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Mahamrityunjay stotra (मार्कण्डेय प्रोक्त मृत्युशमन “महामृत्युंजय स्तोत्र") Mahamrityunjay Stotra by Markandey

मार्कण्डेय प्रोक्त मृत्युशमन “महामृत्युंजय स्तोत्र”Mahamrityunjay stotra in Hindi, English and Sanskrit



मार्कण्डेय मुनि द्वारा वर्णित “महामृत्युंजय स्तोत्र” मृत्युंजय पंचांग में
प्रसिद्ध है और यह मृत्यु के भय को मिटाने वाला स्तोत्र है. इस स्तोत्र द्वारा
प्रार्थना करते हुए भक्त के मन में भगवान के प्रति दृढ़ विश्वास बन जाता है कि
उसने भगवान “रुद्र” का आश्रय ले लिया है और यमराज भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं
पाएगा. यह स्तोत्र 16 पद्यों में वर्णित है और अंतिम 8 पद्यों के अंतिम चरणों
में “किं नो मृत्यु: करिष्यति” अर्थात मृत्यु मेरा क्या करेगी, यह अभय वाक्य
जुड़ा हुआ है.

महामृत्युंजय स्तोत्र के पाठ से पूर्व निम्न प्रकार से विनियोग करें :-

“ऊँ अस्य श्रीसदाशिवस्तोत्रमन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषि: अनुष्टुप् छन्द:

श्रीसदाशिवो देवता गौरी शक्ति: मम समस्तमृत्युशान्त्यर्थे जपे विनियोग:।”

विनियोग के पश्चात “ऊँ नम: शिवाय” मंत्र से करन्यास तथा अंगन्यास करें तथा
ध्यान लगाकर स्तोत्र का पाठ करें.
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मृत्युंजय स्तोत्र – Mrityunjay Stotra

रत्नसानुशरासनं रजताद्रिश्रृंगनिकेतनं शिण्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्।

क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवन्दितं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति
वै यम: ।।1।।

पंचपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजव्दयशोभितं भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम्।

भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:
।।2।।

मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं  पंकजनासनपद्मलोचनपूजिताड़् घ्रिसरोरुहम्।

देवसिद्धतरंगिणीकरसिक्तशीतजटाधरं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।3।।

कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरककुण्डलं वृषवाहनं नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम्।

अन्धकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै
यम:।।4।।

यक्षराजसखं भगक्षिहरं भुजंगविभूषणं शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम्।

क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै
यम:।।5।।

भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं दक्षयज्ञविनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्।

भुक्तिमुक्तिफलप्रदं निखिलाघसंघनिबर्हणं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै
यम:।।6।।

भक्तवत्सलमर्चतां निधिमक्षयं हरिदम्बरं सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनूपमम्।

भूमिवारिनभोहुताशनसोमपालितस्वाकृतिं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै
यम:।।7।।

विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं संहरन्तमथ प्रपंचमशेषलोकनिवासिनम्।

क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमावृतं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।8।।

रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।9।।

कालकण्ठं कलामूर्तिं कालाग्निं कालनाशनम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।10।।

नीलकण्ठं विरुपाक्षं निर्मलं निरुपद्रवम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।11।।

वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।12।।

देवदेवं जगन्नाथं देवेशमृषभध्वजम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।13।।

अनन्तमव्ययं शान्तमक्षमालाधारं हरम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।14।।

आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपदकारणम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।15।।

स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यन्तकारिणम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।16।।

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॥ महामृत्युंजय स्तॊत्रम्‌॥

.


