नवग्रह के उपाय (Navgrah Remedies)
नोट:- उपाय लिखने से पहले कुछ महत्तव्पूर्ण
जानकारी यजमान को देना चाहूँगा जिससे ज्योतिष का उपाय तार्किक लगे जैसे क्यों किस
ग्रह विशेष का दान नहीं करना है क्यों किसी ग्रह विशेष का रत्न नहीं पहनना आदि आशा
करता हूँ की आप इसे पढ़ेंगे, समझेंगे
फिर कोई उपाय करेंगे | ज्योतिष मे रुचि रखने वालों के लिए
आवश्यक उपायों के अलावा भी विस्तरत रूप से ग्रहों के नियम व उपाय एवं कुछ ज्योतिशय
लेख दिये है अगर आपकी इसमे रुचि नहीं हो तो कृपया इग्नोर करें कन्फ्युज न हों || धन्यवाद |
उपाय के चार प्रकार होते हैं |
१. जल प्रवाह करना
२. दान करना
३. रत्न धारण करना
४. पाठ पूजन करना
कुंडली का पूरी तरह विवेचन करने के बाद ही यह पता लगाया जा सकता है कि किस ग्रह का दान करना है I किस का रत्न धारण करना है और किस ग्रह का पाठ पूजन एवं जल प्रवाह करना है I
जिस ग्रह का रत्न धारण किया जाता है, उस ग्रह का दान कभी नहीं किया जाता है I रत्न धारण करने का मतलब ही यह है कि उस ग्रह की किरणों को शरीर में बढ़ाना है I दान करने से यह किरणे कम होती हैं I
किसी भी ग्रह से जुडी हुई वस्तु का जल प्रवाह करने से उस ग्रह का प्रभाव कम हो जाता है I
पाठ पूजन, सिमरण, हवं, आरती, व्रत करने से भी ग्रह प्रसन्न होता है और अपना दुष्प्रभाव कम करता है I अपने शुभ प्रभाव बढ़ाता है I
दान करके मारक ग्रह (शत्रु ग्रह) के प्रभाव को कम किया जा सकता है I
किस ग्रह का दान न करें :
हम जब भी किसी ग्रह से सम्बंधित वस्तु को दान करते हैं तो इसका
अर्थ यह हुआ कि जिस भी वस्तु का दान किया जाता है, उस ग्रह की किरणें हमारे शरीर
से कम हो जाती हैं क्यूंकि यह भी सृष्टि का नियम है कि जो भी चीज आप बांटते हो वह
आपके पास से कम हो जाती है । यह नियम रंग उपचार के नियमों में बहुत ही प्रमुख
भूमिका निभाता है
यदि आप अपनी किस्मत बदलना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने ऊपर पड़ रहे ग्रहों के प्रभाव (किरणों) को समझिये और जानने की कोशिश कीजिये कि ऐसे कौन से ग्रह हैं जोह आपको जीवन में आगे बढ़ने में मदद करते हैं और कौन से ग्रह आपको परेशानी में डालते हैं । जो ग्रह आपको परेशानी में डालते हैं उनके प्रभाव को कम कीजिये (दान, पाठ पूजन, कर्म के माध्यम से) और जो ग्रह आपकी मदद करते हैं उनके प्रभाव को बढ़ा लीजिये (रत्न, रंग उपचार और कर्म के माध्यम से) ।
किस ग्रह का रत्न न पहने :
रत्न पहनने का अर्थ यह है की जिस ग्रह का रत्न धारण किया जाता है उस ग्रह की किरणों का शरीर में बढ़ाना । रत्न हमेशा योग कारक और सम ग्रह का पहना जाता है जब वो अच्छे फल देने में सक्षम न हो ।यदि योग कारक ग्रह कुंडली में सूर्य से अस्त हो गया है तो उसका रत्न पहनना लाभदायक होता है|
कभी भी किसी जातक को रत्न धारण करने का सुझाव राशि अनुसार नहीं दिया जाता है I चन्द्रमा की स्थित से ही हमें राशि के बारे में पता चलता है I राम और रावण की, कृष्ण और कंश की राशि भी एक ही थी लेकिन दोनों के गुणों में जमीन आसमान का अन्तर था I
राशि का महत्व कभी भी रत्न धारण करने के लिए नहीं होता है I राशि का महत्त्व केवल ढैय्या और साढ़ेसाती निर्धारण करने के लिए ही होता है I
राशि का महत्व कुण्डली मिलान में ग्रह-मैत्री के लिए होता है I क्यूंकि चन्द्रमा मन का कारक ग्रह है और मिलान में इसी राशि को मिलाना अनिवार्य है I
वर्गीय कुण्डली के अनुसार रत्न कभी भी धारण नहीं किया जाता है I
जिस ग्रह का रत्न धारण किया जाता है, उस ग्रह का दान नहीं किया जाता है I
जिस ग्रह का दान किया जाता है, उस ग्रह का रत्न धारण नहीं किया जाता है I
क्या भाग्य बदला जा सकता है ?
कर्म और भाग्य दोनों ही बदलते
हैं । कभी हाथों की लकीरों को ध्यान से देखा है, हमारे हाथों की लकीरें समय के
साथ – साथ
घटती – बढ़ती
रहती हैं । इसका सिर्फ एक ही अर्थ हो सकता है कि इन्सान अपने कर्मों से अपने
भविष्य को बदल रहा है । यदि भविष्य बदला नहीं जा सकता तोह हाथों की लकीरें अपने आप
घटती – बढ़ती
क्यूँ रहती हैं ?
नकारात्मक किरणों के कारण हमारे शरीर में रोग, मानसिक परेशानी और पारिवारिक
कलह कलेश बढ़ती है। यदि हम इन्ही नकारात्मक किरणों को नियंत्रित कर लें तोह हम सब
अपनी परेशानियों को काफी हद तक कम कर सकते हैं । यदि हम अपने शरीर पर ग्रहों से
आने वाली सकारात्मक किरणों को बढ़ा लेते हैं तोह हम अपने जीवन को खुशहाल बना सकते
हैं और जीवन में काफी तरक्की कर सकते हैं।
यदि हम ग्रहों से आने वाली किरणों से सम्बंधित कपड़े, रत्न (महत्वपूर्ण पथ्थर) धारण करते हैं तोह हमारे शरीर पर
किरणों की तीव्रता काफी बढ़ जाती है। हमें सकारत्मक किरणों को बढ़ाना है और
नकारात्मक किरणों को घटाना है।
ऐसे ग्रहों में मंगल, राहू, केतु एवं शनि के अतिरिक्त सूर्य भी गणना में आता है. राहू अन्तरंग रोग या धीमा ज़हर या मदिरापान आदि व्यसन देता है. मंगल शस्त्राघात या ह्त्या आदि देता है. केतु गर्भाशय, आँत, एवं गुदा संबंधी रोग देता है. शनि मानसिक संताप, बौद्धिक ह्रास, रक्त-क्षय, राज्यक्षमा आदि देता है. सूर्य कुष्ट, नेत्र रोग एवं प्रजनन संबंधी रोग देता है. वैसे तों अशुभ स्थान पर बैठने से गुरु राजकीय दंड, अपमान, कलंक, कारावास आदि देता है. किन्तु यह अशुभ स्थिति में ही संभव है.
जब कुण्डली
में किसी विषय विशेष के बारे में देखते हैं तो आपको तीन मुख्य बिन्दुओं पर ध्यान
दिया जाता है - पहला भाव, दूसरा भावेश और तीसरा स्थिर कारक ग्रह।
नकारात्मक किरणों को कम करने के
लिए दो उपाय अपनाये जाते हैं: जल प्रवाह
और दान
1. जल प्रवाह: हमारे शरीर पर जिस ग्रह से नकारात्मक
किरणें पड़ती हैं हम उस ग्रह से सम्बंधित वस्तुओं का जल प्रवाह करते हैं । हम सभी
जानते हैं कि जब भी कोई वस्तु जल में डालते हैं तो उसकी ऊर्जा शांत हो जाती है
क्यूंकि यह सृष्टि का नियम है कि यदि हम आग का गोला भी पानी में डालेंगे तो वह भी
शांत होकर प्रभावहीन हो जायेगा । यदि हम अपने हाथों से ग्रह से सम्बंधित वस्तुओं
को जल में प्रवाह करते हैं तोह उस ग्रह की नकारात्मक ऊर्जा हमारे शरीर से कम हो
जाती है और हमें जीवन जीने में मदद करती हैं ।
2. दान-पुण्य: हमारे जीवन में दान का बहुत महत्त्व होता
है जब भी हम दान करते हैं तोह कहीं न कहीं हम सामने वाले इन्सान की मदद करते हैं
और साथ ही साथ अपनी भी मदद करते हैं इसलिए शास्त्रों में दान को ज्यादा महत्ता दी
गई है । हम जब भी किसी ग्रह से सम्बंधित वस्तु को दान करते हैं तो इसका अर्थ यह
हुआ कि जिस भी वस्तु का दान किया जाता है, उस ग्रह की किरणें हमारे शरीर से कम हो जाती हैं क्यूंकि यह भी
सृष्टि का नियम है कि जो भी चीज आप बांटते हो वह आपके पास से कम हो जाती है । यह
नियम रंग उपचार के नियमों में बहुत ही प्रमुख भूमिका निभाता है । जिस समय इन्सान
का जन्म होता है उस वक्त सभी ग्रहों की किरणों का प्रभाव उसके शरीर पर पड़ता है वही
प्रभाव उसकी जन्म कुंडली को दर्शाती है । यह विद्या उन्ही किरणों का प्रभाव जानकर
उसके उपाय करके जातक का जीवन जीने लायक बनाती है । किरणों के प्रभाव से आपकी जो
जन्म लग्न कुंडली बनती है उसी से आपके जीवन का निर्णय होता है। भूल कर भी ऐसा कोई
रत्न धारण न करें जिससे आपके शरीर पर नकारात्मक किरणें बढ़ें । रत्न का चयन करते
समय सभी नियामों को ध्यान से पढ़े और लग्न कुंडली में ग्रहों के फल को पढ़ें, ग्रहों का अंश देखें, ग्रहों की स्थित लग्न कुंडली
में जरूर देखें, इसके
पश्चात् अस्त ग्रह देखें और बताये गए नियम के अनुसार रत्न का चयन करें । रत्न सदैव
योगकारक ग्रह का ही धारण करें । एक योगकारक ग्रह भी अपनी स्थित के अनुसार मारक
ग्रह बन जाता है । इसलिए रत्न धारण करते समय ग्रहों का अंश तथा ग्रहों की स्थित
अवश्य देखें और बताये गए नियमों को अनुपालन करें ।
हम सब अपने जीवन में 50 प्रतिशत कर्म और 50 प्रतिशत कुंडली के योग लेकर आए हैं। यदि कुंडली का सही ढंग से अध्यन किया जाए तोह हम सब अपना भाग्य तक बदल सकते हैं क्यूंकि हमारे पास 50 प्रतिशत कर्म है जिसके माध्यम से हम 50 प्रतिशत कुंडली के योग को बदल सकते हैं । हम सब को मारक ग्रह से आने वाली नकारात्मक किरणों को दान-पाठ पूजन और कर्म की मदद से कम करना है और अपने जीवन को सुखमय बनाना है । मेरे जीवन का सिर्फ एक ही उद्देश्य है कि मैं आम जनता के दुखों में काम आ सकूँ और उन्हें जीवन जीने की सही दिशा दिखा सकूँ । यदि आप अपने जीवन में नियमित रूप से मारक (शत्रु) ग्रहों का दान – पाठ पूजन करते रहते हैं और अपने योगकारक ग्रहों का रत्न के माध्यम से बल बढ़ा लेते हैं तोह आप अपनी किस्मत खुद लिखेंगे । क्यूंकि आपने अपने शरीर पर पड़ने वाली नकारात्मक ऊर्जा को नियंत्रित कर लिया है । यही नकारात्मक किरणें हमें जीवन में आगे बढ़ने से रोकती हैं और परेशानी देती हैं ।
भगवान श्री कृष्ण ने भगवत गीता में कर्म को सबसे ज्यादा महत्ता दी है, इन्सान कर्म के आधार पर अपना भाग्य तक बदल सकता है क्यूँकि हम सब इस पृथ्वी पर भाग्य (कुंडली के योग – 50 प्रतिशत) और अपना कर्म (50 प्रतिशत) लेकर आये हैं । मैंने अक्सर लोगों को कहते हुए सुना है कि जोह भाग्य में लिखा है वही होता है । ये बात 50 प्रतिशत सत्य है क्यूँकि इन्सान भाग्य और कर्म दोनों लेकर आया है । भविष्य में होने वाली घटनाएं हमारे कर्म से भी प्रभावित होती हैं और कर्म के आधार पर इन्सान अपने ग्रहों के प्रभाव को कम या ज्यादा कर सकता है। यदि इन्सान सिर्फ भाग्य (किस्मत) लेकर आता तोह कर्म की महत्ता शून्य हो जाती। फिर इन्सान कर्म भी भाग्य के भरोसे करता । हम सब जानते हैं कि इन्सान जैसा कर्म करता है वैसा इसी जीवन में कभी न कभी अपने कर्म के फल को भोगता जरूर है । यदि इन्सान बुरा कर्म करता है तोह उसका बुरा फल भी जीवन में जरूर भोगता है क्यूँकि शनि ग्रह समय को चलायमान रखते हैं और इन्सान को कर्मो के आधार पर फल देते हैं । कर्म में इतनी शक्ति होती है कि इन्सान खुद अपनी किस्मत लिख सकता है ।
यदि आप अपनी किस्मत बदलना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने ऊपर पड़ रहे ग्रहों के प्रभाव (किरणों) को समझिये और जानने की कोशिश कीजिये कि ऐसे कौन से ग्रह हैं जोह आपको जीवन में आगे बढ़ने में मदद करते हैं और कौन से ग्रह आपको परेशानी में डालते हैं । जो ग्रह आपको परेशानी में डालते हैं उनके प्रभाव को कम कीजिये (दान, पाठ पूजन, कर्म के माध्यम से) और जो ग्रह आपकी मदद करते हैं उनके प्रभाव को बढ़ा लीजिये (रत्न, रंग उपचार और कर्म के माध्यम से) । कर्म + भाग्य = हमारा जीवन कर्म और भाग्य दोनों ही बदलते हैं ।
कभी
हाथों की लकीरों को ध्यान से देखा है, हमारे हाथों की लकीरें समय के साथ –
साथ घटती – बढ़ती रहती हैं । इसका सिर्फ एक ही अर्थ हो सकता
है कि इन्सान अपने कर्मों से अपने भविष्य को बदल रहा है । यदि भविष्य बदला नहीं जा
सकता तोह हाथों की लकीरें अपने आप घटती – बढ़ती क्यूँ रहती हैं
?
जीवन और ज्योतिष में कर्मों के सम्बन्ध और
महत्त्व को समझने लिए ही कर्मों के सिद्धांत को पहले समझना आवश्यक सा दिख पड़ता
है।
कब ज्योतिष के उपाय
लाभ नहीं देते
कर्मों की तीन श्रेणियों होती है।
1. दृढ़ कर्म
2. दृढ़ अदृढ़ कर्म
3. अदृढ़ कर्म
1. दृढ़ कर्म:- कर्म की इस श्रेणी में उन कर्मों को
रखा गया है जिनको प्रकृति के नियमानुसार माफ नहीं किया जा सकता। जैसे क़त्ल, गरीबों को उनकी मजदूरी न देना, बूढ़े माँ - बाप को खाना न देना, ये सब कुछ ऐसे कर्म हैं जिनको माफ नहीं किया जा
सकता। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में चाहे कितने ही शांति के उपाय करे लेकिन उसका कोई
भी प्रत्युत्तर उन्हें दिखाई नहीं पड़ता है, चाहे ऐसे व्यक्ति इस
जीवन में कितने ही सात्विक जीवन को जीने वाले हों लेकिन उनको जीवन कष्टमय ही
गुज़ारना पड़ता है। वे अपने जीवन के दुखों को दूर करने के लिए विभिन्न ज्योतिषीय
उपाय करते देखे जाते हैं। लेकिन अंत में हारकर उन्हें यही कहने के लिए मजबूर होना
पड़ता है कि ज्योतिष और उपाय सब कुछ निरर्थक है, लेकिन ये बात तो एक
सच्चा ज्योतिषी ही जानता है कि क्यों यह व्यक्ति कष्टमय जीवन व्यतीत करने को बाध्य है।
2. दृढ़ अदृढ़ कर्म:- कर्म की इस श्रेणी में जो कर्म
आते है उनकी शांति उपायों के द्वारा की जा सकती है अर्थात ये माफ किये जाने योग्य
कर्म होते हैं। जैसे कोई व्यक्ति कोलकाता
जाने लिए टिकट लेता है परन्तु भूलवश मुम्बई जाने वाली ट्रेन में बैठ जाता है। ऐसी
स्थिति में टिकट चेक करने वाला कर्मचारी पेनल्टी के पश्चात उस व्यक्ति को सही
ट्रेन में जाने की अनुमति दे देता है। ऐसे व्यक्ति सदैव ज्योतिष और इसके उपायों की
तरफदारी करते नजर आते हैं।
3. अदृढ़ कर्म:- (नगण्य अपराध) ये वे कर्म होते हैं
जो एक बुरे विचार के रूप में शुरू होते हैं और कार्य रूप में परिणत होने से पूर्व
ही विचार के रूप में स्वतः खत्म हो जाते हैं। जैसे एक लड़का आम के बाग को देखता है
और उसका मन होता है,
कि बाग से आम तोड़कर ले आये लेकिन तभी
उसकी नजर रखवाली कर रहे माली पर पड़ती है और वह चुपचाप आगे निकल जाता है। यहाँ
बुरे विचारों का वैचारिक अंत हो जाता है अतः ये नगण्य अपराध की श्रेणी में आते हैं
और थोड़े बहुत साधारण शांति - कर्मों के द्वारा इनकी शांति हो जाती है। ऐसे
व्यक्ति ज्योतिष के विरोध में तो नहीं दिखते लेकिन इसके ज्यादा पक्षधर भी नहीं
होते।
एक ज्योतिषचर्या
होने के नाते कहना चाहूँगा कि सभी को अपनी दिनचर्या में साधारण पूजन कार्य और
मंदिर जाने को अवश्य शामिल करना चाहिए क्योंकि ये आदत पता नहीं कितने ही अदृढ़ कर्मों से जाने-अनजाने में छुटकारा दिला
देती है।
ग्रह और सम्बन्धित रिश्ते:
बहुत सारी कुण्डलियों में यह देखने में आया है कि लोग उपायों की ओर तो बहुत ध्यान ध्यान देते हैं और लाखो रूपये खर्च कर डालते हैं परन्तु तब भी उन्हें पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं हो पाता है जिस कारण से उनका जीवन कष्टमय ही रहता है ! क्यूंकि वे जातक ग्रहों के उपाय तो करते हैं परन्तु उन ग्रहों से सम्बन्धित रिश्तों को नहीं सम्भालते हैं ! रिश्तों को सम्मान देकर उस ग्रह को सही ढंग से स्वम के अनुकूल किया जा सकता है !
ग्रहों से सम्बन्धित रिश्तों का विश्लेषण निम्न
प्रकार से है-
1. सूर्य देव: पिता, दादा, ताऊ, पिता तुल्य व्यक्ति आदि I
2. चंद्र देव: माता, चाची, ताई या घर की बड़ी उम्र की महिलाएं, माता तुल्य स्त्रियां आदि I
3. मंगल देव: छोटा भाई, छोटा भाई तुल्य व्यक्ति, मित्रो के छोटे भाई आदि I
4. बुध देव: कंजक (छोटी उम्र की कन्यायें), छोटी बहनें, मौसी, मामी, बुआ, घर की बेटियां, बहनें, अड़ोस-पड़ोस की स्त्रियां, बहन तथा बेटी तुल्य महिलाएं आदि I
5. बृहस्पति देव: गुरु, अध्यापक, धार्मिक प्रवचनकर्ता, शिक्षा देने वाले व्यक्ति, बड़ा भाई, पुत्र, पति, मित्रों के बड़े भाई, शिक्षित बुजुर्ग आदि I
6. शुक्र देव: प्रेमी – प्रेमिका का सम्बन्ध, पति-पत्नी का रिश्ता, कलाकार आदि I
7. शनि देव: कामवाली, झाडूवाली, कचरेवाली, भिखारी, नौकरीपेशा आदि I
8. राहु देव: अपंग व्यक्ति, कोढ़ी, वृद्ध भिखारी, अस्वस्थ व्यक्ति, शराबी, जुआरी, किसी भी प्रकार का नशा करने वाला आदि I
9. केतु देव: नानका परिवार, समाज का त्याग कर चुके साधु-संत, घर का पालतू कुत्ता आदि I
उपाय
नोट : अपनी कुंडली
के ग्रहों को जानकर उनकी दशा, अंतर्दशा तथा प्रत्यंतर में संबन्धित ग्रह के उपाय करे ।
1. सिगरेट/बीड़ी, तंबाकू, शराब, ड्रग्स आदि किसी भी प्रकार का नशा न करें |
2. नॉन-वेज न खाएं |
3. Discipline (अनुशासन) में रहें |
4. Punctual (समय के पाबंद) रहें |
5. Daily Routine (दैनिक दिनचर्या)
बनाये, नियम बनाएँ और उसे फॉलो करें |
उपाय :
वर्ष में 02 बार
नवग्रह शांति करवाये या नित्य 11 बार नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें |
सूर्य: आप सुबह रोज सूर्य देवता को तांबे के लोटे से सूर्य मंत्र बोलते हुए जल दें !
मासिक सूर्य
संक्रान्ति काल एवं सूर्य के नक्षत्र में सूर्यदेव का पूजन करें |
सूर्य का पहला नक्षत्र कृत्तिका नक्षत्र, दूसरा नक्षत्र उत्तराफाल्गुनी, तीसरा नक्षत्र
उत्तराषाढ़ा
रविवार, सूर्य की होरा |
संक्रांति, ग्रहण, पूर्णिमा और अमावस्या जैसे दिनों पर गंगा स्नान को महापुण्यदायक माना
गया है। अतः इन दिनों में स्नान पूजन अवश्य करें |
नोट: सूर्य देवता पूजन विधि के लिए अलग से
डॉकयुमेंट दे रहे है वह देखें |
चंद्र और गुरु के लिए कम से कम
महीने में 01 बार उपाय करें जैसे पूर्णिमा की शाम को चंद्र
देव का पूजन कर चंद्र को देखते हुए चंद्र मंत्र बोलते हुए कच्चा दूध जल मिला कर
चंद्र को अर्ध्य दें, वृहस्पतिवार के नियम जो कि डॉक्यूमेंट में दिए है
वह फॉलो करें,महीने में एक बार केले के वृक्ष की पूजा व व्रत
करें |
राहु - शनिवार
की शाम और हर महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी को काले कुत्ते को भैरव बाबा का नाम
लेकर रोटी/बिस्कुट जरुर खिलाएं ! शिवजी को हर सोमवार या रोज जल चढ़ाए | वर्ष
में 02 बार रुद्रभिषेक करवाएँ |
शुक्र- शुक्रवार को
लक्ष्मी जी के श्री सूक्त का पाठ करें, लक्ष्मी जी को शाम को कर्पूर पर दी फूल
वाले लौंग के जोड़े रखकर भोग दें । कमल गट्टे से कभी कभार हवन भी कर लिया करें !
शनि: शनिवार को सायंकाल
में 6:45 के बाद 7:45 से पहले जब शनि काल बली होता उस एक दीपक घर के
पश्चिम दिशा में सरसों के तेल से भरकर उसमें काले तिल मिलाकर शनि स्तोत्र का पाठ
करें फिर इसी समय में शनि मंदिर जाकर सरसों का तेल काले तिल और जौं मिलाकर शनिवार
को शनिदेव को चढ़ाए सावधानी शनि की दृष्टि के सामने न जाये साइड से ही तेल चढ़ाएं !
और कभी कभार शनिवार को कोई भी लंगड़े व्यक्ति को कुछ भी दान आदि से मदद करें इससे
शनि देव प्रसन्न होते है !
