शुक्र की महादशा में अन्य ग्रहो की महादशा
1. शुक्र -
शुक्र की महादशा में शुक्र की अंतर दसा
यदि शुक्र उच्च राशि, स्वराशि, शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट होकर कारक हो तो अपनी दशा-अन्तर्दशा में अतीव शुभ फल प्रदान करता है | जातक सामान्य श्रम करके ही भरपूर लाभ प्राप्त कर लेता है | विद्यार्थियों को विशेषतः सहज ही उत्तम विद्या एवं सफलता प्राप्त हो जाती है | उच्च शिक्षा अथवा शोध कार्य के लिए विदेशवास करना होता है | विवाह की अपेक्षा प्रेम-प्रसंग बनाने में रूचि रहती है और सफलता भी मिलती है | श्रृंगारिक वस्तुओं एवं स्वयं के रख-रखाव पर अधिक धन व्यय होता है | अनायास धन मिलता है | यदि शुक्र पंचमेश से युक्त हो या अष्टम में मंगल से युक्त हो तो म्लेच्छों से, भूमि से, लाटरी व सट्टे से धनागम होता है |अशुभ शुक्र की अन्तर्दशा में आर्थिक हानि होती है | विषयासक्त चित्त के कारण लोक-समाज में निंदा तथा धन हानि, गृह कलह से मनस्ताप, शुक्रमेह, धातु क्षीणता, बल तथा ओज का क्षय हो जाता है | अपेक्षाकृत यह समय अच्छा ही रहता है |
2. सूर्य-
शुक्र महादशा में सूर्य का अंतर
शुक्र और सूर्य नैसर्गिक शत्रु हैं, सूर्य शुभावस्था में तथा पंचधा मैत्री में सम हो तो शुक्र महादशा में सूर्य अन्तर्दशा का मिश्रित फल प्राप्त होता है | जातक को कार्य-व्यवसाय में लाभ, उच्च वर्गीय लोगों से मेल-जोल तथा पैतृक सम्पत्ति से लाभ मिलता है | चित्त में आकुलता, मलीनता बनी रहती है, शिरोवेदना और नेत्र कष्ट प्रायः होते रहते हैं, पठन-पाठन में मन रमता नहीं, फलतः जैसे-तैसे परीक्षा में सफलता मिलती है | अशुभ सूर्य की अन्तर्दशा में माता-पिता से कलह, भाइयों को कष्ट मिलता है | शय्या सुख में कमी आ जाती है अथवा वह नष्ट हो जाता है | व्यर्थ में लोगों से शत्रुता बनती है, अनेक समस्याएं, बाधाएं उपस्थित होती हैं, जिनका निराकरण करते-करते जातक थक जाता है | मन्दाग्नि, जिगर-तिल्ली एवं प्रमेह रोगों से देह पीड़ा मिलती है |
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3. चन्द्रमा-
शुक्र की महादशा में चन्द्रमा का अंतर
यदि चन्द्रमा उच्च राशि का, स्वराशिस्थ या पूर्ण बलवान व शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तथा कारक होकर शुभ भावस्थ हो तो शुक्र महादशा में अपनी अन्तर्दशा व्यतीत होने पर शुभ फलों को देता है | व्यापार-व्यवसाय में विशेषतः श्वेत वस्तुओं और श्रृंगारिक वस्तुओं के व्यापार से लाभ मिलता है | कामवासना प्रबल और अनेक रमणियों से रमण के अवसर मिलते हैं | कला की ओर विशेष रुझान होता है तथा जातक कला, कविता, काव्य आदि के क्षेत्र में ख्याति अर्जित कर धन-मान-सम्मान पा लेता है | यदि शुक्र चतुर्थेश हो तो उत्तम वाहन एवं जनाधार के कारण चुनाव में विजय होती है | अशुभ और क्षीण चन्द्रमा की अन्तर्दशा में काम कुंठाएं त्रस्त करती हैं | मोह, लोभ, मत्सर, ईर्ष्या आदि के कारण निंदा होती है | मस्तिष्क में उष्णता के कारण पागल होने की आशंका रहती है | नख, हड्डी के रोग, रक्ताल्पता, कामला आदि रोग देह को क्षीण कर देते हैं |
4. मंगल-
शुक्र की महादशा में मंगल का अंतर
यदि मंगल परमोच्च, स्वक्षेत्री, शुभ ग्रह से युक्त होकर केंद्र, त्रिकोण में सकत बल युक्त हो और शुक्र महादशा में ऐसे मंगल की अन्तर्दशा हो तो जातक अनेक प्रकार से भूमि, वस्त्राभूषण एवं ईष्ट सिद्धि प्राप्त कर लेता है | साहसिक एवं पराक्रम युक्त कार्यों में विशेष रूचि लेकर राजकीय मान-सम्मान एवं पारितोषक प्राप्त करता है | वाद-विवाद में विजय, सैन्य अथवा पुलिसकर्मियों को वेतन वृद्धि होती है | वासनामय विचार कुंठाग्रस्त करते हैं | अशुभ मंगल की अन्तर्दशा में जातक में कामवासना इतनी उदीप्त हो उठती है कि वह बलात्कार तक कर बैठता है , देश-काल और परिस्थिति का भी ध्यान नहीं रखता, फलतः लोक निंदा तो होती ही है, सामाजिक दण्ड भी मिलता है | लड़ाई-झगड़ों में पराजय, वात-पित्तजन्य रोग जैसे उदर शूल अम्लपित्त, मन्दाग्नि, रक्तचाप, जोड़ों में दर्द तथा रक्त विकार आदि देह को पीड़ा पहुंचाते हैं |
