काल ज्ञान Kaal Gyanam | काल गणना | काल रहस्य
The Vedic Calculation of time (Kala)
वैदिक चक्र (Vedic Kaal Chakra)
युग-महायुग-मन्वंतर-कल्प-परार्ध (04 Yuga Satyuga, Treta yug, Dwapar yug, Kaliyuga, Manvantar, Kalpa, Parardha
सृष्टि की आयु का अनुमान लगाने के लिये चार युगों सत युग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलि युग का एक 'महायुग' माना जाता है ।
युगों की अवधि इस प्रकार है -
सतयुग 17,28,000 वर्ष
त्रेता 12,96,000 वर्ष
द्वापर 8,64,000 वर्ष
कलियुग 4,32,000 वर्ष।
वेदों मे कहा गया है कि प्रत्येक महायुग कि समाप्ति तथा दूसरे महायुग के प्रारम्भ होने के बीच भी एक युग होता है जिसमें सब शून्य होता है।
महायुग = सतयुग+त्रेता+द्वापर+कलियुग
एक महायुग 4 युगों का एक संग्रह है। महा विशाल या बड़ा मतलब है।
4 युगों सत्य युग, त्रेता युग, द्वापर युग, कलयुग हैं। हम हमारे वर्तमान महायुग के कलियुग में हैं।
मनवान्तर = 71 महायुग
71 महायुगों का सम्मिलन एक मनवान्तर होता है
मन्वन्तर एक संस्कॄत शब्द है, जिसका संधि-विच्छेद करने पर = मनु+अन्तर मिलता है। इसका अर्थ है मनु की आयु।
प्रत्येक मन्वन्तर एक विशेष मनु द्वारा रचित एवं शासित होता है, जिन्हें ब्रह्मा द्वारा सॄजित किया जाता है। मनु विश्व की और सभी प्राणियों की उत्पत्ति करते हैं, जो कि उनकी आयु की अवधि तक बनती और चलती रहतीं हैं, (जातियां चलतीं हैं, ना कि उस जाति के प्राणियों की आयु मनु के बराबर होगी). उन मनु की मॄत्यु के उपरांत ब्रह्मा फ़िर एक नये मनु की सृष्टि करते हैं, जो कि फ़िर से सभी सृष्टि करते हैं। इसके साथ साथ विष्णु भी आवश्यकता अनुसार, समय समय पर अवतार लेकर इसकी संरचना और पालन करते हैं। इनके साथ ही एक नये इंद्र और सप्तर्षि भी नियुक्त होते हैं।
71 महायुग मिलकर एक 'मन्वंतर' बनाता है।
महायुग की अवधि 43 लाख 20 हज़ार वर्ष मानी गई है।
14 मन्वंतरों का एक 'कल्प' होता है।
प्रत्येक मन्वंतर में सृष्टि का एक मनु होता है और उसी के नाम पर उस मन्वंतर का नाम पड़ता है।
मानवीय गणना के अनुसार एक मन्वंतर में तीस करोड़ ,अड़सठ लाख , बीस हज़ार वर्ष होते हैं ।
चौदह मन्वंतर 14 Manvantar
पुराणों में चौदह मन्वंतर इस प्रकार हैं-
1. स्वायंभुव ,
2. स्वारोचिष,
3. उत्तम ,
4. तामस,
5. रैवत,
6. चाक्षुष,
7. वैवस्वत,
8. अर्क सावर्णि,
9. दक्ष सावर्णि,
10.ब्रह्म सावर्णि,
11.धर्म सावर्णि,
12.रुद्र सावर्णि,
13.रौच्य,
14.भौत्य।
इनमें से चाक्षुस तक के मन्वंतर बीत चुके हैं ।
वैवस्वत इस समय चल रहा है । संकल्प आदि में इसी का नामोच्चार होता है ।
14 मन्वन्तर के सप्तऋषि:-
Saptarishi for each manvantar
प्रत्येक में मन्वंतरस और सप्तर्षि
[१] स्वयुम - मारिची, अत्री, अंगिरस, पुलाहा, क्रतु, पुलस्त्यऔर वैशिष्ठ।
[२] स्वरोशिष - उर्जा, स्तम्भा, प्राण, नंद, ऋषभ, निश्चरा और अरवारिवत।
[३] औत्तमी - कुकुंडी, कुरुंडी, दलाया, सांखा, प्रवासी, मीता और संमिता (वसिस्थ के पुत्र)