ॐ अस्य श्री महा मृत्युंजय स्तॊत्र मंत्रस्य । श्री मार्कंडॆय ऋषि: ।
अनुष्टु छंद: । श्री मृत्युंजयॊ दॆवता । गौरी शक्ति: । मम सर्वारिष्ट समस्तमृत्युशांत्यर्थंसकलैश्वर्यप्राप्त्यर्थं जपॆ विनियॊग: ॥

॥ अथ ध्यानम्‌॥

चंद्रार्काग्नि विलॊचनं स्मितमुखं पद्मद्वयांत: स्थितं
मुद्रापाशमृगाक्ष सूत्रविलसत्पाणिं हिमांशुप्रभम्‌।
कॊटींदुप्रगलत्‌सुधाप्लुततनुं हारातिभूषॊज्वलं
कांतां विश्वविमॊहनं पशुपतिं मृत्युंजयं भावयॆत्‌॥



रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकंठमुमापतिम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १ ॥

नीलकंठं कालमूर्तिं कालज्ञं कालनाशनम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ २ ॥

नीलकंठं विरूपाक्षं निर्मलं निलयप्रदम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ३ ॥

वामदॆवं महादॆवं लॊकनाथं जगद्गुरम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ४ ॥

दॆवदॆवं जगन्नाथं दॆवॆशं वृषभध्वजम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ५ ॥

गंगादरं महादॆवं सर्पाभरणभूषितम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ६ ॥

त्र्यक्षं चतुर्भुजं शांतं जटामुकुटधारणम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ७ ॥

भस्मॊद्धूलितसर्वांगं नागाभरणभूषितम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ८ ॥

अनंतमव्ययं शांतं अक्षमालाधरं हरम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ९ ॥

आनंदं परमं नित्यं कैवल्यपददायिनम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १० ॥

अर्धनारीश्वरं दॆवं पार्वतीप्राणनायकम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ११ ॥

प्रलयस्थितिकर्तारं आदिकर्तारमीश्वरम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १२ ॥

व्यॊमकॆशं विरूपाक्षं चंद्रार्द्ध कृतशॆखरम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १३ ॥

गंगाधरं शशिधरं शंकरं शूलपाणिनम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १४ ॥

अनाथं परमानंदं कैवल्यपददायिनम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १५ ॥

स्वर्गापवर्ग दातारं सृष्टिस्थित्यांतकारिणम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १६ ॥

कल्पायुर्द्दॆहि मॆ पुण्यं यावदायुररॊगताम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १७ ॥

शिवॆशानां महादॆवं वामदॆवं सदाशिवम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १८ ॥

उत्पत्ति स्थितिसंहार कर्तारमीश्वरं गुरुम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १९ ॥

.
फलश्रुति

मार्कंडॆय कृतं स्तॊत्रं य: पठॆत्‌ शिवसन्निधौ ।
तस्य मृत्युभयं नास्ति न अग्निचॊरभयं क्वचित्‌॥ २० ॥

शतावृतं प्रकर्तव्यं संकटॆ कष्टनाशनम्‌।
शुचिर्भूत्वा पठॆत्‌स्तॊत्रं सर्वसिद्धिप्रदायकम्‌॥ २१ ॥

मृत्युंजय महादॆव त्राहि मां शरणागतम्‌।
जन्ममृत्यु जरारॊगै: पीडितं कर्मबंधनै: ॥ २२ ॥

तावकस्त्वद्गतप्राणस्त्व च्चित्तॊऽहं सदा मृड ।
इति विज्ञाप्य दॆवॆशं त्र्यंबकाख्यममं जपॆत्‌॥ २३ ॥

नम: शिवाय सांबाय हरयॆ परमात्मनॆ ।
प्रणतक्लॆशनाशाय यॊगिनां पतयॆ नम: ॥ २४ ॥

॥ इती श्री मार्कंडॆयपुराणॆ महा मृत्युंजय स्तॊत्रं संपूर्णम्‌॥




मार्कण्डेय प्रोक्त मृत्युशमन “महामृत्युंजय स्तोत्र”

मार्कण्डेय मुनि द्वारा वर्णित “महामृत्युंजय स्तोत्र” मृत्युंजय पंचांग में
प्रसिद्ध है और यह मृत्यु के भय को मिटाने वाला स्तोत्र है. इस स्तोत्र द्वारा
प्रार्थना करते हुए भक्त के मन में भगवान के प्रति दृढ़ विश्वास बन जाता है कि
उसने भगवान “रुद्र” का आश्रय ले लिया है और यमराज भी उसका कुछ बिगाड़ नहीं
पाएगा. यह स्तोत्र 16 पद्यों में वर्णित है और अंतिम 8 पद्यों के अंतिम चरणों
में “किं नो मृत्यु: करिष्यति” अर्थात मृत्यु मेरा क्या करेगी, यह अभय वाक्य
जुड़ा हुआ है.

