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तिथि के अनुसार देव पूजन Tithi ke anusar pujan

तिथि के अनुसार देव पूजन |Tithi ke anusar pujan


साल में 12 महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में दो पक्ष होते हैं- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक पक्ष में 15-15 तिथि होती हैं। कुल मिलाकर 30 तिथि होती हैं। दोनो पक्षों में 14 तिथियों तक नाम में कोई अंतर नहीं होता है। लेकिन 15 वीं तिथि को कृष्ण पक्ष में अमावस्या और शुक्लपक्ष में पूर्णमासी कहा जाता है।

हर महीने में दो पक्ष होते हैं- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। प्रत्येक पक्ष में 15-15 तिथि होती हैं। कुल मिलाकर 30 तिथि होती हैं। दोनों पक्षों में 14 तिथियों तक नाम में कोई अंतर नहीं होता है। लेकिन 15 वीं तिथि को कृष्ण पक्ष में अमावस्या और शुक्लपक्ष में पूर्णमासी कहा जाता है। जानते हैं किस तिथि के देवता कौन हैं, जिनका पूजन करने से जीवन को सरल व उत्तम बनाया जा सकता है। किस तिथि को कौन सा कार्य किए जाए, जिससे कि कार्य में बेहतर परिणाम मिल सकें।

1. प्रतिपदा तिथि प्रतिपदा यह पहली तिथि है। इस तिथि को हिंदी में पड़वा या परिवा भी कहते है। प्रतिपदा का अर्थ होता है प्रारंभ यानी पहला कदम बढ़ाना। यानी कि चंद्रमा जब प्रत्येक पक्ष में अपनी यात्रा पूूरी कर फिर से नई यात्रा पर निकलता है तो इसे प्रतिपद कहा जाता है। प्रतिपद शब्द से ही तिथि का नाम प्रतिपदा हुआ।
तिथि के देवता इस तिथि के स्वामी अग्निदेव कहे गए हैं। इस पृथ्वी पर अग्नि साक्षात् देवता हैं, जिनका पूजन कर सभी देवताओं को खुश किया जा सकता है।

कौन से कार्य करें
शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि अमावस्या के बाद होती है। जिसमें चंद्र बल कमजोर रहने के कारण शुभ कार्यों के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है।कृष्णपक्ष में आने वाली प्रतिपदा में कई शुभ कार्य शुरू किए जा सकते हैं। विवाह, यात्रा, मूर्ति स्थापना, जनेऊ, यज्ञोपवित, घर बनवाना, घर में प्रवेश, नवग्रह शांति आदि सभी कार्य किए जा सकते हैं।
रविवार और प्रतिपदा तिथि का योग
रविवार को रहने वाली प्रतिपदा तिथि मृत्युदा योग बनाती है। मृत्यृदा योग में शुभ कार्यों की शुरुआत नहीं की जाती है।

शुक्रवार और प्रतिपदा तिथि का योग
शुक्रवार को प्रतिपदा तिथि सिद्धिदा कहलाती है। शुभ कार्योंं के लिए यह योग उत्तम है।

शिर्वाचन में प्रतिपदा तिथि का महत्तव
ऐसी मान्यता है कि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में शिव का वास श्मशान में होता है ।इसलिए इस दिन रुद्राभिषेक नहीं करना चाहिए। जबकि कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को शिव गौरी संग विचरण करते हैं। इसलिए इस दिन शिव पूजन उत्तम कहा गया है।
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  2.द्वितीया तिथि द्वितीया तिथि को हिन्दी में दूज, दौज, बीया और बीज भी कहा जाता है। तिथियों में इस तिथि का नंबर दूसरा है, जिसके कारण ही यह नाम पड़ा। इस तिथि को सुमंगला भी कहा जाता है यानी कि सुमंगल करने वाली। मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार इस तिथि में अत्यधिक शुभता मानी गई है।

तिथि के देवता 
इस तिथि के स्वामी ब्रह्मा हैं। किसी भी कार्य की शुरुआत से पहले बह्मा का स्मरण जरूर करें।  
किए जाने वाले कार्य राजनीति व प्रशासन संबंधी कार्य, वास्तु, यात्रा और देव प्रतिमा की स्थापना व विवाहादि संस्कार सभी मांगलिक कार्यों के लिए ये तिथि शुभ मानी गई है।

