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18 Puran (अठारह पुराण) 18 पुराण 


पुराण ज्ञान राशि का भण्डार है और मनुष्य जीवन का सच्चा साथी है। भगवान नारायण ने ही इस भूमण्डल पर ब्यास जी के रूप में अवतार लेकर लोगों के कल्याण के लिये 18 पुराणों की रचना की। वस्तुतः पहले वेदों के निष्कर्ष से निकला पिण्डीभूत एक ही पुराण था। उसमें 100 करोड़ श्लोक थे। लेकिन द्वापर युग के अन्त में जब लोगों की बुद्धि का ह्रास होने लगा तब भगवान वेद ब्यास जी ने 100 करोड़ श्लोकों को भी संक्षिप्त करके 18 भागों में बाँट दिया। वही 18 पुराण कहलाये। ये 18 पुराण इस प्रकार से हैं:-



1. ब्रह्म पुराण 

2. पद्म पुराण 

3. विष्णु पुराण 
4. शिव पुराण
5. वायु पुराण 
6. श्रीमद्भागवत महापुराण (देवी भागवत)
7. नारद पुराण 
8. अग्नि पुराण 
9. ब्रह्म वैवर्त पुराण
10. लिंग पुराण 
11. वराह पुराण 
12. स्कन्ध पुराण 
13. वामन पुराण
14. कूर्म पुराण 
15. गरूड़ पुराण 
16. ब्रह्माण्ड पुराण
17. मार्कण्डेय पुराण 
18. मत्स्य पुराण

इन 18 पुराणों में भगवान के निर्मल यश का वर्णन है और मनुष्य के कल्याण के लिये सुनने योग्य बहुत सी लीलामयी कथायेें हैं। कहीं भगवान की कलावतार की कथा है, कहीं अंशावतार की तो कहीं पूर्णावतार की कथायें हैं। इन कथाओं को सुनने से मनुष्य के जीवन में जाने-अनजाने से किये समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और भगवान के परम् भावों की प्राप्ति होती है।


अनन्तशास्त्रं बहुलाश्चविद्या अल्पस्यकालं बहुविघ्नता च
अत्सारभूतं तदुपासनेय हंसोयथा क्षीर मिवाम्बु मद्येः।

अनेकों शास्त्र हैं, उपनिषद् हैं, 18 पुराण हैं और मनुष्य के पास समय बहुत कम है। यदि मनुष्य सारे काम-काज छोड़ कर इन शास्त्रों को पढ़ने बैठ जाय तो भी जीवन पर्यन्त इनको पूर्ण नहीं कर सकता। क्योंकि जीवन में बहुत से कष्ट हैं कभी स्वास्थ्य ठीक नहीं तो कभी पारिवारिक परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं। तो फिर क्या किया जाय? किस शास्त्र का अध्ययन किया जाय? जिससे सहजमय जीवन का कल्याण हो जाय। तो इसके उत्तर में कहा गया है कि -

ये श्रष्णवन्ति पुराणानि कोटि जन्मार्जितं खलो।
पापं जलं तु ते हित्वा गच्छन्ति हरि मंदिरं ।। (पद्म पुराण)


कलियुग में भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिये पुराणों का आश्रय लेना चाहिये। क्योंकि पुराण साक्षात् नारायण स्वरूप हैं। पर ऐसा प्रयास करना चाहिये कि अधिक से अधिक पुराणों की कथा सुन सकें या पढ़ सकें। पुराणों की कथा सुनने से मनुष्य के कोटि जन्मकष्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

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वेद क्या हैं? What are Vedas ?
वेद भारतीय संस्कृति के वे ग्रन्थ हैं, जिनमे ज्योतिष, गणित, विज्ञान, धर्म, ओषधि, प्रकृति, खगोल शास्त्र आदि लगभग सभी विषयों से सम्बंधित ज्ञान का भंडार भरा पड़ा है। वेद हमारी भारतीय संस्कृति की रीढ़ हैं। इनमे अनिष्ट से सम्बंधित उपाय तथा जो इच्छा हो उसके अनुसार उसे प्राप्त करने के उपाय संग्रहीत हैं। लेकिन जिस प्रकार किसी भी कार्य में महनत लगती है, उसी प्रकार इन रत्न रूपी वेदों का श्रमपूर्वक अध्यन करके ही इनमे संकलित ज्ञान को मनुष्य प्राप्त कर सकता है। 

वेद मंत्रो का संकलन और वेदों की संख्या 
ऐसी मान्यता है की वेद प्रारंभ में एक ही था और उसे पढने के लिए सुविधानुसार चार भागो में विभग्त कर दिया गया। ऐसा श्रीमदभागवत में उल्लेखित एक श्लोक द्वारा ही स्पष्ट होता है। इन वेदों में हजारों मन्त्र और रचनाएँ हैं जो एक ही समय में संभवत: नहीं रची गयी होंगी और न ही एक ऋषि द्वारा। इनकी रचना समय-समय पर ऋषियों द्वारा होती रही और वे एकत्रित होते गए। 

शतपथ ब्राह्मण के श्लोक के अनुसार अग्नि, वायु और सूर्य ने तपस्या की और ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को प्राप्त किया। 

प्रथम तीन वेदों को अग्नि, वायु और सूर्य से जोड़ा गया है। इन तीनो नामों के ऋषियों से इनका सम्बन्ध बताया गया है, क्योंकि इसका कारण यह है की अग्नि उस अंधकार को समाप्त करती है जो अज्ञान का अँधेरा है। इस कारण यह ज्ञान का प्रतीक बन गया है। वायु प्राय: चलायमान है, उसका काम चलना (बहना) है। इसका तात्पर्य है की कर्म अथवा कार्य करते रहना। इसलिए यह कर्म से सम्बंधित है। सूर्य सबसे तेजयुक्त है जिसे सभी प्रणाम करते हैं, नतमस्तक होकर उसे पूजते हैं। इसलिए कहा गया है की वह पूजनीय अर्थात उपासना के योग्य है। एक ग्रन्थ के अनुसार ब्रम्हाजी के चार मुखो से चारो वेदों की उत्पत्ति हुई। 

१. ऋग्वेद Rigveda
ऋग्वेद सबसे पहला वेद है। इसमें धरती की भौगोलिक स्थिति, देवताओं के आवाहन के मंत्र हैं। इस वेद में 1028 ऋचाएँ (मंत्र) और 10 मंडल (अध्याय) हैं। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियाँ और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है।

२. यजुर्वेद Yajurved
यजुर्वेद में यज्ञ की विधियाँ और यज्ञों में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। इस वेद की दो शाखाएँ हैं शुक्ल और कृष्ण। 40 अध्यायों में 1975 मंत्र हैं।

३. सामवेद Saam veda
साम अर्थात रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इस वेद में ऋग्वेद की ऋचाओं (मंत्रों) का संगीतमय रूप है। इसमें मूलत: संगीत की उपासना है। इसमें 1875 मंत्र हैं।

४. अथर्ववेद Atharvaved
इस वेद में रहस्यमय विद्याओं के मंत्र हैं, जैसे जादू, चमत्कार, आयुर्वेद आदि। यह वेद सबसे बड़ा है, इसमें 20 अध्यायों में 5687 मंत्र हैं।

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18 पुराण कथा सुनने का फल:- Benefits of 18 Puran

भक्ति रस से ओत-प्रोत पुराणों की मंगलमयी कथा जीवन को अत्यधिक पवित्र, पावन एवं श्रेष्ठ बनाती है। पुराणों की पवित्र कथायें धर्म, अर्थ एवं मोक्ष को देने वाली, शारीरिक और मानसिक रोग निवृत्ति के लिये पुराण कथा एक अचूक रामबाण है। पुराण श्रवण करने से जीव के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं, धर्म एवं अधर्म का ज्ञान होता है, सदाचार की प्रवृत्ति बढ़ती है, भगवान में भक्ति बढ़ती है, जिसके द्वारा मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है।

