Kaal Sarpa Dosh ke upay Remedies | कालसर्प दोष शांति उपाय
कालसर्प दोष
वैदिक ज्योतिष के किसी भी ग्रन्थ मेंन्थ में चाहे ब्रहद पराशरा होरा शास्त्र हो, जैमिनी सूत्रम हो, बृहत-जातकम हो, उत्तर-कालामित्र हो, जातक पारिजात हो या अन्य किसी भी प्राचीन ज्योतिष ग्रन्थ जहाँ से इस विद्या का प्रादुर्भाव हुआ है – कहीं भी कालसर्प दोष (Kaal Sarp dosh) या योग का कोई उल्लेख नहीं है आधुनिक ज्योतिष ग्रन्थ जैसे जातक तत्व में भी ऐसे किसी दोष का वर्णन नहीं है तो सोचने की बात ये है की जब ज्योतिष के सिधान्तों में ही कालसर्प दोष (Kaal Sarp dosh) का जिक्र नहीं है तो यह आया कहाँ से ?
ज्योतिष की एक और पद्धति है – लाल किताब| ये वैदिक ज्योतिष की पद्धति नहीं है| इस पद्धति में कालसर्प दोष और इसके उपाय दिए गए है
कालसर्प दोष क्या है ?
प्रत्येक जातक की कुंडली को राहू और केतु १८० डिग्री पर किसी न किसी भाव में विच्छेदन करते हैं | राहू और केतु की भावों में उपस्थिति अनुकूल कम और प्रतिकूल ज्यादा देखी गयी है| कालसर्प दोष तब बनता है जब कुंडली में समस्त ग्रह राहू से लेकर केतु के मध्य में आते हैं|
एक ऐसा योग है जो जातक के पूर्व जन्म के किसी अपराध के दंड या शाप के फलस्वरूप उसकी कुंडली में परिलक्षित होता है। कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान होने के साथ साथ संतान संबंधी कष्ट भी होते है उसके जीवन में भी बहुत उतार-चढ़ाव देखे जाते है। लेकिन कालसर्प योग हमेशा पीड़ा देने वाला नहीं होता है। वास्तव में कालसर्प योग के असर से कभी व्यक्ति को जीवन में अनेक कष्टों से दो-चार होना पड़ सकता है तो कभी यही योग ऊंचें पद, सम्मान और सफलता का कारण भी बन जाता है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार कालसर्प योग का शुभ-अशुभ फल राशियों के स्वभाव और तत्व पर पर निर्भर करता है।
आजकल 40-50 प्रतिशत लोगों की कुंडली में यह दोष होता है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जी की कुंडली में भी यह दोष था, चंद्रशेखर जी और सचिन तेंदुलकर की कुंडली भी कालसर्प दोष (Kaal Sarp Dosh) से प्रभावित थी लेकिन फिर भी ये लोग अपने-अपने क्षेत्रों में बहुत सफल रहे।
कालसर्प दोष कुंडली में खराब जरूर माना जाता है किन्तु सही तरह से इसका उपाय करने पर यही कालसर्प दोष सिद्ध योग भी बन सकता है।
कुंडली में काल सर्प दोष :
कालसर्प तब होता है जब राहु-केतु के मध्य सातों ग्रह हो। सरल शब्दों में जब जातक की कुंडली में सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि राहु और केतु के बीच आ जाए तब ‘कालसर्प योग’ निर्मित होता है।
कालसर्प दोष जातक के जीवन में बहुत अधिक संघर्ष का कारण बनता हैं| इस दोष के चलते उन्नति में, व्यवसाय में, परिवार में कहीं पर भी सफलता नहीं मिलती| जीवन के महत्वपूर्ण २८-३२ वर्ष के मध्य कालसर्प दोष (Kaal Sarp dosh) का अत्यधिक प्रतिकूल असर देखा गया है| इस दोष के कई रूप हैं जो इस पर depend करते हैं की किन भावों के मध्य ये दोष बन रहा है ध्यान करने की सबसे important चीज यह है की कोई भी ग्रह, एक भी ग्रह अगर राहू और केतु से बाहर हुआ तो ये दोष नहीं बनता|
काल सर्प दोष के लक्षण :
इस दोष की वजह से संतान उत्पत्ति में बाधा, निराशा, अवसाद, असफलता आदि का सामना करना पड़ता है।
कालसर्प दोष शांति के उपाय
जिन व्यक्तियों की जन्म पत्रिका में कालसर्प दोष (kaal sarp dosh )होता है उसके जीवन में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव आते हैं। समान्यता काल सर्पदोष से पीड़ित जातक जीवन भर संघर्ष ही करता रहता है, लाख प्रयास के बाद भी जीवन में अपेक्षित सफलता नही मिलती है, इसलिए उन्हें काल सर्पदोष के उपाय अनिवार्य रूप से कराने ही चाहिए। काल सर्पदोष की पूजा उपाय के लिए सावन माह विशेषकर सावन माह की पंचमी " नाग पंचमी " का दिन बहुत ही प्रभावशाली माना जाता है । मान्यता है कि इस दिन काल सर्पदोष निवारण के किये गए उपाय शीघ्र ही फल देते है ।