महामृत्युंजय स्तोत्र के पाठ से पूर्व निम्न प्रकार से विनियोग करें :-

“ऊँ अस्य श्रीसदाशिवस्तोत्रमन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषि: अनुष्टुप् छन्द:

श्रीसदाशिवो देवता गौरी शक्ति: मम समस्तमृत्युशान्त्यर्थे जपे विनियोग:।”

विनियोग के पश्चात “ऊँ नम: शिवाय” मंत्र से करन्यास तथा अंगन्यास करें तथा
ध्यान लगाकर स्तोत्र का पाठ करें.



मृत्युंजय स्तोत्र – Mrityunjay Stotra

रत्नसानुशरासनं रजताद्रिश्रृंगनिकेतनं शिण्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्।

क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवन्दितं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति
वै यम: ।।1।।

पंचपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजव्दयशोभितं भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम्।

भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:
।।2।।

मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं  पंकजनासनपद्मलोचनपूजिताड़् घ्रिसरोरुहम्।

देवसिद्धतरंगिणीकरसिक्तशीतजटाधरं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम: ।।3।।

कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरककुण्डलं वृषवाहनं नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम्।

अन्धकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै
यम:।।4।।

यक्षराजसखं भगक्षिहरं भुजंगविभूषणं शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम्।

क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै
यम:।।5।।

भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं दक्षयज्ञविनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्।

भुक्तिमुक्तिफलप्रदं निखिलाघसंघनिबर्हणं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै
यम:।।6।।

भक्तवत्सलमर्चतां निधिमक्षयं हरिदम्बरं सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनूपमम्।

भूमिवारिनभोहुताशनसोमपालितस्वाकृतिं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै
यम:।।7।।

विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं संहरन्तमथ प्रपंचमशेषलोकनिवासिनम्।

क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमावृतं चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।8।।

रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।9।।

कालकण्ठं कलामूर्तिं कालाग्निं कालनाशनम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।10।।

नीलकण्ठं विरुपाक्षं निर्मलं निरुपद्रवम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।11।।

वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।12।।

देवदेवं जगन्नाथं देवेशमृषभध्वजम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।13।।

अनन्तमव्ययं शान्तमक्षमालाधारं हरम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।14।।

आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपदकारणम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।15।।

स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यन्तकारिणम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।16।।

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॥ महामृत्युंजय स्तॊत्रम्‌॥

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ॐ अस्य श्री महा मृत्युंजय स्तॊत्र मंत्रस्य । श्री मार्कंडॆय ऋषि: ।

अनुष्टुप छंद: । श्री मृत्युंजयॊ दॆवता । गौरी शक्ति: । मम सर्वारिष्ट समस्त
मृत्युशांत्यर्थं

सकलैश्वर्यप्राप्त्यर्थं जपॆ विनियॊग: ॥

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मार्कण्डेय प्रोक्त मृत्युशमन “महामृत्युंजय स्तोत्र”Mahamrityunjay stotra


॥ अथ ध्यानम्‌॥

चंद्रार्काग्नि विलॊचनं स्मितमुखं पद्मद्वयांत: स्थितं
मुद्रापाशमृगाक्ष सूत्रविलसत्पाणिं हिमांशुप्रभम्‌।
कॊटींदुप्रगलत्‌सुधाप्लुततनुं हारातिभूषॊज्वलं
कांतां विश्वविमॊहनं पशुपतिं मृत्युंजयं भावयॆत्‌॥



रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकंठमुमापतिम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १ ॥

नीलकंठं कालमूर्तिं कालज्ञं कालनाशनम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ २ ॥