पाँच प्रकार के पाप छल, छद्म, चोरी, व्यभिचार, ब्रह्म हत्या करना एवं पर-स्त्री या पर-पुरूष गमन, ये समस्त पाप भी पुराण कथा श्रवण करने से दूर हो जाती हैं। यदि मनुष्य इन पापों को दुबारा न करने का संकल्प लेकर पुराण श्रवण करे तो।

पुराण श्रवण करने से बहुत से लाभ होते हैं तथा अलग-अलग पुराणों का अपना अलग-अलग महत्व भी है। जैसे सन्तान प्राप्ति की कामना हो तो हरिवंश पुराण की कथा करनी चाहिये। धन प्राप्ति के लिये देवी भागवत् कथा, पित्रों के उद्धार के लिये और संसार के कल्याण के लिये श्रीमद्भागवत् कथा, रोग निवारण के लिये शिव पुराण की कथा इत्यादि कर सकते हैं।
इस घोर कलयुग में क्या करें:-
जीव को मनुष्य शरीर भगवान की कृपा से प्राप्त होता है। 84 लाख जीवनों में भटकने के पश्चात् जब हमारे पाप कुछ कम हुये और भगवान की बड़ी कृपा हुयी तब जाकर हमें यह मनुष्य तन प्राप्त हुआ। मनुष्य जीवन केवल हमें भोगों में आसक्त रहने या सांसारिक कार्यों के लिये नहीं मिला है अपितु भगवान को प्राप्त करने के लिये और अपना जीवन सुधारने के लिये भगवान की तरफ से एक मौका मिला है। क्योंकि भगवान को जानने के लिये मनुष्य योनि ही सर्वोत्तम है न कि घोड़ा, गधा, साँप, बिच्छू बनकर और इस मनुष्य योनि में ही पुराणों की कथा सुनकर हम अपना कल्याण कर सकते हैं और ईश्वर के अत्यधिक निकट पहुँच सकते हैं।

लेकिन आज का मनुष्य संसार के कार्यों में इतना व्यस्त हो गया है कि उसका धर्म के कार्यों में मन ही नहीं लगता है और वह आध्यात्मिक कार्यों में समय न मिलने का बहाना ढँुड लेता है और यह बात कई मायनों में सत्य भी है कि कलयुग में मनुष्य के पास बिल्कुल भी समय नहीं है और यदि वह समय निकाल भी दे तो वह क्या करे? कौन-सा पुराण पढ़े? कि शास्त्र का अध्ययन करे जिससे जीवन का कल्याण हो जाय।

Shrimad Bhagwat Katha श्रीमद्भागवत कथा

श्रीमद्भागवत एक ज्ञान यज्ञ है। यह मानवीय जीवन को रसमय बना देता है। भगवन् कष्ष्ण की अद्भूत लीलाओं का वर्णन इसमें समाहित है। भव-सागर से पार पाने के लिये श्रीमद्भागवत कथा एक सुन्दर सेतु है। श्रीमद्भागवत कथा सुनने से जीवन धन्य-धन्य हो जाता है। इस पुराण में 18 स्कन्ध एवं 335 अध्याय हैं। ब्यास जी ने 17 पुराणों की रचना कर ली लेकिन श्रीमद्भागवत कथा लिखने पर ही उन्हें सन्तोष हुआ। फिर ब्यास जी ने अपने पुत्र शुकदेव जी को श्रीमद्भागवत पढ़ायी, तब शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को जिन्हें सात दिन में मरने का श्राप मिला, उन्हें सात दिनों तक श्रीमद्भागवत की कथा सुनायी। जिससे राजा परीक्षित को सात दिन में मोक्ष की प्राप्ति हुयी।
      
निगमकल्पतरोर्गलितं फलं शुकमुखादमृतं द्रवसंयुतं।
पिवत भागवतं रसमालयं महुरसो रसिका भुविभावुकाः।।
      
श्रीमद्भागवत वेद रूपी वष्क्षों से निकला एक पका हुआ फल है। शुकदेव जी महाराज जी के श्रीमुख के स्पर्श होने से यह पुराण अमश्तमय एवं मधुर हो गया है। इस फल में न तो छिलका है, न गुठलियाँ हैं और न ही बीज हैं। अर्थात इसमें कुछ भी त्यागने योग्य नहीं हैं सब जीवन में ग्रहण करने योग्य है। द्रवमय अमष्त से भरे इस रस का पान करने से जीवन धन्य-धन्य हो जाता है। इसलिये अधिक से अधिक श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करना चाहिये। जितनी ज्यादा कथा सुनेंगे उतना ही जीवन सुधरेगा।

पित्रों का उद्धार करता है श्रीमद्भागवत:-

श्रीमद्भागवत करने से पित्रों का उद्धार हो जाता है। भागवत पुराण करवाने वाला अपना उद्धार तो करता ही है अपितु अपने सात पीढि़यों का उद्धार कर देता है। पापी से पापी व्यक्ति भी यदि सच्चे मन से श्रीमद्भागवत की कथा सुन ले तो उसके भी समस्त पाप दूर हो जाते हैं। जीवन पर्यन्त कोई पाप कर्म करता रहे और पाप कर्म करते-करते मर जाय एवं भयंकर भूत-प्रेत योनि में चला जाय, यदि उसके नाम से हम श्रीमद्भागवत कथा करवायें तो वह भी बैकुण्ठ-लोक को प्राप्त करता है। इसके पीछे एक अद्भुद एवं विचित्र कथा है।      
       
 तुंगभद्रा नदी के किनारे किसी नगर में आत्मदेव नामक एक ब्राह्मण रहते थे। ब्राह्मण बड़े सुशील और सरल स्वभाव के थे। लेकिन उनकी पत्नी धुँधली बड़ी दुष्ट प्रकष्ति की थी। वह बड़ी जिद्दी, अहंकारी और लोभी थी। आत्मदेव जी के घर में कोई कमी नहीं थी। लेकिन उनकी कोई सन्तान नहीं थी। एक दिन उन्हें स्वप्न हुआ कि तुम्हारी कोई सन्तान नहीं, इसलिये तुम्हारे पित्र बड़े दुःखी हैं और तुम्हारे दिये हुये जल को गर्म श्वास से ग्रहण करते हैं। आत्मदेव जी को बड़ा दुःख हुआ। सोचने लगे कि मेरी सन्तान नहीं इसलिये पित्रों के दोष से ही मेरे घर में गाय का कोई बछड़ा नहीं होता और न ही पेड़ पर फल लगते हैं। सन्तानहीन व्यक्ति के जीवन को धिक्कार है। वह तो इह लोक-परलोक दोनों ही में दुःख पाता है। एक दिन सबकुछ छोड़-छाड़कर दुःखी मन से आत्मदेव जी सीधे वन चले गये। दो-तीन दिन तक वन में विलाप करने के पश्चात् एक दिन उन्हें वहाँ एक महात्मा के दर्शन हुये और अपने दुःख का कारण बताया। महात्मा ने आत्मदेव जी को एक फल दिया और कहा कि इस फल को अपनी पत्नी को खिला देना। इससे उसका पुत्र हो जायेगा। आत्मदेव जी घर आये और अपनी पत्नी धुँधली को वह फल दे दिया। धुँधली ने सोचा कि ये पता नहीं किस बाबा से उठा लाये हैं, फल खाके कुछ हो गया तो! चलो सन्तान हो भी जाय तो उसे पालने में कितना कष्ट उठाना पड़ता है, मैं गर्भवती हो गयी तो मेरा रूप-सौन्दर्य ही बिगड़ जायेगा। ऐसा सोचकर उसने वह फल घर में बँधी बन्ध्या गाय को खिला दिया और आत्मदेव जी से कहकर छह-सात महीने के लिये अपनी बहिन के घर चली गयी। कुछ महीनों बाद बहिन का पुत्र लेकर लौटी और आत्मदेव जी से कहा कि मेरा पुत्र हो गया। आत्मदेव जी बड़े प्रसन्न हुये और धुँधली के कहने पर उस पुत्र का नाम धुँधकारी रख दिया।
      