किस चीज के सेवन करने की है मनाही
इस तिथि में नींबू नहीं खाना चाहिए क्योंकि शास्त्रों की दृष्टि से स्वास्थय के लिए अच्छा नहीं माना जाता है।

किस महीने में रहती है दूज तिथि परिणाम शून्य
सावन और भादौ में होने वाली दूज पर मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि उस दिन इन तिथि का प्रभाव शून्य माना जाता है।   सोमवार और दूज का योग
सोमवार हो और उस दिन दूज तिथि भी हो तो मृत्यु योग बनता है, जो कि अशुभ फलदायी माना गया है। इस योग में मांगलिक कार्य की शुरुआत नहीं करें।
शिवार्चन में द्वितीया तिथि का महत्तव
कृष्णपक्ष की द्वितीया तिथि को शिव सभा में विराजते हैं। इस दिन शिवपूजन में रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय का जप आदि नहीं शुरू करें। शुक्लपक्ष की दूज को  किसी विशेष मनोकामना से किए गए शिव पूजन का आरंभ शुभदायक होता है।
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  3.तृतीया तिथि यह तिथि तीज, तीजा और तईया नाम से भी जानी जाती है। तृतीया तिथि को जया तिथि भी कहा गया है। तृतीया तिथि का एक और खास नाम सबला भी है। अपने नाम के अनुरूप यह तिथि सभी शुभ कार्यों में शुभ कही गई है। 
तिथि के देवता
इसकी स्वामिनी गौरी देवी हैं। जीवन में सुख और सौभाग्य की वृद्धि के लिए इस दिन गौरी माता का पूजन किया जाना चाहिए।
किए जाने वाले कार्य
गोद भराई संस्कार करना शुभ माना गया है। वाद्य-संगीत की शिक्षा की शुरुआत करना श्रेष्ठ कहा गया है। इस तिथि में द्वितीया तिथि में कहे गए सभी कार्य किए जा सकते हैं। 
शिवार्चन में तृतीया तिथि का महत्तव
शुक्लपक्ष की तीज को शिव का वास सभा में और कृष्णपक्ष की तीज को भी सभा में रहता है। इस कारण से दोनों पक्षों में तीज तिथि भगवान शिव संबंधी अनुष्ठान की शुरुआत करने के लिए मना की गई है।   बुधवार और तृतीया तिथि का योग
बुधवार को तृतीया तिथि होने से मृत्युदा कहलाती है, जिसमें नया कार्य शुरु करना शुभ नहीं कहा गया है।

मंगलवार और तृतीया तिथि का योग
मंगलवार को आने वाली तृतीया तिथि सिद्धिदा योग बनाती है। जिससे कि तृतीया तिथि की शुभता में अधिक वृद्धि होती है। नए कार्य की शुरुआत के लिए यह योग उत्तम है।​
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  4.चतुर्थी तिथि इस तिथि को चतुर्थी ,चउथि ,चैथ और चडत्थी नाम से पुकारा जाता है। इस तिथि का खास नाम खला है। खला का अर्थ है किसी विशेष परिणाम का नहीं मिल पाना। इसलिए चतुर्थी में शुरू किए गए कार्य के खास परिणाम नहीं मिल पाते हैं। 
तिथि के देवता 
इस तिथि के देवता श्रीगणेश हैं। श्री गणेश का पूजन सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला है। जीवन में शुभता में वृद्धि हो इसलिए विधि-विधान के साथ श्रीगणेश का पूजन करें।


तिथि के कार्य 
किसी भी नए कार्य की शुरुआत में चतुर्थी तिथि को महत्तव नहीं दिया गया है।   किस चीज के सेवन करने की है मनाही
इस तिथि में मूली व बैंगन नहीं खाना चाहिए।
गुरुवार और चतुर्थी तिथि का योग
यदि गुरुवार को चतुर्थी तिथि हो तो शास्त्रों के अनुसार यह मृत्यु योग का निर्माण करती है। इसलिए इस योग में भी शुभ कार्य नहीं किए जाना चाहिए।
शनिवार और चतुर्थी तिथि का योग
शनिवार को होने वाली चतुर्थी तिथि सिद्धिदा योग बनाती है। सिद्धि योग बन जाने से अशुभ प्रभाव में कमी आती है। जिसमें आवश्यक कार्य किए जा सकते हैं। 
शिवार्चन में चतुर्थी तिथि का महत्तव
शुक्ल पक्ष में रहने वाली इस तिथि को शिवार्चन की शुरुआत शुभ नहीं मानी गई है। लेकिन कृष्णपक्ष में शिव का वास कैलाश पर होने से शिव अनुष्ठान शुभ माना गया है।