मंगल - हर मंगलवार हनुमानजी के मंदिर में शाम को दीप दान करें, महीने में कम से कम एक बार मसूर की दाल लाल कपड़े में बांधकर दान करें हनुमानजी मंदिर में, धूप दीप अगरबत्ती, नारियल, सिंदूर चढ़ाए, चना चिरोंजी सहित तुलसी के 02 पत्ते भोग में जरूर चढ़ाए ।
# कुल
देवी देवता
कुल देवी/देवता को प्रसन्न करने के लिए महीने में एक दो बार नीबू नारियल की बलि या भोग देते रहें अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें :-
11 बार कुल देवी/देवताभ्यं नमः बोलकर
एक हरा नींबू आड़ा काटकर उस पर दोनो टुकडों पर मिठाई रख कर मिठाई पर
कर्पूर - कर्पूर पर 02 लौंग के फूल वाले जोड़े ऐसे दोनो नींबू पर 02-02 जोड़े रखकर ज्योत प्रज्वल्वित करें
या नींबू काटकर उस पर बताशा रखे फर कर्पूर रखे ऊपर लौंग रखें फिर
जलाएं!
जब तक ज्योत जले तक ज्योत जले तब तक कुल देवी/देवताभ्यं नमः बोलते
रहे फिर आखरी समय हाथ में जल लेकर 03 बार ज्योत के चारों तरफ घुमाकर छोड़ दे ! फिर प्रार्थना करें !
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सूर्य
नियम :-
सूर्योदय से पूर्व उठे। रविवार को एवं नित्य प्रातः सूर्य को अर्घ्य दें तथा तांबे के पात्र में जल एक चुटकी रोली, लाल चंदन घिसा हुआ, गुड़, हल्दी, अक्षत व लाल पुष्प डालकर सूर्य को अर्घ्य दे ।
अंडे, शराब, मांस, मछली, तम्बाकू, एवं धूम्रपान का सेवन न करें ।
कुकर्म और गलत काम से बचे।
रविवार को बिना नमक का भोजन ग्रहण करना चाहिए। नमक का उपयोग कम से कम करे।
सूर्य की दशा सही नहीं चल रही है तो आपको गेहूं और गुड़ का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा आपको इस समय तांबा धारण नहीं करना चाहिए
सूर्य पिता एवम पितृ पक्ष यानी दादा-दादी और दशम भाव का कारक है । सूर्य सम्बन्धी पीड़ा को शांत करने के लिए पिता की सेवा करे ।
उपाय :-
सूर्य मन्त्र का उच्चारण करते हुये सूर्य देव को प्रतिदिन 12 लोटा जल दें।सूर्य को नियमित जल देने से प्रतिष्ठा, सरकारी पद, समाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
प्रतिदिन आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करे
03 बार सूर्य के सामने करें तथा तांबे के लोटे से सूर्य को जल अर्पण करें। “ॐ घृणी सूर्याय नमः”, ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नम:” का कम से कम
108 बार जप करें । भगवान विष्णु की पूजा करें।
शुक्लपक्ष में प्रथम रविवार से व्रत करना चाहिए ।
गाय को गेहुं और गुड़ मिलाकर खिलाना चाहिए ।
किसी ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को गुड़ का खीर खिलाने से भी सूर्य ग्रह के विपरीत प्रभाव में कमी आती है..
घर से बहार निकलने से पहले थोड़ा सा गुड़ खाएं।
प्रतिदिन पिता को पैर छूकर आशीर्वाद लेनी चाहिए।
बहती नदी की धारा में ताम्बे के पैसे अर्पण करनी चाहिए।
बेल मूल धारण करें। इस जड़ को रविवार के दिन सूर्य की होरा अथवा सूर्य के नक्षत्र में धारण करना चाहिए।.
रविवार के दिन सूर्य यंत्र को सूर्य की होरा एवं इसके नक्षत्र में धारण करना चाहिए।
स्नान करते समय जल में खसखस या लाल फूल या केसर डाल कर स्नान करना शुभ रहता है,
दान : -
सूर्य ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान रविवार को सूर्य की होरा और सूर्य के नक्षत्रों (कृतिका, उत्तरा-फाल्गुनी, उत्तरा षाढ़ा) में प्रातः 10 बजे से पूर्व किया जाना चाहिए। दान करने वाली वस्तुएँ: गेहूँ, गुड़,
घी, तांबा, लाल पुष्प
आदि।
सूर्य से संबंधित वस्तुओं का दान रविवार के दिन दोपहर में क्षत्रिय, ज्ञानी पंडित को दान दे ।
सूर्य की दान देने वाली वस्तुओं में तांबा, गुड, गेहूं, मसूर दाल दान की जा सकती है. यह दान प्रत्येक रविवार या सूर्य संक्रान्ति के दिन किया जा सकता है. सूर्य ग्रहण के दिन भी सूर्य की वस्तुओं का दान करना लाभकारी रहता है
#सूर्य
देव के उपाय (रविवार को करना है)
सूर्य देव को जल देना
तांबे का सिक्का जल प्रवाह करना
शक्कर चींटियों को डालना
ब्रह्म देव की उपासना करना
माणिक जल प्रवाह करना
सूर्य देव के वैदिक मंत्र का जाप करें वैदिक मंत्र: ऊँ सूर्याय नम:
नोट:- पिता या पिता तुल्य व्यक्तियों से मधुर
संबंध रखने से सूर्यदेव कुंडली में अच्छा प्रभाव देते हैं I
चन्द्रमा
नियम :-
चंद्रमा पानी का कारक है। इसलिए कुएं, तालाब, नदी में या उसके आसपास गंदगी को न फैलाएं। घर में किसी भी स्थान पर पानी का जमाव न होने पाए ।
अंडे, शराब, मांस, मछली, तम्बाकू, एवं धूम्रपान का सेवन न करें । नशा नहीं करें ।
झूठ बोलने से परहेज करें, बेईमानी और लालच ना करें ।
दूध पीकर या कोई सफेद मिठाई खाकर किसी चौराहे पर नहीं जाये ।
चंद्रमा के बलहीन होने पर माता और माता पक्ष से सम्बंधित रिश्तेदारों की सेवा सेवा करें ।
व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए। रात्रि के समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए।
चंद्रमा पानी का संबन्ध माता से होता है, इसलिए मां की सेवा करें और किसी भी प्रकार से उनका दिल ना दुखाएं। माता के पांव छूकर आशीर्वाद लें ।
6ठे भाव का चंद्रमा दोष होने पर भूलकर भी दूध या पानी का दान ना करें। इसी प्रकार 12वें भाव का दोष होने पर साधु-महात्माओं को ना भोजन करएं और ना ही इन्हें दूध का दान करें।
यदि कुंडली में चंद्रमा केतु के साथ विराजित हो तब जीविकोपार्जन में बाधा डालता है अतः ऐसे जातको को गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।
सफेद और स्लेटी रंग चंद्रमा का प्रतीक होते हैं इसके अलावा चमकीला नीला, हरा और गुलाबी रंग, आसमानी रंग भी लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर होता है उन्हें काले और लाल रंग से परहेज रखना चाहिए।
अपनी बेटी के पैसे और धन का उपयोग न करें
उपाय :-
शिवजी की पूजा, सोमवार का व्रत करना, पूर्णिमा का व्रत करना, सोमवार को शंकर जी को दूध से स्नान कराना चाहिए। पूर्णिमा के दिन शिव जी को खीर का भोग लगाएं ।
शिवलिंग पर चंदन, चावल, बिल्वपत्र, आंकड़े के फूल धतूरा और नारियल चढ़ाएं ।
पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा को अर्घ्य दें, चांदी के पात्र में थोड़ा सा दूध लेकर चन्द्र उदय होने के बाद संध्या काल में चन्द्रमा को अर्घ्य देने से चन्द्र की स्थिति मजबूत होती है, मन में आरहे समस्त बुरे विचार, दुर्भावना, असुरक्षा की भावना व माता के स्वास्थ्य को लाभ मिलता है।
विधि पूर्वक महामृत्युंजय मंत्र का जाप या शिव कवच का पाठ करें, चन्द्र मंत्र ॐ श्रां श्रीं श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः” का विधि पूर्वक जप करें ।
रात को सोते समय थोडा सा दूध या पानी भरा बर्तन सिरहाने रख कर सोये और अगले दिन कीकर की जड़ में सारा जल डाल दे।
दान : -
चंद्र ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान सोमवार को चंद्र की होरा और चंद्र के नक्षत्रों (रोहिणी, हस्त, श्रवण) में प्रातः किया जाना चाहिए। दान करने वाली वस्तुएँ- दूध, दही, कपूर, श्वेत चन्दन, जल, चावल, मोती, चांदी,सफेद कपड़े, सफेद पुष्प एवं शंख आदि।
दान से पूर्व चंद्र ग्रह तथा शिवजी की पूजा विधिवत करनी चाहिए उसके बाद नवग्रह की पूजा करे। चंद्र से संबंधित वस्तुओं का दान सोमवार के दिन संध्या में किसी महिला को दान देनी चाहिए यदि महिला को नहीं दे सकते तो ब्राह्मण को देनी चाहिए।
सोमवार के दिन, पूर्णमासी या एकादशी को नवयौवना स्त्री को देना चाहिए।
pUnzek vxj fe=] Lo&jkf'k
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चांदी का चोकोर टुकडा अपने पास रखें
चारपाई के चारों पायों पर चांदी की कीले लगाएं
शरीर पर चांदी धारण करें , चांदी का कड़ा धारण करें
मकान की नीव में चांदी दबाएं
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चौथे भाव में स्थित चंद्रमा पर केवल चंद्रमा का ही पूर्णरूपेण प्रभाव होता है क्योंकि वह चौथे भाव और चौथी राशि दोनो का स्वामी होता है. यहां चन्द्रमा हर प्रकार से बहुत मजबूत और शक्तिशाली हो जाता है. चंद्रमा से संबन्धित वस्तुएं जातक के लिए बहुत फायदेमंद साबित होती हैं. मेहमानों को पानी की के स्थान पर दूध भेंट करें. मां या मां के जैसी स्त्रियों का पांव छूकर आशिर्वाद लें. चौथा भाव आमदनी की नदी है जो व्यय बढानें के लिए जारी रहेगी. दूसरे शब्दों में खर्चे आमदनी को बढाएंगे
श्वेत तथा गोल मोती चांदी की अंगूठी में रोहिणी ,हस्त ,श्रवण नक्षत्रों में जड़वा कर सोमवार या पूर्णिमा तिथि में पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की अनामिका या कनिष्टिका अंगुली में धारण करें। धारण करने से पहले ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः मन्त्र के 108 उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप,दीप ,पुष्प ,अक्षत आदि से पूजन कर लें।
चंद्रमा की स्थिति को संतुलित करना हो या फिर उसकी ताकत को बढ़ाना हो, दोनों ही मामलों में रत्न उपयोगी सिद्ध होते हैं। मसलन अगर आपकी कुंडली में चंद्रमा असंतुलित है तो आपको कम से कम 10 रत्ती का मोती धारण करना चाहिए।
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अनुसार चन्द्रमा कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को प्रतिदिन दूध नहीं पीना चाहिए.
स्वेत वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए. सुगंध नहीं लगाना चाहिए और चन्द्रमा से सम्बन्धित रत्न नहीं पहनना चाहिए |
रात में सिराहने के नीचे पानी रखकर सुबह उसे पौधों में डालना ।
चांदी का कड़ा या छल्ला पहनना चाहिए।
रात के समय दूध ना पीयें
चावल, दूध और पानी,चांदी का दान करे।
सोमवार को सफेद कपड़े में चावल, मिश्री बांधकर बहते पानी में प्रवाहित करें
#चंद्र देव के उपाय: (सोमवार को करना है)
दूध दान करना
चावल दान करना
मिश्री दान करना
चीनी दान करना या चींटियों को डालना
श्वेत वस्तु (वस्त्र, फूल) दान करना
मोती दान या जल प्रवाह करना
सोमवार को दूध या जल शिवलिंग पर चढ़ायें और शिव जी पूजा करें I
चंद्र देव के वैदिक मंत्र का जाप करें I
वैदिक मंत्र: ऊँ सों सोमाय नम:
नोट:- माता या माता तुल्य स्त्रियों से मधुर
संबंध रखना, उनसे आशीर्वाद लेना, उनकी
सेवा करने से चंद्र देव प्रसन्न होते हैं I
मंगल
नियम :-
अंडे, शराब, मांस, मछली, तम्बाकू, एवं धूम्रपान का सेवन न करें ।
ब्रह्मचर्य का पालन करें ।
मंगलवार के दिन सूर्योदय से पहले ही उठ जाना चाहिए। नित्यक्रिया से निपटकर स्नान कर स्वच्छ होना चाहिए।
भाई की सेवा करे।
मंगल से पीड़ित व्यक्ति ज्यादा क्रोध न करें।
अपने आप पर नियंत्रण नहीं खोना चाहिए।
किसी भी कार्य में जल्दबाजी नहीं दिखाएं।
किसी भी प्रकार के व्यसनों में लिप्त नहीं होना चाहिए ।
मंगल भाई, पराक्रम और तृतीय भाव का कारक है । मंगल की कृपा के लिए भाई के प्रति सम्मान, सेवा और सहायता का भाव रखे ।
उपाय :-
मंगलवार का व्रत करें, व्रत का संकल्प हाथ में पानी ले कर करें, मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से आरम्भ कम से कम 21 और अधिक से अधिक 45 मंगलवार का व्रत करना चाहिए। पहले मंगलवार व्रत कथा पढ़ें फिर उसके बाद हनुमानजी की पूजा करे।
हनुमान जी की आराधना करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें। सुंदर कांड का पाठ करें।
हनुमानजी को सिंदूर का चोला चढ़ाये।
भूमि पूजन करें ।
मंगल पूजा के दौरान इस मंत्र का जाप करें: ॐ अंगारकाय विद्महे शक्ति हस्ताय धीमहि तन्न: भौम प्रचोदयात।। ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः
अनंत मूल जड़ी धारण करें। इस जड़ी को मंगलवार को मंगल की होरा और मंगल के नक्षत्र में धारण करें।
दान : -
मंगल ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान मंगलवार को मंगल की होरा एवं मंगल ग्रह के नक्षत्रों मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा) में किया जाना चाहिए। दान से पूर्व मंगल ग्रह तथा हनुमानजी की पूजा विधिवत करनी चाहिए उसके बाद नवग्रह की पूजा करे। मंगल से संबंधित वस्तुओं का दान मंगलवार के दिन दोपहर में किसी ब्रह्मचारी को दान देनी चाहिए यदि ब्रह्मचारी नही मिले तो ब्राह्मण को देनी चाहिए।
दान करने वाली वस्तुएँ- लाल मसूर, सौंफ, मूंग, गेहूँ, लाल कनेर का पुष्प, तांबे के बर्तन गुड़, भूमि, लाल चन्दन, लाल वस्त्र एवं गुड़ आदि।
गाय को गुड़ और रोटी खिलाये ।
#मंगल
देव के उपाय: (मंगलवार को करना है)
हनुमान जी को सिन्दूर चढ़ाना
हनुमान जी को चोला चढ़ाना
टमाटर का दान
गाजर का दान
अनार का दान
रक्त दान
लाल चीज का दान
शक्कर चींटियों को डालना
लाल सूखी मिर्च जल प्रवाह करना
मूँगा जल प्रवाह करना
हनुमान जी को पान के पत्ते चढना
मंगल देव के वैदिक मंत्र का जाप करें
वैदिक मंत्र: ऊँ भुं भौमाय नम: अथवा ऊँ अं अंगारकाय नम:
नोट:- छोटे भाई या छोटे भाई तुल्य व्यक्ति से
मधुर संबंध रखना, ख्याल रखने से मंगल देव प्रसन्न होते हैं I
बुध
नियम :-
अंडे, शराब, मांस, मछली, तम्बाकू, एवं धूम्रपान का सेवन न करें । नशा नहीं करें ।
दांत साफ़ रखे और नाक छिदवाये।
बहन, बेटी अथवा छोटी कन्या का सम्मान करें।
व्यापार में ईमानदार रहें। बुध को अपने अनुकूल करने के लिए बहन, बेटी व बुआ को इज्जत दें व उनका आशीर्वाद लेते रहें। शुभ कार्य (मकान मुर्हूत) (शादी-विवाह) के समय बहन व बेटी को कुछ न कुछ अवश्य दें व उनका आशीर्वाद लें। कभी-कभी (नपुंसक) का आशीर्वाद भी लेना चाहिए।
घर में खंडित एवं फटी हुई धार्मिक पुस्तकें एवं ग्रंथ नहीं रखने चाहिए।
अपने घर में कंटीले पौधे, झाड़ियाँ एवं वृक्ष नहीं लगाने चाहिए। फलदार पौधे लगाने से बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
तोता पालने से भी बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए तथा निरन्तर उसकी देखभाल करनी चाहिए। बुधवार के दिन तुलसी पत्र का सेवन करना चाहिए।
बुधवार के दिन हरे रंग की चूड़ियाँ हिजड़े को दान करनी चाहिए, हरी सब्जियाँ एवं हरा चारा गाय को खिलाना चाहिए।
उपाय :-
भगवान विष्णु की पूजा करें। विष्णु सहस्रनाम का जाप करें।
दुर्गा जी की आराधना करें।, दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रतिदिन करें। कुँवारी कन्या का पूजन करें।
बुधवार का व्रत करे। मंत्र “ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नम: का विधि पूर्वक जप करें ।
बहन को उपहार भेंट करें।
बकरी या तोते को पाले या सेवा करे।
गाय को हरी घास और हरी पत्तियां खिलानी चाहिए। बुध की दशा में सुधार के लिए भी कल्याणकारी कहा गया है। रविवार को छोड़कर अन्य दिन नियमित तुलसी में जल देने से बुध की दशा में सुधार होता है। अनाथों एवं गरीब छात्रों की सहायता करने से बुध ग्रह से पीड़ित व्यक्तियों को लाभ मिलता है। मौसी, बहन, चाची बेटी के प्रति अच्छा व्यवहार बुध ग्रह की दशा से पीड़ित व्यक्ति के लिए कल्याणकारी होता है।
बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें।
दान : -
बुध ग्रह से संबंधित वस्तुओं को बुधवार के दिन बुध की होरा एवं इसके नक्षत्रों
(अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) में सुबह अथवा शाम को करना चाहिए।
दान करने वाली वस्तुएँ-
हरी घास, साबुत मूंग, पालक, कांस्य के बर्तन,
नीले रंग के पुष्प,
हरे व नीले रंग के कपड़े,
हाथी के दांतों से बनी वस्तुएँ इत्यादि।
बुध से संबंधित वस्तुओं का दान बुधवार के दिन सुबह में जरूरतमंद कम आयु की कन्या को दान देना चाहिए यदि यह सम्भव नहीं हो सके तो किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दान दे।
कन्याओं को हरे वस्त्र और हरी चुडिया दान करे। साबुत हरे मुंग का दान करे। हरा वस्त्र, हरी सब्जी, मूंग का दाल एवं हरे रंग के वस्तुओं का दान उत्तम दान के लिए के दिन दोपहर का समय उपयुक्त माना गया है।
#बुद्ध
देव के उपाय (बुधवार को करना है)
हरा चारा गाय को डालना
खीरा दान करना
पुदीना दान करना
पन्ना जल प्रवाह करना
बाज़रा पंछियों को डालना
साबुत मूंगी का दान करना
हरी वस्तु (वस्त्र, चूड़ियाँ इत्यादि)
तुलसी का दान और सेवा
किन्नरों को कुछ भी खाने को देना
बुद्ध देव के वैदिक मंत्र का जाप करें I
वैदिक मंत्र: ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः ॥ (or) ऊँ गंग गणपतये नमः !
नोट:- छोटी कन्या, मौसी, बुआ, बहन, भाभी, ताई, चाची, मामी से
मधुर संबंध रखने से बुध देव प्रसन्न होते हैं I
गुरु
नियम :-
अंडे, शराब, मांस, तम्बाकू, एवं धूम्रपान का सेवन न करें ।
ब्रह्मांड में स्थित नौ ग्रहों में से गुरु वजन में सबसे भारी ग्रह है। यही कारण है कि इस दिन हर वो काम जिससे कि शरीर या घर में हल्कापन आता हो : - सिर धोना, भारी कपड़े धोना, बाल कटवाना, शेविंग करवाना, शरीर के बालों को साफ करना, फेशियल करना, नाखून काटना, घर से मकड़ी के जाले साफ करना, घर के उन कोनों की सफाई करना जिन कोनों की रोज सफाई नहीं की जा सकती हो, कबाड़ घर से बाहर निकालना, घर को धोना या पोछा लगाना। ऐसे कामों को करने से मना किया जाता है क्योंकि ऐसा करने से गुरु ग्रह हल्का होता है।
अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों वृद्ध, सदाचारी ब्राह्मण के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए। और गुरु की सेवा तथा आदर करें। बड़ों का दोनों पांव छूकर आशीर्वाद लें।
परस्त्री / परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।
पीपल के वृक्ष के पास कभी गंदगी न फैलाएं व जब भी कभी किसी मंदिर, धर्म स्थान के सामने से गुजरें तो सिर झुकाकर, हाथ जोड़कर जाएं।
गुरु ब्राह्मण, साधू और दादा एवम द्धितीय, पंचम तथा दशम भाव का कारक है विधा, धन अथवा पुत्र आदि की प्राप्ति के
लिए गुरुजन, ब्राह्मण और साधू-संतो की सेवा करे ।
उपाय :-
विष्णु जी की आराधना करें। विष्णु सहस्त्रनाम का प्रतिदिन पाठ करे।
बृहस्पतिवार का व्रत करे। व्रत मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार से प्रारम्भ करना चाहिए। गुरु की पूजा के दौरान इस मंत्र का जाप करें: ॐ अंगिरसाय विद्हे दिव्यदेहाय धीमहि तन्न: जीवः प्रचोदयात। ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नम: ।
पीपल में जल डालें, केले के पेड़ में जल डाले । पंचमुखी रुद्राक्ष की पूजा तथा धारण करना चाहिए।
गाय को पीली दाल १ किलो हर गुरूवार को खिलानी चहिये, पीले वस्त्र दान में देना चहिये, हल्दी की गठान कांख में बांधनी चहिये, वृद्ध, सदाचारी ब्राह्मण को सपरिवार भोजन करवाना चहिये।
गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।
गुरुवार के दिन एक नारियल सवा मीटर पीले वस्त्र में लपेटकर एक जोड़ा जनेऊ, सवा पाव मिष्ठान्न के साथ आस-पास के किसी भी विष्णु मंदिर में अपने संकल्प के साथ चढ़ा दें।
पीपल की जड़ को
गुरु की होरा और गुरु के नक्षत्र में धारण करें।
दान : -
बृहस्पति ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान गुरुवार के दिन गुरु के नक्षत्रों (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं। दान की जाने वाली वस्तुएँ हैं- केसरिया रंग, हल्दी, शक्कर, केशर, चने की दाल, पीत वस्त्र, कच्चा नमक, शुद्ध घी, पीले पुष्प, एवं किताबें।
गुरु से संबंधित वस्तुओं का दान बृहस्पति वार के दिन सुबह में जरूरतमंद मध्य आयु के ब्राह्मण को दान देना चाहिए ।
ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर निःशुल्क सेवा करनी चाहिए।
गुरु का दान ब्राह्मण, ज्योतिषी को प्रातः काल में देना चाहिए ।
#बृहस्पति
देव के उपाय (बृहस्पतिवार को करना है)
शक्कर का दान या चींटियों को डालना
बेसन के लड्डू का दान करना
केले, हल्दी का दान करना
केले क पेड़ को जल देना और सेवा करना
चने की दाल का दान करना
गेंदे का फूल मन्दिर में चढ़ाना
धार्मिक और ज्ञानवर्धक पुस्तके बांटना,
सुनेला जल प्रवाह करना
नोट:- बुजुर्गो की सेवा करना, गुरूजनो
का सम्मान करना, पिता या पिता तुल्य व्यक्तियों से मधुर संबंध
रखना.