इधर धुँधली ने जो फल अपनी बन्ध्या गाय को खिलाया था उस गाय ने भी एक सुन्दर से बालक को जन्म दिया। जिसका पूरा शरीर मनुष्य की तरह और गाय की तरह उसके कान थे। इसलिये आत्मदेवजी ने उसका नाम गौकर्ण रख दिया। धीरे-धीरे दोनों बालक बड़े होने लगे तो गौकर्ण पढ़-लिखकर विद्वान और ज्ञानी बना, लेकिन धुँधकारी बड़ा दुष्ट पैदा हुआ।
           
"गौकर्ण पण्डितोज्ञानी धुँधकारीमहाखलः"
    
गौकर्ण पढ़ने को बनारस चला गया। धुँधकारी गाँव में ही बच्चों को पीटता, वष्द्धों को परेशान करता, चोरी करता, धीरे-धीरे डाका डालने लगा और बहुत बड़ा डाकु बन गया। माँस-मदिरा का सेवन करता हुआ धुँधकारी रोज मध्य रात्रि में घर आता। आत्मदेव जी को बड़ा दुःख हुआ, पुत्र को बहुत समझाया, लेकिन पुत्र नहीं माना। बड़े दुःखी मन से आत्मदेव जी सीधे वन को चले गये और भगवान का भजन करते हुये आत्मदेव जी ने अपने शरीर का परित्याग कर दिया।
    
अब घर में माँ रहती तो माँ को भी धुँधकारी परेशान करने लगा, यहाँ तक कि माँ को पीटने लगा। एक दिन धुँधली ने भी डर कर अर्द्धरात्रि में कुँए में कूदकर आत्महत्या कर ली। अब तो धुँधकारी घर में पाँच-पाँच वेश्याओं के साथ में रहने लगा। एक दिन धन के लोभ में उन वेश्याओं ने धुँधकारी को मदिरा पिलाकर जलती हुयी लकड़ी से जलाकर मार डाला और धुँधकारी को वहीं दफनाकर उसका सारा धन लेकर के भाग गयी। धुँधकारी जीवन भर पाप कर्म करता रहा और मरने के बाद भयंकर प्रेत-योनि में चला गया। एक दिन गौकर्ण जी तीर्थ यात्रा से लौटे तो जाना कि धुँधकारी प्रेत-योनि में भटक रहा हैै। तब गौकर्ण ने अपने भाई के निमित्त श्रीमद्भागवत की कथा करवायी। सात दिनों तक कथा सुनने के पश्चात् धुँधकारी प्रेत-योनि से विमुक्त होकर दिव्य-स्वरूप धारण कर भगवान विष्णु के लोक में पहुँच गये। इसलिये पित्रों के निमित्त श्रीमद्भागवत कथा करवाने से पित्रों को मुक्ति मिल जाती है।

श्रीमद्भागवत कथा सुनने का फल:-

मानव जीवन सबसे उत्तम और अत्यन्त दुर्लभ है। श्रीगोविन्द की विशेष कष्पा से हम मानव-योनि में आये हैं। भगवान के भजन करने के लिये ही हमें यह जीवन मिला है और श्रीमद्भागवत कथा सुनने से या करने से हम अपना मानव जीवन में जन्म लेना सार्थक बना सकते हैं। श्रीमद्भागवत कथा सुनने के अनन्त फल हैं।
1.     श्रीमद्भागवत कथा सुनने से मनुष्य को आत्मज्ञान होता है। भगवान की दिव्य लीलाओं को सुनकर मनुष्य अपने ऊपर परमात्मा की विशेष अनुकम्पा का अनुभव करता है।
2.     श्रीमद्भागवत कथा करने से मनुष्य अपने सुन्दर भाग्य का निर्माण शुरू कर देता है। वह ईह लोक में सभी प्रकार के भोगों को भोग कर परलोक में भी श्रेष्ठता को प्राप्त करता है।
3.     श्रीमद्भागवत कथा मनुष्य को जीना सिखाती है तथा मष्त्यु के भय से दूर करती है एवं पित्र दोषों को शान्त करती है।
4.     जिस व्यक्ति ने जीवन में कोई सत्कर्म न किया हो, सदैव दुराचार में लिप्त रहा हो, क्रोध रूपी अग्नि में जो हमेशा जलता रहा हो, जो व्यभिचारी हो गया हो, परस्त्रीगामी हो गया हो, यदि वह व्यक्ति भी श्रीमद्भागवत की कथा करवाये तो वह भी पापों से मुक्त हो जाता है।
5.     जो सत्य से विहीन हो गये हों, माता-पिता से भी द्वेष करने लगे हों, अपने धर्म का पालन न करते हों, वे भी यदि श्रीमद्भागवत कथा सुनें तो वे भी पवित्र हो जाते हैं।
6.     मन-वाणी, बुद्धि से किया गया कोई भी पापकर्म-चोरी करना, छद्म करना, दूसरों के धन से अपनी आजीविका चलाना, ब्रह्म-हत्या करने वाला भी यदि सच्चे मन से श्रीमद्भागवत कथा सुनले तो उसका भी जीवन पवित्र हो जाता है।
7.     जीवन-पर्यन्त पाप करने के पश्चात् मरने के बाद भयंकर प्रेत-योनि (भूत योनि) में चला गया व्यक्ति के नाम पर भी यदि हम श्रीमद्भागवत की कथा करवायें तो वह भी प्रेत-योनि से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।

श्रीमद्भागवत कथा करवाने का मुहुर्त:-

        श्रीमद्भागवत कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। भागवत् के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन श्रीमद्भागवत कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है। पित्रों के निमित्त उनकी मोक्ष तिथि को लेना चाहिये।

श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन कहाँ करें?:-

श्रीमद्भागवत कथा करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में श्रीमद्भागवत कथा करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। कथा के लिये स्थान का निर्वाचर करके सर्वप्रथम भूमि का मार्जन और गोबर से लेप करना चाहिये। वहाँ एक मण्डप और उसके ऊपर गुम्बद के आकार का चन्दोवा लगाकर तथा हनुमान जी के लिये एक झण्डा लगायें तथा पित्रों के निमित्त एक सात गाँठ वाले बाँस लगायें।

श्रीमद्भागवत कथा करने के नियम:-

श्रीमद्भागवत कथा का वक्ता विद्वान ब्राह्मण, शास्त्रज्ञ, देवभक्त, निर्लोभी, आचारवान, संयमी, एवं संशय निवारण में समर्थ होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। श्रीमद्भागवत कथा में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।
प्रातःकाल स्नानादि से निवष्त्त होकर स्वच्छ वस्त्रों को धारण करके कलश की स्थापना करनी चाहिये। गणेश, नवग्रह, योगिनी, मातष्का, क्षेत्रपाल, बटुक, तुलसी, विष्णु, शंकर आदि की पूजा करके भगवान नारायण की अराधना करनी चाहिये। कथा के दिनों में श्रोता एवं वक्ता को क्षौर-मुण्डन आदि नहीं कराना चाहिये। उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन, सात्विक भोजन, संयमित, शुद्ध आचरण तथा अहिंसाशील होना चाहिये। प्याज, लहसून, माँस-मदिरा, धूम्रपान इत्यादि तामस पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिये तथा वक्ता एवं श्रोता को इनका तथा स्त्री संग का त्याग करना चाहिये।

श्रीमद्भागवत कथा में कितना धन लगता है?:-

इस भौतिक युग में बिना धन के कुछ भी सम्भव नहीं एवं बिना धन के धर्म भी नहीं होता। पुराणों में वर्णन है कि पुत्री के विवाह में जितना धन लगे उतना ही धन श्रीमद्भागवत कथा में लगाना चाहिये और पुत्री के विवाह में जितनी खुशी हो उतनी ही खुशी मन से श्रीमद्भागवत कथा को करना चाहिये।
                ‘‘विवाहे यादष्शं वित्तं तादष्श्यं परिकल्पयेत’’
        इस प्रकार श्रीमद्भागवत की कथा सुनने से मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है