5. राहु-
शुक्र की महादशा में राहु का अंतर
यदु शुक्र महादशा में राहु की अन्तर्दशा व्यतीत हो रही हो तो शुभाशुभ दोनों प्रकार के फल मिलते हैं | जातक के मन में अस्थिरता बन जाती है | क्या करूँ, क्या न करूँ की स्थिति बनती है, आकस्मिक रूप में अर्थ लाभ होता है, शत्रु का पराभव होता है, ईष्ट्सिद्धि का लाभ तथा घर में मांगलिक कार्य होते हैं | मनोत्साह में वृद्धि, नीले रंग की वस्तुओं, मुर्दा पशुओं के कार्य से लाभ मिलता है | ये शुभ फल दशा के प्रारम्भ में मिलते हैं, अंत में अशुभ फल प्राप्त होते हैं | जातक धर्म-कर्म विहीन हो जाता है, ईष्ट-मित्रों एवं परिजनों से व्यर्थ में विवाद, कार्य नाश, स्थानच्युति, नौकरी में हो तो कई बार स्थानान्तरण होता है | मन में उद्वेग, चित्त में संताप, ईर्ष्या, द्वेष जैसे दुर्गुण पनपते हैं | भोजन व्यवस्था तक में कठिनाई आती है, अशुभ संवाद सुनने को मिलते हैं |
6. बृहस्पति-
शुक्र की महादशा में बृहस्पति
यदि बृहस्पति शुभ व बलवान हो तो शुभ फल ही अपनी अन्तर्दशा में प्रदान करेगा ऐसा प्राचीन मनीषियों का मत है, लेकिन अनुभव में इसके विपरीत शुभ फल दशा के अंत में तथा अशुभ फल दशा के आरम्भ में मिलते हैं | जातक धर्माचरण दिखावे के लिए करता है, विषयवासना बढ़ जाती है और छिपकर प्रेमालाप करता है | देह रोगों से पीड़ित, गृह कलह के कारण चित्त को परिताप पहुंचता है | विद्योपार्जन, इष्टसिद्धि, प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता मिलती है, न्यायवादी, मुंसिफ, जज आदि पद मिलते हैं | मंत्रणाशक्ति प्रबल होती है | प्रबंधक के कार्य में सफलता मिलती है | धन-वाहन का पूर्ण सुख मिलता है, भोग-विलास में रूचि तो रहती है, लेकिन फूहड़पन नहीं, मात्र उत्कृष्ट, कुलीन-शालीन लोगों से ही मेल-मिलाप रखने की इच्छा बनती है | स्त्री, पुत्र एवं परिवार का पूर्ण सहयोग एवं सुख मिलता है |
7. शनि -
शुक्र की महादशा में शनि का अंतर
शुक्र महादशा में शनि की अन्तर्दशा प्रायः अशुभ फल ही प्रदान करती है, लेकिन यदि शनि कारक होकर उच्च राशि, स्वराशि और शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो उत्तम फल भी मिलते हैं | जातक इस दशा में यथेष्ट स्थावर सम्पत्ति का अर्जन कर लेता है | इस कृत्य से लोकोपवाद, देह को आधि-व्याधि से पीड़ा एवं आलस्य का प्रार्दुभाव होता है | राजा के समान वैभव प्राप्त कर जातक भाग्यशालियों में गिना जाता है | नीच और अशुभ शनि की अन्तर्दशा में जातक अवनति के गर्त में डूब जाता है | स्त्रीसुख की हानि, सन्तान को कष्ट, कार्य-व्यवसाय का नाश हो जाता है | खाने के भी लाले पड़ जाते हैं तथा नौबत भिक्षा माँगने तक आ जाती है | किसी प्रियजन की मृत्यु से मन को सन्ताप तथा गठिया, वातव्याधि, उदर शूल एवं शुक्रक्षय आदि रोग हो जाते हैं | जीवन भार अनुभव होने लगता है और आत्मघात की इच्छा बनती है |
8. बुध -
शुक्र की महादशा में बुध का अंतर
यदि बुध शुभ, उच्चादि राशि का होकर केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो तो जातक इसकी अन्तर्दशा में पूर्व में पाए कष्टों से सुख की सांस लेता है | परीक्षार्थी उत्तम श्रेणी पाते हैं, गणित में यशस्वी होते हैं | व्यापारी वर्ग को व्यवसाय में उत्तम लाभ है, नौकरी करने वालों को उच्चाधिकारियों का अनुग्रह तथा पद और वेतन में वृद्धि होती है | राजकीय सम्मान मिलता है | जातक धर्म-कर्म के कार्यों में भाग लेता है तथा परिजनों का स्नेहभाजन बना रहता है | अशुभ बुध की अन्तर्दशा में जातक युवक हो अथवा वृद्ध, परस्त्री संग को लालायित रहता है और करता भी है, अपने वर्ग और समाज में अपकीर्ति होती है | पशुधन का नाश, व्यापार में घाटा, नौबत दीवालिया हो जाने तक आ जाती है, पुत्री के विवाह में विघ्न आते हैं अथवा सम्बन्ध-विच्छेद हो जाता है |
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