बृहस्पतिवार को हल्दी की पीली गाँठे जल प्रवाह
करें और बृहस्पति देव के वैदिक मंत्र का जाप करें
वैदिक मंत्र: ऊँ बृं बृहस्पतये नम:
शुक्र
नियम :-
अंडे, शराब, मांस, मछली, तम्बाकू, एवं धूम्रपान का सेवन न करें । नशा नहीं करें ।
नित्य स्नान, टूथब्रश करें, साफ-सफाई पर खास ध्यान देना चाहिए।
स्वच्छता के प्रति जागरुकता, घर की साफ सफाई रखना पर खास ध्यान देना चाहिए।
घर की दक्षिण-पूर्व दिशा के दूषित होने से भी शुक्र ग्रह खराब फल देने लगता है।
किसी भी कारण से दांत खराब होने से शुक्र अपना अच्छा प्रभाव देना छोड़ देता है।
शारीरिक रूप से गंदे बने रहना, गंदे-फटे कपड़े पहनने से भी शुक्र मंदा हो जाता है।
घर की साफ-सफाई को महत्व न देने से भी शुक्र खराब हो जाता है।
घर का बेडरूम और किचन खराब होने से भी शुक्र खराब हो जाता है।
घर में काले, कत्थई रंगों की अधिकता से भी शुक्र मंदा फल देने लगता है।
गृह कलह से भी शुक्र अपना फल मंदा देने लगता और धन-दौलत नष्ट हो जाती है।
शुक्र ग्रह यदि अच्छा नहीं है तो पत्नी व पति को आपसी सहमति से ही कार्य करना चाहिए। व जब घर बनाएं तो वहां कच्ची जमीन अवश्य रखें तथा पौधे लगाकर रखें। कच्ची जगह शुक्र का प्रतीक है। जिस घर में कच्ची जगह नहीं होती वहां घर में स्त्रियां खुश नहीं रह सकतीं। यदि कच्ची जगह न हो तो घर में गमले अवश्य रखें जिसमें फूलों वाले पौधे हों या हरे पौधे हों। दूध वाले पौधे या कांटेदार पौधे घर में न रखें। इससे घर की महिलाओं को सेहत संबंधी परेशानी हो सकती है।
स्त्री तथा अपनी पत्नी का कभी भी अनादर नहीं करना चाहिए।
शॉपिंग और नए कपड़े पहनने के लिए शुक्रवार के दिन का चुनाव करें ।
उपाय :-
शुक्रवार के दिन नए कपड़े/साफ कपड़े पहने सुघंधित पदार्थो का प्रयोग करे।
शुक्रवार का व्रत रखे। व्रत मास के शुक्लपक्ष के प्रथम शुक्रवार से आरम्भ करना चाहिए।
लक्ष्मी की उपासना करे। श्री सूक्त का पाठ करें।
मंत्र “ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नम:” का विधि पूर्वक जप करें ।
चमकदार सफेद एवं गुलाबी रंग का प्रयोग करें।
अपनी पत्नी एवं अन्य महिलाओं का सम्मान करें। यदि आप पुरुष हैं तो अपनी पत्नी का आदर करें।
काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।
अपने भोजन में से गाय को कुछ भाग दे, शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।
किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए
दान : -
शुक्र ग्रह से संबंधित वस्तुओं को शुक्रवार के दिन शुक्र के नक्षत्र (भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी, पुर्वाषाढ़ा) तथा शुक्र की होरा में दान करना चाहिए । दान करने वाली वस्तुएँ- दही, घी, कर्पुर, श्वेत चंदन, श्वेत पुष्प, खीर, ज्वार, इत्र, रंग-बिरंगे कपड़े, चांदी, चावल इत्यादि।
दान से पूर्व लक्ष्मीजी तथा इन्द्राणी जी की पूजा करनी चाहिए उसके बाद नवग्रह की पूजा करे। शुक्र से संबंधित वस्तुओं का दान शुक्रवार के दिन सायंकाल के समय नवयुवती को दान दे।
कुंडली में शुक्र को मजबूत करने के उपाय :-
विशेष सिद्ध शुक्र कवच धारण करने से विशेष लाभ होता है एवं शुक्र यंत्र की स्थापना भी लाभदायक होती है।
शुक्रवार के दिन इलायची के पानी से स्नान करें। थोड़े से पानी में बड़ी इलायची को उबाल कर इसका पानी छान लें, इसे ठंडा करके अपने नहाने के पानी में मिलाएं और आखिरी बार इससे स्नान करें। इस दौरान शुक्रदेव का ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप करें – “ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः।।“ ग्रह की वस्तुओं से स्नान करना उपायों के अन्तर्गत आता है स्नान करने से वस्तु का प्रभाव व्यक्ति पर प्रत्यक्ष रुप से पडता है. तथा शुक्र के दोषों का निवारण होता है।
शुक्रवार के दिन कुछ गौ-दुग्ध की जल में मिलाकर स्नान करना चाहिए। इस दौरान शुक्रदेव का ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप करें – “ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः।।
शुक्र के दिन सफेद वस्त्र पहनें। सफ़ेद कपड़ों तथा खुशबूदार वस्तुओं जैसे की इत्र का प्रयोग जरूर करें।
परफ्यूम का प्रयोग भी शुक्र को बलवान बनाता है। सफेद कपड़ों का अधिक से अधिक इस्तेमाल करें।
खाने में सफेद चीजें शामिल कर भी आप अपना शुक्र मजबूत कर सकते हैं। साबूदाना तथा दूध और इनसे बनी चीजों को अपने खाने में शामिल करें। शुक्रवार के दिन अगर नमक का त्यग करें ।
शुक्रवार के दिन खीर खाने से भी शुक्र की स्थिति मजबूत बनती है।
शुक्रवार को कन्याओं को खीर खिलाएं। स्वयं भी खाएं।
शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।
पत्नी को खुश रखे। पति अपनी पत्नी को 1 गुलाब को फूल दे।
लक्ष्मी जी की अराधना करें। शुक्रवार को लक्ष्मी नारायण मंदिर जाएँ।
संगीत का शुक्र ग्रह से खास जुड़ाव है, लेकिन इसमें एक बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। सॉफ्ट और मधुर संगीत जहां आपका शुक्र मजबूत करता है, वहीं लाउड म्यूजिक या कानफोड़ू संगीत इसे कमजोर करता है। इसलिए सॉफ्ट म्यूजिक सुनना आपका शुक्र मजबूत बनाएगा।
#शुक्र
देव के उपाय : (शुक्रवार को करना है)
चीनी दान करना
चावल दान करना
आटा दान करना
सफ़ेद मिठाई (रसगुल्ला, छेना मुर्की, बर्फी) दान करना
इत्र दान करना
जरकन (ओपल) दान करना
सौंदर्य प्रधान वस्तुओं का दान करना
मिश्री दान करना
नोट:- पत्नी, प्रेमिका के साथ
मधुर संबंध रखना, स्त्रियों का आदर करना I
हर शुक्रवार को कच्चे दूध (1/2 cup) से स्नान करें और शुक्र देव के बीजमंत्र का जाप करें I
बीजमंत्र: ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः ॥ (or) ऊँ शुं शुक्राय नम:
शनि
नियम :
आचरण अच्छा रखें ।अनुशासन (Discipline) में रहे ।
अंडे, शराब, मांस, तम्बाकू, एवं धूम्रपान का सेवन न करें।
शनिवार को लोहा, तेल, नमक, ईंधन, झाड़ू ,काले तिल,रबर, स्याही , लोहा से संबंधित चीज़ें न ख़रीदें। काली उड़द, इलेक्ट्रॉनिक समान, बादाम, नारियल, जूते, काले कपड़े, काली मिर्च, बैंगन, सरसो का तेल, सरसो के दाने, लकड़ी ईंधन, माचिस, केरोसीन आदि ज्वलनशील पदार्थ, कैंची इसे शनिवार की बजाय सप्ताह के अन्य दिनों में खरीदना चाहिए।
नमक को कांच के पात्र (बरनी) में रखें ।
रात को दूध न पिएँ।
कर्मचारिओं अथवा नौकरों को हमेशा ख़ुश रखें।
शनि जी की प्रतिमा या चित्र की आंखों में आंखें डाल कर कभी न देखें।
शनिवार एवं मंगलवार के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें बाल एवं दाढ़ी-मूँछ नही कटवाने चाहिए।
शनि सेवक, नोकर, दलित वर्ग और छठे भाव का कारक है । मुक़दमे, रोग या शयन सम्बन्धी पीड़ा को शांत करने के लिए इनके साथ अच्छा व्यवहार करें ।
उपाय :-
प्रति शनिवार की शाम को शनिदेव को सरसों के तेल में काले तिल मिलाकर चढ़ाएं। शनिदेव की पूजा के दौरान इस मंत्र का जाप करें: ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: । काला वस्त्र चढ़ाएं। नारियल चढ़ाएं।
प्रत्येक शनिवार को इन 10 नामों से शनिदेव का पूजन करें-
कोणस्थ पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम:। सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।।
अर्थात: 1- कोणस्थ, 2- पिंगल, 3- बभ्रु, 4- कृष्ण, 5- रौद्रान्तक, 6- यम, 7, सौरि, 8- शनैश्चर, 9- मंद व 10- पिप्पलाद। इन 10 नामों से शनिदेव का स्मरण करने से सभी शनि दोष दूर हो जाते हैं।
पीपल के वृक्ष में प्रतिदिन अथवा शनिवार के दिन जल दे एवं शनिवार को शाम को तेल का दीपक पीपल पर रखे ।
शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष के चारों ओर सात बार कच्चा सूत लपेटें इस दौरान शनि मंत्र का जाप करें । धागा लपेटने के बाद पीपल के पेड़ की पूजा और दीपक जलाना अनिवार्य है। शनिवार के दिन उपवास रखने वाले व्यक्ति को दिन में एक बार नमक विहीन भोजन करें । शनिवार की शाम पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए
धतूरे की जड़ को शनिवार के दिन शनि होरा अथवा शनि के नक्षत्र में धारण करें।
शनि स्तोत्र पाठ
-
नीलांजन समाभासम रविपुत्रं यमाग्रजम छाया मार्तण्ड सम्भूतं तम नमामि शनैश्चरम ।
सूर्यपुत्रो दीर्घदेही विशालाक्षा श्विप्रिया: मंदचारा प्रसन्नात्मा पीडाम हरतु में शनि ।
नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय च नमोस्तुते नमस्ते बभ्रु रुपाय कृ्ष्णाय च नमोस्तुते ।
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकाय च नमस्ते यम संज्ञाय नमस्ते सौरये विभो ।
नमस्ते मंद संज्ञाय शनेश्वर नमोस्तुते प्रसाद कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च ।
कोणस्थ, पिंगलो, बभ्रु, कृ्ष्णो, र्रौद्रान्तको, यम: सौरि: शनिश्चरो मंद: पिंपलादेन संस्तुत: ।
एतानि दश नमानि प्रात: उत्थाय य: पठेत शनेश्वचर कृ्ता पीडा न कदाचित भविष्यति ।
5. दशरथ कृत शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करे।
दान : -
शनि से संबंधित वस्तुओं , सरसों का तेल, साबुत उड़द, काजल, काला छाता, तवा लोहा, काले तिल, काले कपड़े, काला कंबल और काले जूते का दान शनिवार के दिन गरीब, अपाहिज को शाम के समय (संध्या काल) में दान दे।
शनि ग्रह से पीड़ित व्यक्ति को लंगड़े व्यक्ति की सेवा करनी चाहिए। शनि देव लंगड़े, अपाहिज भिखारी को खाना खिलाने से अति प्रसन्न होते हैं।
शनिवार को तेल में छाया देखकर तेल दान करे।
Note - वस्तुओं का दान शनिवार के दिन शनि की होरा एवं शनि ग्रह के नक्षत्रों (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा भाद्रपद) में दोपहर अथवा शाम को करना चाहिए |
#शनि देव
के उपाय: (शनिवार को करना है)
काले तिल दान करना/ चीटियों को डालना
सरसों के तेल का दाल करना
काली जुरावें दान करना
पीपल के वृक्ष को जल देना
पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों का दीपक जलाना
काला वस्त्र का दान करना
लोहे की वस्तुओं का दान करना (चिंता, तवा)
नीली जल प्रवाह करना
शनि चालीसा का दान करना
कोयला दान करना/ जल प्रवाह करना
जूता, चप्पल दान करना
नोट:- निम्न स्तर का कर्मचारी (मजदूर, नौकर, कामवाली, भिखारी)
के साथ सही व्यवहार रखने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं I
शनिवार को शाम को 7 बजे के बाद (या) सोते समय 5-10 minutes शनि देव के बीजमंत्र का जाप करें
बीजमंत्र:ऊँ शं शनैश्चराय नम:
राहु
नियम :-
अंडे, शराब, मांस, तम्बाकू, एवं धूम्रपान का सेवन न करें, झुठी कसम नही खानी चाहिए।
संयुक्त परिवार में रहे। दिन के संधिकाल में अर्थात् सूर्योदय या सूर्यास्त के समय कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नही करें।
नमक को कांच के पात्र (बरनी) में रखें ।
ससुराल से सम्बन्ध न बिगाड़े।
सर पर चोटी रखे। कुत्तों की देखभाल करें।
मदिरा और तम्बाकू के सेवन से राहु की दशा में विपरीत परिणाम मिलता है अत: इनसे दूरी बनाये रखना चाहिए।
राहू सास-ससुर का कारक है । राहू की दशा, राहू ही सूर्य अथवा चंद्रमा के साथ युति होने या राहूजन्य पीड़ा की शान्ति के लिए सास-ससुर की सेवा और सम्मान करें ।
उपाय :-
नित्य प्रतिदिन शिवजी को जल चढ़ाएं एवं बिल्व पत्र चढ़ाकर दुग्धाभिषेक करें ।
भैरव नाथ के मंदिर में शनिवार, रविवार या बुधवार के दिन नारियल चढ़ाएं।
भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, शनिवार, रविवार, मंगलवार या बुधवार कुत्ते को तेल से चुपड़ी रोटी खिलाने से शनि के साथ ही राहु-केतु से संबंधित दोषों का भी निवारण हो जाता है।
सवा किलो जलेबी बुधवार के दिन भैरव नाथ को चढ़ाएं और कुत्तों को खिलाएं।
जेब में चांदी की ठोस गोली रखे। प्रातःकाल पक्षियों को दाना चुगाना चाहिए।
अष्टधातु का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करना चाहिए।
राहु की पूजा के दौरान इस मंत्र का जाप करें: ऊँ अर्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम । सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम ।। ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः आप इस मंत्र का भी जाप कर सकते हैं - ॐ रां राहवे नमः!
बुधवार के दिन नागरमोथा की जड़ को राहु के नक्षत्र के दौरान धारण करें।
दान : -
रात को सोते समय अपने सिरहाने जौ रखें, कुछ मूलियां रखकर सुबह उनका दान कर दें।
चींटी की बाम्बी में शक्कर डालना, मछलियों को आटे की गोलियाँ डालना और किसी अपाहिज कोढ़ी बदसूरत व्यक्ति को यथेष्ट जेब में से जो निकल आये वो दे ।
कभी-कभी सफाई कर्मचारी को भी चाय के लिए पैसे देते रहें।
राहु की अशुभ दशा से बचने के लिये राहु ग्रह से संबंधित वस्तुओं नीला वस्त्र , नीला फूल , उड़द की दाल , सात प्रकार का अन्न, कंबल लोहे की चादर, लोहे के हथियार, तिल, सरसों तेल, विद्युत उपकरण, नारियल एवं मूली को बुधवार के दिन राहु के नक्षत्र (आर्द्र, स्वाति, शतभिषा) में शाम और रात में दान करें। तम्बाकू का दान करना चाहिए।
कोयला बहते पानी में बहाए। सरसों का दान करे।, दान करने वाली वस्तुएँ- जौ, सरसो, सिक्का, सात प्रकार के अनाज (जौ, तिल, चावल, साबूत मूंग, कंगुनी, चना, गेहूँ , नीले अथवा भूरें रंग के कपड़े, कांच निर्मित वस्तुएँ आदि।
पशु-पक्षियों को बाजरा डालना चाहिए।
राहु का दान कोढ़ी को शाम के समय देना चाहिए ।
राहु काल में क्या करना चाहिए :-
राहु नैसर्गिक अशुभ ग्रह है यह सर्वविदित है। राहु काल में यदि राहु से सम्बन्धित कार्य किये जाते हैं तो सकारात्मक परिणाम मिलता है।
राहु काल ( Rahu Kaal) में राहु ग्रह की शांति के लिए यज्ञ अनुष्ठान करना चाहिए।
यदि आपकी कुंडली में काल-सर्प दोष है और आप उसके लिए अनुष्ठान कराना चाहते है तो राहु काल का चयन कर सकते है अवश्य ही सकारात्मक परिणाम मिलेगा।
राहु ग्रह की शान्ति हेतु चींटी या पशु-पक्षी को यदि आप कुछ अनाज देते है तो राहु काल में खिलाने से तुरंत ही सकारात्मक परिणाम मिलना शुरू हो जाता है।
गोचर में राहु के प्रभाव में जो समय होता है उस समय राहु से सम्बन्धित कार्य किये जाये तो उनमें सकारात्मक परिणाम प्राप्त होता है।
बीमारी या अन्य परेशानी से छुटकारा पाने के लिए यदि आप राहु यंत्र धारण कर रहे है तो राहु काल में धारण करना श्रेष्ठकर होता है।
#राहु
देव के उपाय: (शनिवार को करना है)
राहु अँधेरे का कारक माना जाता है इसीलिए राहु के दान एवं उपाय सूर्यास्त के बाद ही करें तभी उपाय लाभप्रद होंगे I
लग्न कुण्डली में राहु देव की स्थित जानने के बाद ही पता चलता है की आपके लिए राहु शुभ है या अशुभ I
राहु का दान सिर्फ तभी किया जायेगा जब लग्न कुण्डली में राहु मारक/शत्रु ग्रह बनेंगे ! भूल कर भी योग कारक राहु का दान एवं उपाय न करें I
चाय की पत्ती दान करना
अगरबत्ती दान करना
सिक्का दान करना
बिजली की तार जल प्रवाह करना
गोमेद जल प्रवाह करना
सतनाजा चीटियों को डालना
काला सफ़ेद कम्बल दान करना
विकलांगो की सहायता करना
कुस्थश्रम में दान करना, नेत्रहीनों की सेवा करना I
शनिवार को चाय की पत्ती (100gm), १ अगरबत्ती का पैकेट शनि देव के मंदिर के बाहर गरीबों को दान करें और देते समय राहु मंत्र “ॐ रां राहवे नमः” का जप करें I
नोट: किसी भी प्रकार से शारीरिक असमर्थ लोगों का
ख्याल रखने से राहु देव प्रसन्न होते हैं I
रोजाना शाम को 7 बजे के बाद (या) सोते समय 5-10 minutes राहु देव के बीजमंत्र का जाप करें
बीजमंत्र: ऊँ रां राहवे नम:
केतु
नियम :-
अंडे, शराब, मांस, तम्बाकू, एवं धूम्रपान का सेवन न करें।
कुत्ता पालना या कुत्ते की सेवा करनी चाहिए (रोटी खिलाना), कुत्तों की देखभाल करें।
किसी को अपने मन की बात नहीं बताएं एवं बुजुर्गों एवं संतों की सेवा करें यह केतु की दशा में राहत प्रदान करता है
केतु-ग्रह के लिए पत्नी के भाई (साले), बेटी के पुत्र (दोहते) व बेटी के पति (दामाद) की सेवा अवश्य करें। यहां सेवा का मतलब है जब भी ये घर आएं तो इन्हें इज्जत दें
केतु पुत्र और छोटे बच्चो का कारक है । केतु की दशा में अथवा केतु की सूर्य या चंद्रमा से युति होने पर दोष निवारण के लिए छोटे बच्चो और पुत्र के साथ अच्छा व्यवहार करें ।
उपाय :-
गणेश चतुर्थी का व्रत रखे, गणेश उपासना करे। गणेश चतुर्थी की पूजा करे, श्री गणपति अथर्वशीर्ष का जाप करें।
केतु की पूजा के दौरान इस मंत्र का जाप करें: ॐ पलाश पुष्प सकाशं तारका ग्रह मस्तकम्। रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्” । 'ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम:'।
कान छिदवाये और कुत्ता पाले, काले-सफ़ेद कुत्ते को को रोटी डाले। पांच नींबू, पांच गुरुवार तक भैरव जी को चढ़ाएं।
मछलियों को आटे की गोलियाँ डाले। चीटियों को चीनी मिश्रित आटा खियाएं।
शिव मंदिर में ध्वज लगाने से भी केतु शांत होता है। केतु को ध्वज का प्रतीक भी माना जाता है ।
काले और सफ़ेद तिल बहते पानी में बहाए।
रविवार या शुक्रवार को किसी भी भैरव मंदिर में अगरबत्ती जलाएं। नारियल चढ़ाएं।
बुधवार को बुध के नक्षत्र में अश्वगंधा मूल धारण करें।
दान : -
काले-सफेद रंग का दुरंगा कम्बल दान करना चाहिए। केतु का दान साधु को देना चाहिए।
रेलवे स्टेशन पर जाकर किसी कोढ़ी, भिखारी को मदिरा की बोतल दान करें।
सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर भैरव नाथ के मंदिर में बुधवार के दिन चढ़ाएं।
केतु ग्रह के लिए निम्नलिखित वस्तुओ का दान करना चाहिए। दान से पूर्व गणेश पूजा करनी चाहिए उसके बाद नवग्रह की पूजा करे तत्पश्चात क्षेत्रपाल की पूजा करे। केतु से संबंधित वस्तुओं का दान बुधवार या मंगलवार के दिन से शुरू करना चाहिए। तिलतेल, सात प्रकार का अन्न, केला, कंबल, बकरा, शस्त्र, नारियल, उड़द, भूरे रंग की वस्तु का दान करे। साधु, कोढ़ी, दीन-मलीन भिखारियों को यथाशक्ति दान करें।
राहू का उपाय करे। रविवार, बुधवार या गुरुवार के दिन एक रोटी लें। इस रोटी पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली से तेल में डुबोकर लाइन खींचें। यह रोटी किसी भी दो रंग वाले कुत्ते को खाने को दीजिए। अगर कुत्ता यह रोटी खा लें तो समझिए आपको भैरव नाथ का आशीर्वाद मिल गया। अगर कुत्ता रोटी सूंघ कर आगे बढ़ जाए तो इस क्रम को जारी रखें लेकिन सिर्फ हफ्ते के इन्हीं तीन दिनों में (रविवार, बुधवार या गुरुवार)। यही तीन दिन भैरव नाथ के माने गए हैं।
शनिवार के दिन शहर के किसी भी ऐसे भैरव नाथ जी का मंदिर खोजें जिन्हें लोगों ने पूजना लगभग छोड़ दिया हो। रविवार की सुबह सिंदूर, तेल, नारियल, पुए और जलेबी लेकर पहुंच जाएं। मन लगाकर उनकी पूजन करें। बाद में 5 से लेकर 7 साल तक के बटुकों यानी लड़कों को चने-चिरौंजी का प्रसाद बांट दें। साथ लाए जलेबी, नारियल, पुए आदि भी उन्हें बांटे। याद रखिए कि अपूज्य भैरव की पूजा से भैरवनाथ विशेष प्रसन्न होते हैं।
#केतु
देव के उपाय: (मंगल, बुधवार को करना है)
काला सफ़ेद कपड़ा दान करना
निम्बू दान करना
अमचूर दान करना
आंवले का अचार दान करना
चाकू दान करना
कुत्ते की सेवा करना
कुत्ते को कपड़ा पहनना
नोट:- नानका परिवार से मधुर संबंध रखने से
केतुदेव प्रसन्न होते हैं.