नीलकंठं विरूपाक्षं निर्मलं निलयप्रदम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ३ ॥

वामदॆवं महादॆवं लॊकनाथं जगद्गुरम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ४ ॥

दॆवदॆवं जगन्नाथं दॆवॆशं वृषभध्वजम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ५ ॥

गंगादरं महादॆवं सर्पाभरणभूषितम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ६ ॥

त्र्यक्षं चतुर्भुजं शांतं जटामुकुटधारणम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ७ ॥

भस्मॊद्धूलितसर्वांगं नागाभरणभूषितम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ८ ॥

अनंतमव्ययं शांतं अक्षमालाधरं हरम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ९ ॥

आनंदं परमं नित्यं कैवल्यपददायिनम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १० ॥

अर्धनारीश्वरं दॆवं पार्वतीप्राणनायकम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ११ ॥

प्रलयस्थितिकर्तारं आदिकर्तारमीश्वरम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १२ ॥

व्यॊमकॆशं विरूपाक्षं चंद्रार्द्ध कृतशॆखरम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १३ ॥

गंगाधरं शशिधरं शंकरं शूलपाणिनम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १४ ॥

अनाथं परमानंदं कैवल्यपददायिनम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १५ ॥

स्वर्गापवर्ग दातारं सृष्टिस्थित्यांतकारिणम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १६ ॥

कल्पायुर्द्दॆहि मॆ पुण्यं यावदायुररॊगताम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १७ ॥

शिवॆशानां महादॆवं वामदॆवं सदाशिवम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १८ ॥

उत्पत्ति स्थितिसंहार कर्तारमीश्वरं गुरुम्‌।
नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १९ ॥

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फलश्रुति

मार्कंडॆय कृतं स्तॊत्रं य: पठॆत्‌ शिवसन्निधौ ।
तस्य मृत्युभयं नास्ति न अग्निचॊरभयं क्वचित्‌॥ २० ॥

शतावृतं प्रकर्तव्यं संकटॆ कष्टनाशनम्‌।
शुचिर्भूत्वा पठॆत्‌स्तॊत्रं सर्वसिद्धिप्रदायकम्‌॥ २१ ॥

मृत्युंजय महादॆव त्राहि मां शरणागतम्‌।
जन्ममृत्यु जरारॊगै: पीडितं कर्मबंधनै: ॥ २२ ॥

तावकस्त्वद्गतप्राणस्त्व च्चित्तॊऽहं सदा मृड ।
इति विज्ञाप्य दॆवॆशं त्र्यंबकाख्यममं जपॆत्‌॥ २३ ॥

नम: शिवाय सांबाय हरयॆ परमात्मनॆ ।
प्रणतक्लॆशनाशाय यॊगिनां पतयॆ नम: ॥ २४ ॥

॥ इती श्री मार्कंडॆयपुराणॆ महा मृत्युंजय स्तॊत्रं संपूर्णम्‌॥
मार्कण्डेय प्रोक्त मृत्युशमन “महामृत्युंजय स्तोत्र”Mahamrityunjay stotra


यह मान्यता है कि यंत्र देवता का निवास स्थल होते हैं। अतः प्रत्येक देवता और
उसकी शक्ति के अनुसार यंत्रों का लेखन किया जाता है।
यंत्र कई भाँति से प्रयोग किए हैं जिनमें से मुख्यतः धारण तथा स्थापना यंत्र
होते हैं।
महामृत्युंजयी संजीवनी विद्या के और इनसे संबंध रखने वाले अनेकानेक यंत्र पाए
जाते हैं। इनमें से कुछ धारण करने के योग्य तथा अन्य यंत्र पूजन तथा स्थापना
करने के योग्य हैं।
महामृत्युंजय यंत्र
1.
इस यंत्र को किसी शुभ समय पर या ग्रहण काल में भोजपत्र के ऊपर रक्त चंदन की
स्याही तथा बेल की लेखनी से लिखकर धूप-दीप करके धारण कर लें तो समस्त रोगों का
नाश हो जाता है और कुटुम्ब में भी सुख-शांति रहती है।