[४] तमसा - ज्योतिर्धम, पृथु, काव्य, चैत्र, अग्नि, वाणक और पीवरा
[५] रैवता - हिरण्योरोमा, वेदासिरी, उर्द्धबहु, वेदाबहु, सुधामन, परजान्य और महामुनी
[६] चकशुष् - सुमधेस, विराजस, हाविष्मत, उत्तमा, मधु, अभिनामं, और सशिन्न।
[७] वैवस्त्वता:- कश्यप, अत्री, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम महर्षि, जमदग्नि और भारद्वाज।
[८] सावर्णि:- दीप्तिमत, ग्सलवा, परशुराम, कृपा, द्रोणि या अश्वत्थामा, व्यास और ऋष्यरिंग।
[९] दक्ष-सावर्णि:- सावन, द्युतिमत, भव्य, वासु, मेधतिथी, ज्योतिष्मान, और सत्य।
[१०] ब्रह्मा-सावर्णि:- हाविष्मां, सुकृति, सत्य, अपममूर्ती, नाभाग, अप्रतिमुजस और सत्यकत्तु।
[११] धर्म-सावर्णि:- निश्चर, अग्नितेजस, वपुष्मां, विष्णु, अरुनी, हाविष्मां और अनाघ।
[१२] रुद्र-सावर्णि:- तपस्वी, सुतापस, तापोमूर्ति, तापोरती, तापधृति, तपोद्युति और तपोधन ।
[१३] रौच्य:- निर्मोह, तत्वदर्शिन, निश्राकाम्पा, निरुत्सुका, धृतिमत, अव्यय और सुतापस।
[१४] भौत्य:- अग्निब्शु, सुची, औकरा, मगध, ग्रिधरा, युकत्ता और अजिता।
चौदह मनु और उनके मन्वन्तर को मिलाकर एक कल्प बनता है। यह ब्रह्मा का एक दिवस होता है।
प्रत्येक कल्प के अन्त में प्रलय आती है, जिसमें ब्रह्माण्ड का संहार होता है और वह विराम की स्थिति में आ जाता है, जिस काल को ब्रह्मा की रात्रि कहते हैं।
इसके उपरांत सृष्टिकर्ता ब्रह्मा फ़िर से सृष्टिरचना आरम्भ करते हैं, जिसके बाद फ़िर संहारकर्ता भगवान शिव इसका संहार करते हैं। और यह सब एक अंतहीन प्रक्रिया या चक्र में होता रहता है।
सृष्टि कि कुल आयु : 4294080000 वर्ष इसे कुल 14 मन्वन्तरों मे बाँटा गया है।
वर्तमान मे 7वें मन्वन्तर अर्थात् वैवस्वत मनु चल रहा है. इस से पूर्व 6 मन्वन्तर जैसे स्वायम्भव, स्वारोचिष, औत्तमि, तामस, रैवत, चाक्षुष बीत चुके है और आगे सावर्णि आदि 7 मन्वन्तर भोगेंगे।
1 मन्वन्तर = 71 चतुर्युगी
1 चतुर्युगी = चार युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग)
चारों युगों की आयु :-- सतयुग = 1728000 वर्ष
त्रेतायुग = 1296000 वर्ष द्वापरयुग = 864000 वर्ष और कलियुग = 432000 वर्ष
1 चतुर्युगी की कुल आयु = 1728000+1296000+864000+432000 = 4320000 वर्ष
अत :1 मन्वन्तर = 71 × 4320000
(एक चतुर्युगी) = 306720000 वर्ष
चूंकि एेसे - एेसे 6 मन्वन्तर बीत चुके है
इसलिए 6 मन्वन्तर की कुल आयु = 6 × 306720000 = 1840320000 वर्ष वर्तमान मे 7 वें मन्वन्तर के भोग मे यह 28वीं चतुर्युगी है. इस 28वीं चतुर्युगी मे 3 युग अर्थात् सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग बीत चुके है और कलियुग का 5115 वां वर्ष चल रहा है |