रोजाना शाम को 7 बजे के बाद (या) सोते समय 5-10 minutes केतु देव के बीजमंत्र का जाप करें I
बीजमंत्र: ऊं कें केतवे नम:
उपाय में रिश्तों का महत्त्व:
गृह दोष शांति – सरल टोटका :
किसी पंसारी की दुकान से एक गोला ले आये(नारियल के अन्दर के भाग को गोला कहते है ) | अब इस गोले में बड़ा सा छेद करके इसमें गन्ने का रस भर दे और बूरा या खांड इनमें से जो भी उपलब्ध हो उसे भी गोले में अच्छे से भर दे | अब एक ऐसे स्थान की तलाश करें जहाँ चीटीं का बिल हो | चींटी के बिल के पास में 1.5 फुट गड्डा बनाकर इसमें इस गोले को रख दे और ऊपर से मिट्टी द्वारा अच्छे से ढक दे | ऊपर एक भारी सा पत्थर रख दे ताकि कोई जानवर इसे निकल न पायें | जैसे ही चीटियाँ उस गोले को खाना शुरू कर देती है, आपके गृह दोष भी शांत होने लगते है |
किन्तु ध्यान दे , इस टोटके का असर 3 महीनें तक ही रहता है | 3 महीनें बाद आप इस प्रयोग को पुनः कर सकते है |
गृह दोष शांति – मंत्र :-
मंत्र इस प्रकार है :-
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी, भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहु केतवः, सर्वे ग्रहा शान्तिकरा भवन्तु ।।
सभी 9 ग्रहों को एक साथ शांत करने का यह सबसे प्रभावशाली मंत्र है | यदि संभव हो सके तो प्रतिदिन नवग्रह मंदिर जाकर सभी ग्रहों को जल से स्नान कराये व दूप दीप जलाकर उपरोक्त मंत्र के यथासंभव जप करें | यदि आपके आस-पास नवग्रह मंदिर नहीं है तो अपने पूजा के स्थान पर बैठकर भी आप ये मंत्र जप कर सकते है |
लग्न कुंडली का शोधन चलित कुंडली है, अंतर सिर्फ इतना है कि लग्न कुंडली यह दर्शाती है कि जन्म के समय क्या लग्न है और सभी ग्रह किस राशि में विचरण कर रहे हैं और चलित से यह स्पष्ट होता है कि जन्म समय किस भाव में कौन सी राशि का प्रभाव है और किस भाव पर कौन सा ग्रह प्रभाव डाल रहा है।
ग्रह अपनी दशा में किस भाव का फल देगा यह हमेशा भाव चलित कुण्डली से देखा जाता है जैसे कोई ग्रह राशि कुण्डली में पहले भाव में बैठा हो तो हमें लगेगा कि वह अपनी दशा में स्वास्थ्य देगा। लेकिन मान लिजिए की वह ग्रह चलित कुण्डली में बारहवें भाव में चला गया तो फिर वह स्वास्थ्य की जगह बारहवें भाव का फल जैसे अस्पताल में भर्ती होना और अकेलेपन जैसा फल ज्यादा देगा।
अगर ग्रह की भाव
स्थिति भाव चलित कुण्डली में बदल जाती है तो ग्रह उस भाव से जुडा हुआ फल देता है
जिस भाव में वह भाव चलित कुण्डली में होता है। लग्न कुंडली तो लगभग दो घंटे तक एक सी होगी लेकिन समय के
अनुसार परिवर्तन तो चलित कुंडली ही बतलाती है। जैसे ही राशि भावों में बदलेगी भाव
का स्वामी भी बदल जाएगा। स्वामी के बदलते ही कुंडली में बहुत परिवर्तन आ जाता है।
कभी योगकारक ग्रह की योगकारकता समाप्त हो जाती है तो कहीं अकारक और अशुभ ग्रह भी
शुभ हो जाता है। ग्रह की शुभता-अशुभता भावों के स्वामित्व पर निर्भर करती है।
इसलिए फलित में विशेष अंतर आ जाता है।
ग्रहों का अंश तथा षड़बल
जिस तरह इन्सान दो पांवो पर चलता है उसी
प्रकार षडबल और अंशमात्र
बलाबल के अनुसार ही ग्रह अपना फल देता है l दोनों में से एक के बल में भी यदि कमी आ जाती है
तो उनके फल में कमी आ जाती है l
जैसे एक रेलगाड़ी दो पटरियों पर चलती है
वैसे ही किसी ग्रह का फल षडबल और अंशमात्र बलाबल पर आधारित होता है l इसीलिए कुण्डली का विवेंचन करते समय इन दोनों
तथ्यों का ध्यान रखना अति अनिवार्य है l
ग्रहों का अंश:
कुण्डली में ग्रह अपने अंशमात्र के अनुसार
ही फल देता है I ग्रहों की डिग्री के अनुसार ग्रहों को 5 भागों में बाँटा गया है I
यदि कुण्डली में योगकारक ग्रह का बल कम है
तोह उसका रत्न धारण करके ग्रह से आने वाली किरणों को बढ़ाया जाता है I
यदि कुण्डली में मारक ग्रह का बल कम है
तोह इसे अच्छा माना जाता है,
क्यूंकि मारक ग्रह का बल कम होने से वह
ग्रह अपनी दशा-अन्तरा में ज्यादा परेशानी नहीं देगा I
दान करने से हमारेशरीर से ग्रह का प्रभाव
कम हो जाता है इसलिए ज्योतिष में दान का बहुत महत्व होता है I दान सिर्फ मारक (शत्रु) ग्रह का ही करें I
ग्रहों का दिशा – बल:जैसा कि हम जानते हैं कि दिशाएं चार
होती हैं – पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण l
प्रत्येक दिशा
में कुछ ग्रह बलि होते हैं जहाँ उनका बल बढ़ जाता है l वें कुण्डली के कारक या मारक ग्रह होने
के अनुसार अपने अच्छे या बुरे फल देने में वृद्धि करते हैं l
षडबल कई तरह के
बलों का समावेंश होता है l
जैसे-स्थान बल,काल बल,चेष्ट
बल,दिग बल,दृग बल,आयान
बल|
स्वभाव
और कारकत्व:
ग्रहों का एक 'स्वाभाव' होता है और 'कारकत्व'भी होता है। कारकत्व मतलब प्रभाव क्षेत्र। दुनिया कि सभी वस्तुओं को नौ ग्रहों के अन्तर्गत रखा गया है।
सूर्य का कारकत्व है - राजा, पिता, तांबा, हृदय आदि ।
उदाहरण
के तौर पर अगर किसी की कुण्डली में सूर्य
खराब है तो पिता, हृदय आदि कारकत्व प्रभावित होंगे। दूसरे शब्दों
में व्यक्ति को पिता का प्रेम नहीं मिलेगा, हृदय रोग होंगे आदि।
कारकत्व के अलावा ग्रहों के स्वाभाव को जानना
भी जरूरी है।
सूर्य का स्वाभाव है - लाल रंग, पुरुष, क्षत्रिय जाति, पाप ग्रह, सत्वगुण प्रधान, अग्नि तत्व, पित्त प्रकृति।
मान लीजिए कि किसी का लग्न में सूर्य है तो
सूर्य का क्षत्रिय स्वाभाव होने से वह आक्रामक होगा। सूर्य का पुरुष स्वाभाव है
उदाहरण के तौर पर अगर किसी स्त्री की कुण्डली में सूर्य लग्न में हो तो वह
पुरुषों की तरह आक्रामक और आजाद ख्याल की होगी।
उम्मीद है कि अब आप ग्रहों के कारकत्व और स्वाभाव में फरक समझ गए होंगे। सूर्य के बारे में हमने जान लिया है अब चन्द्र के बारे में जानते हैं।
स्त्री, वैश्य जाति, सौम्य ग्रह, सत्वगुण, जल तत्व, वात कफ प्रकृति आदि चंद्र का स्वाभाव है।
सफेद रंग, माता, मन, चांदी, चावल आदि पर चंद्र अपना प्रभाव रखता है।
लग्न में चन्द्र हों तो व्यक्ति में स्त्री सदृश गुण हो सकते हैं। यदि चंद्र खराब हो तो चंद्र के कारकत्व जैसे माता का सुख नहीं मिलेगा।
क्रूर, आक्रामक, पुरुष, क्षत्रिय, पाप, तमोगुणी, अग्नितत्व, पित्त प्रकृति आदि मंगल का स्वाभाव है।
लाल रंग, भाई बहन, युद्ध, हथियार, चोर, घाव, रक्त, मांसपेशियाँ, ऑपरेशन, आदि का कारक मंगल है।
मंगल खराब होगा तो मंगल के कारकत्व को नुकसान पहुंचेगा। जैसे चोरी बहुत होंगी, चोट अक्सर लगेगी आदि।
नपुंसक, वैश्य जाति, रजोगुणी, त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) प्रकृति बुध का स्वाभाव है।
हरा रंग, मामा, गणित, व्यापार, बोलना, आदि का कारक बुध है।
बुध अच्छा होगा तो व्यक्ति की गणित की समझ अच्छी होगी। अगर इससे उलट बुध खराब हो तो गणित समझने में मुशिकल होती है और ऐसे में बेहतर होता है कि विज्ञान की जगह कला की शिक्षा ग्रहण की जाय।
मोटा शरीर, पुरुष, ब्राह्मण, सौम्य, सत्वगुणी, कफ प्रकृति गुरु का स्वाभाव है।
पीला रंग, वेद, धर्म, भक्ति, स्वर्ण, ज्ञानी, गुरु, चर्बी, कफ, विद्या, पुत्र, पौत्र, विवाह आदि का गुरु प्रतिनिधित्व करता है।
सुन्दर शरीर, स्त्री, ब्राह्मण, सौम्य, कफ प्रकृति शुक्र का स्वाभाव है।
सफेद रंग, सुन्दर कपडे, सुन्दरता, पत्नी, प्रेम सम्बन्ध, वीर्य, काम-शक्ति, वैवाहिक सुख, काव्य, स्त्री का प्रतिनिधि शुक्र है।
शुक्र के कारकत्व को देखते हुए यह समझना मुश्किल नहीं की शुक्र का कुण्डली में अच्छा होना वैवाहिक जीवन के लिए उत्तम है।
धसी हुई आंखें, पतला लंबा शरीर, क्रूर, नपुंसक, शूद्रवर्ण, पाप, तमोगुणी, वात कफ प्रकृति है शनि की।
काला रंग, चाचा, नौकर, आयु, वैराग्य, आदि का प्रतिनिधि शनि है।
शनि खराब हो तो नौकरों से परेशानी होती है। चाचा से तनाव रहता है।
पाप, चाण्डाल, तमोगुणी, वात पित्त प्रकृति राहु केतु का स्वाभाव है।
गहरा धुंए जैसा रंग, दादा, धोखा, जुआ सट्टा, विदेश, सांप, विधवा आदि राहु के कारकत्व हैं।
तंत्र मंत्र, मोक्ष, दुर्घटना, नाना, झगडा, चोरी, चर्म रोग, कुत्ता, भूख का प्रतिनिधि केतु हैं।
मारकेश
के ग्रह
जन्मपत्रिका
के द्वितीयेष, सप्तमेष व द्वादशेष मारकेश
ग्रह माने गए हैं इनमें द्वितीयेष व सप्तमेष को प्रबल मारकेश माना गया है। ज्योतिष में 'मारकेश' मृत्यु
देने वाला ग्रह होता है। यदि मारकेश शनि, मंगल,
सूर्य, जैसे
क्रूर ग्रह हों या 'मारकेश' ग्रह
राहु-केतु से संयुक्त हों तो यह अधिक हानिकारक हो जाते हैं। मारकेश की महादशा या
अंतर्दशा में जातक मृत्युतुल्य कष्ट पाता है और यदि आयु पूर्ण हो चुकी हो तो ऐसे
में जातक की इन दशाओं में मृत्यु होना भी संभव है।
'षष्ठेश' रोग का कारक है-
ज्योतिष शास्त्र में कुंडली के छठे भाव को रोग का भाव माना गया है
एवं इसके अधिपति ग्रह जिसे 'षष्ठेश' कहा
जाता है, रोग का अधिपति ग्रह माना गया है। यदि किसी जातक पर 'षष्ठेश' की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो तो वह
निश्चित ही किसी ना किसी रोग से पीड़ित होगा। जन्मपत्रिका में 'षष्ठेश' रोग का पक्का कारक होता है। अत: यदि कोई जातक जन्मपत्रिका के अनुसार 'षष्ठेश'
की महादशा या अंतर्दशा भोग रहा है तो वह अवश्य
ही रोग से पीड़ित हो जाएगा। यदि 'षष्ठेश' जन्मपत्रिका
के किसी शुभ या लाभ भाव में स्थित हो तो ऐसे में रोगग्रस्त होने की संभावना बढ़
जाती है। ऐसा जातक शीघ्र ही रोग से मुक्त नहीं होता।
आइए अब जानते है 12 लग्नानुसार 'मारकेश' व 'षष्ठेश' कौन से ग्रह होते हैं जिनकी महादशा, अंतर्दशा व प्रत्यंतर दशा में व्यक्ति को स्वास्थ्य के प्रति अत्यंत सावधान रहना चाहिए-
1. मेष लग्न- मेष लग्न के जातकों के लिए शुक्र व मंगल 'मारकेश' एवं बुध 'षष्ठेश' होता है।
2. वृषभ लग्न- वृषभ लग्न के जातकों के लिए बुध व मंगल 'मारकेश' एवं शुक्र 'षष्ठेश' होता है।
3. मिथुन लग्न- मिथुन लग्न के जातकों के लिए चंद्र व गुरु 'मारकेश' एवं मंगल 'षष्ठेश' होता है।
4. कर्क लग्न- कर्क लग्न के जातकों के लिए सूर्य व शनि 'मारकेश' एवं गुरु 'षष्ठेश' होता है।
5. सिंह लग्न- सिंह लग्न के जातकों के लिए बुध व शनि 'मारकेश' एवं शनि 'षष्ठेश' होता है।
6. कन्या लग्न- कन्या लग्न के जातकों के लिए शुक्र व गुरु 'मारकेश' एवं शनि 'षष्ठेश' होता है।
7. तुला लग्न- तुला लग्न के जातकों के लिए मंगल 'मारकेश' एवं गुरु 'षष्ठेश' होता है।
8. वृश्चिक लग्न- वृश्चिक लग्न के जातकों के लिए गुरु व शुक्र 'मारकेश' एवं मंगल 'षष्ठेश' होता है।
9. धनु लग्न- धनु लग्न जातकों के लिए शनि व बुध 'मारकेश' एवं शुक्र 'षष्ठेश' होता है।
10. मकर लग्न- मकर लग्न के जातकों के लिए शनि व चंद्र 'मारकेश' एवं बुध 'षष्ठेश' होता है।
11. कुंभ लग्न- कुंभ लग्न के जातकों के लिए गुरु व सूर्य 'मारकेश' एवं चंद्र 'षष्ठेश' होता है।
12. मीन लग्न- मीन लग्न जातकों के लिए मंगल व बुध 'मारकेश' एवं सूर्य 'षष्ठेश' होता है।
जैसे की मै पहले भी बता चुका हूं कि
योगकारक ग्रह आपकी कुण्डली में कही पर भी बैठें हो आपको हमेशा सकारात्मक परिणाम ही
देंगे और आपको जीवन में उन्नति की ओर अग्रसर करेगे जबकि मारक ग्रह इसके विपरीत
परिणाम देंगे आपकी उन्नति में रूकावट पैदा करेंगे ।
जब योगकारक ग्रहो की दशा व् अन्तर्दशा
आएगी तो जातक को अच्छे परिणाम ही मिलेंगे इसके विपरीत जब मारक ग्रहो की दशा व्
अन्तर्दशा चलेगी तब जातक को परेशानी होगी ।
योगकारक ग्रहो की पूजा अर्चना मंत्र जाप आदि से अधिक शुभ फल की प्राप्ति होती हैं एवं मारक ग्रहो के दान आदि करने से उनकी मारक क्षमता को कम किया जा सकता हैं
बाधक ग्रह / बाधा कारक ग्रह:
बाधक ग्रह वो ग्रह होते है जो जीवन मे किसी
प्रकार के बाधा को उत्पन्न करते है।ये अचानक से जीवन मे बाधा पहुचाते है,जैसा कि नाम से
विदित है बाधक ग्रह जातक के लिए कार्य मे
रुकावट, अडचन, बाधा उत्पन्न करते है दशा चक्र मे आने
पर उपरोक्त ग्रह कार्य मे रुकावट पैदा करते है ।कई
बार देखा जाता हैं कि जन्म कुंङली में सभी ग्रह ठीक होते हैं तथा बङे-बङे योग भी
होते हैं लेकिन उनका फल नहीं मिलता, न धन मिलता हैं
न सुख मिलता हैं हर घङी परेशान व बेचैन रहते हैं। सब जगह माथा टेका, जाप करवाया, पाठ किया फिर भी कुछ भी फल नहीं मिला।
हम यह जानने की कोशिश नहीं करते कि जन्म कुंङली में कोई ग्रह बाधा तो नहीं हैं यदि
बाधा कारक ग्रह की शान्ति हो जाये तो निश्चय ही शुभ फल,सुख
शान्ति मिलेगी।
मेष, कर्क, तुला और मकर राशि चर स्वभाव की राशियाँ मानी गई हैं. चर अर्थात चलायमान रहती है.वृष, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशियाँ स्थिर स्वभाव की राशि मानी गई हैं. स्थिर अर्थात ठहराव रहता है. मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशियाँ द्वि-स्वभाव की राशि मानी जाती है अर्थात चर व स्थिर दोनो का समावेश इनमें होता है.
अब जन्म लग्न में स्थित राशि के आधार पर बाधक ग्रह का निर्णय करते हैं. जन्म लग्न में चर राशि मेष, कर्क, तुला या मकर स्थित हैं तब एकादश भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है.
जन्म लग्न में स्थिर राशि वृष, सिंह, वृश्चिक या कुंभ स्थित है तब नवम भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है. यदि जन्म लग्न में द्वि-स्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु या मीन स्थित है तब सप्तम भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है. बहुत से विद्वानो के मतानुसार बाधक भावों - एकादश, नवम व सप्तम में बैठे ग्रह भी बाधकेश की भूमिका अदा करते हैं.
बाधक सदैव बाधक नहीं होते
आइए बाधक ग्रह के संदर्भ में कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्यो को जानने का प्रयास करें. वैदिक ज्योतिष में बाधक ग्रह का जिक्र किया गया है तो कुछ ना कुछ अरिष्ट होता ही होगा, लेकिन इन अनिष्टकारी बातों का अध्ययन बिना सोचे समझे नहीं करना चाहिए. कुंडली की सभी बातों का बारीकी से अध्ययन करने के बात ही किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए.
व्यक्ति विशेष की जन्म कुंडली में बाधक ग्रह का सूक्ष्मता से अध्ययन आवश्यक है कि वह कब अरिष्टकारी हो सकते हैं. हर कुंडली में यह अरिष्टकारी ग्रह सुनिश्चित होते ही हैं. इसलिए पहले यह निर्धारित करना चाहिए कि ये कब अशुभ फल प्रदान कर सकते हैं.
एकादश भाव को जन्म कुंडली का लाभ स्थान का लाभ स्थान माना गया है. कुंडली के नवम भाव को भाग्य स्थान के रुप में भी जाना जाता है और जन्म कुंडली के सप्तम भाव से हर तरह की साझेदारी देखी जाती है. जीवनसाथी का आंकलन भी इसी भाव से किया जाता है.
जन्म कुंडली में जब एकादश भाव की दशा या अन्तर्दशा आती है तब यही माना जाता है कि व्यक्ति को लाभ की प्राप्ति होगी तो क्या हमें यह समझना चाइए कि चर लग्न के व्यक्ति को एकादशेश के बाधक होने से कोई लाभ नहीं मिलेगा? इसलिए बिना सोचे समझे किसी नतीझे पर नहीं पहुंचना चाहिए.
इसी तरह से स्थिर लग्न के व्यक्ति की जन्म कुंडली में यदि नवमेश को सबसे बली त्रिकोण माना गया है और भाग्येश है तब यह कैसे अशुभ हो सकता है? सप्तम भाव अगर बाधक का काम करेगा तब तो किसी भी व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सुखमय हो ही नहीं सकता है. इसका अर्थ यह हुआ कि द्वि-स्वभाव के लग्न वाले व्यक्तियों के जीवन में सदा ही बाधा बनी रह सकती हैं. बाधक ग्रह के विषय में आँख मूंदकर बोलने से पहले कुंडली का निरीक्षण भली-भाँति करना जरूरी है.
बाधाकारक
ग्रह का प्रभाव कब होगा
व्यक्ति के जीवन में जब बाधक ग्रह की दशा आती है तब वह बाधक ग्रह स्वयं ज्यादा हानि पहुंचाते हैं या वह जिन भावों में स्थित हैं वहाँ के कारकत्वों में कमी कर सकता है. व्यक्ति विशेष की कुंडली में बाधक ग्रह जब कुंडली के अशुभ भावों के साथ मिलते हैं तब ज्यादा अशुभ हो जाते हैं.
कुंडली मे जब मारक ग्रहों की दशा या छठवे/ आठवें ग्रहों के साथ जब बाधक ग्रहों की अंतर्दशा चलती है तब मरण तुल्य कष्ट होता हैं,जातक पर जादू टोने का असर इस बाधक ग्रह के अंतर्दशाचलने के समय जल्दी होता है,काम बनते नही है,बीमारी जल्दी ठीक नहीं होती,डॉक्टर के लिएभी इस समय रोग की पहचान करना मुश्किल होता है।जब अच्छे ग्रह की अंतर्दशा आती है तभी बुरे प्रभाव ठीक होते है।
यही बाधक ग्रह जब जन्म कुंडली के शुभ ग्रहों के
साथ मिलते हैं तब उनकी शुभता में कमी भी कर सकते हैं. बाधक ग्रह सबसे ज्यादा अशुभ
तब होते हैं जब वह दूसरे भाव,
सप्तम भाव या अष्टम
भाव के स्वामी के साथ स्थित होते हैं.