Shiv puran शिव पुराण   

शिव का अर्थ है कल्याण। शिव के महात्मय से ओत-प्रोत से यह पुराण शिव महापुराण के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान शिव पापों का नाश करने वाले देव हैं तथा बड़े सरल स्वभाव के हैं। इनका एक नाम भोला भी है। अपने नाम के अनुसार ही बड़े भोले-भाले एवं शीघ्र ही प्रसन्न होकर भक्तों को मनवाँछित फल देने वाले हैं। 18 पुराणों में कहीं शिव पुराण तो कहीं वायु पुराण का वर्णन आता है। शिव पुराण में 12 संहितायें हैं।

1.     विघ्नेश्वर संहिता               2.     रौद्र संहिता            3.     वैनायक संहिता

4.     भौम संहिता                   5.     मात्र संहिता                6.     रूद्रएकादश संहिता
7.     कैलाश संहिता                 8.     शत् रूद्र संहिता        9.     कोटि रूद्र संहिता
10.   सहस्र कोटि रूद्र संहिता       11.   वायवीय संहिता   12.   धर्म संहिता

        विघ्नेश्वर तथा रौद्रं वैनायक मनुत्तमम्। भौमं मात्र पुराणं च रूद्रैकादशं तथा।

        कैलाशं शत्रूद्रं च कोटि रूद्राख्यमेव च। सहस्रकोटि रूद्राख्यंवायुवीय ततःपरम्
        धर्मसंज्ञं पुराणं चेत्यैवं द्वादशः संहिता। तदैव लक्षणमुदिष्टं शैवं शाखा विभेदतः

        इन संहिताओं के श्रवण करने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा शिव     धाम की प्राप्ति हो जाती है। शिव पुराण के अनुसार भगवान नारायण जब जल में शयन कर रहे थे तभी उनकी नाभि से एक सुन्दर एवं विशाल कमल प्रकट हुआ। उस कमल में ब्रह्मा जी उत्पन्न हुये। माया के वश में होने के कारण ब्रह्मा जी अपनी उत्पत्ति के कारण को नहीं जान सके। चारों ओर उन्हें जल ही जल दिखायी पड़ा तब आकाशवाणी हुयी, ‘‘तपस्या करो’’। बारह वर्षों तक तपस्या करने के पश्चात् भगवान विष्णु ने चतुर्भुज रूप में उन्हें दर्शन दिये और कहा मैंनें तुम्हें सत्व गुण से निर्माण किया है लेकिन मायावश ब्रह्मा जी विष्णुजी के स्वरूप को न जानकर उनसे युद्ध करने लगे। तब दोनों के विवाद को शान्त करने के लिये एक अद्भुत ज्योर्तिलिंग का अर्विभाव हुआ। दोनों बड़े आश्चर्य के साथ इस ज्योर्तिलिंग को देखते रहे और इसका स्वरूप जानने के लिये ब्रह्मा हंस स्वरूप बनाकर ऊपर की ओर और विष्णु वाराह स्वरूप धारण कर नीचे की ओर गये। लेकिन दोनों ही ज्योर्तिलिंग के आदि-अन्त का पता नहीं कर सके।

       
 इस प्रकार 100 वर्ष बीत गये। इसके पश्चात् ज्योर्तिलिंग से उन्हें ओंकार शब्द का नाद सुनायी पड़ा और पँचमुखी एक मुर्ति दिखायी पड़ी। ये ही शिव थे। ब्रह्मा और विष्णु ने उन्हें प्रणाम किया, तब शिव ने कहा, ‘‘कि तुम दोनों मेरे ही अंश से उत्पन्न हुये हो।’’ और ब्रह्मा को सृष्टि की रचना एवं विष्णु को सृष्टि का पालन करने की जिम्मेदारी प्रदान की। शिव पुराण में 24000 श्लोक हैं। इसमें तारकासुर वध, मदन दाह, पार्वती की तपस्या, शिव-पावती विवाह, कार्तिकेय का जन्म, त्रिपुर का वध, केतकी के पुष्प शिव पुजा में निषेद्य, रावण की शिव-भक्ति आदि प्रसंग वर्णित हैं।
    
    भगवान शंकर पूजन से शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिवजी अपने भक्तों को कष्ट में नहीं देख सकते और अभिष्ट फल प्रदान करते हैं। भगवान शंकर का एक नाम नीलकंठ महादेव भी है। जब देवता और असुर लोगों ने मिलकर समुद्र से अमृत निकालने के लिये समुद्र-मंथन किया लेकिन अभी दूर-दूर तक अमृत का कोई नामो-निशान नहीं था कि समुद्र से भयंकर विष निकल पड़ा। जिससे समस्त देवता, दानव-मानव, सभी झुलसने लगे। तब भगवान शंकर ने ही प्राणियों एवं जीव-जगत की रक्षा हेतु उस हलाहल विष का पान कर अपने कण्ठ में धारण किया। तब से भगवान शंकर का एक नाम नीलकण्ठ महादेव पड़ गया।


शिवपुराण सुनने का फल:-

शिवपुराण में वर्णन आया है कि जो भी श्रद्धा से शिव पुराण कथा का श्रवण करता है वह जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है और भगवान शंकर के परम धाम को प्राप्त करता है। अन्य देवताओं की अपेक्षा भगवान शंकर जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं और थोड़ी सी पूजा का बहुत-बड़ा फल प्रदान करते हैं।
        एक बार भष्मासुर ने भगवान शंकर की तपस्या कर इच्छित वर माँग लिया कि मैं जिसके सिर पर हाथ रखुँ वह भष्म हो जाये। भगवान शंकर इतने भोले-भाले कि बिना सोचे-समझे उन्होंनें भष्मासुर को तथास्तु कहकर इच्छित वर प्रदान किया। भष्मासुर ने सोचा कि पहले शंकर जी को ही भष्म करके देखता हूँ। भष्मासुर भगवान शंकर के पीछे दौड़ पड़े। भगवान शंकर दौड़ते हुये भगवान विष्णु के पास जा पहुँचे। सो भगवान विष्णु ने मोहिनी स्वरूप धारण कर भष्मासुर का हाथ उसके अपने सिर पर रखवा कर भगवान शंकर की रक्षा की।
        इसलिये भगवान शंकर की थोड़ी भी पूजा कर दी जाये तो वह प्रसन्न हो बहुत ज्यादा फल देते हैं। जो शिव पुराण की कथा श्रवण करते हैं उन्हें कपिला गायदान के बराबर फल मिलता है। पुत्रहीन को पुत्र, मोक्षार्थी को मोक्ष प्राप्त होता है तथा उस जीव के कोटि जन्म पाप नष्ट हो जाते हैं और शिव धाम की प्राप्ति होती है। इसलिये शिव पुराण कथा का श्रवण अवश्य करना चाहिये।

शिव पुराण करवाने का मुहुर्त:-

        शिव पुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। शिव पुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन शिव पुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।

शिव पुराण का आयोजन कहाँ करें?:-

        शिव पुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में शिव पुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी शिव पुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

शिव पुराण करने के नियम:-

         शिव पुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। शिव पुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।

शिव पुराण में कितना धन लगता है?:-

        इस भौतिक युग में बिना धन के कुछ भी सम्भव नहीं एवं बिना धन के धर्म भी नहीं होता। पुराणों में वर्णन है कि पुत्री के विवाह में जितना धन लगे उतना ही धन शिव पुराण में लगाना चाहिये और पुत्री के विवाह में जितनी खुशी हो उतनी ही खुशी मन से शिव पुराण को करना चाहिये।
                ‘‘विवाहे यादष्शं वित्तं तादष्श्यं परिकल्पयेत’’
        इस प्रकार शिव पुराण सुनने से मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है।