27 चतुर्युगी की कुल आयु = 27 × 4320000(एक चतुर्युगी) = 116640000 वर्ष और 28वें चतुर्युगी के सतयुग , द्वापर , त्रेतायुग और कलियुग की 5115 वर्ष की कुल आयु = 1728000+1296000+864000+5115 = 3893115 वर्ष इस प्रकार वर्तमान मे 28 वें चतुर्युगी के कलियुग की 5115 वें वर्ष तक की कुल आयु = 27वे चतुर्युगी की कुल आयु + 3893115 = 116640000+3893115 = 120533115 वर्ष इस प्रकार कुल वर्ष जो बीत चुके है = 6 मन्वन्तर की कुल आयु + 7 वें मन्वन्तर के 28वीं चतुर्युगी के कलियुग की 5115 वें वर्ष तक की कुल आयु = 1840320000+120533115 = 1960853115 वर्ष . अत: वर्तमान मे 1960853115 वां वर्ष चल रहा है और बचे हुए 2333226885 वर्ष भोगने है जो इस प्रकार है ... सृष्टि की बची हुई आयु = सृष्टि की कुल आयु - 1960853115 = 2333226885 वर्ष | यह गणना महर्षिदयानन्द रचित ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका के आधार पर है।
श्वेतवाराह कल्प के मनु
मन्वन्तर मनु सप्तर्षि
प्रथम स्वायम्भु मनु मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलह,कृतु, पुलस्त्य और वशिष्ठ
द्वितीय स्वरोचिष मनु उर्जा, स्तम्भ, प्राण, दत्तोली, ऋषभ, निश्चर एवं अर्वरिवत
तृतीय औत्तमी मनु वशिष्ठ के पुत्र: कौकुनिधि, कुरुनधि, दलय, सांख, प्रवाहित, मित एवं सम्मित
चतुर्थ तामस मनु ज्योतिर्धाम, पृथु, काव्य, चैत्र, अग्नि, वानक एवं पिवर
पंचम रैवत मनु हिरण्योर्मा, वेदश्री, ऊर्द्धबाहु, वेदबाहु, सुधामन, पर्जन्य एवं महामुनि
षष्टम चाक्षुष मनु सुमेधस, हविश्मत, उत्तम, अभिनमन, सहिष्णु एवं मधु
सप्तम वैवस्वत मनु कश्य, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, भारद्वाज
भविष्य के मनु और सप्तऋषि
अष्टम सावर्णि मनु दीप्तिमत, ग्सलवा, परशुराम, कृपा, द्रोणि या अश्वत्थामा, व्यास और ऋषिरिंग।
नवम दक्ष सावर्णि मनु सावन, द्युतिमत, भव्य, वासु, मेधतिथी,ज्योतिष्मान, और सत्य।
दशम ब्रह्म सावर्णि मनु हाविष्मां, सुकृति, सत्य, अपममूर्ती, नाभाग, अप्रतिमुजस और सत्यकत्तु।
एकादश धर्म सावर्णि मनु निश्चर, अग्नितेजस,वपुष्मां, विष्णु, अरुनी, हाविष्मां एवं अनाघ।
द्वादश रुद्र सावर्णि मनु तपस्वी, सुतापस, तापोमूर्ति, तापोरती, तापधृति, तपोद्युति और तपोधन
त्रयोदश रौच्य या निर्मोह, तत्वदर्शिन, देव सावर्णि मनु निश्राकाम्पा, निरुत्सुका, धृतिमत, अव्यय और सुतापस।
चतुर्दश भौत्य अग्नि, सुची, औकरा, इन्द्र सावर्णि मनु मग, ग्रिधरा, युकत्ता और अजिता।
युगादि तिथियाँ
(सतयुग,त्रेता,द्वापर और कलयुग की प्रारम्भिक तिथि)
चारों युग के प्रारम्भ होते समय जो मास और तिथि थी ।
उन्हें युगादि तिथियाँ कहते हैं ।
सतयुग की आरंभ तिथि – कार्तिक शुक्ल नवमी।
त्रेता युग की आरम्भ तिथि – बैसाख शुक्ल तृतीया।
द्वापर युग की आरम्भ तिथि – माघ कृष्ण अमावस्या।
कलियुग की आरंभ तिथि – भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी |
इन सभी तिथियों पर किया गया दान-पुण्य-जाप अक्षत और अखंड होता है |