हम यहाँ लग्न के हिसाब से बाधा कारक ग्रह बता रहे हैं इनकी शान्ति करके जीवन सुखी बना सके ऐसी हम कामना करते हैं :--
मेष लग्न में बाधा कारक ग्रह ग्यारहवें भाव का स्वामी होता हैं।
वृष लग्न में बाधा कारक ग्रह नवम भाव का स्वामी होता हैं।
मिथुन लग्न में बाधा कारक ग्रह सप्तम भाव का स्वामी होता हैं।
कर्क लग्न में बाधा कारक ग्रह ग्याहरवें भाव का स्वामी होता हैं।
सिंह लग्न में बाधा कारक ग्रह नवम भाव का स्वामी होता हैं।
कन्या लग्न में बाधा कारक ग्रह सप्तम भाव का स्वामी होता हैं।
तुला लग्न में बाधा कारक ग्रह ग्याहरवें भाव का स्वामी होता हैं।
वृश्चिक लग्न में बाधा कारक ग्रह नवम भाव का स्वामी होता हैं।
धनु लग्न में बाधा कारक ग्रह सप्तम भाव का स्वामी होता हैं।
मकर लग्न में बाधा कारक ग्रह ग्यारहवें भाव का स्वामी होता हैं।
कुम्भ लग्न में बाधा कारक ग्रह नवम भाव का स्वामी होता हैं।
मीन लग्न में बाधा कारक ग्रह सप्तम भाव का स्वामी होता हैं।
इस तरह बाधा कारक भाव के स्वामी की पूजा, पाठ, जाप, दान करके शान्ति करें।
उच्च
तथा नीचविचार
में मतभेद :-
ज्योतिष में रूचि रखने वाले लोगों के मन में उच्च तथा नीच राशियों में स्थित ग्रहों को लेकर एक प्रबल धारणा बनी हुई है कि अपनी उच्च राशि में स्थित ग्रह सदा शुभ फल देता है तथा अपनी नीच राशि में स्थित ग्रह सदा नीच फल देता है। उदाहरण के लिए शनि ग्रह को तुला राशि में स्थित होने से अतिरिक्त बल प्राप्त होता है तथा इसीलिए तुला राशि में स्थित शनि को उच्च का शनि कह कर संबोधित किया जाता है और अधिकतर ज्योतिषियों का यह मानना है कि तुला राशि में स्थित शनि कुंडली धारक के लिए सदा शुभ फलदायी होता है।
किंतु यह धारणा एक भ्रांति से अधिक कुछ नहीं है तथा इसका वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं है और इसी भ्रांति में विश्वास करके बहुत से ज्योतिष प्रेमी जीवन भर नुकसान उठाते रहते हैं क्योंकि उनकी कुंडली में तुला राशि में स्थित शनि वास्तव में अशुभ फलदायी होता है तथा वे इसे शुभ फलदायी मानकर अपने जीवन में आ रही समस्याओं का कारण दूसरे ग्रहों में खोजते रहते हैं तथा अपनी कुंडली में स्थित अशुभ फलदायी शनि के अशुभ फलों में कमी लाने का कोई प्रयास तक नहीं करते। इस चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले आइए एक नज़र में ग्रहों के उच्च तथा नीच राशियों में स्थित होने की स्थिति पर विचार कर लें।
नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह को किसी एक राशि विशेष में स्थित होने से अतिरिक्त बल प्राप्त होता है जिसे इस ग्रह की उच्च की राशि कहा जाता है। इसी तरह अपनी उच्च की राशि से ठीक सातवीं राशि में स्थित होने पर प्रत्येक ग्रह के बल में कमी आ जाती है तथा इस राशि को इस ग्रह की नीच की राशि कहा जाता है। उदाहरण के लिए शनि ग्रह की उच्च की राशि तुला है तथा इस राशि से ठीक सातवीं राशि अर्थात मेष राशि शनि ग्रह की नीच की राशि है तथा मेष में स्थित होने से शनि ग्रह का बल क्षीण हो जाता है। इसी प्रकार हर एक ग्रह की 12 राशियों में से एक उच्च की राशि तथा एक नीच की राशि होती है।
किंतु यहां पर यह समझ लेना अति आवश्यक है कि किसी भी ग्रह के अपनी उच्च या नीच की राशि में स्थित होने का संबंध केवल उसके बलवान या बलहीन होने से होता है न कि उसके शुभ या अशुभ होने से। तुला में स्थित शनि भी कुंडली धारक को बहुत से अशुभ फल दे सकता है जबकि मेष राशि में स्थित नीच राशि का शनि भी कुंडली धारक को बहुत से लाभ दे सकता है। इसलिए ज्योतिष में रूचि रखने वाले लोगों को यह बात भली भांति समझ लेनी चाहिए कि उच्च या नीच राशि में स्थित होने का प्रभाव केवल ग्रह के बल पर पड़ता है न कि उसके स्वभाव पर।
किसी भी ग्रह के अपनी उच्च या नीच की राशि में स्थित होने का संबंध केवल उसके बलवान या बलहीन होने से होता है न कि उसके शुभ या अशुभ होने से।
अपना फल दे पाने की अवस्था में है कि नहीं जैसे अगर कोई ग्रह शत्रु के घर में बैठा है तो वह उतना लाभ नहीं दे पाएगा जितना कि स्व ग्रही, उच्च राशि या मित्र राशि में बैठकर दे पाता अब आगे उसकी डिग्री कितनी है अवस्था मृत या वृद्ध तो नही, अस्त तो नहीं फिर वो जाग्रत है या सोया है
साथ मेंतुला में स्थित शनि भी कुंडली धारक को बहुत से अशुभ फल दे सकता है जबकि मेष राशि में स्थित नीच राशि का शनि भी कुंडली धारक को बहुत से लाभ दे सकता है। इसलिए ज्योतिष में रूचि रखने वाले लोगों को यह बात भली भांति समझ लेनी चाहिए कि उच्च या नीच राशि में स्थित होने का प्रभाव केवल ग्रह के बल पर पड़ता है न कि उसके स्वभाव पर।
उच्च ग्रह तथा नीच ग्रह
उच्च ग्रह :
जब कोई ग्रह किसी राशि में सामान्य से अधिक अच्छे फल देने बाध्य हो
जाए , तो
उसे उच्च का ग्रह कहा जाता है l
यदि कुण्डली में योग कारक ग्रह उच्च का होता है तो वह ग्रह सामान्य
से अधिक अच्छे फल देने में बाध्य हो जाता है I यदि कुण्डली का मारक ग्रह उच्च का होता
है तो उसका मारकत्व बढ़ जाता है मतलब ग्रह सामान्य से अधिक बुरे परिणाम देता है I
नीच
ग्रह :
जब कोई ग्रह किसी राशि में सामान्य से बुरे फल देने में बाध्य हो जाए, तो उसे नीच का ग्रह कहा जाता
है I नीच ग्रह बलहीन नहीं होता, नीच
ग्रह अशुभ होता है और सदैव अपनी दशा – अन्तरा में मारक (शत्रु) ग्रह की तरह फल देता है l
Explanation: यदि कोई साधु – सन्त शराब के ठेके पर जाकर शराब पिए तोह ऐसे साधु को समाज का कोई भी
इन्सान नमन नहीं करेगा क्यूंकि वो नीच हरकत कर रहा है ऐसा साधु बलहीन नहीं माना
जाता है, अशुभ माना जाता है I
कुण्डली में जब भी नीच ग्रह की दशा –
अन्तरा चलेगी वोह सदैव कष्टकारी होगी, यदि किसी उच्च ग्रह या स्वः
राशि ग्रह की वजह से नीच ग्रह की नीचता भंग हो जाती है तोह वही नीच ग्रह अच्छा फल
देने में बाध्य हो जाता है (As per Neech
Bhang Rajyog)
भूलकर
भी नीच ग्रह का रत्न धारण न करें I रत्न का काम होता है ग्रह से आने वाली किरणों को बढ़ाना, यदि किसी जातक/जातिका ने नीच
ग्रह का रत्न धारण किया हुआ है तोह उस ग्रह की नीचता (अशुभता) कई गुना बढ़ जाएगी
जोकि मृत्युतुल्य कष्ट देने के लिए बाध्य हो जायेगा I
स्वः
राशि ग्रह:
जो ग्रह अपनी ही राशि में पड़ा हो,
वह ग्रह स्वः राशि ग्रह कहलाता है और वह स्वस्थ
अवस्था का ग्रह माना जाता है l
चन्द्रमा, बुध, शुक्र, गुरू शुभ ग्रह हैं
सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु चन्द्र एवं बुध को सदैव ही शुभ नहीं माना जाता। पूर्ण चन्द्र यानि कि पूर्णिमा के पास का चन्द्र शुभ माना जाता है जबकि अमावस्या के पास का चन्द्र शुभ नहीं माना जाता। इसी प्रकार बुध अगर शुभ ग्रह के साथ हो तो शुभ होता है और यदि पापी ग्रह के साथ हो तो पापी हो जाता है।
सभी पापी ग्रह सदैव ही बुरा फल नहीं देते। न ही
सभी शुभ ग्रह सदैव ही शुभ फल देते हैं। अच्छा या बुरा फल कई अन्य बातों जैसे
ग्रह का स्वामित्व, ग्रह की राशि स्थिति, दृष्टियों, और दशा
इत्यादि पर भी निर्भर करता है
वक्रीय (Retrograde) तथा अस्त (Combust)
सभी
ग्रह अपनी चाल चलते – चलते
वक्रीय होते हैं परन्तु इस बात को सदैव स्मरण रखना चाहिए कि सूर्य और चन्द्रमा कभी
भी वक्रीय नहीं होते हैं l ये सदैव
मार्गीय चलते हैं (इसीलिए बीता हुआ समय कभी भी वापस लौटकर नहीं आता है l)वक्रीय ग्रह का सही अर्थ :
जब भी कुण्डली में कोई ग्रह वक्रीय होता है तो
उसके परिणाम देने की क्षमता में तीन गुना वृद्धि हो जाती है I इसी कारण राहु और केतु (सदैव वक्रीय चलते हैं) का
प्रभाव अधिक माना जाता है I
यदि कुण्डली में योग कारक ग्रह वक्रीय हो तो उसकी योग कारकता में तीन
गुना वृद्धि हो जाती है और यदि मारक ग्रह कुण्डली में वक्रीय हो तो उसका मारकेत्व
तीन गुना बढ़ जाता है l
जबकि बहुत सारे जातकों की यह गलत धारणा रहती है कि वक्रीय ग्रह सदैव
अच्छा होता है और अपने से पिछले भाव का फल देता है जो कि शास्त्रानुसार नहीं है l
अस्त ग्रह (combust planet):
जो भी ग्रह सूर्य के आस –
पास 12° से 17° तक आ जाए, वह अस्त अवस्था का माना जाता है l
सरल भाषा में हम यह कह सकते हैं कि जो ग्रह अस्त हुआ है, उसकी किरणों की कमी सूर्य के साथ होने से हो गई है और हमारे शरीर में
उन किरणों का पूर्ण प्रवेंश नहीं हो पाया l इसीलिए अस्त ग्रह को कुण्डली में बलहीन माना जाता है l
सूर्य हर ग्रह को अस्त करने की क्षमता रखता है लेकिन वह राहु और केतु
जैसे छाया ग्रह को अस्त नहीं करता बल्कि उनके प्रभाव में आकर सूर्य स्वयं ग्रहण
योग में आकर दूषित हो जाता है l
सूर्य हर ग्रह को अस्त करने की क्षमता रखता है लेकिन वह राहु और केतु
जैसे छाया ग्रह को अस्त नहीं करता बल्कि उनके प्रभाव में आकर सूर्य स्वयं ग्रहण
योग में आकर दूषित हो जाता है l
सूर्य अपने से एक भाव आगे या पीछे बैठे ग्रह को अस्त कर सकता है I यदि कोई भी ग्रह (राहु, केतु को छोड़कर) सूर्य के साथ
12 – 17 ° तक नजदीक आ जाता है तोह वह ग्रह सूर्य से अस्त हो जाता है और उस ग्रह
की किरणें हमारे शरीर तक नहीं पहुंच पाती हैं क्यूंकि वह ग्रह सूर्य की किरणों के
पीछे चला जाता है इसलिए अस्त ग्रह के परिणाम देने में बहुत बड़ी कमी आ जाती है I
यदि कुण्डली का योग कारक ग्रह (मित्र ग्रह) किसी भी भाव में अस्त हो
जाता है तोह उस ग्रह का रत्न धारण किया जाता है I
रत्न धारण करने से हमारे शरीर पर अस्त ग्रह से
किरणें आना शुरू हो जाती हैं और हमें जीवन में आगे बढ़ने में मदद करती हैं I
यदि कुण्डली का मारक ग्रह (शत्रु ग्रह) अस्त हो जाता है तोह उसके अशुभ
प्रभाव में कमी आ जाती है क्यूंकि हमारे शरीर पर अस्त ग्रह की किरणें काम हो जाती
हैं जोकि जातक के लिए अच्छा माना जाता है I
मारक ग्रह के अस्त होने से उसकी नकारात्मक किरणों में कमी आ जाती है
और हमें कम परेशानियाँ होती हैं I
योग
कारक ग्रहों का अस्त होना कुण्डली को कमजोर करता है |
मारक
ग्रहों का अस्त होना कुण्डली के लिए शुभ माना जाताहै |
ग्रहों के
तत्व:
ग्रहों का लिंग निर्धारण:
शुभ मुहूर्त कैसे देखें ?
हमारे जीवन में हर कार्य को शुरू करने, नई वस्तु खरीदने, घर या दुकान के उद्घाटन करने में मुहूर्त का बहुत महत्त्व होता है l
ऐसे बहुत सारे शुभ मुहूर्त प्रत्येक महीने में आते हैं जिनमे नया कार्य करना सर्वदा शुभ होता है l जैसे – स्वार्थ सिद्धि योग, रवि – पुष्य योग, त्रिपुष्कर योग आदि lइन योगों में कोई भी कार्य शुरू करना सदैव शुभ फल देता है और जल्दी पूर्ण होता है l
स्वार्थ – सिद्धि योग एक महीने में कई बार आते हैं l इनमे किया गया कार्य सदा शुभफलदायक होता है तथा जल्दी पूर्ण होता है l क्यूंकि स्वार्थ सिद्धि योग का अर्थ ही है “सब अर्थों का सिद्ध” होना l
प्रत्येक वर्ष आने वाली पंचाक में हर महीने के स्वार्थ सिद्धि योग देखे जा सकते हैं l
बाकी योगों की भी इसी प्रकार महत्ता मानी जाती है l उनमें किये गए कार्य भी सदैव सिद्ध होते हैं l
ग्रहों का फल देने का समय
ग्रह अपनी दशा अन्तर्दशा में तो अपना फल देते ही हैं बल्कि कुछ और भी जीवन में ऐसे मौके आते हैं जब ग्रह अपना पूरा प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर डालते हैं |
जब आप बीमार होते हैं उस समय सूर्य का प्रभाव आपपर होता है | सूर्य यदि अच्छा हो तो बीमारी की अवस्था में भी आपका मनोबल बना रहता है इसके विपरीत यदि सूर्य अच्छा न हो तो जरा सा स्वास्थ्य खराब होने के बाद आपको जीवन से निराशा होने लगती है | इस समय सूर्य का पूर्ण प्रभाव आप पर होता है |
घर में किसी बच्चे के जन्म के समय हम चंद्रमा के प्रभाव में होते हैं | जीवन में संवेदनशील लम्हों में चन्द्र का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है | इसके अतिरिक्त जब हम अपने हुनर या कला का प्रदर्शन करते हैं तब चन्द्र हमारे साथ होते हैं |
चोट लगने पर, सर्जरी या आपरेशन के समय, संघर्ष करते समय और मेहनत करते वक्त मंगल हमारे साथ होता है | उस वक्त किसी अन्य ग्रह की अपेक्षा मंगल का असर सर्वाधिक आप पर रहता है | हाथ की मंगल रेखा या मंगल के फल देने का काल यही होता है |
जब बोलकर किसी को प्रभावित करने का समय आता है तब बुध का समय होता है | जब आप चालाकी से अपना काम निकालते हैं तो बुध का बलाबल आपकी सहायता करता है |
जब हम शिक्षा ग्रहण करते है या फिर जब हम शिक्षा देते हैं उस समय गुरु का प्रभाव हमारे जीवन पर होता है | किसी को आशीर्वाद देते समय या किसी को बददुआ देने के समय बृहस्पति ग्रह की कृपा हम पर होती है | इसके अतिरिक्त पुत्र के जन्म के समय या पुत्र के वियोग के समय भी बृहस्पति का पूरा प्रभाव हमारे जीवन पर होता है |
मनोरंजन के समय शुक्र का प्रभाव होता है | विवाह, वर्षगांठ, मांगलिक उत्सव और सम्भोग के समय शुक्र के फल को हम भोग रहे होते हैं | आनन्द का समय हो या नृत्य का, हर समय शुक्र हमारे साथ होते हैं | यही एकमात्र ऐसा ग्रह है जिसके निर्बल होने पर जीवन एक बोझ के समान लगता है | जीवन से आनन्द ख़त्म हो जाए या जीना मात्र एक मजबूरी बन कर रह जाए तो समझ ले कि शुक्र का बुरा प्रभाव आप पर है |
शनि का अर्थ ही दुःख है | जिस समय हम दुःख की अवस्था में होते हैं तब शनि का समय समझे | इस काल को छोड़कर सभी काल क्षण भंगुर होते हैं | शनि के काल की अवधि लम्बी होती है | दुःख या शोक के समय, सेवा करते वक्त, कारावास में या जेल में और बुढापे में शनि का प्रभाव सर्वाधिक होता है |
जानिये किस राशि पर कौन सा ग्रह कितने समय रहता
है, क्या होता है इसका प्रभाव
जो ग्रह आपकी राशि में रहता है उसी के अनुसार आपको फल प्राप्त होते हैं। अत: ग्रह स्थिति के अनुसार विशेष पूजा-अर्चना करनी चाहिए। यदि आपकी कुंडली में कोई ग्रह अशुभ फल देने वाला है तो वह अपनी वर्तमान स्थिति के अनुसार जब तक उस राशि में रहेगा तब तक आपको परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। उसी तरह शुभ ग्रह अच्छा फल प्रदान करते हैं। यहां जानिये कौन सा ग्रह, एक राशि में कितने समय तक रहता है और कब तक आपके जीवन को प्रभावित करता है।
सूर्य- अगर आपकी कुंडली में सूर्य अशुभ है तो आपको सूर्य की वर्तमान स्थिति के अनुसार एक माह तक उसका फल मिलेगा।
चंद्र- किसी राशि वाले के लिए यह ग्रह अशुभ होने पर कुछ समय के लिए ही बुरा फल देता है। यानी सवा दो दिन।
मंगल- एक राशि पर डेढ़ माह तक रहता है इसलिए इसका बुरा फल 45 दिन तक ही रहता है।
बुध- यह ग्रह एक राशि पर 30 तक ही अपना अच्छा या बुरा फल देता है।
गुरु- एक राशि पर गुरु का प्रभाव 12 महीने तक रहता है।
शुक्र- यह ग्रह एक राशि पर 27 दिन तक रहता है। इसलिए इसका शुभ अशुभ प्रभाव 27 दिन तक ही रहता है।
शनि- एक राशि पर शनि का शुभ-अशुभ प्रभाव ढाई साल तक रहता है।
राहु और केतु एक राशि पर डेढ़ साल तक अपना प्रभाव देते हैं। ये दोनो छाया ग्रह है इसलिए इनका शुभ अशुभ प्रभाव बदलता रहता है।
मांगलिक योग देखने में 95% ज्योतिषी
गलती क्यों करते हैं ?
मांगलिक योग :
सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि ‘मांगलिक’ का सही अर्थ क्या है और यह हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करता है l वास्तव में किसी भी कुण्डली में ‘मांगलिक’ एक दोष नहीं है अपितु योग माना जाता है l परन्तु बहुत से ज्योतिषी ‘मांगलिक दोष’ कहकर लोगों के मनों को डर और वहम से भर देते हैं l
यदि मांगलिक के बारे में सही ढंग से पढ़ा और समझा जाये तो पता चलेगा कि ‘मांगलिक’ होना कोई दुःख वाली बात नहीं है l जब किसी माता-पिता को पता चलता है कि उनका पुत्र या पुत्री मांगलिक है, तो वें परेशान होने लगते हैं और डर जाते हैं l
प्रत्येक व्यक्ति यह बात अवश्य जानना चाहता है कि इस मांगलिक योग को केवल विवाह के समय ही क्यों ध्यान में रखा जाता है l इसलिए इस बारे में विस्तारपूर्वक बात करना आवश्यक है l
कुण्डली में मांगलिक योग मंगल ग्रह की स्थित से ही देखा जाता है प्रत्येक व्यक्ति यह जानता है कि मंगल ग्रह मानव के शरीर का प्रतीक माना जाता है और विवाह के सम्बन्ध में मानव शरीर की मुख्य भूमिका होती है क्यूंकि विवाह वह संस्था है जो हमारे शरीर की आवश्यकताओं को पूरा करता है और भावी पीढ़ियों के जन्म में सहायक होता है और इन दोनों कार्यों के लिए स्वस्थ शरीर होना आवश्यक है I प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन सम्पूर्ण बनाने के लिए एक साथी की आवश्यकता होती है I
वास्तव में मांगलिक योग के बारे में न तो
– ऋगवेंद
– युजर्वेद, और न ही
– अथर्व वेंद में कुछ लिखा है l
मांगलिक
योग के बारे में इन वेंद पुस्तकों की रचना के बाद ही लिखा गया है l इस
योग के बारे में ‘फलित – ज्योतिष’, फलित
– मरतुण्ड’ तथा ‘महुर्त – चिंतामड़ी’ में
विवरण मिलता है l
मांगलिक
को समझने से पहले हमें मंगल ग्रह के बारे में समझना होगा l
मंगल ग्रह:
मूल त्रिकोण राशि :
मेष
उच्च राशि :
मकर
नीच राशि :
कर्क
रत्न :
मूँगा
जात :
क्षत्रिय
तत्व :
अग्नि
रंग
: लाल
पूर्ण का समय :
दोपहर
मित्र ग्रह
: सूर्य,
चंद्र,
बृहस्पति
सामान्य ग्रह
: शुक्र
शत्रु ग्रह :
बुध,
शनि,
राहु,
केतु
दृष्टियां :
4th, 7th और 8th
अवस्था :
युवा
स्वभाव :
क्रोधी
कारक :
जमीन,
छोटा भाई
इष्ट देव
:
बजरंग बलि,
शिव जी
मंगल ग्रह का लिंग :
पुरुष
धातु :
तांबा,
कांस्य,
सोना
दान-पुण्य की वस्तुए
: ब्राउन शुगर,
लाल कपडा,
लाल फल,
घी
वैदिक मंत्र
: ॐ भौमाय नमः’ तथा हनुमान चालीसा का जाप
एक राशि में भ्रमण समय :
45 दिवस
मांगलिक योग
:
यदि
मंगल ग्रह कुण्डली के (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या बारहवें) भाव में पड़ा हो तो वह
कुण्डली मांगलिक मानी जाती है l
मंगल
– प्रथम (1st) भाव में :
यदि
मंगल ग्रह कुण्डली के प्रथम भाव या लग्न भाव में पड़ा हो तो वह कुण्डली मांगलिक
मानी जाती हैं l
प्रथम भाव में स्थितमंगल जातक के स्वभाव को उग्र बनाता है l जातक ऊर्जा तथा गुस्से से
भरपूर होता है l
जातक अपनी माता के लिए परेशानी उत्पन्न करता है l
जातक और उसकी माता, दोनों ही एक – दूसरे को नहीं समझते हैं l
दोनों छोटी – छोटी बातों पर झगड़ते हैं l
जातक को जीवन में अपनी जमीन –
जायदाद बनाने में बहुत देरी होती है l
अलगाव वाले झुकाव के कारण मंगल ग्रह जातक के शारीरिक – सुख भोगने में विघ्न उत्पन्न
करते हैं l
जातक के विवाह में देरी होती है l
मंगल देवता स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं उत्पन्न करते हैं l
मंगल देवता जातक को जिद्दी बनाते हैं l
जिन जातको के लग्न में मंगल होता है,
उनके विचार अपने जीवन साथी से नहीं मिलते हैं l
जीवन में अधिक समस्याएँ l
वैवाहिक जीवन में बाधाएं l
शरीर के लिए अच्छा नहीं माना जाता है l
मंगल
– चतुर्थ भाव में :-
यदि
कुण्डली के 4th (चतुर्थ)
भाव में मंगल देवता स्थित हों तो, उस कुण्डली के जातक को मांगलिक माना जाता है l
मंगल देवता माता के साथ रिश्ते में समस्याएँ उत्पन्न करते हैं l
मंगल देवता जमीन – जायदाद खरीदने या बनाने में समस्या उत्पन्न करते हैं l
मंगल देवता वाहन की खरीदारी में भी देरी उत्पन्न करते हैं l
जातक का स्वभाव थोड़ा डरपोंक होता हैं l
किसी के साथ भागीदारी में समस्या उत्पन्न होती है l
जीवन साथी के साथ समस्या
विवाह में समस्या
कामकाज में समस्या
जातक के व्यवहार में समस्या
जीवन शैली में समस्या उत्पन्न
मंगल
– 7th (सप्तम) भाव में :-
यदि
कुण्डली के 7th (सप्तम)
भाव में मंगल देवता स्थित हों तो, उस कुण्डली के जातक को मांगलिक माना जाता है l
स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानी
जातक के दृष्टिकोण में समस्या
जातक के व्यवहार में गड़बड़ी
जातक का जिद्दी बनना
जातक की वाणी – सम्बन्धी समस्या
जातक की भाषा या बोलचाल में गड़बड़
धन सम्बन्धी समस्या, कहीं धन फसने का योग बन जाता है
जातक का परिवार से दूर या अलग होना
मंगल
– 8th (अष्टम) भाव में :-
यदि
मंगल देवता कुण्डली के 8th (अष्टम)
भाव में विराजमान हों तो जातक मांगलिक माना जाता है l
यहाँ चाहे मंगल देवता का विवाह या वैवाहित जीवन से सम्बन्ध नहीं बनता, परन्तु मंगल का हमारे शरीर
का प्रतीक होने के कारण यह इस सम्बन्ध में विशेष भूमिका निभाता है l
विवाह में यदि शारीरिक आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती है तो यह विवाह
के सम्बन्ध में यह एक नकारात्मक बात हुई l
यदि
मंगल ग्रह आठवें भाव में स्थित हों तो दोनों में से एक जीवनसाथी की मृत्यु भी हों
सकती है (यदि वह कुण्डली के मारक ग्रह हों तो) l
मंगल
बारहवें भाव में :-
यदि