2.
इस यंत्र को दो विभिन्न भोजपत्रों पर अनार की कलम तथा रक्त चंदन से लिखकर एक
को धारण करने से विपक्षी के कुचक्र शांत हो जाते हैं। यदि विपक्षी का स्तंभन
करना हो तब दूसरे यंत्र को किसी शिला के नीचे दबा दें।
संजीवनी विद्या यंत्र
इस यंत्र को चमेली की कलम से अष्टगंध की स्याही के द्वारा भोजपत्र के ऊपर 
लिखकर पास में रख लें और महामृत्युंजय मंत्र का जप करें तो प्रयोग सफल होता है।
आग्नेय महामृत्युंजय यंत्र
इस यंत्र को चमेली की लेखनी से रक्त चंदन की स्याही के द्वारा भोजपत्र के ऊपर
लिखकर वैदिक बीजोक्त महामृत्युंजय मंत्र के जप करने से सफलता प्राप्त  होती है

Iti Shree Mahamrityunjay stotra 

English version Maha mrityunjay stotra

This is one of the most powerful stotram among all. It is also called the prayer of the great victor over death by Sage Markandeya.

Once Sage Mrukandu prayed Lord Shiva for a son. Lord Shiva asked him whether he wanted an intelligent son who will live only for 16 years or foolish son, who will live for one hundred years. The sage chose the former. A son was born to him and was named as Markandeya. This boy became a very great devotee of Lord Shiva. On his sixteenth birthday, he entered the sanctum sanctorum of the Lord and embraced him. Yama, the lord of death came to take away his soul. Lord Shiva killed Yama. Then the boy Markandeya sang the following stotra. This prayer is used to ward of all evils, remove fear of death and realize all wishes.

Lyrics-

Introduction:
    
Om Sri Ganesaya Nama.
Om asya Sri Maha mrutyunjaya stotra mantrasya,
Sri Markandeya rishi,
Anushtup chanda,
Sri Mrutyunjayo devatha,
Gowri shakthi,
samastha mrutyu santhyartham,
sakala aiswarya prapthyartham,
jape viniyoga

Main Prayer:

Chandrarkagni vilochanam, smitha mukam,
Padmadwayantha sthitham,
Mudra pasa mrugakshasuthra vilasath paanim
Himaam suprabham,
Kotindu prakalathsudhaplutha thanum haaraathi,
Bhooshojwalam,
Kantham viswa vimohanam, pasupathim,
Mruthyunjayam bhavayeth.

Jape Viniyoga

Rudram, pasupathim, sthanum, neelakandam, umapathim,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 1

Neelakandam, kalamoorthim kalagnamr kalanasanam,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 2

Neelakandam, viroopaksham nirmalam vimalapradham,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 3

Vamadevam mahadevam lokanadham jagatgurum,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 4

Devadevam jagannatham devesam vrushabhadwajam,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 5

Traiksham chathurbhujam santham jata makuta dharanam,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 6

Bhasmoddulitha sarvangam nagabharana bhooshitham,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 7

Anatham avyayam santham akshamala dharam haram,.
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 8

Aaandham paramam nithyam kaivalya pada dhayinam,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 9

Ardhanaareeswaram devam parvathy prana nayakam,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 10

Pralaya sthithi karthaaram adhi kartharameeswaram,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 11

Vyomakesam viroopaksham chandrardha krutha shekaram,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 12

Gangadharam sasidharam sankaram shoolapaninam,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 13

Swargapavarga datharam srushti sthithyanthakarinam,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 14

Kalpa ayur dehi mey punyam yavad ayur arogatham,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 15

Shivesanam mahadevam vamadevam sadashivam,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 16

Uthpathi sthithi samhara karthara meeswaram gurum,
Namami sirasa devam, kim no mrutyu karishyathi., 17

Markandeya krutham stotram ya padeth shiva sannidhou,
Thasya mruthyu bhayam nasthi na agni chora bhayaam kwachith., 18

