Dhan yog | lottery yoga in kundli | gupt dhan yog in kundli
अचानक धन-संपत्ति प्राप्ति के योग - लॉटरी गुप्त धन पैतृक संपत्ति खजाना अचानक धन-संपत्ति प्राप्ति (लॉटरी, गुप्त धन, पैतृक संपत्ति, खजाना )के योग के लिए कुंडली में कई सूत्र दिए हैं।
अचानक धन-संपत्ति प्राप्ति के सूत्र formula योग :
भाव :
प्रथम भाव ।
द्वितीय धन भाव।
एकादश लाभ भाव।
पंचम प्रारब्ध एवं लक्ष्मी भाव।
अष्टम गुप्तधन भाव.
नवम भाग्य भाव।
तथा इन भावो की स्वामी ग्रहों को देखा जाता हैं ।
स्वामी ग्रहों बलाबल भी देखे ।
दशा-अंतरदशा :इन भावो के स्वामी की अपनी दशा और अंतर्दशा में जातक को अचानक धन-संपत्ति प्राप्ति के योग बनते है।
इनके स्वामी युति, दृष्टि या परिवर्तन योग से यदि शुभ संबंध बनाते हैं, अकस्मात धन मिलता है।
द्वितीय धन भाव ,अष्टम भाव में तथा अष्टम भाव का स्वामी द्वितीय भाव में हो तो अकस्मात धन मिलता है।
प्रथम भाव का स्वामी धनभाव में तथा द्वितीय भाव का स्वामी प्रथम भाव भाव में हो तो अचानक धन देता है।
लॉटरी :द्वितीयभाव एवं पंचमभाव स्थान या इनके स्वामी युति, दृष्टि या परिवर्तन योग से लॉटरी खुलती है।
कुंडली में धनभाव, पंचम भाव, एकादश भाव, नवम भाव का किसी भी प्रकार इनके स्वामी से युति, दृष्टि या परिवर्तन योग से अकस्मात धन मिलता है।
राहु-केतु :पंचम, नवम या एकादश भाव में राहु-केतु होते हैं, तो लॉटरी से अकस्मात धन मिलता है।
गुप्त धन: अष्टम भाव मे द्वितीय भाव का स्वामी हो तो जमीन में दबा हुआ, गुप्त धन मिलता है या वसीयत द्वारा धन की प्राप्ती होती है।
पैतृक संपत्ति: लग्नेश-धनेश के संबंध से या इनके स्वामी युति, दृष्टि या परिवर्तन योग से पैतृक संपत्ति प्राप्त होती है।
माता से संपत्ति :माता से संपत्ति लग्नेश-चतुर्थेश के संबंध से या इनके स्वामी युति, दृष्टि या परिवर्तन योग से संपत्ति प्राप्त होती है।
खजाना :प्रथम भाव का स्वामी शुभग्रह होकर यदि द्वितीय भाव में हो, तो खजाना प्राप्त हो सकता है।
सूर्य स्थित भाव द्वारा धन प्राप्ति
वर्तमान में धन की महता अपरंपार है. आने वाला हर जिज्ञासु यह जानना चाहता है कि उसे धन कहां से मिलेगा? इस विषय में अपने अपने बुद्धि बल अनुसार सभी ज्योतिषी भविष्य कथन करते हैं. अक्सर इस मामले में ज्यादातर लोग भाग्य भाव की अनुकूलता देखते हैं लेकिन इस मामले में कुंडली में सूर्य स्थित भाव का अध्ययन किया जाना बहुत आवश्यक है. असल में सूर्य युक्त भाव यानि जिस भाव में सूर्य बैठा हो वह उध्वर्मुख होता है. जो भाव ग्रह विहीन होता है उसकी संज्ञा अधोमुख होती है. जिस राशि या भाव में अन्य ग्रह होते हैं उन्हें तिर्यंग-मुख की संज्ञा दी गई है. इसलिये सूर्य युक्त भाव अपने स्वरूप व कारकत्व अनुसार धन दायक होता है. एक तरह से कहा जाये तो ऐसा भाव जहां सूर्य विराजमान है वह भाव भाग्य भाव का विकल्प होता है.
