 1
नारियल और 8 बादाम मंदिर में चढ़ाएं।
* रविवार को
बिना नमक वाला भोजन सूर्यास्त से पूर्व करें।
* लाल
वस्त्रों का प्रयोग न करें।
* सवत्सा लाल
गाय दान करें।
* सूर्य मंत्र
को ताम्रपत्र या भोजपत्र पर उत्कीर्ण करवाकर नित्य पूजा करें।
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