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  5.पंचमी तिथि पंचमी तिथि का एक खास नाम है श्रीमती। इस तिथि को पूर्णा भी कहा जाता है।    तिथि के देवता इस तिथि के स्वामी नाग कहे गए हैं। पंचमी तिथि को सर्प पूजन करने से जन्मपत्रिका में दिए गए काल सर्पयोग और पितर दोष के प्रभाव में कमी आती है।
तिथि के कार्य 
इस दिन ऐसे कार्य जो एक बार शुरु होकर लंबे समय तक चले किए जाने चाहिए। इसलिए काराबोर, जॉॅब की शुरुआत और विवाहादि कार्य किए जा सकते हैं।   किस महीने में रहती है पंचमी तिथि परिणाम शून्य पौष मास में आने वाली पंचमी तिथि को कार्य की  शुरुआत के लिए शुभ नहीं माना गया है। क्योंकि पौष महीने में ये तिथि सोई हुई रहती है।    किस चीज के सेवन करने की है मनाही शास्त्रों में पंचमी तिथि को कटहल, बेला और खटाई खाने की मनाही की गई है।
शनिवार और पंचमी तिथि का योग
शनिवार को आने वाली पंचमी तिथि मृत्युदा योग बनाती है। इस योग को किसी भी नए कार्य के किए जाने में महत्तव नहीं दिया जाता है।

गुरुवार और पंचमी तिथि का योग 
गुरुवार के दिन आने वाली पंचमी सिद्धिदा योग बनाती है, जो कि शुभकारी है। नए कार्य की शुरुआत की जा सकती है।

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  6.षष्ठी तिथि  इस तिथि को छठ भी कहा जाता है। विशेष नाम कीर्ति से भी जाना जाता है। 
तिथि के देवता  इस तिथि के स्वामी कार्तिकेय हैं। 
तिथि के कार्य 
इस दिन मांगलिक कार्य, खरीदारी करना, नए कार्यों की शुरुआत करना सभी शुभ हैं।

कौन से कार्य नहीं करें 1.छठ को दातून करने की शास्त्रों में मनाही की गई है। 2. इस दिन जलाने के लिए लकडिय़ां का इकट्ठा करना की भी मनाही है।
3.तेल मालिश और तेलयुक्त भोजन भी इस दिन वर्जित किया गया है। लेकिन शनिवार को छठ तिथि हो तो तेल मालिश की जा सकती है।
शिवार्चन में षष्ठी तिथि का महत्व
शुक्ल और कृष्ण दोनों पक्षों की षष्ठी तिथि को शिव वास शुभ माना गया है। जिसमें किया गया शिवार्चन श्री प्रदान करता है।   रविवार और षष्ठी तिथि का योग
रविवार के दिन षष्ठी तिथि होने से मृत्युदा योग बनता है। शुभ कार्यों की शुरुआत इस तिथि में नहीं की जानी चाहिए।

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  7.सप्तमी तिथि इसे मित्रापदा भी कहते है। सभी कार्यों के लिए यह तिथि शुभ मानी गई है।
तिथि के देवता  इस तिथि के स्वामी सूर्य है। सप्तमी तिथि को ही सूर्यदेव का जन्मदिन माना जाता है। साथ ही सूर्य देव अपनी पत्नी संज्ञा से दोबारा सप्तमी को ही मिले थे जिसके कारण ही यह तिथि सूर्यदेव को बहुत प्रिय है। मान-सम्मान में बढ़ोत्तरी के लिए और उत्तम व्यक्तित्व के लिए इस तिथि को सूर्य पूजन किया जाना चाहिए।
तिथि के कार्य  द्वितीया और तृतीया तिथि में कहे गए सारे कार्य सप्तमी तिथि में किए जा सकते हैं।
    शिवार्चन में सप्तमी तिथि का महत्त्व 
कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों की सप्तमी तिथि में शिव का वास शुभ स्थानों पर होता है। शिवार्चन किया जा सकता है।