Bharma puran ब्रह्मपुराण

ब्रह्मपुराण को गणना की दष्ष्टि से प्रथम माना जाता है। इस पुराण में साकार ब्रह्म की उपासना का विधान है। ब्रह्मपुराण में भगवान श्रीकष्ष्ण को ब्रह्म स्वरूप माना गया है। उनके चरित्र का निरूपण होने के कारण यह पुराण ब्रह्म पुराण कहा जाता है। ब्रह्म पुराण में कथा वक्ता स्वयं ब्रह्माजी एवं श्रोता मरीचि ऋषि हैं। सूर्य की उपासना इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय है। ब्रह्मपुराण ब्रह्ममयी है तथा सत् चित् आनन्दस्वरूप है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष  को प्रदान करने वाला है। करने वाला यह पुराण वेदतुल्य है। जो मनुष्य श्रद्धा के साथ ब्रह्मपुराण की कथा का श्रवण करता है वह बिष्णुलोक को प्राप्त करता है।
               
                 इदं यः श्रद्धया नित्यमं पुराणं वेद सम्मितम्।
                सम्पठेतच्छष्णु यान्मत्र्यः स याति भवनं हरेः।।   (ब्रह्मपुराण)
        
ब्रह्मपुराण में सर्वप्रथम सष्ष्टि की उत्पत्ति एवं महाराज पष्थु की पावन चरित्र की कथा वर्णित है। राजा पष्थु ने इस पष्थ्वी का दोहन कर अन्नादि पदार्थों को उत्पन्न कर प्राणियों की रक्षा की। तभी इस भू-धरा का नाम पष्थ्वी पड़ा। ब्रह्मपुराण में सूर्यवंश का विस्तष्त वर्णन तदन्तर चन्द्र वंश का विस्तष्त वर्णन एवं भगवान कष्ष्ण के चरित्र का विस्तार से वर्णन है। ब्रह्म पुराण के अनुसार मनुष्य यदि परहित के लिये अपना सर्वस्व दान करता है तो उसे भगवान के दर्शन अवश्य होते हैं।
       
एक कथा के अनुसार पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिये कठोर तपस्या कर रही थी तभी उन्हें सरोवर में पानी में डूबते हुये एक बालक की करूण पुकार सुनायी पड़ी, जिसे ग्राह ने पकड़ रखा था। माँ पार्वती दौड़कर वहाँ पहुँची तो देखा बालक ग्राह के मुँह में पड़ा थर-थर काँप रहा था। पार्वती जी ने ग्राह से प्रार्थना की कि वह इस बालक को छोड़ दे। ग्राह ने माँ पार्वती से कहा, देखो, भगवान ने मेरे आहार के लिये यह नियम बनाया है कि छठे दिन जो भी तुम्हारे पास आये उसे तुम खा लेना। आज विधाता ने इसे स्वयं मेरे पास भेजा है, मैं इसे नहीं छोड़ सकता। पार्वती जी बोली ग्राह तुम इस बालक को छोड़ दो। मैं तुम्हें अपनी तपस्या का पूरा पुण्य देती हूँ। यह सुनकर ग्राह मान गया। माँ पार्वती ने संकल्प कर अपनी पूरी तपस्या ग्राह को दे दी। तपस्या का फल पाते ही ग्राह सूर्य की तरह प्रकाशमान हो उठा और कहने लगा, देवी तुम अपनी तपस्या वापस ले लो। मैं तुम्हारे कहने पर इस बालक को छोड़ देता हूँ। लेकिन पार्वती जी ने उसे स्वीकार नहीं किया। बच्चे को बचाकर पार्वती जी बड़ी प्रसन्न और सन्तुष्ट थी। आश्रम में आकर फिर से तपस्या में बैठ गयी। तभी भगवान शंकर प्रकट हो गये। और कहने लगे, देवी तुम्हें अब तपस्या करने की आवश्यकता नहीं है। जो तपस्या का फल तुमने ग्राह को दिया वह तुमने मुझे ही अर्पित की थी जिसका फल अब अनन्त गुना हो गया है।

ब्रह्मपुराण सुनने का फल:-

        जो व्यक्ति भगवान के बिष्णु के चरणों में मन लगाकर ब्रह्मपुराण की कथा सुनते हैं उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। वह इस लोक में सुखों को भोगकर स्वर्ग में भी दिव्य सुखों का अनुभव करता है। तत्पश्चात् भगवान बिष्णु के निर्मल पद को प्राप्त करता है। ब्रह्मपुराण वेदतुल्य है तथा सभी वर्णों के लोग इसका श्रवण कर सकते हैं। इस श्रेष्ठ पुराण के श्रवण करने पर मनुष्य आयु, कीर्ति, धन, धर्म, विद्या को प्राप्त करता है। इसलिये मनुष्य को जीवन में एक बार इस गोपनीय पुराण की कथा अवश्य सुननी चाहिये।

ब्रह्मपुराण करवाने का मुहुर्त:-

        ब्रह्मपुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। ब्रह्मपुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन ब्रह्मपुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।

ब्रह्मपुराण का आयोजन कहाँ करें?:-

        ब्रह्मपुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में ब्रह्मपुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी ब्रह्मपुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

ब्रह्मपुराण करने के नियम:-

         ब्रह्मपुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। ब्रह्मपुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।


Vishnu puran विष्णु पुराण

अष्टादश पुराणों में विष्णु पुराण का एक विशिष्ट स्थान है। इसमें भगवान विष्णु के चरित्र का विस्तष्त वर्णन है। विष्णु पुराण में 23 हजार श्लोकों का वर्णन है परन्तु कलयुग में 6 हजार श्लोक ही विष्णु पुराण में प्राप्त होते हैं। इसके रचियता ब्यास जी के पिता पराशर जी हैं। विष्णु पुराण में वर्णन आता है कि जब पाराशर केे पिता शक्ति को राक्षसों ने मार डाला तब क्रोध में आकर पाराशर मुनि ने राक्षसों के विनाश के लिये ‘‘रक्षोघ्न यज्ञ’’ प्रारम्भ किया। उसमें हजारों राक्षस गिर-गिर कर स्वाहा होने लगे। इस पर राक्षसों के पिता पुलस्त्य ऋषि और पाराशर के पितामह वशिष्ठ जी ने पाराशर को समझाया और वह यज्ञ बन्द किया। इससे पुलस्त्य ऋषि बड़े प्रसन्न हुये औरा पाराशर जी को विष्णु पुराण के रचियता होने का आर्शीवाद दिया।
           
     पुराणसंहिताकर्ता भवान् वत्स भविष्यति।    (विष्णु पुराण)
     
   आर्शीवाद के फलस्वरूप पाराशर जी को विष्णु पुराण का स्मरण हो गया। तब पाराशर मुनि ने मैत्रेय जी को सम्पूर्ण विष्णु पुराण सुनायी। पाराशर जी एवं मैत्रेय जी का यही संवाद विष्णु पुराण में है।
        विष्णु पुराण में वर्णन आया है कि देवता लोग कहते हैं कि वो लोग बड़े धन्य हैं जिन्हें मानव योनि मिली है और उसमें भी भारतवर्ष में जन्म मिला है। वो मनुष्य हम देवताओं से भी अधिक भाग्यशाली है जो इस कर्मभूमि में जन्म लेकर भगवान विष्णु के निर्मल यश का गान करते रहते हैं।
                गायन्ति देवाः किलगीतकानि धन्यास्तुते भारतभूमि भागे।
                स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते भवन्ति भूयः पुरूषाः सुरत्वात्।।
       
 वे मनुष्य बड़े बड़भागी हैं जो मनुष्य योनि पाकर भारत भूमि में जन्म लेते हैं। क्योंकि यहीं से शुभ कर्म करके मनुष्य स्वर्गादि लोकों को प्राप्त करता है।