मंगल देवता कुण्डली के 12th (बारहवें)
भाव में विराजमान हों तो जातक मांगलिक माना जाता है क्यूंकि मंगल देवता की आठवीं
दृष्टि 7th (सप्तम)
भाव पर पड़ती है तथा बारहवां भाव शैया – सुख
का भाव भी माना जाता है l
वैवाहिक -सुख
सम्बन्धी समस्या
अनावश्यक खर्चे
बढ़ना
जातक का परिवार
से विमुख हों जाता है
स्वास्थ्य
सम्बन्धी समस्या
छोटे भाई –
बहन से सम्बन्ध –
विच्छेद
तर्क –
वितर्क की
समस्या उत्पन्न होना
जातक के व्यवहार
में खराबी
स्वास्थ्य में
समस्या
दुर्घटना बीमारी
का कारण
लम्बी बीमारी का
कारण
मुक़दमे
सम्बन्धी समस्या
विवाह होने में
देरी होना
भागीदारी में
रुकावटें
वैवाहिक जीवन
में हलचल मचना
जानने
योग्य महत्वपूर्ण तथ्य :
ज्यादातर
ज्योतिष यहाँ तक सही विवेचन करते हैं इसके बाद करते हैं बहुत बड़ी गलती जोकि आम
इन्सान को मुशीबत में डाल देता है क्यूंकि उस इन्सान को ज्योतिष के नियमों के बारे
में पता ही नहीं होता और सामने वाले ज्योतिष पर आँख बंद करके भरोशा कर लेता है I
आप
सभी से मेरी हाथ जोड़कर बिनती है आप ऐसी गलती न करें नहीं तोह आपके बच्चों की शादी
शुदा जीवन में आएँगी परेशानियां, तलाक, मृत्युतुल्य
कष्ट जोकि बाद में किसी उपाय की मदद से सही नहीं हो सकता है I इसलिए इस आर्टिकल
को ध्यान से पढ़े I न
समझ आये तोह आप मुझे Mail/Whatsapp भी
कर सकते हैं मैं आपको संछेप में इसका ज्ञान अवश्य दूंगा I
मांगलिक
योग Cancellation के
Rules : (मंगली – भंग योग)
अभी तक आपने
जाना कि मंगल ग्रह से जातक कुण्डली के अनुसार मांगलिक कैसे होता है परन्तु यह बात
ध्यान देने योग्य है कि मांगलिक – योग कुछ परिस्थियों के अनुसार भंग हों
जाता है l परन्तु अल्प – ज्ञानी ज्योतिष एवं पंडित मांगलिक दोष
का परिहार कैसे होता है जानते ही नहीं हैं और लोगों को गुमराह करते हैं l
शास्त्रों में
बताये गए मंगली – भंग योग की
जानकारी लेकर आप पाएंगे कि कोई – कोई
व्यक्ति ही मांगलिक होता है l
किन – किन स्थितियों में जातक मंगली नहीं होता :
1 जामित्रे च यदा
शौरि लग्ने बा हिबुके जथा l अष्टमे, द्वादशे चैव भौम
दोषो न विद्यते ll (ज्योतिष
सर्वस्या)
अर्थात
: यदि
जन्म कुण्डली में लग्न में, चतुर्थ भाव में, सप्तम भाव में,
अष्टम भाव में,
द्वादश भाव में
शनि देवता विराजमान हों, तो जातक का मंगली –
भंग योग बनता है
या हम कह सकते हैं कि वह जातक मंगली नहीं होता है l
2 अजे लग्ने व्यये
चावें पाताले वृश्चिके कुजे l धूने
मृगे करकिचाष्टौ भौम दोषो न विद्यते ll (मु० पारिजात)
अर्थात
: मेष राशि का मंगल लग्न में,
वृश्चिक राशि का
चतुर्थ भाव में, मकर राशि का सातवें,
कर्क राशि का
आठवें, धनु
राशि का मंगल बारहवें स्थान में हो तो मंगली योग नहीं होता l
3 यदि मंगल
किसी भी भाव में सूर्य से अस्त हो जाये तोह जातक मांगलिक नहीं होता क्यूंकि सूर्य
से अस्त होने के कारण मंगल ग्रह की किरणे हमारे शरीर तक पहुँचती ही नहीं है l
4 यदि बृहस्पति देवता कुण्डली में कहीं से भी
मंगल देवता पर दृष्टि डालें तो मंगल दोष का परिहार हों जाता है क्यूंकि बृहस्पति
ग्रह सबसे शुभ ग्रह माना जाता है और उसकी किरणें या दृष्टि में मंगल के कुप्रभाव
को सामान्य करने की क्षमता होती है l
5 यदि बृहस्पति मंगल के साथ युति में स्थित हो तो
मंगल दोष का परिहार हों जाता है क्यूंकि बृहस्पति देवता की शुभता मंगल के कुप्रभाव
को सामान्य कर देती है l
6 यदि मंगल बलयुक्त चन्द्रमा की युति में हो तो
मंगल दोष का समाप्त हो जाता है क्यूंकि मंगल अग्नि तत्व का ग्रह है और चन्द्रमा जल
तत्व वाला ग्रह है l जब ये दोनों ग्रह एक ही राशि में पड़े हों तो
मंगल के कुप्रभाव सामान्य हो जाते हैं l
7 यदि कुण्डली में मंगल
0° या 29° पड़ा हो तो इसका अर्थ
हुआ कि इस कुण्डली में मंगल किसी भी प्रकार का परिणाम देने में समर्थ नहीं है l
संछेप में कहें
तो मंगल – दोष कुण्डली में विद्यमान ही नहीं है l
8 यदि मंगल देवता राहु देवता के साथ युति बनाकर
कुण्डली में विराजमान हो तो भी मंगल दोष का परिहार होता है क्यूंकि राहु देवता की
मंगल देवता से अति शत्रुता के कारण मंगल के कुप्रभाव शान्त हो जाते हैं l
9 कुण्डली मिलान
में यदि 28 गुण
मिल जाएँ तब भी मांगलिक दोष का परिहार होता है l
10 यह बात अक्सर सुनने में आती है कि यदि लड़की
मांगलिक है तो उसका विवाह मांगलिक लड़के के साथ ही होना चाहिए,
परन्तु यह बात
बिल्कुल गलत है क्यूंकि लड़की की कुण्डली में जिस भाव में मंगल पड़ा हो,
लड़के की
कुण्डली में उसी भाव में कोई पापी ग्रह पड़ा हो तो मांगलिक दोष का परिहार हो जाता
है l
11 यदि सातवें भाव
का स्वामी कुण्डली में कहीं से भी अपने भाव को देखे तो मांगलिक दोष का परिहार होता
है क्यूंकि यदि कोई भी ग्रह अपने भाव को देखता है तो इसका अर्थ होता है कि वह अपने
भाव की रक्षा करेगा l
Importance of Houses | भाव का महत्त्व
भाव कारक एवं विचारणीय विषय ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां तथा 12 भाव, 9 ग्रह, 27 +1( अभिजीत) = 28 नक्षत्र, बताए गए हैं अर्थात इन्ही भाव, राशि, ग्रह , नक्षत्र में हमारे जीवन का सम्पूर्ण सार छुपा हुआ है केवल आवश्यकता है इस बात को जानने के लिए की कौन राशि, भाव तथा ग्रह का सम्बन्ध हमारे जीवन में आने वाली घटनाओं से है यदि हम इनके सम्बन्ध को जान लेते है तो यह बता सकते है कि हमारे जीवन में कौन सी घटनाएं कब घटने वाली है। । परन्तु इसके लिए सबसे पहले हमें भाव और ग्रह के कारकत्त्व को जानना बहुत जरुरी है क्योकि ग्रह या भाव जिस विषय का कारक होता है अपनी महादशा, अंतरदशा या प्रत्यन्तर दशा में उन्ही विषयो का शुभ या अशुभ फल देने में समर्थ होता है।
ज्योतिष
जन्मकुंडली में 12 भाव होते है और सभी भाव का अपना विशेष महत्त्व
है। आप इस प्रकार समझ सकते है भाव जातक की विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं को पूर्ति
करता है। व्यक्ति को जो भी आवश्यकता होती है उसको पाने के लिए कोशिश करता है अब
निर्भर करता है आपके उसे पाने के लिए कब, कैसे, किस समय
और किस प्रकार के साधन का उपयोग किया है। क्योकि उचित समय और स्थान पर किया गया
प्रयास ही इच्छापूर्ति में सहायक होता है। भाव इस प्रकार से कार्य करता है जैसे —
जब
भी कोई जातक यह प्रश्न करता है की मेरे जीवन में धन योग है की नहीं और है तो कब तब
इसको जानने के लिए सबसे पहले निर्धारित धन भाव अर्थात 2nd भाव को
देखते है तत्पश्चात उस भाव भावेश तथा भावस्थ ग्रह का विश्लेषण कर धन के सम्बन्ध
में फल कथन करते है।
Bhav Karak in Astrology | भाव कारक एवं विचारणीय विषय Houses Significator Planets | भाव का कारक ग्रह
प्रथम भाव- सूर्य
दूसरा भाव- गुरू
तृतीय भाव – मंगल
चतुर्थ भाव – चंद्र
पंचम भाव – गुरु
षष्ठ भाव – मंगल
सप्तम भाव – शुक्र
अष्टम भाव – शनि
नवम भाव – गुरु
दशम भाव – गुरु, सूर्य, बुध और शनि
एकादश भाव – गुरु
द्वादश भाव – शनि
सभी भाव को कोई न कोई विचारणीय विषय प्रदान किया गया है जैसे प्रथम भाव को व्यक्ति का रंग रूप तो दुसरा भाव धन भाव है वही तीसरा भाव सहोदर का है इसी प्रकार सभी भाव को निश्चित विषय प्रदान किया गया है प्रस्तुत लेख में सभी भाव तथा ग्रह के कारकत्व बताने का प्रयास किया गया है।
जन्मकुंडली के प्रत्येक भाव से विचारणीय विषय
1st House | प्रथम अथवा तनु भाव जन्मकुंडली में प्रथम भाव से लग्न, उदय, शरीर,स्वास्थ्य, सुख-दुख, वर्तमान काल, व्यक्तित्व, आत्मविश्वास, आत्मसम्मान, जाति, विवेकशीलता, आत्मप्रकाश, आकृति( रूप रंग) मस्तिष्क, उम्र पद, प्रतिष्ठा, धैर्य, विवेकशक्ति, इत्यादि का विचार करना चाहिए। किसी भी व्यक्ति के सम्बन्ध में यह देखना है कि उसका स्वभाव रंगरूप कैसा है तो इस प्रश्न का जबाब प्रथम भाव ही देता है।
2nd House | द्वितीय अथवा धन भाव जन्मकुंडली में दूसरा भाव धन, बैंक एकाउण्ट, वाणी, कुटुंब-परिवार, पारिवारिक, शिक्षा, संसाधन, माता से लाभ, चिट्ठी, मुख, दाहिना नेत्र, जिह्वा, दाँत इत्यादि का उत्तरदायी भाव है।यदि यह देखना है कि जातक अपने जीवन में धन कमायेगा या नहीं तो इसका उत्तर यही भाव देता है।
3rd House | तृतीय अथवा सहज भाव यह भाव जातक के लिए पराक्रम, छोटा भाई-बहन, धैर्य, लेखन कार्य, बौद्धिक विकास, दाहिना कान, हिम्मत, वीरता, भाषण एवं संप्रेषण, खेल, गला कन्धा दाहिना हाँथ, का उत्तरदायी भाव है। यदि यह देखना है कि जातक अपने भाई बहन के साथ कैसा सम्बन्ध है तो इस प्रश्न का जबाब यही भाव देता है।
4rth House | चतुर्थ अथवा कुटुंब भाव यह भाव जातक के जीवन में आने वाली सुख, भूमि, घर, संपत्ति, वाहन, जेवर, गाय-भैस, जल, शिक्षा, माता, माता का स्वास्थ्य, ह्रदय, पारिवारिक प्रेम छल, उदारता, दया, नदी, घर की सुख शांति जैसे विषयों का उत्तरदायी भाव है। यदि किसी जातक की कुंडली में यह देखना है कि जातक का घर कब बनेगा तथा घर में कितनी शांति है तो इस प्रश्न का उत्तर चतुर्थ भाव से मिलता है।
5th House | पंचम अथवा संतान भाव जन्मकुंडली में पंचम भाव से संतान सुख, बुद्धि, शिक्षा, विद्या, शेयर संगीत मंत्री, टैक्स, भविष्य ज्ञान, सफलता, निवेश, जीवन का आनन्द,प्रेम, सत्कर्म, पेट,शास्त्र ज्ञान यथा वेद उपनिषद पुराण गीता, कोई नया कार्य, प्रोडक्शन, प्राण आदि का विचार करना चाहिए। यदि कोई यह जानना चाहता है कि जातक की पढाई या संतान सुख कैसा है तो इस प्रश्न का जबाब पंचम अर्थात संतान भाव ही देगा अन्य भाव नहीं ।
6th House | षष्ठ अथवा रोग भाव जन्मकुंडली में षष्ठ भाव से रोग,दुख-दर्द, घाव, रक्तस्राव, दाह, अस्त्र, सर्जरी, डिप्रेशन,शत्रु, चोर, चिंता, लड़ाई झगड़ा, केश मुक़दमा, युद्ध, दुष्ट, कर्म, पाप, भय, अपमान, नौकरी आदि का विचार करना चाहिए। यदि कोई यह जानना चाहता है कि जातक का स्वास्थ्य कैसा रहेगा या केश में मेरी जीत होगी या नहीं तो इस प्रश्न का जबाब षष्ठ भाव ही देगा अन्य भाव नहीं ।
7th House | सप्तम अथवा विवाह भाव जन्मकुंडली में सप्तम भाव से पति-पत्नी, ह्रदय की इच्छाए ( काम वासना), मार्ग,लोक, व्यवसाय, साझेदारी में कार्य, विवाह ( Marriage) , कामेच्छा, लम्बी यात्रा आदि पर विचार किया जाता है। इस भाव को पत्नी वा पति अथवा विवाह भाव भी कहा जाता है । यदि कोई यह जानना चाहता है कि जातक की पत्नी वा पति कैसा होगा या साझेदारी में किया गया कार्य सफल होगा या नही का विचार करना हो तो इस प्रश्न का जबाब सप्तम भाव ही देगा अन्य भाव नहीं ।
8th House | अष्टम अथवा मृत्यु भाव जन्मकुंडली में अष्टम भाव से मृत्यु, आयु, मांगल्य ( स्त्री का सौभाग्य – पति का जीवित रहना), परेशानी, मानसिक बीमारी ( Mental disease) , संकट, क्लेश, बदनामी, दास ( गुलाम), बवासीर रोग, गुप्त स्थान में रोग, गुप्त विद्या, पैतृक सम्पत्ति, धर्म में आस्था और विश्वास, गुप्त क्रियाओं, तंत्र-मन्त्र अनसुलझे विचार, चिंता आदि का विचार करना चाहिए। इस भाव को मृत्यू भकव भी कहा जाता है यदि किसी की मृत्यु का विचार करना है तो यह भाव बताने में सक्षम है।
9th House | नवम अथवा भाग्य भाव जन्मकुंडली में निर्धारित नवम भाव से हमें भाग्य, धर्म,अध्यात्म, भक्ति, आचार्य- गुरु, देवता, पूजा, विद्या, प्रवास, तीर्थयात्रा, बौद्धिक विकास, और दान इत्यादि का विचार करना चाहिए। इस स्थान को भाग्य स्थान तथा त्रिकोण भाव भी कहा जाता है। यह भाव पिता( उत्तर भारतीय ज्योतिष) का भी भाव है इसी भाव को पिता के लिए लग्न मानकर उनके जीवन के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण भविष्यवाणी की जाती है। यह भाव हमें बताता है कि हमारी मेहनत और अपेक्षा में भाग्य का क्या रोल है क्या जितना मेहनत कर रहा हूँ उसके अनुरूप भाग्यफल भी मिलेगा । क्या मेरे तरक्की में भाग्य साथ देगा इत्यादि प्रश्नों का उत्तर इसी भाव से मिलता है।
10th House | दशम अथवा कर्म भाव जन्मकुंडली में निर्धारित दशम भाव से राज्य, मान-सम्मान, प्रसिद्धि, नेतृत्व, पिता( दक्षिण भारतीय ज्योतिष), नौकरी, संगठन, प्रशासन, जय, यश, यज्ञ, हुकूमत, गुण, आकाश, स्किल, व्यवसाय, नौकरी तथा व्यवसाय का प्रकार, इत्यादि का विचार इसी भाव से करना चाहिए। कुंडली में दशम भाव को कर्म भाव भी कहा जाता है । यदि कोई यह जानना चाहता है कि जातक कौन सा काम करेगा, व्यवसाय में सफलता मिलेगी या नहीं , जातक को नौकरी कब मिलेगी और मिलेगी तो स्थायी होगी या नहीं इत्यादि का विचार इसी भाव से किया जाता है।
11th House | एकादश अथवा लाभ भाव जन्मकुंडली में निर्धारित एकादश भाव से लाभ, आय, संपत्ति, सिद्धि, वैभव, ऐश्वर्य, कल्याण, बड़ा भाई-बहन,बायां कान, वाहन, इच्छा, उपलब्धि, शुभकामनाएं, धैर्य, विकास और सफलता इत्यादि पर विचार किया जाता है। यही वह भाव है जो जातक को उसकी इच्छा की पूर्ति करता है । इससे लाभ का विचार किया जाता है किसी कार्य के होने या न होने से क्या लाभ या नुकसान होगा उसका फैसला यही भाव करता है। वस्तुतः यह भाव कर्म का संचय भाव है अर्थात आप जो काम कर रहे है उसका फल कितना मिलेगा इसकी जानकारी इसी भाव से प्राप्त की जा सकती है।
12th House | द्वादश वा व्यय भाव जन्मकुंडली में निर्धारित द्वादश भाव से व्यय, हानि, रोग, दण्ड, जेल, अस्पताल, विदेश यात्रा, धैर्य, दुःख, पैर, बाया नेत्र, दरिद्रता, चुगलखोर,शय्या सुख, ध्यान और मोक्ष इत्यादि का विचार करना चाहिए । इस भाव को रिफ भाव भी कहा जाता है। जीवन पथ में आने वाली सभी प्रकार क़े नफा नुकसान का लेखा जोखा इसी भाव से जाना जाता है। यदि कोई यह जानना चाहता है कि जातक विदेश यात्रा (abroad Travel) करेगा या नहीं यदि करेगा तो कब करेगा, शय्या सुख मिलेगा या नहीं इत्यादि का विचार इसी भाव से किया जाता है।
कॅरियर चयन में विचारणीय भाव
कॅरियर चयन में विचारणीय भाव जन्मपत्रिका से आजीविका निर्णय की बात आते ही सहसा ध्यान कुण्डली के कर्म भाव की ओर आकृष्ट हो जाता है| मस्तिष्क दशम भाव तथा दशमेश की स्थिति को परखने लगता है| अन्तत: परिणाम यह निकलता है कि मस्तिष्क किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच पाता है, क्योंकि दशम भाव तथा दशमेश जिस कार्यक्षेत्र को बता रहे हैं, उक्त व्यक्ति का कार्यक्षेत्र उससे भिन्न है| ऐसा अनुभव जीवन में अनेक जन्मपत्रिकाओं का अध्ययन करने पर मिलता है|
वास्तव में कॅरियर का विचार सिर्फ कर्म भाव से नहीं किया जा सकता है| दशम भाव व्यक्ति के परिश्रम तथा कर्म को दर्शाता है| उस कर्म से मिलने वाले फल को तथा धनागम को द्वितीय तथा लाभ भाव दर्शाते हैं|
कर्म करने के लिए व्यक्ति में सामर्थ्य होना चाहिए| उसी सामर्थ्य से कोई भी जातक कर्म करता हुआ आजीविका प्राप्त करता है, अत: व्यक्ति के सामर्थ्य को लग्न भाव दर्शाता है| उपर्युक्त तथ्यों को समझते हुए ही प्रसिद्ध ज्योतिर्विद् कल्याण वर्मा ने अपनी प्रसिद्ध रचना सारावली के ३३वें अध्याय के अन्तर्गत अन्तिम श्लोक में धन- लाभ विचार की पद्धति बताते हुए लिखा है कि लग्न, द्वितीय तथा लाभ भाव में स्थित ग्रहों से अथवा इन भावेशों से धनलाभ का विचार होता है|आचार्य वराहमिहिर बृहज्जातक में लिखते हैं कि इन भावों में शुभ ग्रह हों, तो सरलतापूर्वक धनलाभ होता हैतथा पापग्रह हों, तो परिश्रमपूर्वक धनलाभ होता है|गार्गी कहते हैं कि इन भावों में ग्रह न हों, तो राशि की शुभाशुभता एवं ग्रहों की दृष्टि से धनलाभ का विचार करना चाहिए| उपर्युक्त शास्त्रीय प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि आजीविका विचार के लिए सिर्फ दशम भाव का ही विचार नहीं करना चाहिए|
उपर्युक्त भावों के अतिरिक्त पञ्चम भाव का भी आजीविका विचार में विशेष महत्त्व है| वर्तमान समय में किसी भी नौकरी को प्राप्त करने अथवा व्यवसाय में सफल होने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है| यदि व्यक्ति उच्च शिक्षा ग्रहण कर लेता है, तो उसे आजीविका निर्वहण में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होती है| इन सभी तथ्यों से यह बात सिद्ध होती है कि आजीविका विचार के लिए दशम भाव के साथ ही लग्न, द्वितीय, पञ्चम तथा एकादश भाव भी विशेष विचारणीय है|प्रश्न यह उठता है कि इन सभी भावों से किस प्रकार कार्यक्षेत्र का विचार किया जाए|कार्यक्षेत्र का विचार करते समय
सर्वप्रथम
दशम भाव तथा दशमेश की स्थिति को ही देखना चाहिए| यदि
कर्मेश अथवा कर्म भाव निर्बल हो, तो व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र
के लिए परिश्रम नहीं कर पाएगा|
दशम भाव के पश्चात् लग्न भाव
कर्मक्षेत्र हेतु विचारणीय द्वितीय महत्वपूर्ण भाव है| लग्न भाव से व्यक्ति के स्वास्थ्य एवं रुचि को देखा जाता है| इस भाव अथवा भावेश के निर्बल होने पर व्यक्ति को उत्तम
स्वास्थ्य न होने के कारण कार्यक्षेत्र में सफलता नहीं मिलती है अथवा कई बार अपनी
रुचि के अनुसार कॅरियर की प्राप्ति नहीं होती है|
लग्न के पश्चात् द्वितीय भाव
महत्त्वपूर्ण है| द्वितीय
भाव से स्थायी धन-सम्पत्ति का विचार किया जाता है| साथ ही
कुटुम्बजनों के सहयोग को भी देखा जाता है|यदि द्वितीय भाव अथवा द्वितीयेश निर्बल हुआ, तो व्यक्ति अच्छे कार्यक्षेत्र के होते हुए भी स्थायी
धन-सम्पत्ति नहीं बना पाता है अथवा उसे अपने कौटुम्बिकजनों का सहयोग न मिलने के
कारण कार्यक्षेत्र में उच्च सफलता प्राप्त नहीं होती है|
द्वितीय भाव के पश्चात् पञ्चम भाव का भी
विचार करें| पञ्चम भाव से विद्या, बुद्धि तथा आत्मविश्वास का विचार किया जाता है और इन तीनों
के बिना कोई भी व्यक्ति श्रेष्ठ आजीविका प्राप्त नहीं कर सकता है| पञ्चम भाव अथवा पञ्चमेश निर्बल होने पर व्यक्ति अथाह
परिश्रम करने के पश्चात् भी अपने कॅरियर में आत्मविश्वास की कमी अथवा विद्या
अल्प रहने के कारण सफलता प्राप्त नहीं कर पाता है|
पञ्चम भाव के पश्चात् लाभ भाव भी
विचारणीय है| लाभ भाव
का कॅरियर विचार में विशेष रूप से महत्त्व है| इसकी
महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि यह कर्म भाव की समग्र उपलब्धि को
दर्शाता है| लाभ भाव से आय के स्रोतों का ज्ञान होता
है| कोई भी व्यक्ति किसी कार्य से कितना लाभ प्राप्त करेगा यह
विचार इस भाव से किया जाता है|यदि किसी व्यक्ति के पास श्रेष्ठ बुद्धि है, वह आत्मविश्वासी है, उसे अपने
कौटुम्बिकजनों का पूर्ण सहयोग प्राप्त हो रहा है, वह
स्वस्थ है तथा अपने कार्य के लिए अत्यन्त परिश्रमी भी है, फिर भी लाभ अथवा लाभेश के निर्बल होने पर उसे अपने
कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं होगी|
उपर्युक्त पॉंचों भावों का उत्तम सम्बन्ध तथा भाव और भावेशों की बली स्थिति जिन व्यक्तियों की जन्मपत्रिका में स्थित हों, उन्हें निश्चित रूप से श्रेष्ठ कार्यक्षेत्र की प्राप्ति होती है| यदि इनमें से कोई एक या दो भाव अथवा भावेश निर्बल हों, तो व्यक्ति के कॅरियर में उस भाव से सम्बन्धित फलों की कमी रह जाती है|
जैसे; लग्न अथवा लग्नेश बलहीन होने पर व्यक्ति अपनी शारीरिक समस्याओं से परेशान रहेगा अथवा उसे अपनी रुचि के अनुसार कार्यक्षेत्र की प्राप्ति नहीं होगी| वह अन्य कार्यक्षेत्र से चाहे कितना भी धनार्जन कर ले, परन्तु उसे सन्तुष्टि प्राप्त नहीं होती| इन भावों और भावेशों का अन्य भाव और भावेशों से सम्बन्ध को समझते हुए ही किसी भी व्यक्ति के कॅरियर का निर्धारण करना चाहिए, क्योंकि इन भावों के अतिरिक्त भी शेष भावों का कॅरियर चयन में महत्त्व है| हालांकि वह महत्त्व इतना अधिक प्रभावशाली नहीं है, फिर भी कार्यक्षेत्र को ये भाव प्रभावित करते हैं| इन्हें समझने के लिए प्रत्येक भाव से सम्बन्धित फलों को जानना होगा| कार्यक्षेत्र के उपर्युक्त प्रमुख भावेश यदि किसी एक ही भाव में आकर सम्बन्ध बना लें, अथवा इनमें से कोई तीन या चार भावेश किसी एक निश्चित भाव से सम्बन्ध बना लें, तो जातक का कार्यक्षेत्र उसी से सम्बन्धित हो जाता है|
कुंडली
का विश्लेषण करने की विधि ---
किसी भी इंसान के जीवन में क्या होगा, कब होगा या उसका जीवन कैसा बीतेगा इसका कथन व्यक्ति की जन्मकुंडली में होता है। जन्मकुंडली के फल-कथन के माध्यम से ज्योतिष मनुष्य के कर्म, गति और भाग्य के बारे में कई बातें बता सकते हैं। इसमें भाव तथा ग्रहों के विश्लेषण का बहुत महत्व होता है।जन्म कुंडली का विश्लेषण करने से पूर्व किसी भी कुशल ज्योतिषी को पहले कुंडली की कुछ बातो का अध्ययन करना चाहिए. जैसे ग्रह का पूरा अध्ययन, भावों का अध्ययन, दशा/अन्तर्दशा, गोचर आदि बातों को देखकर ही फलकथन कहना चाहिए. आज इस लेख के माध्यम से हम कुंडली का अध्ययन कैसे किया जाए सीखने का प्रयास करेगें.
