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Neech graha - vakri grah | ज्योतिष में नीच ग्रह और वक्री ग्रह

Neech graha - vakri grah | ज्योतिष में नीच ग्रह और वक्री ग्रह 


केस – 1
एक जातक ज्‍योतिषी के पास पहुंचता है और अपनी कुण्‍डली दिखाता है। ज्‍योतिषी जातक से कहता है कि आपकी कुण्‍डली कन्‍या लग्‍न की है, लेकिन बुध अस्‍त होने के कारण आप कुछ कर नहीं पा रहे हैं। लग्‍न में बुधादित्‍य (सूर्य और बुध के साथ होने का योग) के बावजूद आपकी कुण्‍डली असरदार नहीं रह गई है। जातक ज्‍योतिषी से इसका उपाय पूछता है। कुण्‍डली के कारक ग्रहों का उपचार बताने के बजाय ज्‍योतिषी जातक को बुध के उपाय बताकर भेज देता है।

केस – 2

पुस्‍तक में पढ़कर अपनी कुण्‍डली का विश्‍लेषण कर रहे व्‍यक्ति को पता चलता है कि शनि के वक्री होने के कारण उसके सारे काम उल्‍टे हो रहे हैं और आने वाली महादशा भी शनि की ही है। इससे परेशान हुआ व्‍यक्ति ज्‍योतिषियों के चक्‍कर निकालने लगता है। वह हर ज्‍योतिषी से यही पूछता है कि वक्री शनि का उपचार क्‍या है। जबकि वास्‍तव में उसकी कुण्‍डली में शनि अकारक है। यानि उसकी जिंदगी में शनि की बजाय अन्‍य ग्रहों का रोल अधिक है।

ऐसे ही कई उद्धरण ज्‍योतिषियों के पास आते हैं और आम लोग भी ग्रहों के अस्‍त या वक्री होने से परेशान नजर आते हैं। ज्‍योतिष की मूल रूप से दो शाखाएं हैं। सिद्धांत और फलित। सिद्धांत शाखा में जहां ज्‍योतिषीय गणनाओं के बारे में विस्‍तार से दिया गया है वहीं फलित ज्‍योतिष में ग्रहों, राशियों और नक्षत्रों का मनुष्‍य के जीवन पर प्रभाव के बारे में विशद वर्णन है। समय के साथ सिद्धांत और फलित शाखाओं में समय के साथ दूरी बनती जा रही है। एक ओर जहां फलित की पुस्‍तकों के ढेर लग रहे हैं वहीं सिद्धांत ज्‍योतिष उपेक्षित होती जा रही है। इसी का नतीजा है कि सिद्धांत में दिए गए शब्‍दों को फलित ज्‍योतिष में भली भांति समझे जाने के बजाय उनके सामान्‍य शब्‍दों के अनुरूप ही अर्थ निकाले जाने लगे हैं। पहले पहल नौसिखिए ज्‍योतिषियों ने इन शब्‍दों के शाब्दिक अर्थों का प्रयोग किया, बाद में तो कई पुस्‍तकों तक में इन शब्‍दों के गलत अर्थ आ गए। इससे आम लोगों में भी ज्‍योतिषीय शब्‍दों को लेकर भ्रांतियां बढ़ती जा रही हैं। वास्‍तव में शब्‍दों के अर्थ समझना विषय को समझने से पहले जरूरी है।

वक्री और मार्गी का असर
सिद्धांत ज्‍योतिष में स्‍पष्‍ट किया गया है कि वक्री क्‍या होता है। हम सामान्‍य विज्ञान के दृष्टिकोण से देखें तो पता चलेगा कि सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्धवृत्ताकार कक्षा में चक्‍कर लगा रहे हैं। चूंकि पृथ्‍वी भी सूर्य के चारों ओर चक्‍कर लगा रही है, अत: सापेक्ष गति के कारण ऐसा दिखाई देता है। अगर सौर मण्‍डल में ग्रहों का मार्ग पूर्णत: वृत्ताकार होता तो कभी कोई ग्रह वक्री या मार्गी नहीं होता, लेकिन दीर्धवृत्ताकार चक्‍कर निकालने के कारण पृथ्‍वी से देखे जाने पर ये ग्रह कभी अधिक तेज गति से चलते हुए तो कभी धीमी रफ्तार से चलते हुए दिखाई देते हैं। वास्‍तव में कोई भी ग्रह उल्‍टी चाल से नहीं चलता है। सिद्धांत ज्‍योतिष ने यह तो स्‍पष्‍ट कर दिया कि कब ग्रह की मार्गी गति होती, कब अतिचाल होगी और कब वक्री गति होगी, लेकिन फलित ज्‍योतिष में इसके असर के बारे में स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है कि ग्रहों की इस चाल का से क्‍या और क्‍यों असर में बदलाव आता है। इसका एक सिद्धांत यह भी बताया जाता है कि ग्रह के वक्री होने पर वह किसी राशि विशेष में अधिक समय तक ठहरकर सूर्य और अन्‍य नक्षत्रों से मिली राशियों को पृथ्‍वी की ओर भेजता है। इससे वक्री ग्रह का प्रभाव सामान्‍य के बजाय उच्‍च की भांति हो जाता है। वहीं दूसरी ओर अतिचाल के कारण ग्रह कम समय के लिए राशि में ठहरता है और नक्षत्रों से मिली रश्मियों को अपेक्षाकृत कम समय के लिए जातक की ओर भेजता है। ऐसे में उसका प्रभाव नीच की भांति हो जाता है।