सूर्य का अर्थ है प्रकाश यानि जिस भाव में सूर्य है वहां स्वाभाविक रूप से प्रकाश मौजूद ही है. जहां प्रकाश है, जहां ज्योति है वहां धन भी है ही. यानि दुनियां का संपूर्ण धन प्रकाश में है.
जहां सूर्य है वहां धन है. किस माध्यम से व किस मात्रा में धन मिलेगा वह निम्नानुसार होगा.
* यदि 12 वें भाव यानि व्यय भाव में सूर्य है तो व्यय करने से या दान करने से धन मिलता है. जातक जितना ही अधिक दान व सत्कार्य में खर्च करेगा उसका धन बढता जायेगा, कृपणता किसी काम नही आयेगी.
* यदि 11 वें भाव यानि आय भाव में सूर्य है तो बडे भाई, बडी बहन, बुआ, ताऊ चाचों के माध्यम से धन की प्राप्ति होगी.
* यदि 10 वें भाव यानि कर्म भाव में सूर्य है तो पिता, पैतृक संपति व सरकारी श्रोतों द्वारा धन की प्राप्ति होती है.
* यदि 9 वें भाव यानि भाग्य भाव में सूर्य है तो भाग्यवश, धर्मानुसार आचरण के माध्यम से अनायास धन प्राप्ति होती है.
* यदि 8 वें भाव यानि अष्टम भाव में सूर्य है तो दहेज द्वारा ससुराल से या अपमान पूर्वक धन की प्राप्ति होती है.
* यदि 7 वें भाव यानि सप्तम भाव में सूर्य है तो स्त्री, साईड बिजनैस या किसी सहयोगी के द्वारा धन प्राप्त होता है.
* यदि 6 ठे भाव यानि षष्ठ भाव में सूर्य है तो ननिहाल, चिकित्सा, ऋण के लेन देन व शत्रु के माध्यम से धन लाभ करवाता है.
* यदि 5 वें भाव यानि पंचम भाव में सूर्य है तो पुत्र संतान से, अपने बुद्धि चातुर्य के द्वारा धन प्राप्ति होती है.
* यदि 4 थे भाव यानि चतुर्थ भाव में सूर्य है तो भूमि भवन, साझेदारी का व्यवसाय या माता के माध्यम से धन लाभ करवाता है.
* यदि 3 रे भाव यानि तृतीय भाव में सूर्य है तो अपने पराक्रम, बाहुबल या छोटे भाई बहिनों के माध्यम से धन लाभ देगा.
* यदि 2 रे भाव यानि द्वीतीय भाव में सूर्य है तो अपने कुटुंबिक व्यवसाय, अपनी प्रखार वाक शक्ति के माध्यम से धन लाभ मिलता है.
* यदि 1 ले भाव यानि प्रथम भाव में सूर्य है तो अपने व्यक्तित्व और जन्म स्थान से धन लाभ मिलता है.
ध्यान रहे कि रात का सूर्य (भाव 2 से लेकर 6 ठे भाव तक सूर्य बैठा हो तो) उस मात्रा में धन नही दे पाता जितना की दिन का सूर्य हो (भाव 8 से लेकर 12 वें भाव तक बैठा हो) तो.
प्रात: यानि प्रथम भाव का सूर्य व शाम यानि सप्तम भाव का सूर्य मध्यम धन दाता है. इसके पीछे कारण यह होता है कि सूर्य जितनी ही अधिक अपनी किरणों से युक्त होता है उतना ही अधिक धन दे पाने में सक्षम होता है. :-
* 2 रे भाव में सूर्य उदय होने की तैयारी कर रहा होता है यानि अभी उगा नही है.
* 1 ले भाव में उदय हो ही रहा है, पूर्ण रूप से नही हुआ, पूर्ण रश्मियां नहीं हैं.
* 12 वें भाव में उदित हो चुका है अपनी रश्मियां बिखेरने लगा है..
* 11 वें भाव में अपनी पूर्ण रश्मियों से युक्त हो गया है.
* 10 वें भाव में आकाश के मध्य में यानि दोपहर में अपने चरम शिखर पर पहुंच कर अपनी संपूर्ण रश्मियों से युक्त है.