कौन से कार्य नहीं करें
शास्त्रों में सप्तमी तिथि को मना किए गए कार्यों के लिए एक श्लोक आया है, जिसका अर्थ इस प्रकार है।
सप्तयां न स्पृशेतैलम् नीलस्त्रं न धारयेत्। न चाप्याममलेकैः स्नानं कुर्यात् कलहनरः। सप्तायां नैव कुर्वीत ताम्रपात्रेण भोजनम्।।
यानी कि सप्तमी तिथि में तेल का स्पर्श और नीले वस्त्रों को धारण करना नहीं करें। आंवले से स्नान झगड़े होने का कारण बन सकता है। साथ ही तांबे के बर्तन में भोजन करने का कार्य भी नहीं करना चाहिए।


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  8.अष्टमी तिथि  इस तिथि का नाम कलावती भी है।  अष्टमी तिथि में कई प्रकार की कला और विद्याएं सीखना शुभफलदायी है।   तिथि के देवता  इस तिथि के स्वामी शिव कहे गए है। अष्टमी तिथि को शिवपूूजन के बाद नारियल का भोग शिव को अर्पित करें। श्री शिव के लिए बनाए जाने वाले प्रसाद में नारियल का उपयोग करें।   तिथि के कार्य 
1.ग्रंथलेखन, कविता कहानी निबंधादि लेखन शुरू करने के लिए ये तिथि शुभ मानी जाती है।
2.अभिनय,नृत्य,गायन सीखने के लिए प्रशिक्षण संस्थाओं में प्रवेश लेना भी शुभ है।
3.नए आभूषणों को बनवाना, नए वस्त्र सिलवाना,खरीदना अष्टमी तिथि में शुभ माना गया है।
किस महीने में रहती है अष्टमी तिथि परिणाम शून्य चैत्र महीने में आने वाली अष्टमी तिथि परिणाम शून्य कही गई है।
किस चीज के सेवन करने की है मनाही इस तिथि में नारियल नहीं खाना चाहिए।

मंगलवार और अष्टमी का योग
मंगलवार को रहने वाली अष्टमी तिथि मृत्युदा योग बनाती है, जो कि शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए मना है।


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  9.नवमी तिथि  नवमी तिथि को उग्रा भी कहा गया है। यह एक रिक्ता तिथि भी है।   तिथि के देवता   नवमी तिथि की स्वामिनी श्री दुर्गा हैं। नवमी तिथि को श्री दुर्गा का पूजन किया जाना शुभ रहता है।   तिथि के कार्य मांगलिक कार्यों में और नए कार्य की शुरुआत इस तिथि में किए जाना शास्त्रों में शुभता की दृष्टि से श्रेष्ठ नहीं कहा गया है।
गुरुवार और नवमी तिथि का योग
गुरुवार को नवमी तिथि होने से मृत्युदा योग बनाती है। शास्त्रों में इस योग को अशुभ फलदायी माना गया है। 
शनिवार और नवमी तिथि का योग
शनिवार को नवमी तिथि होने से सिद्धिदा कहलाती है। जिससे कि नवमी तिथि को शुभता प्राप्त हो जाती है। 
  किस महीने में रहती है नवमी तिथि परिणाम शून्य
चैत्र मास में नवमी तिथि भी परिणाम शून्य कही गई है।

किस चीज के सेवन करने की है मनाही इस तिथि में लौकी और कद्दू का सेवन नहीं करें।        

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  10.दशमी तिथि इस तिथि को धर्मिणी भी कहा गया है।
तिथि के देवता  इस तिथि के स्वामी यम हैं। शास्त्रों में यम के निमित्त घर के बाहर दीपदान का विधान हैं।
तिथि के कार्य दशमी तिथि को नए ग्रंथ का विमोचन, शपथग्रहण समारोह, उदघाटन करना आदि कार्य शुभ होते हैं। नया वाहन खरीदना शुभ माना गया है ।   किस महीने में रहती है दशमी तिथि परिणाम शून्य क्वार महीने की दशमी तिथि दोनों पक्षों में परिणाम शून्य मानी गई है। 

शनिवार और दशमी तिथि का योग
शनिवार को दशमी तिथि मृत्युदा कहलाती है। अपने नाम के अनुसार इस दिन किसी कार्य के शुरुआत करने पर उसमें अत्यधिक शुभ परिणाम नहीं कहे गए हैं।
गुरुवार और दशमी तिथि का योग
गुरुवार हो और दशमी तिथि होने से यह सिद्धिदा योग बनाती है । जिसमें किए गए कार्य के अधिक शुभ परिणाम माने गए हैं।    

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  11.एकादशी तिथि इस तिथि को ग्यारस भी कहा जाता है।  इस तिथि का खास नाम नंदा है।