जन्म कुंडली में सबसे पहले यह देखें कि ग्रह किस भाव में स्थित है और किन भावों का स्वामी है.
ग्रह के कारकत्व क्या-क्या होते हैं.
ग्रहों का नैसर्गिक रुप से शुभ व अशुभ होना देखेगें.
ग्रह का बलाबल देखेगें.
ग्रह की महादशा व अन्तर्दशा देखेगें कि कब आ रही है.
जन्म कालीन ग्रह पर गोचर के ग्रहों का प्रभाव.
ग्रह पर अन्य किन ग्रहों की दृष्टियाँ प्रभाव डाल रही हैं.
ग्रह जिस राशि में स्थित है उस राशि स्वामी की जन्म कुण्डली में स्थिति देखेगें और उसका बल भी देखेगें.
ग्रह की जन्म कुंडली में स्थिति के बाद जन्म कुंडली के साथ अन्य कुछ और कुंडलियों का अवलोकन किया जाएगा, जो निम्न हैं.
जन्म कुंडली के साथ चंद्र कुंडली का अध्ययन किया जाना चाहिए.
भाव चलित कुंडली को देखें कि वहाँ ग्रहों की क्या स्थिति बन रही है.
जन्म कुंडली में स्थित ग्रहों के बलों का आंकलन व योगों को नवांश कुंडली में देखा जाना चाहिए.
जिस भाव से संबंधित फल चाहिए होते हैं उससे संबंधित वर्ग कुंडलियों का अध्ययन किया जाना चाहिए. जैसे व्यवसाय के लिए दशमांश कुंडली और संतान प्राप्ति के लिए सप्ताँश कुंडली. ऎसे ही अन्य कुंडलियों का अध्ययन किया जाना चाहिए.
वर्ष कुंडली का अध्ययन करना चाहिए जिस वर्ष में घटना की संभावना बनती हो.
ग्रहों का गोचर जन्म से व चंद्र लग्न से करना चाहिए.
अंत में कुछ बातें जो कि महत्वपूर्ण हैं उन्हें एक कुशल ज्योतिषी अथवा कुंडली का विश्लेषण करने वाले को अवश्य ही अपने मन-मस्तिष्क में बिठाकर चलना चाहिए.
जन्म कुंडली में स्थित सभी ग्रहो की अंशात्मक युति देखनी चाहिए और भावों की अंशात्मक स्थित भी देखनी चाहिए कि क्या है. जैसे कि ग्रह का बल, दृष्टि बल, नक्षत्रों की स्थिति और वर्ष कुंडली में ताजिक दृष्टि आदि देखनी चाहिए.
जिस समय कुंडली विश्लेषण के लिए आती है उस समय की महादशा/अन्तर्दशा/प्रत्यन्तर दशा को अच्छी तरह से जांचा जाना चाहिए.
जिस समय कुंडली का अवलोकन किया जाए उस समय के गोचर के ग्रहों की स्थिति का आंकलन किया जाना चाहिए.
आइए अब भावों के विश्लेषण में महत्वपूर्ण तथ्यों की बात करें. जब भी किसी कुंडली को देखना हो तब उपरोक्त बातों के साथ भावों का भी अपना बहुत महत्व होता है. आइए उन्हें जाने कि वह कौन सी बाते हैं जो भावों के सन्दर्भ में उपयोगी मानी जाती है.
जिस भाव के फल चाहिए उसे देखें कि वह क्या दिखाता है.
उस भाव में कौन से ग्रह स्थित हैं.
भाव और उसमें बैठे ग्रह पर पड़ने वाली दृष्टियाँ देखें कि कौन सी है.
भाव के स्वामी की स्थिति लग्न से कौन से भाव में है अर्थात शुभ भाव में है या अशुभ भाव में है, इसे देखें.
जिस भाव की विवेचना करनी है उसका स्वामी कहाँ है, कौन सी राशि व भाव में गया है, यह देखें.
भाव स्वामी पर पड़ने वाली दृष्टियाँ देखें कि कौन सी शुभ तो कौन सी अशुभ है.
भाव स्वामी की युति अन्य किन ग्रहों से है, यह देखें और जिनसे युति है वह शुभ हैं या अशुभ हैं, इस पर भी ध्यान दें.
भाव तथा भाव स्वामी के कारकत्वों का निरीक्षण करें.
भाव का स्वामी किस राशि में है, उच्च में है, नीच में है या मित्र भाव में स्थित है, यह देखें.
भाव का स्वामी अस्त या गृह युद्ध में हारा हुआ तो नहीं है या अन्य किन्हीं कारणों से निर्बली अवस्था में तो स्थित नहीं है, इन सब बातों को देखें.
भाव, भावेश तथा भाव के कारक तीनों का अध्ययन भली - भाँति करना चाहिए. इससे संबंधित भाव के प्रभाव को समझने में सुविधा होती है.
उपरोक्त बातों के साथ हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि किसी भी कुंडली का सामान्य रुप से अध्ययन करने के लिए
लग्न, लग्नेश, राशिश, इन पर पड़ने वाली दृष्टियाँ और अन्य ग्रहो के साथ होने वाली युतियों पर ध्यान देना चाहिए.
इसके बाद नवम भाव व नवमेश को देखना चाहिए कि उसकी कुंडली में क्या स्थिति है क्योकि यही से व्यक्ति के भाग्य का निर्धारण होता है. लग्न के साथ चंद्रमा से भी नवम भाव व नवमेश का अध्ययन किया जाना चाहिए. इससे कुंडली के बल का पता चलता है कि कितनी बली है. जन्म कुंडली में बनने वाले योगो का बल नवाँश कुंडली में भी देखा जाना चाहिए. नवाँश कुंडली के लग्न तथा लग्नेश का बल भी आंकना जरुरी है.ओर जो चल रहा है वह केवल दशा और अन्तर्दशाओं का परिणाम है।
इसके ज्ञान के लिए आपको लग्न के ज्ञान की आवश्यकता है, इसके अतिरिक्त आप जीवन मे चल रही
घटना के लिए दशानाथ और अन्तर्दशानाथ को उत्तरदायी ठहरा सकते हैं। पाराशर ऋषि ने कभी भी प्रत्यंतर को लेकर विशिष्ट व्याख्याएं नहीं दी हैं। वे प्रत्यन्तरनाथ को घटना के समय-काल का निर्धारण करने वाला मानते हैं।
मैंने
बहुत सारे ज्योतिषियों को घटना के कारण जन्मपत्रिका मे ढूंढते हुए देखा है जबकि आने वाली घटना की सूचना महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ ही दे देते हैं, षड्बल
एवं षोड्शवर्ग घटना की तीव्रता का ज्ञान करने के उपकरण मात्र हैं, घटना
अवश्य घटेगी। यह आप पर निर्भर है कि आप घटना के घटित होने से पूर्व पापकर्मो के
क्षय के लिए उपाय कर पाते हैं या नहीं। दूसरे शब्दों में घटना की तीव्रता को आप
नियंत्रित कर सकते हैं। आपको सबसे पहले लग्न का ज्ञान होना चाहिए और उसके बाद
तत्कालीन अन्तर्दशा का।
अन्तर्दशा का महत्व : अन्तर्दशानाथ, महादशानाथ से बलवान होते हैं और व्यक्ति के वर्तमान समय का आकलन अन्तर्दशानाथ के आधार पर ही किया जा सकता है। मान लीजिए, षष्ठेश की दशा चल रही है तो उस समय जीवन की मुख्य धुरी रोग, रिपु, ऋण हो जाएंगे भले ही जन्मपत्रिका में कितने ही शुभ या राजयोग हों। वर्तमान परिस्थित के सही आकलन के लिए एक अन्तर्दशा पीछे जाना बहुत जरूरी है। जिस प्रकार हम बीमार होते ही तुरंत डॉक्टर के पास नहीं जाते हैं, उसी प्रकार परेशानी आते ही कोई ज्योतिषी के पास नहीं जाता है। कई बार ऎसा होता है कि वर्तमान अन्तर्दशा तो शुभ है परंतु उससे ठीक पहले की अन्तर्दशा कठिन थी। कठिन परिस्थितियों को झेलते हुए जब तक व्यक्ति ज्योतिषी के पास जाता है, अन्तर्दशा बदल चुकी होती है परंतु अच्छे परिणाम ने अभी आहट नहीं दी है। मान लीजिए वर्तमान में कठिन अन्तर्दशा चल रही है और परिणामों की तीव्रता बहुत अधिक है। उस अन्तर्दशा से ठीक पहले चतुर्थेश या भाग्येश की दशा थी। इन दशाओं में उसने जमीन या मकान खरीदा होगा। यदि उसके चतुर्थेश या चतुर्थ भाव पीडत हैं तो परिणामों की तीव्रता का कारण वास्तु दोष भी एक कारण हो सकता है। अत: अन्तर्दशा का पूरा अध्ययन परिणामों के पूर्ण विश्लेषण में बहुत अधिक सहायक हो सकता है।
कारकत्व : अन्तर्दशानाथ से मुख्य विषय का ज्ञान करने के पश्चात् हमें जो ग्रह अन्तर्दशानाथ हैं उनका कारकत्व और वह जिस भाव में स्थित हैं, उस भाव के कारकत्व का विश्लेषण करना है। सदा ग्रह और भाव के कारकत्वों को समझे वर्गकुण्डलियों में तभी जाएं जब मूल जन्मपत्रिका की आत्मा को आप पहले समझ लीजिए। ग्रह एवं भावों के कारकत्वों के विस्तृत अध्ययन के लिए कालिदास रचित उत्तर कालामृत सर्वश्रेष्ठ है। अष्टमेश की दशा में हम मृत्यु, मृत्युतुल्य कष्ट, कठिनाइयों को ही ढूंढ़ते हैं। अनुसंधान का भाव भी अष्टम भाव ही है। महान अनुसंधान करने वाले कई महापुरूषों ने अपना सबसे गहन अध्ययन अष्टमेश की दशा में ही किया। ऎसी कुण्डलियों में प्राय: अष्टम का संबंध लग्न से रहता है। यश और अपमान हम दशम भाव से देखते हैं परंतु इसका संबंध चतुर्थ भाव से भी है। जनता द्वारा दिया जाना वाला यश चतुर्थ भाव से देखा जाता है। नेता, अभिनेता की कुण्डली में इसे जनता द्वारा दिए जाने वाले प्यार और सम्मान के रूप में देखा जा सकता है परंतु आम व्यक्ति के लिए इसे किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा उसके लिए बनाए गए रूप में देखा जाना चाहिए। मान लीजिए किसी का कोई कोर्ट केस चल रहा है या कार्यस्थल पर कोई झग़डा है, जिसका निपटारा होना है। ऎसे में यदि चतुर्थेश की दशा है तो चतुर्थ भाव और चतुर्थेश की स्थिति के आधार पर निर्णय दिया जा सकता है। यदि चतुर्थेश बलवान है और चतुर्थ भाव पर शुभ प्रभाव है तो उस दशा में व्यक्ति के खिलाफ केस नहीं बनेगा और चीजें उसके पक्ष में होंगी। यदि ग्रहों के कारकत्व की बात करें तो केतु की दशा में अचानकता बनी रहती है। साथ ही मानसिक बेचैनी भी रहती है। भले ही केतु शुभ हों और अच्छे परिणाम भी दें परंतु अपने नैसर्गिक कारकत्व से जु़डे परिणाम भी देंगे। ग्रहों के कारकत्व का गहराई से अध्ययन भविष्यकथन में सटीक परिणाम देने में सहायक होता है।योगकारक-अयोगकारक का निर्णय : सही परिणाम तक पहुंचने के लिए आवश्यक है कि यह निर्णय लिया जाए कि महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ योगकारक हैं या अयोगकारक। प्रत्यन्तर, सूक्ष्म और प्राण दशा से परिणाम लेते समय भी यह सुनिश्चित करना आवश्यक होता है।
योगकारक-अयोगकारक का निर्णय करने का सूत्र बहुत
ही विस्तृत रूप से लघुपाराशरी में समझाया गया है। लघु पाराशरी में इस विषय में कुछ
महत्वपूर्ण सूत्र दिए गए हैं :
1. त्रिकोणेश सदा शुभ होगा भले ही वह नैसर्गिक रूप से अशुभ ग्रह हो।
2. केन्द्र में प़डने वाली राशि सम होती है भले ही वह नैसर्गिक रूप से शुभ हो या अशुभ।
3. द्वितीयेश व द्वादशेश की दूसरी राशि जिस स्थान में प़डती है, उसी स्थान के अनुसार अपना शुभ व अशुभ फल देंगे।
इन नियमों को उदाहरण से समझते हैं। कर्क लग्न के लिए पंचमेश हैं मंगल, अत: मंगल अति शुभ होंगेे, भले ही वे नैसर्गिक रूप से अशुभ ग्रह हैं। मंगल की दूसरी राशि मेष दशम भाव में आ रही है। नियमानुसार केन्द्र में प़डने वाली राशि सम हो जाएगी अत: दोनों राशियों के आधार पर मंगल की स्थिति इस प्रकार होगी :
अतिशुभ + सम = अति शुभ (त्रिकोणेश (केन्द्रेश होने अथवा होने के कारण) के कारण) योगकारक कर्क लग्न में ही दूसरे त्रिकोणेश बृहस्पति की दूसरी राशि छठे भाव में है अत: त्रिकोणेश होने से शुभ परंतु छठे भाव के स्वामी होने के कारण अशुभ। यहां एक तथ्य पर ध्यान देना आवश्यक है बृहस्पति नैसर्गिक रूप से शुभ ग्रह हैं अत: स्थिति इस प्रकार होगी :
अतिशुभ + अशुभ (नैसर्गिक शुभ) = सामान्य शुभ (त्रिकोणेश होने के कारण) कन्या लग्न में शनि पंचमेश होने के कारण शुभ हैं परंतु षष्ठेश होने के कारण अशुभ और साथ ही नैसर्गिक अशुभ होने के कारण स्थिति इस प्रकार होगी :
अतिशुभ + अशुभ + नैसर्गिक अशुभ = अशुभ इस प्रकार हर लग्न के लिए योगकारक-अयोगकारक का निर्णय करने से फलकथन में सहायता मिलती है। इन नियमों में कुछ अपवाद भी हैं जिन्हें ध्यान में रखना अति आवश्यक है। "भावार्थ रत्नाकर" नामक पुस्तक इस विषयां में बहुत अच्छी जानकारी देती है।
ऎसे बहुत से महत्वपूर्ण नियम भावार्थ रत्नाकर में उद्धत हैं।
महादशानाथ और अन्र्तदशानाथ में संबंध : इस अत्यंत महत्वपूर्ण विवेचन के लिए एक बार पुन: लघुपाराशरी की शरण में जाना होगा। लघुपाराशरी के अनुसार किसी भी दशा में पूर्णफल तभी मिलेंगे जब महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ समानधर्मी और संबंधी हों।
फल से तात्पर्य शुभ और अशुभ दोनों हैं। महत्वपूर्ण नियम यह है कि किसी भी ग्रह की महादशा में पहली अन्तर्दशा उसी ग्रह की होगी परंतु पूर्णफल देने में सक्षम नहीं होगी फिर भले ही वह योगकारक हो, अयोगकारक या मारक। फलकथन में इन बारीकियों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। मान लीजिए, किसी कुण्डली में शुक्र योगकारक हैं और उनकी महादशा शुरू होने वाली है। शुक्र महादशा में पहली अन्तर्दशा शुक्र की ही होगी और लगभग तीन वर्ष की होगी। ऎसी स्थिति में इस अवधि में बहुत अच्छे परिणाम कहना, कथन को गलत सिद्ध कर सकता है।
समानधर्मी से तात्पर्य है स्वाभाविक फल समान होना अर्थात् महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ दोनों ही योगकारक हों, अयोगकारक हों या मारक हों। यदि महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ सहधर्मी होने के साथ-साथ संबंधी भी हुए तो दशा का पूरा फल प्राप्त होगा। संबंधी से तात्पर्य है किसी भी प्रकार का चतुर्विध संबंध। यदि महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ सहधर्मी और संबंधी दोनों हुए तो श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होंगे। परिणाम अच्छे या बुरे दोनों हो सकते हैं। वृहत पाराशर होरा शास्त्र में सभी ग्रहों की महादशा में सभी अन्तर्दशाओं का विस्तृत विवरण दिया गया है। इस विवरण से न सिर्फ कुछ विशेष परिणाम का ज्ञान होता है बल्कि बहुत से अचूक उपायों का भी ज्ञान होता है। स्पष्ट है कि शुभ महादशा में योगकारक अन्तर्दशाएं अति शुभ परिणाम देंगी और अयोगकारक एवं मारक दशाएं अपने पूरे परिणाम नहीं दे पाएंगी इसलिए शुभ महादशा का समय अच्छा बीतेगा।
अन्तर्दशानाथ की स्थिति का विवेचन : दशा में आने वाले परिणाम दशानाथ की स्थिति पर आधारित होंगे। दशानाथ उच्चा, नीच, मित्र, शत्रु आदि जिस भी राशि में हैं परिणाम की विवेचना उसी आधार पर की जाती है। दशानाथ का षड्बल बहुत महत्वपूर्ण संकेत देता है। षड्बल में विभिन्न मापदण्डों पर ग्रह का बल तौला जाता है। यदि दशानाथ का षड्बल औसत से अच्छा है अर्थात् 1 रूपाबल या उससे अधिक तो दशानाथ फल देने में सक्षम हैं। पुन: स्पष्ट करना आवश्यक है कि फल शुभ या अशुभ दोनों हो सकते हैं। यदि दशानाथ का ष्ड्बल कम है तो वह पूर्ण परिणाम देने में सक्षम नहीं है। मान लीजिए, दशानाथ भाग्येश हैं परंतु षड्बल कम है तो शुभ परिणाम कहीं ना कहीं कम हो जाएंगे। षड्बल से विवेचना करते समय ग्रह का नैसर्गिक कारकत्व भी अवश्य देखना चाहिए। जिसकी कुण्डली में शुक्र का षड्बल अच्छा होता है, उसे सौन्दर्य की परख बहुत अच्छी होती है। अगर उस कुण्डली के लिए शुक्र षष्ठेश हैं तो शुक्र षष्ठेश के ही परिणाम देंगे परंतु उनका यह नैसर्गिक गुण भी अवश्य विद्यमान होगा। ग्रहों के नैसर्गिक गुणों एवं कारकत्वों को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। लघुपाराशरी के एक अन्य नियम की चर्चा यहां करना आवश्यक है। लघुपाराशरी के अनुसार एक ही ग्रह कारक और मारक दोनों हो सकता है। दूसरे भाव का स्वामी या दूसरे भाव में बैठा ग्रह धनदायक है तो मारक भी है। जब दशा में योगकारक ग्रह का साथ मिलेगा तो वह ग्रह धन प्रदान करेगा और जब मारक ग्रह का साथ मिलेगा तो वह मारक फल प्रदान करेगा। परन्तु काल परिस्थिति वाली वात भी यहां घ्यान में रखे
षोड्श वर्ग : वैदिक ज्योतिष का सबसे महत्वपूर्ण अंग है षोड्श वर्ग। दशानाथ की पूर्ण शक्ति समझने के लिए नवांश कुण्डली में उसकी स्थिति जरूर देखी जानी चाहिए। यदि ग्रह जन्मकुण्डली में मजबूत है परंतु नवांश कुण्डली में कमजोर है तो उसे कमजोर माना जाना चाहिए परंतु जन्मकुण्डली में नीच का ग्रह यदि नवांश कुण्डली में उच्चा का है तो वह फल देने में सक्षम है।
नवांश
कुण्डली के पश्चात् उस षोड्श वर्ग कुण्डली का अध्ययन करना चाहिए जिससे संबंधित भाव
की दशा चल रही है। षोड्श वर्ग के अध्ययन को लेकर अभी भी बहुत असमंजस है। जो
जन्मकुण्डली में नहीं है उसे षोड्श वर्ग में ना ढूंढे। चाहे पाप ग्रह उच्चा का हो
और चाहे शुभ ग्रह नीच का, कभी भी अपने मूल संस्कार नहीं भूलते। फलकथन के
प्रतिशत में अंतर आ सकता है परंतु पापग्रह पाप फल देने से नहीं चूकते और शुभ ग्रह
शुभ फल देने से नहीं चूकते। मान लीजिए, जन्मपत्रिका
का पंचम भाव पीडत है और संतान प्राप्त में दिक्कतें आ रही हैं तो जन्मपत्रिका के
पंचमेश की स्थिति सप्तमांश कुण्डली में देखें।
यदि सप्तमांश कुण्डली में वह ग्रह सुदृढ़ स्थिति प्राप्त कर रहा है या शुभ ग्रहों से दृष्ट है तो इसका तात्पर्य है कि संतान प्राप्त की संभावनाएं हैं। संतान कब होगी इसके लिए पुन: जन्मपत्रिका का सहारा ही लेना होगा। इस तरह फलकथन की तकनीक को सरल रखने का प्रयास करना चाहिए। जब कोई ग्रह कई षोड्श वर्गो में उच्च या स्वराशि का हो तो वह ग्रह अति विशेष परिणाम देने में सक्षम हो जाता है। अत: जिस ग्रह की दशा चल रही है उसे षोड्श वर्ग सारिणी में देखें। यदि ग्रह 6 से अधिक वर्गो में उच्च या स्वराशि होता है तो फलकथन में इस तथ्य को भी शामिल करना चाहिए।
गोचर : दशा जिस घटना का संकेत देती है, गोचर से उसकी पुष्टि की जा सकती है। साथ ही घटना की तीव्रता का आकलन भी गोचर के माध्यम से किया जा सकता है। उदाहरण के लिए जब सप्तमेश की दशा चल रही हो उसी समय गोचरवश सप्तम भाव पर बृहस्पति और शनि का प्रभाव विवाह की संभावनाओं को प्रबल कर देता है। जिस समय मारकेश की दशा चल रही है उस समय लग्न पर बृहस्पति की अमृत दृष्टि जीवन रक्षा का संकेत देती है। यह अत्यंत आवश्यक है कि सिर्फ गोेचर के आधार पर परिणाम लेने का प्रयास नहीं करना चाहिए। इससे गलती की संभावना बढ़ सकती है।विशेष नियमों का ज्ञान : कुछ विशेष नियमों का ज्ञान फल की सटीकता को कई गुणा बढ़ा सकता है। कालिदास जी की उत्तर कालामृत में ऎसे ही कुछ विशेष नियमों का उल्लेख है। उदाहरण के लिए शनि में शुक्र और शुक्र में शनि की दशा का विशेष नियम दिया है ।
शुक्र शनि दशा के विशेष नियम
शुक्र शनि दशा विशेष नियमपराशर ज्योतिष का एक ये विशेष नियम है की शुक्र अपना फल अपनी महादशा में शनि की अन्तर्दशा में देता है और शनिअपना फल अपनी महादशा में जब शुक्र की अन्तर्दशा आती है तब देता है अब इस नियम की एक ख़ास बात ये भी है की जब कुंडली में ये दोनों अपनी उंच राशि स्वराशि में होकर शुभ स्थानो में स्थित हो तो इनकी दशा अन्तर्दशा जातक को बर्बाद करने का कार्य करती है लेकिन जब इन दोनों में से कोई एक यदि नीच राशि शत्रु राशि में सिथत होकर अशुभ स्थानों में होतो इनकी दशा योगकारक होकर जातक को विशेष शुभ फल देती है ऐसे ही यदि ये दोनों अपनी नीच राशि शत्रु राशि में स्थित होकर त्रिक भाव में हो तो इनकी दशा अन्तर्दशा में जातक को विशेष शुभ फल मिलते है यदि इन दोनों में से कोई एक त्रिक भाव का स्वामी हो और दूसरा शुभ भाव का स्वामी हो तो भी इनकी दशा विशेष रूप से शुभ फल जातक को देती है यदि ये दोनों अशुभ भावों के स्वामी हो तो भी इनकी दशा विशेष रूप से योगकारक होकर जातक को अच्छे फल देती है जिन जातकों ने इनकी दशा अन्तर्दशा भुगती है वो ये नियम अपने उपर लगाकर खुद देख सकते है की ये नियम कितना स्टिक है।
दशाओं के तीन मुख्य अंग होते हैं-1.महादशा 2.अन्तर्दशा
व 3.प्रत्यन्तर दशा।
दशाओं का फल कहने के लिए इन तीनों अंगों का सूक्ष्म व गहन परीक्षण
आवश्यक है। महादशा के स्वामी को महादशानाथ, अन्तर्दशा के स्वामी
को अन्तर्दशानाथ व प्रत्यन्तर दशा के स्वामी प्रत्यन्तर दशानाथ कहा जाता है।
जन्मपत्रिका में जो ग्रह जैसा व जिस स्थिति में होता है वह अपनी दशा आने पर वैसा
ही फलित करता है।
यदि जन्मपत्रिका में कोई ग्रह शुभ,उच्चराशिस्थ,स्वराशिस्थ,मित्रक्षेत्री,षड्बल में बली व राजयोगकारक है तो वह अपनी दशा आने पर शुभ फलित करेगा
इसके विपरीत यदि कोई ग्रह अशुभ,नीचराशिस्थ,शत्रुक्षेत्री व दुर्योगकारक है तो वह अपनी दशा में अशुभ फल करेगा। सभी
ग्रह अपनी अन्तर्दशा में विशेष फलदायक होते हैं अर्थात् ग्रहों का शुभाशुभ फल उनकी
अन्तर्दशा में अधिक प्राप्त होता है।
यदि महादशानाथ व अन्तर्दशानाथ एक-दूसरे से छठे,आठवें या बारहवें स्थित हों तो यह प्रतिकूल स्थिति मानी जाती है। यदि
महादशानाथ व अन्तर्दशानाथ परस्पर केन्द्र में हों तो यह अनुकूल होता है। षष्ठेश,
अष्टमेश, द्वादशेश एवं मारकेश की दशाएं
सामान्यत: कष्टकारक व अशुभ फलदायक होती हैं। यदि इन भावों के अधिपति शनि, राहु-केतु जैसे क्रूर ग्रह हों तो जातक को अधिक प्रतिकूल परिणाम
प्राप्त होते हैं।
1. सूर्य- 6 वर्ष
2. चन्द्र- 10 वर्ष
3. मंगल- 7 वर्ष
4. बुध- 17 वर्ष
5. गुरु- 16 वर्ष
6. शुक्र- 20 वर्ष
7. शनि- 19 वर्ष
8. राहु- 18 वर्ष
9. केतु- 7 वर्ष
प्रश्न: कैसे
जाने कौन सी घटना कब घटेगी ?