* 9 वें भाव में भी अत्यंत ही प्रकाश मान होकर रश्मियां बिखेर रहा है.
* 8 वें भाव में ढलने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. रश्मियां कम होने को हैं.
* 7 वें भाव में अस्त होने जा रहा है, इसकी अपनी रश्मियां साथ छोडने लगी हैं. .
* 6 ठे भाव में अस्त हो चुका है, रश्मियां नही हैं. निस्तेज हो चुका है.
* 5 वें भाव में रश्मि हीन होकर अंधकार में समा चुका है.
* 4 थे भाव में सघन अंधकार में समा चुका है यानि यह अर्ध रात्रि का समय हो चुका है.
* 3 रे भाव में अपने को बिल्कुल अव्यवस्थित स्थिति में महसूस कर रहा है. विक्षुब्ध होकर पुन अंधकार से निकल कर उगने के लिये तैयारी करने की अवस्था में है.
धन के लिये दिन के जन्म में सूर्य तथा रात के जन्म में चंद्रमा का विशेष विचार करना चाहिये. रात्रि के जन्म में पूर्णिमा का चंद्रमा और दिन के जन्म में उतरायण का सूर्य, इन दोनों को भाग्यशाली व धन प्रदाता मानना चाहिये. अर्ध रात्रि का पूर्ण चंद्रमा एवम दोपहर का ग्रीष्मकालीन सूर्य को अत्यंत महत्वपूर्ण व भाग्यवर्धक मानना चाहिये.
सूर्य स्थित भाव द्वारा धन प्राप्ति
वर्तमान में धन की महता अपरंपार है. आने वाला हर जिज्ञासु यह जानना चाहता है कि उसे धन कहां से मिलेगा? इस विषय में अपने अपने बुद्धि बल अनुसार सभी ज्योतिषी भविष्य कथन करते हैं. अक्सर इस मामले में ज्यादातर लोग भाग्य भाव की अनुकूलता देखते हैं लेकिन इस मामले में कुंडली में सूर्य स्थित भाव का अध्ययन किया जाना बहुत आवश्यक है. असल में सूर्य युक्त भाव यानि जिस भाव में सूर्य बैठा हो वह उध्वर्मुख होता है. जो भाव ग्रह विहीन होता है उसकी संज्ञा अधोमुख होती है. जिस राशि या भाव में अन्य ग्रह होते हैं उन्हें तिर्यंग-मुख की संज्ञा दी गई है. इसलिये सूर्य युक्त भाव अपने स्वरूप व कारकत्व अनुसार धन दायक होता है. एक तरह से कहा जाये तो ऐसा भाव जहां सूर्य विराजमान है वह भाव भाग्य भाव का विकल्प होता है.
सूर्य का अर्थ है प्रकाश यानि जिस भाव में सूर्य है वहां स्वाभाविक रूप से प्रकाश मौजूद ही है. जहां प्रकाश है, जहां ज्योति है वहां धन भी है ही. यानि दुनियां का संपूर्ण धन प्रकाश में है.
जहां सूर्य है वहां धन है. किस माध्यम से व किस मात्रा में धन मिलेगा वह निम्नानुसार होगा.
* यदि 12 वें भाव यानि व्यय भाव में सूर्य है तो व्यय करने से या दान करने से धन मिलता है. जातक जितना ही अधिक दान व सत्कार्य में खर्च करेगा उसका धन बढता जायेगा, कृपणता किसी काम नही आयेगी.
* यदि 11 वें भाव यानि आय भाव में सूर्य है तो बडे भाई, बडी बहन, बुआ, ताऊ चाचों के माध्यम से धन की प्राप्ति होगी.
* यदि 10 वें भाव यानि कर्म भाव में सूर्य है तो पिता, पैतृक संपति व सरकारी श्रोतों द्वारा धन की प्राप्ति होती है.
* यदि 9 वें भाव यानि भाग्य भाव में सूर्य है तो भाग्यवश, धर्मानुसार आचरण के माध्यम से अनायास धन प्राप्ति होती है.
* यदि 8 वें भाव यानि अष्टम भाव में सूर्य है तो दहेज द्वारा ससुराल से या अपमान पूर्वक धन की प्राप्ति होती है.