तिथि के देवता  विश्वेदेवा इस तिथि के स्वामी हैं। भविष्यपुराण में कहा गया है कि-
एकादश्यां यथोदिष्टा​ विश्वेदेवा प्रभूजितः।
प्रजां  पशुंधनं धान्यं प्रयच्छन्ति महीं तथा।।
अर्थ है कि एकादशी को विश्वेदेवा की पूजा करने से संतान, धन-धान्य और घर की प्राप्ति होती है। सेवकों का सुख मिलता है।   एकादशी व्रत 
श्री हरि का पूजन सांसारिक दुखों से तारने वाला है। एकादशी पर श्री हरि का पूजन करने से मृत्यु के बाद शरीर के नष्ट हो जाने पर आत्मा को भवबंधनों से मुक्ति मिलती है।   तिथि के कार्य इस दिन पुराण कथा का वाचन, भजन-कीर्तन, धर्मकार्य, दान, स्थापना, यज्ञ किए जाना शुभ कहे गए हैं।
शिवार्चन में एकादशी का महत्व
कृष्णपक्ष की एकादशी में शिव वास अशुभ स्थान में होता है। इसलिए इस दिन शिर्वाचन नहीं करें। जबकि शुक्ल पक्ष की एकादशी को शिववास शुभ स्थानों पर रहने से शिवार्चन के लिए उत्तम कही गई है।
किस चीज के सेवन करने की है मनाही एकादशी को चावल व अन्न खाने की मनाही है। गोभी, बैंगन, लहसुन व प्याज का सेवन भी एकादशी को नहीं किया जाना चाहिए।     12. द्वादशी तिथि  इस तिथि को यशोबला कहते है। इस दिन देव पूजन करने से यश और बल दोनों बढ़ते हैं। हिंदी में इसे बारस कहा जाता है।
तिथि के देवता  इस तिथि के स्वामी विष्णु हैं।  इस दिन भगवान विष्णु का पूूूजन मुकदमें में व चुनाव में सफलतादायी कहा गया है।
तिथि के कार्य द्वादशी तिथि में सभी शुभ कार्य किए जा सकते हैं।

किस चीज के सेवन करने की है मनाही इस तिथि को मसूर नहीं खाना चाहिए।   शिवार्चन में द्वादशी तिथि का महत्व
द्वादशी तिथि कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों में शिव वास शुभ होने से शिवार्चन के लिए श्रेष्ठ कही गई है।  

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  13.त्रयोदशी तिथि हिंदी में तेरस कहा जाता है। इस तिथि का खास नाम जयकारा है।
तिथि के देवता 
इस तिथि के देवता कामदेव हैं। इस दिन कामदेव का पूजन करने से विवाह शीघ्र होता है व सुंदर जीवनसंगिनी की प्राप्ति होती है।
तिथि के कार्य  शुक्ल पक्ष की तेरस तिथि शुभ कार्यों मेे मना की गई है। जबकि कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि शुभ होती है।
किस चीज के सेवन करने की है मनाही तेरस तिथि में बैंगन नहीं खाना चाहिए।

शिवार्चन में त्रयोदशी तिथि का महत्व
कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों में शिव वास उत्तम होने से शुभ कहे गए हैं। शिवार्चन शुभ होता है।     14.चतुदर्शी तिथि  इस तिथि का खास नाम करा है। सभी शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए इस तिथि को शास्त्रों में मना किया गया है।

तिथि के देवता 
इस तिथि के स्वामी शिव हैं। शिव का पूजन जीवन में सुखों को बढ़ाता है।
तिथि के कार्य
सभी शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए इस तिथि को शास्त्रों में मना किया गया है। चतुदर्शी तिथि को बाल काटना व शेविंग नहीं करना चाहिए। लेकिन किसी तीर्थ में जाकर मुंडन किया जा सकता है।

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  पूर्णिमा तिथि पूर्णिमा तिथि को पूनम भी कहा जाता है। यह शुक्ल पक्ष की 15वी तिथि है। सौम्या इस तिथि का विशेष नाम है।
तिथि के देवता  इस तिथि के स्वामी चंद्र है। चंद्र पूजन किया जाना चाहिए।
पूर्णिमा तिथि पर भगवान श्री सत्यनारायण का पूजन जीवन के सभी दुखों को दूर करने वाला कहा गया है।   तिथि के कार्य पूर्णिमा तिथि में सभी शुभ कार्य किए जा सकते हैं। 