Shathavrutham prakarthavyam sankate kashta nasanam,
Suchir bhoothwa padeth stotram sarva sidhi pradhayakam 19

Mruthyunjaya mahadeva thrahi maam saranagatham,
Janma mrutyu jara rogai, peeditham karma bandhanai., 20

Thaavaka stvad gatha prana thawa chithoham sada mruda,
Ithi vignapya devesam thryambakakhyam japeth,
Nama sivaya Sambaya haraye paramathmane,
Pranatha klesa naasaya yoginaam pathaye nama., 21-22


Meaning-

Introduction

Salutations to Lord Ganesa. I am chanting this “Maha mrutyunjaya mantra(Chant to win over death), which is composed by Sage Markandeya, in anushtup meter, with Mrutyunjaya as God, Gowri as the strength, with a view to win over death and getting of all sorts of wealth.

Main Prayer

I meditate on that victor over death,
Who has moon, sun and fire as eyes,
Who has a smiling face,
Who sits on two lotus flowers,
Whose hands shine with the sign the rope,
The deer and the garland of rudraksha,
Who has the pleasant shine of the ice,
Who has a body drenched by nectar,
From billions of moons,
Who ornaments himself with several garlands,
Who is very handsome,
Who can attract the entire world,
And who is the lord of all beings.

Now the chant is being started

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god,
Who is the angry one,
Who is the lord of all beings,
Who is stable,
Who has a blue neck,
And who is the consort of Uma. ,1

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god,
Who is having a blue neck,
Who is the form of death,
Who knows paste, present and future,
And who destroyed the god of death. ,2

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god,
Who has a blue neck,
Who has a different eye,
Who is clean,
And who is dazzlingly bright. ,3

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god,
Who judges according to merit,
Who is the greatest god,
Who is the lord of the universe,
And who is the teacher of the world. ,4

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god,
Who is the God of gods,
Who is the lord of the earth,
Who is the god of devas,
And who has a bull flag. ,5

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god,
Who has three eyes,
Who has four hands,
Who is peaceful,
And who wears matted hair and a crown. ,6

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god
Who is covered with ash,
All over his body,
And who wears the serpent,
As an ornament. ,7

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god,
Who is limitless,
Who cannot be explained,
Who is peaceful,
Who is the killer,
And who wears the garland of eyes. ,8

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god
Who is happiness,
Who is beyond thought,
Who is stable,
And who grants salvation. ,9

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god
Who is the god half male half female,
And who is the darling of Parvathy. ,10

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god
Who creates the state of deluge,
And who is the god who made the beginning. ,11

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god
Whose hair is the sky,
Who has a different eye,
And who has collected half of the moon. ,12

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god
Who carries the river ganga,
Who keep moon as an ornament,
Who is Lord Shankara,
And who carries a trident. ,13

What can death do to the one,
Who salutes with his head that God,
Who grant heaven and salvation,
Who looks after creation, upkeep and destruction. ,14

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god,
Who can grant a life of an eon,
Who can bless you with a long life,
Bereft of any sickness. ,15

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god,
Who is Shiva as well as Easwara,
Who is the great god,
Who gives correct judgments,
And who is always peaceful. ,16

What can death do to the one,
Who salutes with his head that god,
Who takes responsibility,
Of creation, upkeep and destruction,
And who is a great teacher. ,17

Any one reading this prayer,
Written by Markandeya,
In front of Lord Shiva,
Would not have,
Fear of death,
Never fear of fire and thieves. ,18

Reading it one hundred times,
In times of misery,
Will get rid of it,
And reading it with a clean mind,
Would make one get all his wants. ,19

Oh great god, Who has won over god of death,
Please save me as I am submitting to you,
From births, deaths, old age and disease,
And also the ties of Karma which affect me. ,20

I appeal to the God that,
“My soul goes towards you,
And my mind always meditates on you,”
And then chant of thryambaka[1] mantra,
And salute that Samba,
Who is the inner soul of the destroyer,
And pray,” destroy all life’s problems,

O . ,21-22




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