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जन्म कुंडली में अष्ट-योगिनी का महत्त्व । Importance of Asta Yogini in Kundali

जन्मकुंडली में अष्ट-योगिनी का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान होता है।
बिना योगिनी के भविष्यवाणी की सफलता में संदेह बना रहता है अतः किसी भी जातक को अपनी शुभ-अशुभ योगिनी की जानकारी होना चाहिए तथा अशुभ योगिनी की शांति तुरंत करवाना चाहिए,  क्योंकि यह प्रारंभ में ही कष्ट देना शुरू कर देती है। ये योगिनियां 8 प्रकार की होती हैं।

1. मंगला- मंगला योगिनी 1 वर्ष की होती है। इस समय जातक को सफलता, यश, धन एवं अच्छे कार्यों से प्रशंसा प्राप्त होती है।

2. पिंगला- पिंगला 2 वर्ष की होती है। इसमें जमीन-जायदाद, भाई-बंधु की चिंता, मानसिक कष्ट, अशुभ समाचार, हानि-अपमान, बीमारी से कष्ट आदि होते हैं।

3. धान्या- धान्या की दशा में धन प्राप्ति के योग होते हैं। इसका समय 3 वर्ष का होता है। राजकीय कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

4. भ्रामरी- यह 4 वर्ष की होती है एवं 4 वर्ष तक अशुभ यात्रा, कष्ट, व्यापार में हानि, कर्ज की चिंता आदि अन्य अशुभ कार्य भ्रामरी के कारण होते हैं।

5. भद्रिका- भद्रिका 5 वर्ष की होती है। इसकी दशा में धन-संपत्ति का लाभ होता है। सुंदर स्त्रियों एवं सुखोपभोग की प्राप्त होती है। राजकीय कर्मचारी को पदोन्नति प्राप्त होती है।

6. उल्का- उल्का 6 वर्ष की योगिनी होती है। इस समय नाना प्रकार के कष्टों से जातक परेशान हो जाता है। मानहानि, शत्रु भय, ऋण, रोग, कोर्ट केस, पारिवारिक कष्ट, मुंह, सिर, पैर में रोग होते हैं।

7. सिद्धा- सिद्धा की दशा 7 वर्ष की होती है। इसमें बु़द्धि, धन, व्यापार में वृद्धि होती है, घर में विवाह आदि कार्य होते हैं।

8. संकटा- संकटा योगिनी 8 वर्ष की होती है। यह धन, बल, व्यापार, परिवार से संबंधित नाना प्रकार के कष्ट देकर जातक को भयभीत कर देती है। अपने ही जनों का विसंयोग होता है।

इस प्रकार ये आठों योगिनियां जातक के भविष्य को प्रभावित करती हैं। यदि संकटा में संकटा योगिनी हो तो मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट होता है। घर-परिवार को छोड़ना पड़ता है। संकटा में जब मंगला का अंतर होता है तो सिर की बीमारी, पत्नी को कष्ट होता है।

संकटा में जब पिंगला का अंतर होता है, तब रोग एवं शत्रु से कष्ट होता है। संकटा में धान्या के अंतर्गत भ्रामरी के अंतर में विवाद, स्थानांतरण, यात्रा में कष्ट आदि फल होते हैं।

संकटा में जब भद्रिका का अंतर होता है तब अपने जनों से कष्ट, रोग तथा सामान्य लाभ प्राप्त होता है। संकटा में जब उल्का का अंतर होता है, तब घर-परिवार में असामंजस्य, विवाद, धोखा आदि फल प्राप्त होते हैं।

संकटा के अंतर्गत सिद्धा दशा में पुत्र लाभ, सुख एवं व्यापारोन्नति आदि शुभ फल होते हैं। ठीक इसी प्रकार आगे योगिनियों में अन्य अंतर आते हैं एवं शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं।


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