प्रकृति में नहीं होता बदलाव
फलित ज्‍योतिष में हर ग्रह और राशि (नक्षत्रों के समूह) की प्रकृति के बारे में विस्‍तार से जानकारी दी गई है। ग्रहों के रंग, दिशा, स्‍त्री-पुरुष भेद, तत्‍व और धातु के अलावा राशियों के गुणों के बारे में भी बताया गया है। ग्रहों और राशियों की प्रकृति स्‍थाई होती है। इनके प्रभाव में कमी या बढ़ोतरी हो सकती है, लेकिन मूल प्रकृति में कभी बदलाव नहीं होता। जब कोई ग्रह अपनी नीच राशि में जाता है तो यह माना जाता है कि इस राशि में ग्रह का प्रभाव अपेक्षाकृत कम होता है और उच्‍च राशि में अपना सर्वाधिक प्रभाव देता है। सूर्य मेष राशि में, चंद्रमा वृष में, बुध कन्‍या में, शनि तुला में, मंगल मकर में, गुरु कर्क में और शुक्र मीन राशि में उच्‍च का होता है। इसका तात्‍पर्य यह हुआ कि इन राशियों में ग्रहों का प्रभाव अधिक होगा। दूसरी ओर सूर्य तुला में, चंद्रमा वृश्चिक में, बुध मीन में, शनि मेष में, मंगल कर्क में, गुरु मकर में और शुक्र कन्‍या राशि में नीच का प्रभाव देते हैं। यहां इन ग्रहों का प्रभाव सबसे कम होता है। अब प्रभावों में बढ़ोतरी हो या कमी, न तो ग्रह की और न ही राशि की प्रकृति में कोई बदलाव आता है। ऐसे में किसी ग्रह के नीच या उच्‍च होने पर उसके प्रभाव को नीच या उच्‍च नहीं कहा जा सकता है।

ग्रहों की बत्ती नहीं बुझती
ज्‍योतिष में सौरमण्‍डल के अन्‍य ग्रहों के साथ सूर्य को भी एक ग्रह मान लिया गया है, लेकिन वास्‍तव में सूर्य ग्रह न होकर एक तारा है। ग्रह जहां सूर्य की रोशनी से चमकते हैं वहीं सूर्य खुद की रोशनी से दमकता है। पृथ्‍वी से परीक्षण के दौरान हम देखते हैं कि कई बार ग्रह सूर्य के बहुत करीब आ जाते हैं। किसी भी ग्रह के सूर्य के करीब आने पर ज्‍योतिष में उसे अस्‍त मान लिया जाता है। आमतौर पर दस डिग्री से घेरे में सभी ग्रह अस्‍त रहते हैं। सिद्धांत ज्‍योतिष के अस्‍त के कथन को भी फलित ज्‍योतिष में गलत तरीके से लिया जाने लगा है। अस्‍त ग्रह के लिए यह मान लिया जाता है कि अमुक ग्रह ने अपना प्रभाव खो दिया, लेकिन वास्‍तव में ऐसा नहीं होता। ग्रह खुद की किरणें भेजने के बजाय नक्षत्रों से मिली किरणें जातकों तक भेजते हैं। बुध और शुक्र सूर्य के सबसे करीबी ग्रह हैं। छोटे कक्ष में लगातार चक्‍कर लगा रहे ये ग्रह सर्वाधिक अस्‍त होते हैं। अन्‍य ग्रह भी समय समय पर अस्‍त और उदय होते रहते हैं। फलित ज्‍योतिष के अनुसार इन ग्रहों के अस्‍त होने का वास्‍तविक अर्थ यह है कि नक्षत्रों (तारों के समूह) से मिल रहे किरणों के प्रभाव को अब ग्रह सीधा भेजने के बजाय सूर्य के प्रभाव के साथ मिलाकर भेज रहे हैं। ऐसे में ग्रह का प्रभाव यथावत तो रहेगा ही उसमें सूर्य का प्रभाव भी आ मिलेगा। इसी वजह से तो बुधादित्‍य के योग को हमेशा बेहतरीन माना गया है।

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