पूर्णिमा तिथि को ध्यान रखें इन बातों का 
पूर्णिमा तिथि को चांद का बल अधिक बढ़ जाता है। ज्योतिष अनुसार चंद्र मन का कारक है। जिसके कारण यह मन पर गहरा प्रभाव डालता है। मन की बेचैनी बढ़ सकती है। क्रोध, चिड़चिड़ाहट जैसे नकारात्मक संवेग उठ सकते हैं। इसलिए इस दिन किसी से बहस से भी बचना चाहिए।
शिवार्चन में पूर्णिमा तिथि का महत्व  पूर्णिमा तिथि पर शिव का वास श्मशान में रहने से शिवार्चन के लिए ये तिथि मना की गई है।
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  अमावस्या कृष्णपक्ष की 15 वी तिथि अमावस्या कही गई है। अमावस को दर्श, कूहु नाम से भी पुकारा जाता है।   तिथि के देवता  इस तिथि के स्वामी पितर कहे गए हैं। पितरों के लिए होम, तर्पण, दान करना श्रेष्ठ कहा गया है।
तिथि के कार्य
अमावस्या किसी भी नए कार्य की शुरुआत के लिए उत्तम नहीं कही जाती है। विशेषकर व्यवसाय की शुरुआत करना और बैल पशु को खेतों में हल चलाने के लिए जोतना मना किए गए हैं।
अमावस्या तिथि में यदि किसी बच्चे का जन्म हो तो शांति करवायी जाना चाहिए। इस तिथि का दोष उसी प्रकार लगता है जिस प्रकार मूल नक्षत्रों में जन्म होने पर लगता है।

शिवार्चन में अमावस्या तिथि का महत्व 
अमावस्या तिथि को शिव का वास गौरी के समीप होने से शिर्वाचन के लिए श्रेष्ठ कही गई है।
Tithi

A tithi is a lunar day. There are 15 tithis in the waxing cycle of the moon (shukla paksha), and there are 15 tithis in the waning cycle of the Moon ( Krishna paksha). The tithi is based on a relationship between the Sun and the Moon. The first tithi is 12 degrees of the Moon away from the Sun after the new Moon (Amavasya) or full Moon (Purnima). The second tithi is the next 12 degrees of the Moon away from the Sun, 12 to 24 degrees. A particular day is ruled by the tithi at sunrise, but the tithi can change anytime of the day or night as it is not based on the solar day.

Tithis vary in duration from approximately 19 to 26 hours, according to the movement of the Moon. Each tithi has a name, a ruling planet, and can be used in muhurta (picking a proper time).

The names of the Tithis are given below:

1. Pratipada
2. Dwitiya
3. Tritiya
4. Chaturthi
5. Panchami
6. Shashthi
7. Saptami
8. Ashtami (Half Moon)
9. Navami
10. Dashami
11. Ekadasi
12. Dwadashi
13. Trayodashi
14 Chaturdashi
15. Purnima (Full Moon),
Amavasya (New Moon)



Waxing and Waning:

The waxing Moon is called Shukla Paksha, the waning Moon is called Krsna Paksha. Paksha is a half month or half lunar cycle. Each Paksha has 15 Tithis, so Shukla Pratipat is the first day of the waxing Moon and Krsna Pratipat is the first day of the waning Moon.

In the traditional Vedic calendar system the tithis are used as dates, so one’s birthday would be on the same tithi as they were born, the relationship between the Sun (Father) and Moon (Mother) would be the same on one’s birthday as it was the day of birth. In this way, the Gregorian dates have no astrological relevance.

This is a nice visual, so one can connect the meanings with the actual phases of the Moon.

In picking a Muhurta one must understand the difference between Nakshatra and tithi, both relate to the mind. The tithi is ruled by Jala Tattva (the water element/Venus) and shows the state of the mind; whether it is excited, bored, nervous, afraid, agitated or calm. The Nakshatra is ruled by Vayu Tattva (the air element/Saturn) and shows what the mind will experience; whether it is going to be a pleasant or painful experience. The tithi is used to see if an event will be successful. It also shows whether people will cooperate with the project or not.

When looking at the natal chart the tithi is ruled by Jala and connected to Venus. It shows things related to passions and desires. One should see the birth tithi and see how the planet lording that tithi is placed in the natal chart. If it is strong then relationships are smooth. If it is weak, then relationships are rough. The tithi will indicate the attitude towards relationships

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