कालसर्प योग से मुक्ति के लिए बारह ज्योतिर्लिंग के अभिषेक एवं शांति का विधान बताया गया है। यदि द्वादश ज्योतिर्लिंग में से केवल एक नासिक स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का नागपंचमी के दिन अभिषेक, पूजा की जाए तो इस दोष से हमेशा के लिए मुक्ति मिलती है।
जो इसे न कर पाएं वह यह उपाय अवश्य करें।
1. कालसर्प योग शांति के लिए नागपंचमी के दिन व्रत करें, नाग पंचमी के दिन भगवान शिव का अभिषेक करते हुए चाँदी के नाग नागिन का जोड़ा शिवलिंग पर चढ़ा दें फिर अभिषेक की समाप्ति पर उसे ताम्बे के पात्र में विसर्जित करके , उस पात्र को अभिषेक कराने वाले पंडित को दान में दे दें , इससे काल सर्पदोष में बहुत ज्यादा राहत मिलती है ।
2. नाग पंचमी के दिन 11 नारियल बहते हुए पानी में प्रवाहित करें, इससे काल सर्प दोष से अवश्य ही मुक्ति मिलती है, कार्यों में सफलता मिलने के योग बनने लगते है, जीवन में चली आ रही अस्थिरतायें दूर होती है।
3. उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष पर स्थित नागचन्द्रेश्वर मंदिर (जो केवल नागपंचमी के दिन ही खुलता है) के दर्शन करें।
4. जिस भी जातक पर काल सर्प दोष हो उसे कभी भी नाग की आकृति वाली अंगूठी को नहीं पहनना चाहिए ।
5. श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
6. श्रावण मास में रूद्र-अभिषेक कराए एवं महामृत्युंजय मंत्र की एक माला का जाप रोज करें।
7. श्रावण महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करें। शिवलिंग पर तांबे का सर्प विधिपूर्वक चढ़ायें।
8. शिव के ही अंश बटुक भैरव की आराधना से भी इस दोष से बचाव हो सकता है।
9. काले नाग-नागिन का जोड़ा सपेरे से मुक्त करके जंगल में छोड़ें।
10. चांदी के नाग-नागिन के जोड़े को बहते हुए दरिया में बहाने से इस दोष का शमन होता है, साथ ही चन्द्र ग्रहण के दिन बहते जल में चांदी के सर्पों को बहाने से भी काल सर्प दोष से मुक्ति मिलती है।
11. अष्टधातु या कांसे का बना नाग शिवलिंग पर चढ़ाने से भी इस दोष से मुक्ति मिलती है।
12. नागपंचमी के दिन रुद्राक्ष माला से शिव पंचाक्षर मंत्र ” ॐ नमः शिवाय ” का जप करने से भी इसकी शांति होती है।
13. 40 दिन जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
14. घर की रसोई घर में बैठकर भोजन करें और बुधवार के दिन ताजी मूली का दान करें। इसे काल सर्प दोष ( kaal sarp dosh )दूर होता है |
15. अमावस्या के दिन पितरों को शान्त कराने हेतु दान आदि करें तथा कालसर्प योग शान्ति पाठ कराये।
16. शनिवार को पीपल पर शिवलिंग चढ़ाये व शिव मन्त्र का जाप करें ।
17. किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें
18. शनिवार का व्रत करें और राहु,केतु व शनि के साथ हनुमान की आराधना करें। शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें
19. प्रथम पूज्य शिव पुत्र श्री गणेश को विघ्रहर्ता कहा जाता है। इसलिए कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए गणेश पूजा भी करनी चाहिए।
20. सर्प सूक्त से उनकी आराधना करें।
।।श्री सर्प सूक्त।।
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।1।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।
कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।
समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।
रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।
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