उत्तर: घटना के समय को जानने के लिए इन बिंदुओं पर ध्यान दें- घटना का
संबंध किस भाव से है, भाव का कारक ग्रह कौन है, स्वामी ग्रह कौन है, भाव में स्थित ग्रह,
युति एवं भाव पर ग्रह की दृष्टि। कौन सी महादशा अंतर्दशा,
प्रत्यंतर्दशा, सूक्ष्म एवं प्राण दशा
चल रही है। भाव को प्रभावित करने वाले ग्रहों की गोचर स्थिति। इन सभी का
ध्यानपूर्वक अध्ययन करने पर किसी भी घटना का समय जाना जा सकता है।
प्रश्न: किसी जातक की शादी के समय को जानने के लिए कुंडली
का अध्ययन कैसे करें?
उत्तर: विवाह-शादी का संबंध कुंडली में सप्तम भाव के होता है। इसलिए
सप्तम भाव के स्वामी, स्प्तम भाव के कारक अर्थात विवाह के कारक (स्त्री के लिए गुरु और पुरुष
क े लिए शुक्र), सप्तम भाव म ंे बैठ े ग्रह, सप्तम भाव पर
दृष्टि रखने वाले ग्रह, इन सभी के अंशों तक अध्ययन करें
अर्थात सप्तम भाव मध्य कितने अंशों पर है। सप्तम भाव में बैठे ग्रह अष्टम भाव मध्य
के कितने करीब हैं। सप्तम भाव और सप्तम भाव में बैठे ग्रह पर किस ग्रह की दृष्टि
कितने अंशों तक है। सप्तम भाव मध्य अंशों के जो ग्रह करीब होता है वही विवाह
करवाने में सहायक होता है-
यदि वह ग्रह शुभ हो। यदि सप्तम भाव में कोई ग्रह नहीं है तो उस पर ग्रहों की
दृष्टि देखें। जो ग्रह भाव मध्य के अंशों पर दृष्टि डालेगा वह विवाह में सहायक
होगा। यदि सप्तम भाव पर किसी ग्रह की दृष्टि न हो तो सप्तमेश की स्थिति
देखें। सप्तमेश किस भाव में कितने अंशों पर है और सप्तमेश पर किस-किस ग्रह की दृष्टि है। यदि सप्तमेश पर शुभ ग्रहों
की दृष्टि होगी और सप्तमेश सप्तम भाव मध्य के अंश बराबर या करीब-करीब बराबर हो तो
सप्तमेश विवाह करवाने में सहायक होता है। जो भी ग्रह विवाह करवाने में
सहायक हो यदि उसकी महादशा या अंतर्दशा चल रही हो तो उसी दशा में विवाह होगा लेकिन
दशा स्वामी की गोचर स्थिति विवाह का समय बताएगी गोचर में दशा स्वामी सप्तम भाव
मध्य पर गोचर करे या पूर्ण दृष्टि डाले तब विवाह होगा। अर्थात विवाह का समय विवाह
में सहायक ग्रह, उसकी दशांतर्दशा एवं गोचर पर निर्भर करता
है। प्रश्न: जिन जातकों
का विवाह नहीं होता क्या उनके लिए कोई ग्रह सहायक नहीं होता? उत्तर: कोई न कोई ग्रह तो विवाह में अवश्य सहायक होता है।
सर्वदा विवाह के लिए सप्तमेश सहायक होता ही है। लेकिन जब तक संबंधित ग्रह
की दशा अंतर्दशादि न आए और गोचर में ग्रह सप्तम भाव को प्रभावित न करें, तब तक विवाह नहीं होता अर्थात जब दशा-अंतर्दशा चल रही हो और गोचर प्रतिकूल हो, तो विवाह नहीं होता और
यदि गोचर अनुकूल हो और दशा-अंतर्दशा
संबंधित ग्रह की चल रही हो तो भी विवाह नहीं होता है। संबंधित ग्रह की दशा-अंतर्दशा और गोचर जब दोनों
प्रतिकूल होंगे। विवाह तभी होगा अन्यथा नहीं। ऐसी स्थिति कभी-कभी बड़ी आयु में भी
आती है तो बड़ी आयु में विवाह घटित होता है। यदि ऐसी स्थिति जीवन में नहीं आती तो
विवाह घटित होता ही नहीं। सूक्ष्मता से अध्ययन करें तो यह सब जाना जा सकता
है।
प्रश्न: क्या किसी जातक के साथ होने वाली दुर्घटना का
पूर्व समय बताया जा सकता है?
उत्तर: हां, ठीक उसी तरह जिस तरह विवाह घटित होने का समय
बताया जा सकता है। दुर्घटना का संबंध लग्न और लग्नेश से विशेष रहता है क्योंकि
लग्न जातक के स्वयं का नेतृत्व करता है। कष्ट जातक को होगा जब भी दुर्घटना घटित
होगी। इसलिए लग्नेश को अधिक महत्व देते हैं। लग्न में स्थित शुभ ग्रह लग्न की
सुरक्षा करते हैं। अशुभ ग्रह हानि पहुंचाते हैं। इसी प्रकार लग्नेश के साथ स्थित
और दृष्टि देने वाले शुभ ग्रह लग्नेश की करते हैं सुरक्षा और अशुभ ग्रह हानि
पहुंचाते हैं। लग्न और लग्नेश की स्थिति जातक के व्यक्तिगत रूप को निश्चित करती
है। अकारक ग्रह या मारक ग्रह जब भी लग्न या लग्नेश पर गोचर करता है और इन्हीं की
यदि दशा-अंतर्दशा चल रही
हो, तो
जातक को शारीरिक कष्ट होता है। जिससे जीवन समाप्त भी हो सकता है। लेकिन यदि यह
ग्रह मंगल से भी प्रभावित हो तो जातक को दुर्घटना में अधिक चोट आती या रक्त भी
बहता है। दुर्घटना का समय संबंधित ग्रहों के अंशों पर निर्भर करता है। जब ग्रह का
गोचर उतने ही अंशों पर आए जितने अंशों पर ग्रह या लग्न है वही समय दुर्घटना घटित
होने का होता है। इसी तरह जातक पर आने वाली विपदा का पूर्व अनुमान लगाया जा सकता
है।
प्रश्न: मकान, जमीन जायदाद आदि सुखों की
प्राप्ति का समय कैसे जानें?
उत्तर: मकान, जमीन-जायदाद और अन्य सभी प्रकार के भौतिक सुखों को चतुर्थ भाव
से देखा जाता है। चतुर्थ भाव का स्वामी, कारक ग्रह,
चतुर्थ भाव में स्थिती ग्रह, चतुर्थ भाव
पर पड़ने वाली दृष्टियां यह सब इस बात का निर्णय करते हंै कि जातक को मकान, जमीन-जायदाद
का सुख प्राप्त होगा या नहीं। चतुर्थ भाव में स्थित ग्रह यदि शुभ हो और उस
पर शुभ ग्रहों की दृष्टियां भी हों अर्थात हर प्रकार से चतुर्थ भाव और चतुर्थेश
शुभ प्रभाव में हों, तो जातक को सभी भौतिक सुख प्राप्त
होते हैं - लेकिन समय
आने पर। जो ग्रह चतुर्थ भाव पर शुभ प्रभाव डालते हैं उन्हीं की दशा-अंतर्दशा और
गोचर चतुर्थ भाव पर जिस समय
प्रभाव डालते हैं उस समय जातक को मकान, जमीन जायदाद और
अन्य भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। भौतिक सुख का रूप दशा अंतर्दशा और गोचर पर
निर्भर करता है क्योंकि सुखों में कुछ अचल और कुछ चल होते हैं। शनि, मंगल आदि का गोचर और दशा अंतर्दशा से प्रभावित चतुर्थ भाव अचल संपत्ति
देता है और शुक्र, चंद्र चल सुख जैसे वाहन इत्यादि। इसलिए
ग्रह के स्वभाव के अनुसार सुख के रूप को जाना जाता है।
प्रश्न: संतान प्राप्ति के समय को जानने के लिए किन बातों
का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर: संतान प्राप्ति के समय को जानने के लिए पंचम भाव, पंचमेश अर्थात पंचम भाव का स्वामी, पंचम कारक गुरु, पंचमेश, पंचम भाव में स्थित ग्रह और पंचम भाव और पंचमेश पर दृष्टियों पर विशेष
ध्यान रखना चाहिए। पंचम भाव संतान का ही नहीं बल्कि विद्या का भाव भी है इसलिए
जातक की आयु को ध्यान में रखते हुए फल का समय निर्धारण करें। वैसे तो किसी भी आयु
में संतान और विद्या प्राप्त हो सकती है, फिर भी यदि जातक
का विवाह हो चुका हो और संतान अभी तक नहीं हुई हो या विवाह से पूर्व भी संतान का
समय निकाला जा सकता है। पंचम भाव जिन शुभ ग्रहों से प्रभावित हो उन ग्रहों की दशा-अंतर्दशा और गोचर के शुभ रहते संतान की प्राप्ति
अवश्य होती है। गोचर में जब ग्रह पंचम भाव पर या पंचमेश पर या पंचम भाव में बैठे
ग्रहों के भावों पर गोचर करता है तब संतान सुख की प्राप्ति का समय होता है।
प्रश्न:
पुत्र और पुत्री प्राप्ति का समय कैसे जानें?
उत्तर: संतान
प्राप्ति के समय के निर्धारण में यह भी जाना जा सकता है कि पुत्र की प्राप्ति होगी
या पुत्री की। यह ग्रह महादशा, अंतर्दशा
और गोचर पर निर्भर करता है। यदि पंचम भाव को प्रभावित करने वाले ग्रह पुरुष कारक
हों तो संतान पुत्र और यदि स्त्री कारक हों तो पुत्री होगी।
प्रश्न: क्या मृत्यु का समय भी जाना जा सकता है?
उत्तर: मृत्यु का समय भी कुंडली के अध्ययन से जाना जा सकता है। कुंडली
का अष्टम भाव मृत्यु का भाव होता है। इस भाव का स्वामी, कारक शनि, अष्टम भाव में स्थित ग्रह, अष्टम भाव पर ग्रहों की दृष्टियां, अष्टमेश की
स्थिति और इन सब का लग्न या लग्नेश से संबंध ये सारी स्थितियां मृत्यु की कारक
बनती हैं। द्वितीयेश और सप्तमेश को भी मारकेश माना जाता है। कुछ विद्व ान तृतीयेश
को भी मारकेश मानते हैं क्योंकि तृतीय भाव अष्टम भाव से अष्टम होता है। अष्टमेश,
द्वितीयेश, तृतीयेश और सप्तमेश में जो
ग्रह अशुभ और बलवान होकर लग्न या लग्नेश को प्रभावित करता है, वह मृत्यु का कारण बनता है। इसी ग्रह की दशा-अंतर्दशादि और गोचर जब लग्न या लग्नेश को प्रभावित
करते हैं तो जातक को मृत्यु का सामना करना पड़ता है। अष्टम भाव में बैठे ग्रह की
दशा-अंतर्दशादि और गोचर भी जब
लग्न या लग्नेश को प्रभावित करते हैं तो जातक को मृत्यु का सामना करना पड़ता है।
प्रश्न: कभी-कभी ऐसा भी देखा गया है कि लग्नेश की महादशा
में जातक की मृत्यु होती है जबकि लग्नेश तो शुभ ग्रह ही माना जाता है। ऐसा क्यों?
उत्तर: हां, कई बार ऐसा देखने में आता है कि जातक की मृत्यु
लग्नेश की दशा में होती है। जब भी मृत्यु होती है, अशुभ
ग्रह के बलवान होकर लग्नेश को प्रभावित करने के कारण होती है, क्योंकि लग्न और लग्नेश ही जातक का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए जब
जन्म समय लग्नेश, द्वि तीयेश, तृतीयेश,
सप्तमेश, अष्टमेश और अकारक ग्रह के
प्रभाव में रहता है और जब गोचर में भी द्वितीयेश, तृतीयेश,
सप्तमेश, अष्टमेश और अकारक ग्रह से युत
या दृष्टि संबंध स्थापित करता है तो जातक की मृत्यु लग्नेश की दशा में होती है।
प्रश्न: क्या दिन भर में घटित होने वाली छोटी-छोटी घटनाओं
को भी जाना जा सकता है?
उत्तर: छोटी-छोटी घटनाएं तो जीवन का हिस्सा हैं इसलिए दिन में भी घटती रहती
हैं जिन्हें हम गंभीरता से नहीं लेते। हां, जहां तक घटना को जानने
का सवाल है तो जाना जा सकता है ठीक उसी तरह जैसे किसी बड़ी घटना को जाना जा सकता
है।
प्रश्न: व्यक्ति विशेष
के अतिरिक्त विश्व भर में घटित होने वाली घटनाओं के समय को भी जाना जा सकता है? उत्तर: हां, मेदिनीय ज्योतिष के आधार पर व्यक्ति विशेष के अतिरिक्त विश्व भर में
होने वाली घटनाओं के समय का निर्धारण भी किया जा सकता है।
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प्रत्येक व्यक्ति में 60 प्रतिशत से अधिक पानी होता है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है चन्द्र के बदलने का व्यक्ति पर कितना प्रभाव पड़ता होगा। चन्द्र के बदलने के साथ-साथ किसी पागल व्यक्ति की स्थिति को देख कर इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
अगर चन्द्र की स्थिति ख़राब हो जाये तो व्यक्ति कई नशीली वस्तुओं का सेवन करने लगता है।
आठवें घर में स्थित बुरे ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए, मेहमानों और दूसरों को खुलकर दूध और पानी बांटें.
उपाय :सरकारी नौकरी पाने के लिए कुछ सरल उपाय :Remedy: some simple steps to get a government job? :
सरकारी नौकरी के लिए तीन मुख्य ग्रह होते हैं .
ग्रह : सूर्य, गुरू और शनि।
ग्रह अनुकूलता के लिए उपाय:मंत्रो का जाप,रत्न
,आदि के द्यारा।
सूर्य ग्रह : सूर्य की अनुकूल करने के लिए प्रतिदिन आदित्यह्रदयस्त्रोत का पाठ करें तथा सूर्य को जल अर्पण करें।
आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करे.
ॐ घृणी सूर्याय नमः का कम से कम 108 बार जप कर ले
गायत्री का जप कर ले
घर की पूर्व दिशा से रौशनी आयेगी तो अच्छा रहेगा ।
घर में तुलसी का पौधा जरूर लगा दे
पिता की सेवा
शराब और मांसाहार न खिलाये
शिवजी ,पीपल के उपाय।
कॅरियर में सफलता के लिए आदित्य हृदय स्त्रोत का प्रतिदिन पाठ करें।
लाल वस्त्र, लाल चन्दन, तांबे का बर्तन, केसर, गुड़, गेहूं का दान रविवार को करना शुभ फल प्रदान करता है।
रविवार काव्रत रखें, इस दिन नमक का प्रयोग न करें।
घर से बहार निकलने से पहले थोड़ा सा गुड़ खाएं।
माता पिता के पांव छुकर आशीर्वाद लें।
गुरू ग्रह :गुरू ग्रह को अनुकूल करने के लिए पीली वस्तुओं का दान तथा , भगवान विष्णु या कृष्ण की पूजा आराधना करनी चाहिए।
शनि ग्रह :शनि ग्रह को अनुकूल करने के लिए ,शनिवार को दान करना चाहिए।
कुछ सरल उपाय:उपाय आस्था के साथ करना चाहिए ।
- तांबे के लोटे से सुबह-सुबह सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए ।
- हनुमान जी के दर्शन करें।
-पक्षियों को जो ,बाजरा खिलाना चाहिए। हो सके तो सात प्रकार के अनाजों को एकसाथ मिलाकर पक्षियों को खिलाएं। गेहूं, ज्वार,
मक्का, बाजरा, चावल,
दालें आदि हो सकती हैं। सुबह-सुबह यह उपाय करें।
-गाय को आटा और गुड़ खिला देवे ।
-इसलिए बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते रहना चाहिए।
- हनुमान जी तस्वीर रखें और उनकी पूजा करें। हर मंगलवार को जाकर बजरंग बाण का पाठ करें।
-हनुमान चालीसा का पाठ करें। -
-सुबह स्नान करते समय पानी में थोड़ी पिसी हल्दी मिलाकर स्नान करते हैं।
- गणेश जी का कोई ऐसा चित्र या मूर्ति घर में रखें या लगाएं, जिसमें उनकी सूंड़ दाईं ओर मुड़ी हो। गणेश जी की आराधना करें।
- शनिवार को शनि देव की पूजा करके आगे लिखे मंत्र का 108 बार जप करें।
ॐ शं शनैश्चराय नम:सूर्य के उपाय
-आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करे 3 बार सूर्य के सामने
- ॐ घृणी सूर्याय नमः का कम से कम 108 बार जप कर ले
- गायत्री का जप कर ले
- घर की पूर्व दिशा से रौशनी आयेगी तो अच्छा रहेगा ।
-पूर्व दिशा मै सोने से असुंध विचार सुंध होते हैं।
-घर में तुलसी का पौधा जरूर लगा दे.
-पिता की सेवा।
-शराब और मांसाहार न खिलाये
-शिवजी ,पीपल के उपाय।
इन उपाय को करने से ग्रहो की अनुकूलता होती है और सरकारी नौकरी का मार्ग खुलते है।
भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या बुधवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (108 बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से 40 दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी।> > मंत्र : 'ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।'
Daily Routine की activities आपकी life की सबसे ज्यादा important activities होती हैं क्योकि इन Daily activities का सीधा relation आपकी success से होता है।
आपका daily routine
यह तय करता है कि (आप उसमे जो भी activities कर रहें हैं) उसका क्या result होगा और वह result आपको किस direction में ले जायेगा। अगर आपके रोज किये जाने वाले कार्य positive होंगे तो आपको वह positive
direction में ले जायेंगे और
यदि आपके रोज किये जाने वाले कार्य negative होंगे तो वह आपको wrong direction में ले जायेंगे जिसका परिणाम failure होता है। यदि आप success
पाना चाहते हैं तो आपकी activities भी positive होनी चाहिए।
दुनिया में सभी के
पास 24 घंटे होते हैं। अब यह आप पर depend करता है कि आप इनका किस प्रकार use करते हैं। इन 24 hours में किये जाने वाले
वही कार्य important हैं जो आपको सफलता की ओर ले जाते हैं, इसके अतिरिक्त जो भी
work हैं, वह सब waste हैं।
आपको अपनी ऐसी activities खोजनी होंगी जो आपके
टाइम को बर्बाद करती हैं। इन Time
killer activities को अपनी daily routine से आपको हटाना होगा। ऐसे कार्य जो आपके किसी काम के नहीं हैं या जिनसे
आपको कोई profit नहीं हैं या वह कार्य जो आपको success की तरफ नहीं ले जाते, उन्हें तुरंत रोक
दीजिये।
अपने daily routine
में वही कार्य रखिये जो आपको सफलता की ओर ले जाएँ। इसके लिए आप daily
planning कर सकते हैं।
अपनी इस planning में आप उन्हीं
कार्यों को स्थान दीजिये जो आपकी सफलता के लिए जरुरी हों। एक बात यह भी जरुरी है
कि यदि आपको किसी दिन 10 कार्य करने हैं तो आप कौन सा कार्य अपनी daily activities में पहले करेंगे और कौन सा बाद में करेंगे? इसका solution बहुत आसान है। आपको Priority सेट करनी होगी |
आप सबसे पहले अपना सबसे जरुरी कार्य कीजिये, उसके बाद उससे कम जरुरी कार्य कीजिये और सबसे अंत में सबसे कम जरुरी कार्य
कीजिये। पूरे दिन में इसी order
में अपने कार्यों को complete कीजिये।
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