विष्णु पुराण सुनने का फल:-

        जो व्यक्ति भगवान के बिष्णु के चरणों में मन लगाकर विष्णु पुराण की कथा सुनते हैं उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। वह इस लोक में सुखों को भोगकर स्वर्ग में भी दिव्य सुखों का अनुभव करता है। तत्पश्चात् भगवान बिष्णु के निर्मल पद को प्राप्त करता है। विष्णु पुराण वेदतुल्य है तथा सभी वर्णों के लोग इसका श्रवण कर सकते हैं। इस श्रेष्ठ पुराण के श्रवण करने पर मनुष्य आयु, कीर्ति, धन, धर्म, विद्या को प्राप्त करता है। इसलिये मनुष्य को जीवन में एक बार इस गोपनीय पुराण की कथा अवश्य सुननी चाहिये।

विष्णु पुराण करवाने का मुहुर्त:-

        विष्णु पुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। विष्णु पुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन विष्णु पुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।
विष्णु पुराण का आयोजन कहाँ करें?:-
        विष्णु पुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में विष्णु पुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी विष्णु पुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

विष्णु पुराण करने के नियम:-

         विष्णु पुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। विष्णु पुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।

        इस प्रकार विष्णु पुराण सुनने से मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है।



Padma puran पद्म पुराण

पद्म पुराण प्रमुख रूप से वैष्णव पुराण है। इसके श्रवण करने से जीवन पवित्र हो जाता है। अट्ठारह पुराणों में पद्मपुराण का एक विशिष्ट स्थान है। पद्मपुराण में पचपन हजार श्लोक हैं जो पाँच खण्डों में विभक्त हैं। जिसमें पहला खण्ड सृष्टिखण्ड, दूसरा-भूमिखण्ड, तीसरा-स्वर्गखण्ड, चैथा-पातालखण्ड, पाँचवा-उत्तरखण्ड। इस पुराण का पद्मपुराण नाम पड़ने का कारण यह है कि यह सम्पूर्ण जगत स्वर्णमय कमल (पद्म) के रूप में परिणित था।
            तच्च पद्मं पुराभूतं पष्थ्वीरूप मुत्तमम्।
                यत्पद्मं सा रसादेवी प ष्थ्वी परिचक्ष्यते।।               (पद्मपुराण)
        अर्थात् भगवान विष्णु की नाभि से जब कमल उत्पन्न हुआ तब वह पष्थ्वी की तरह था। उस कमल (पद्म) को ही रसा या पष्थ्वी देवी कहा जाता है। इस पष्त्वी में अभिव्याप्त आग्नेय प्राण ही ब्रह्मा हैं जो चर्तुमुख के रूप में अर्थात् चारों ओर फैला हुआ सष्ष्टि की रचना करते हैं और वह कमल जिनकी नाभि से निकला है, वे विष्णु भगवान सूर्य के समान पष्थ्वी का पालन-पोषण करते हैं।
        पद्मपुराण में नन्दी धेनु उपाख्यान, वामन अवतार की कथा, तुलाधार की कथा, सुशंख द्वारा यम कन्या सुनीथा को श्राप की कथा, सीता-शुक संवाद, सुकर्मा की पितष् भक्ति तथा विष्णु भगवान के पुराणमय स्वरूप का अद्भुत वर्णन है। पद्मपुराण के अनुसार व्यक्ति ज्यादा कर्मकाण्डों पर न जाकर यदि साधारण जीवन व्यतीत करते हुये, सदाचार और परोपकार के मार्ग पर चलता है तो उसे भी पुराणों का पूर्ण फल प्राप्त होता है तथा वह दीर्घ जीवी हो जाता है। इस संदर्भ में एक प्रसिद्ध कथा है-
        भष्गु के पुत्र. मष्कण्डु की कोई सन्तान नहीं थी। तब उन्होंनें अपनी पत्नी के साथ कठोर तपस्या की। तपस्या के फलस्वरूप उनके यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ। उसका नाम उन्होंनें मार्कण्डेय रखा। जब यह बालक पाँच वर्ष का हुआ तो मष्कण्डु की कुटिया में एक सिद्ध योगी आये। बालक मार्कण्डेय ने उन्हें प्रणाम किया तो वह योगी चिन्तामग्न हो गये। मर्कण्डु जी ने योगी से चिन्ता का कारण पूछा तो योगी ने कहा ऋषिवर तुम्हारा पुत्र बहुत सुन्दर, सुशील एवं ज्ञानवान है परन्तु दुर्भाग्य से इसकी आयु केवल छह मास ही शेष है। मष्कण्डु ने सबकुछ बड़े धैर्य से सुना। तत्पश्चात् उन्होंनें पुत्र का यज्ञोपवीत संस्कार करवाया और सन्ध्या सिखा दी और नियम बताये, कहा-बेटा तुम्हें अपने से बड़ा जो भी मिल जाये, उसे प्रणाम करना।
        पिता की आज्ञा से मार्कण्डेय बालक परिचित-अपरिचित जो भी उसे मिलता, उसे वह जरूर प्रणाम करता। धीरे-धीरे समय बीतता गया, छठवाँ महीना आ गया। अब बालक की मष्त्यु की घड़ी में केवल पाँच दिन शेष रह गये। एक दिन संयोगवश सप्तऋषि उधर से निकले तो बालक ने उन्हें भी श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। तब सप्तऋषियों ने भी सहज ही बालक को ‘‘आयुष्मान भव, वत्स,’’ आर्शीवाद दिया। बाद में विचार करने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि इसकी आयु तो केवल पाँच दिन ही शेष है। अपनी बात झूठी न हो, इसका क्या उपाय किया जाय? इस पर वे विचार करने लगे। क्योंकि आयु कर्म-वित्त-विद्या एवं निधन इन पाँचों का निर्धारण तो ब्रह्मा जी शिशु के गर्भ में ही निर्धारित कर देते हैं। इसलिये इसकी आयु तो अब ब्रह्मा जी ही बढ़ा सकते हैं। सप्तऋषि बालक को लेकर ब्रह्मा जी के पास पहुँचे। नियमानुसार बालक ने ब्रह्मा जी को प्रणाम किया। भगवान ब्रह्मा ने भी ‘‘आयुष्मान भव’’ कहकर दीर्घायु होने का आर्शीवाद दिया। सप्तऋषियों ने बताया कि इस बालक की आयु तो केवल पाँच दिन की शेष बची है, इसलिये आप प्रभु ऐसा करें कि आप भी झूठे न हों और हम भी झूठे न बने। तब ब्रह्मा जी ने कहा इसकी आयु मेरी आयु के बराबर होगी। इस प्रकार प्रणाम करके मार्कण्डेय जी ब्रह्मआयु प्राप्त करके चिरंजीवी हो गये। जब प्रलय का समय आता है और सारी सष्ष्टि का विनाश हो जाता है तब भी मार्कण्डेय ऋषि जीवित रहते हैं और भगवान के दर्शन करते रहते हैं। इस प्रकार से अभी तक मार्कण्डेय जी ने न जाने कितने चर्तुयुगों को देख लिया है।

पद्मपुराण सुनने का फल:-

        पद्मपुराण सुनने से जीव के सारे पाप क्षय हो जाते हैं, धर्म की वष्द्धि होती है। मनुष्य ज्ञानी होकर इस संसार में पुर्नजन्म नहीं लेता। पद्मपुराण कथा करने एवं सुनने से प्रेत तत्व भी शान्त हो जाता है। यज्ञ दान तपस्या और तीर्थों में स्नान करने से जो फल मिलता है वह फल पद्मपुराण की कथा सुनने से सहजमय ही प्राप्त हो जाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिये पद्म पुराण सुनना सर्वोत्तम उपाय है।

पद्मपुराण करवाने का मुहुर्त:-

        पद्मपुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। पद्मपुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन पद्मपुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।
पद्मपुराण का आयोजन कहाँ करें?:-
        पद्मपुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में पद्मपुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी पद्मपुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