* यदि 7 वें भाव यानि सप्तम भाव में सूर्य है तो स्त्री, साईड बिजनैस या किसी सहयोगी के द्वारा धन प्राप्त होता है.
* यदि 6 ठे भाव यानि षष्ठ भाव में सूर्य है तो ननिहाल, चिकित्सा, ऋण के लेन देन व शत्रु के माध्यम से धन लाभ करवाता है.
* यदि 5 वें भाव यानि पंचम भाव में सूर्य है तो पुत्र संतान से, अपने बुद्धि चातुर्य के द्वारा धन प्राप्ति होती है.
* यदि 4 थे भाव यानि चतुर्थ भाव में सूर्य है तो भूमि भवन, साझेदारी का व्यवसाय या माता के माध्यम से धन लाभ करवाता है.
* यदि 3 रे भाव यानि तृतीय भाव में सूर्य है तो अपने पराक्रम, बाहुबल या छोटे भाई बहिनों के माध्यम से धन लाभ देगा.
* यदि 2 रे भाव यानि द्वीतीय भाव में सूर्य है तो अपने कुटुंबिक व्यवसाय, अपनी प्रखार वाक शक्ति के माध्यम से धन लाभ मिलता है.
* यदि 1 ले भाव यानि प्रथम भाव में सूर्य है तो अपने व्यक्तित्व और जन्म स्थान से धन लाभ मिलता है.
ध्यान रहे कि रात का सूर्य (भाव 2 से लेकर 6 ठे भाव तक सूर्य बैठा हो तो) उस मात्रा में धन नही दे पाता जितना की दिन का सूर्य हो (भाव 8 से लेकर 12 वें भाव तक बैठा हो) तो.
प्रात: यानि प्रथम भाव का सूर्य व शाम यानि सप्तम भाव का सूर्य मध्यम धन दाता है. इसके पीछे कारण यह होता है कि सूर्य जितनी ही अधिक अपनी किरणों से युक्त होता है उतना ही अधिक धन दे पाने में सक्षम होता है. :-
* 2 रे भाव में सूर्य उदय होने की तैयारी कर रहा होता है यानि अभी उगा नही है.
* 1 ले भाव में उदय हो ही रहा है, पूर्ण रूप से नही हुआ, पूर्ण रश्मियां नहीं हैं.
* 12 वें भाव में उदित हो चुका है अपनी रश्मियां बिखेरने लगा है..
* 11 वें भाव में अपनी पूर्ण रश्मियों से युक्त हो गया है.
* 10 वें भाव में आकाश के मध्य में यानि दोपहर में अपने चरम शिखर पर पहुंच कर अपनी संपूर्ण रश्मियों से युक्त है.
* 9 वें भाव में भी अत्यंत ही प्रकाश मान होकर रश्मियां बिखेर रहा है.
* 8 वें भाव में ढलने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. रश्मियां कम होने को हैं.
* 7 वें भाव में अस्त होने जा रहा है, इसकी अपनी रश्मियां साथ छोडने लगी हैं. .
* 6 ठे भाव में अस्त हो चुका है, रश्मियां नही हैं. निस्तेज हो चुका है.
* 5 वें भाव में रश्मि हीन होकर अंधकार में समा चुका है.
* 4 थे भाव में सघन अंधकार में समा चुका है यानि यह अर्ध रात्रि का समय हो चुका है.
* 3 रे भाव में अपने को बिल्कुल अव्यवस्थित स्थिति में महसूस कर रहा है. विक्षुब्ध होकर पुन अंधकार से निकल कर उगने के लिये तैयारी करने की अवस्था में है.
धन के लिये दिन के जन्म में सूर्य तथा रात के जन्म में चंद्रमा का विशेष विचार करना चाहिये. रात्रि के जन्म में पूर्णिमा का चंद्रमा और दिन के जन्म में उतरायण का सूर्य, इन दोनों को भाग्यशाली व धन प्रदाता मानना चाहिये. अर्ध रात्रि का पूर्ण चंद्रमा एवम दोपहर का ग्रीष्मकालीन सूर्य को अत्यंत महत्वपूर्ण व भाग्यवर्धक मानना चाहिये.
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