पद्मपुराण करने के नियम:-

         पद्मपुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। पद्मपुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।

        इस प्रकार पद्मपुराण सुनने से मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है।



Narad puran नारद पुराण

नारद पुराण विष्णु भक्ति के महात्मय को प्रतिपादित करने वाला एक वैष्णव पुराण है। इसके श्रवण करने से समस्त पापों का प्रक्षालन हो जाता है। इस पुराण में 25000 श्लोक हैं जो दो भागों में बँटा हुआ है। पूर्व भाग एवं उत्तर भाग। पूर्व भाग में नारद जी श्रोता के रूप में प्रतिष्ठित हैं तथा सनक सनन्दन सनत कुमार और सनातन इसके वक्ता हैं। उत्तर भाग के वक्ता महर्षि वशिष्ठ जी तथा श्रोता मान्धाता जी हैं। नारद पुराण भगवान विष्णु जी की भक्ति से ओत-प्रोत है। नारद जी ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। नारद जी नारायण का जाप करते हुये एवं नारायण की महिमा बताते हुये सर्वत्र विचरण करते रहते हैं। भगवान की भक्ति भगवान के स्वरूप को प्राप्त कराने वाली होती है। इसलिये मनुष्य को नारद जी की तरह हर समय भगवान नारायण का स्मरण करना चाहिये। भगवान नाम चर्चा से ही इस संसार से मुक्ति हो सकती है।
               
                  भक्ति भगवतः पुंसा भगवद्रुपकारिणी।
                तांलब्धा चपरं लाभं को वांछति बिनापशुं।।
                भगवद्विमुखा ये तु नरा संसारिणो द्विजाः।
                तेषां मुक्तिभवाटब्या नास्ति सत्संग मंतराः      ।।   (नारद पुराण)

       देवर्षि नारद जी ब्रह्मा जी के कंठ से उत्पन्न माने गये हैं। ब्रह्मा जी ने उन्हें कहा, ‘‘बेटा, विवाह करो और सष्ष्टि का विस्तार करो।’’ लेकिन नारद जी ने पिता ब्रह्मा जी की बात नहीं मानी, कहने लगे, ‘‘पिताजी, मैं विवाह नहीं करूँगा। मैं केवल भगवान पुरूषोत्तम की भक्ति करना चाहता हूँ और जो भगवान को छोड़कर विषयों एवं भोगों में मन लगाये उससे अधिक मूर्ख कौन होगा! विषय तो स्वप्न के समान नश्वर, तुच्छ एवं विनाशकारी हैं।’’

        आदेश न मानने पर ब्रह्मा जी ने रोष में आकर नारदजी को श्राप दे दिया एवं कहा कि ‘‘तुमने मेरी आज्ञा नहीं मानी, इसलिये तुम्हारा समस्त ज्ञान नष्ट हो जायेगा और तुम   गन्धर्व योनी को प्राप्त कर कामिनीयों के वशीभूत हो जाओगे।’’ नारदजी ने कहा, ‘‘पिताजी, आपने यह क्या किया? अपने तपस्वी पुत्र को श्राप दे दिया? लेकिन एक कष्पा जरूर करना जिस-जिस योनि में मेरा जन्म हो, भगवान भक्ति मुझे कभी न छोड़े एवं मुझे पूर्व जन्मों का स्मरण रहे। और हाँ, आपने मुझे बिना किसी अपराध के श्राप दिया है, अतः मैं भी तुम्हें श्राप देता हूँ कि तीन कल्पों तक लोक में तुम्हारी पूजा नहीं होगी। आपके मंत्र-स्त्रोत कवच सभी लोप हो जायेंगे।’’
        ब्रह्मा जी के श्राप से नारद जी को गन्धर्व योनि में जन्म लेना पड़ा तथा दो योनियों में जन्म लेने के पश्चात् उन्हें परब्रह्मज्ञानी नारद स्वरूप प्राप्त हुआ।
           
     गायन्न्ा माद्यन्निदं तंत्र्या रमयत्यातुरं जगत्।
      
  अहो! देवर्षि नारद धन्य हैं क्योंकि ये भगवान की कीर्ति को अपनी वीणा पर गाकर स्वयं तो आनन्दमयी रहते हैं साथ ही दुःखों से संतप्त जगत को भी आनन्दित करते रहते हैं। नारद पुराण में सदाचार, महिमा, एकादशी व्रत तथा गंगा उत्पत्ति महात्मय, वर्णाश्रम धर्म, पंच महापातक, प्रायश्चित कर्म, पूजन विधि, गायंत्री मंत्र जाप विधि, तीर्थ स्थानों का महत्व, दान महात्मय आदि पर विशिष्ट चर्चा की गयी है।

नारद पुराण सुनने का फल:-

        नारद पुराण सुनने से जीव के सारे पाप क्षय हो जाते हैं, धर्म की वष्द्धि होती है। मनुष्य ज्ञानी होकर इस संसार में पुर्नजन्म नहीं लेता। नारद पुराण कथा करने एवं सुनने से नारायण की निश्चल भक्ति प्राप्त होती है। नारदोदेव दर्शनः। अर्थात् जिन्हें नारद जी के दर्शन हो जायें उसे नारायण के दर्शन अवश्य होते हैं।

नारद पुराण करवाने का मुहुर्त:-

        नारद पुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। नारद पुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन नारद पुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।

नारद पुराण का आयोजन कहाँ करें?:-

        नारद पुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में नारद पुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी नारद पुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

नारद पुराण करने के नियम:-

         नारद पुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। नारद पुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।


Markandeya puran मार्कण्डेय पुराण

महर्षि व्यास जी ने मानव कल्याण के लिये नैतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक एवं भौतिक विषयों से परिपूर्ण इस पुराण की रचना की है। इस पुराण को जैमिनी ऋषि मार्कण्डेय जी से प्रश्न पूछते हैं जिसका समाधान मार्कण्डेय जी करते हैं। मार्कण्डेय ऋषि द्वारा कथन किये जाने से इसका नाम मार्कण्डेय पुराण पड़ा। इस पुराण में चण्डी देवी का महात्मय विस्तार पूर्वक वर्णन है। दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का ही एक अंश है। दूर्गा सप्तसती का भारत वर्ष के वैष्णव, शाक्त, शैव आदि जितने भी सम्प्रदाय के लोग हैं, बड़ी श्रद्धा से पाठ करते हैं। वर्तमान में मार्कण्डेय पुराण में 137 अध्याय एवं 9 हजार श्लोक विद्यमान हैं।
        विभिन्न उपाख्यान एवं महात्मय से भरे हुये इस पुराण में राजा हरीशचन्द्र का उपाख्यान बहुत करूण एवं मार्गिक प्रसंग है। सत्य की रक्षा के लिये राजा हरीशचन्द्र ने न केवल अपना राज्य धन, ऐश्वर्य अपितु पुत्र एवं पत्नी को भी बेच दिया एवं स्वयं ऋषि विश्वामित्र की दक्षिणा पूरी करने के लिये श्मशान में चाण्डाल बनकर सेवा करने लगे। मदालसा का चरित्र इस पुराण में विशेष रूप से उल्लिखित है।
        मार्कण्डेय पुराण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग दुर्गा सप्तशती है। जिसमें माँ भगवती के तीन चरित्रों का वर्णन है। जिसमें प्रथम चरित्र में सुरथ नामक राजा शत्रुओं तथा दुष्ट मंत्रियों के कारण राज्य एवं धन हाथ से निकल जाने पर वन में आ गया और मेघा ऋषि के आश्रम पर रहने लगा। वहाँ उसकी भेंट समाधि नामक वैश्य से हुई। इस चरित्र में सुरथ एवं      समाधि वैश्य का संवाद है। मध्यमचरित्र में महिषासुर वध की अद्भुत कथा का वर्णन है। उत्तम चरित्र में शुम्भ-निशुम्भ दो पराक्रमी दानव, जिन्होंनें इन्द्रादि देवताओं को युद्ध में हराकर उन्हें स्वर्ग से निकाल दिया और स्वयं त्रिलोकी के अधिपति बन गये। इस चरित्र में माँ भगवती ने धूम्रलोचन वध, चण्ड-मुण्ड वध, रक्तबीज एवं शुम्भ-निशुम्भ दोनों को मारकर त्रिलोकी को इन असुरों के आक्रान्त से बचाकर देवताओं को त्रिलोकी का साम्राज्य वापिस दिलवाया।

मार्कण्डेय पुराण सुनने का फल:-

        मार्कण्डेय पुराण सुनने से जीव के सारे पाप क्षय हो जाते हैं, धर्म की वष्द्धि होती है।  माँ दुर्गा के इन चरित्रों को सुनने से धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। मनुष्य दीर्घजीवी होता है तथा संसार के समस्त सुखों को भोगकर माँ भगवती के लोक को प्राप्त करता है। सत्वगुणी ब्राह्मी शक्ति एवं महासरस्वती वाक् शक्ति में विराजमान रहती है जबकि रजोगुणी वैष्णवी देवी महालक्ष्मी मन की शक्ति है और तमोगुण रूद्र शक्ति महाकाली प्राण शक्ति है। ऐं हृी क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः। इस मंत्र में ऐं महाकाली, हृीं महालक्ष्मी एवं क्लीं महासरस्वती का बीजमंत्र है। जिसका निरन्तर जाप करने से परम् सिद्धि की प्राप्ति होती है।

मार्कण्डेय पुराण करवाने का मुहुर्त:-

        मार्कण्डेय पुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। मार्कण्डेय पुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन मार्कण्डेय पुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।
मार्कण्डेय पुराण का आयोजन कहाँ करें?:-
        मार्कण्डेय पुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में मार्कण्डेय पुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी मार्कण्डेय पुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

मार्कण्डेय पुराण करने के नियम:-

         मार्कण्डेय पुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। मार्कण्डेय पुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।

मार्कण्डेय पुराण में कितना धन लगता है?:-

        इस भौतिक युग में बिना धन के कुछ भी सम्भव नहीं एवं बिना धन के धर्म भी नहीं होता। पुराणों में वर्णन है कि पुत्री के विवाह में जितना धन लगे उतना ही धन मार्कण्डेय पुराण में लगाना चाहिये और पुत्री के विवाह में जितनी खुशी हो उतनी ही खुशी मन से मार्कण्डेय पुराण को करना चाहिये।
                ‘‘विवाहे यादष्शं वित्तं तादष्श्यं परिकल्पयेत’’
        इस प्रकार मार्कण्डेय पुराण सुनने से मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है।


Agni puran अग्नि पुराण

अग्नि पुराण अति प्राचीन पुराण है। शास्त्रीय व विषयगत दृष्टि से यह पुराण बहुत ही महत्वपूर्ण पुराण है। अग्नि पुराण में 12 हजार श्लोक, 383 अध्याय उपलब्ध हैं। स्वयं भगवान अग्नि ने महर्षि वशिष्ठ जी को यह पुराण सुनाया था। इसलिये इस पुराण का नाम अग्नि पुराण प्रसिद्ध है। विषयगत एवं लोकोपयोगी अनेकों विद्याओं का समावेश अग्नि पुराण में है।
                आग्नेये हि पुराणेस्मिन् सर्वा विद्याः प्रदर्शिताः     (अग्नि पुराण)
        पद्म पुराण में पुराणों को भगवान बिष्णु का मूर्त रूप बताया गया है। उनके विभिन्न अंग ही पुराण कहे गये हैं। इस दष्ष्टि से अग्नि पुराण को श्री हरि का बाँया चरण कहा गया है।
        अग्नि पुराण में अनेकों विद्याओं का समन्वय है जिसके अन्तर्गत दीक्षा विधि, सन्ध्या पूजन विधि, भगवान कष्ष्ण के वंश का वर्णन, प्राण-प्रतिष्ठा विधि, वास्तु पूजा विधि, सम्वत् सरों के नाम, सष्ष्टि वर्णन, अभिषेक विधि, देवालय निर्माण फल, दीपदान व्रत, तिथि व्रत, वार व्रत, दिवस व्रत, मास व्रत, दान महात्म्य, राजधर्म, विविध स्वप्न, शकुन-अपशकुन, स्त्री-पुरूष के शुभाशुभ लक्षण, उत्पात शान्त विधि, रत्न परीक्षा, लिंग का लक्षण, नागों का लक्षण, सर्पदंश की चिकित्सा, गया यात्रा विधि, श्राद्ध कल्प, तत्व दीक्षा, देवता स्थापन विधि, मन्वन्तरों का परिगणन, बलि वैश्वदेव, ग्रह यंत्र, त्र्लोक्य मोहनमंत्र, स्वर्ग-नरक वर्णन, सिद्धि मंत्र, व्याकरण, छन्द शास्त्र, काव्य लक्षण, नाट्यशास्त्र, अलंकार, शब्दकोष, योगांग, भगवद्गीता, रामायण, रूद्र शान्ति, रस, मत्स्य, कूर्म अवतारों की बहुत सी कथायें और विद्याओं से परिपूर्ण इस पुराण का भारतीय संस्कष्त साहित्य में बहुत बड़ा महत्व है।
        
अग्नि पुराण का फल:-
        अग्नि पुराण को साक्षात् अग्नि देवता ने अपने मुख से कहा हे। इस पुराण के श्रवण करने से मनुष्य अनेकों विद्याओं का स्वामी बन जाता है। जो ब्रह्मस्वरूप अग्नि पुराण का श्रवण करते हैं, उन्हें भूत-प्रेत, पिशाच आदि का भय नहीं सताता। इस पुराण के श्रवण करने से ब्राह्मण ब्रह्मवेत्ता, क्षत्रिय राजसत्ता का स्वामी, वैश्य धन का स्वामी, शूद्र निरोगी हो जाता है तथा उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इतना ही नहीं जिस घर में अग्नि पुराण की पुस्तक भी हो, वहाँ विघ्न बाधा, अनर्थ, अपशकुन, चोरी आदि का बिल्कुल भी भय नहीं रहता। इसलिये अग्नि पुराण की कथा का श्रवण अवश्य करना चाहिये।

अग्नि पुराण करवाने का मुहुर्त:-

अग्नि पुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। अग्नि पुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन अग्नि पुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।

अग्नि पुराण का आयोजन कहाँ करें?:-

अग्नि पुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में अग्नि पुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी अग्नि पुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

अग्नि पुराण करने के नियम:-

अग्नि पुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। अग्नि पुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।


Read Online Ved puran in Hindi - वेद पुराण

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१. ऋग्वेद
ऋग्वेद सबसे पहला वेद है। इसमें धरती की भौगोलिक स्थिति, देवताओं के आवाहन के मंत्र हैं। इस वेद में 1028 ऋचाएँ (मंत्र) और 10 मंडल (अध्याय) हैं। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियाँ और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है।



२. यजुर्वेद 
यजुर्वेद में यज्ञ की विधियाँ और यज्ञों में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। इस वेद की दो शाखाएँ हैं शुक्ल और कृष्ण। 40 अध्यायों में 1975 मंत्र हैं।


३. सामवेद 
साम अर्थात रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इस वेद में ऋग्वेद की ऋचाओं (मंत्रों) का संगीतमय रूप है। इसमें मूलत: संगीत की उपासना है। इसमें 1875 मंत्र हैं।


४. अथर्ववेद 
इस वेद में रहस्यमय विद्याओं के मंत्र हैं, जैसे जादू, चमत्कार, आयुर्वेद आदि। यह वेद सबसे बड़ा है, इसमें 20 अध्यायों में 5687 मंत्र हैं।
Part-1
 Part-2
वेद पुराण 
Ved-puran
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