ब्रह्मा की आयु हिन्दू धर्म के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा होते हैं। इनकी आयु इन्हीं के सौ वर्षों के बराबर होती है। इनकी आयु १००० महायुगों के बराबर होती है। विष्णु पुराण के अनुसार काल-गणना विभाग, विष्णु पुराण भाग १, तॄतीय अध्याय के अनुसार: 2 अयन (छः मास अवधि, ऊपर देखें) = 360 मानव वर्ष = एक दिव्य वर्ष 4,000 + 400 + 400 = 4,800 दिव्य वर्ष = 1 कॄत युग 3,000 + 300 + 300 = 3,600 दिव्य वर्ष = 1 त्रेता युग 2,000 + 200 + 200 = 2,400 दिव्य वर्ष = 1 द्वापर युग 1,000 + 100 + 100 = 1,200 दिव्य वर्ष = 1 कलि युग 12,000 दिव्य वर्ष = 4 युग = 1 महायुग (दिव्य युग भी कहते हैं) ब्रह्मा की काल गणना 1000 महायुग= 1 कल्प = ब्रह्मा का 1 दिवस (केवल दिन) (चार खरब बत्तीस अरब मानव वर्ष; और यहू सूर्य की खगोलीय वैज्ञानिक आयु भी है). (दो कल्प ब्रह्मा के एक दिन और रात बनाते हैं) 30 ब्रह्मा के दिन = 1 ब्रह्मा का मास (दो खरब 59 अरब 20 करोड़ मानव वर्ष) 12 ब्रह्मा के मास = 1 ब्रह्मा के वर्ष (31 खरब 10 अरब 4 करोड़ मानव वर्ष) 50 ब्रह्मा के वर्ष = 1 परार्ध 2 परार्ध= 100 ब्रह्मा के वर्ष= 1 महाकल्प (ब्रह्मा का जीवन काल)(31 शंख 10 खरब 40अरब मानव वर्ष) ब्रह्मा का एक दिवस 10,000 भागों में बंटा होता है, जिसे चरण कहते हैं: चारों युग 4 चरण (1,728,000 सौर वर्ष) सत युग 3 चरण (1,296,000 सौर वर्ष) त्रेता युग 2 चरण (864,000 सौर वर्ष) द्वापर युग 1 चरण (432,000 सौर वर्ष) कलि युग [1] यह चक्र ऐसे दोहराता रहता है, कि ब्रह्मा के एक दिवस में 1000 महायुग हो जाते हैं एक उपरोक्त युगों का चक्र = एक महायुग (43 लाख 20 हजार सौर वर्ष) श्रीमद्भग्वदगीता के अनुसार "सहस्र-युग अहर-यद ब्रह्मणो विदुः", अर्थात ब्रह्मा का एक दिवस = 1000 महायुग. इसके अनुसार ब्रह्मा का एक दिवस = 4 खरब 32 अरब सौर वर्ष. इसी प्रकार इतनी ही अवधि ब्रह्मा की रात्रि की भी है। एक मन्वन्तर में 71 महायुग (306,720,000 सौर वर्ष) होते हैं। प्रत्येक मन्वन्तर के शासक एक मनु होते हैं। प्रत्येक मन्वन्तर के बाद, एक संधि-काल होता है, जो कि कॄतयुग के बराबर का होता है (1,728,000 = 4 चरण) (इस संधि-काल में प्रलय होने से पूर्ण पॄथ्वी जलमग्न हो जाती है।) एक कल्प में 1,728,000 सौर वर्ष होते हैं, जिसे आदि संधि कहते हैं, जिसके बाद 14 मन्वन्तर और संधि काल आते हैं ब्रह्मा का एक दिन बराबर है: (14 गुणा 71 महायुग) + (15 x 4 चरण) = 994 महायुग + (60 चरण) = 994 महायुग + (6 x 10) चरण = 994 महायुग + 6 महायुग = 1,000 महायुग
सृष्टि उत्पन्न होने के पश्चात् जब तक स्थिर रहती है, उस समय को शास्त्रीय परिभाषा में एक कल्प कहते हैं ।
इसी की दूसरी संज्ञा सहस्रमहायुग भी है । यह कल्प चार अरब बत्तीस करोड़ वर्षों का होता है ।
इसमें वेद का प्रमाण है – शतं तेऽयुतं हायनान् द्वे युगे त्रीणि चत्वारि कृण्मः । विश्वेदेवास्तेऽनुमन्यन्तामहृणीयमानाः ॥
(अथर्ववेद काण्ड ८, अनु० १, मं० २१॥
इसका अर्थ यह है कि दस हजार सैकड़ा अर्थात् दस लाख तक शून्य देने पर अनुक्रम पूर्वक दो, तीन और चार ये अंक रखने से सृष्टि की आयु का ब्यौरा वा हिसाब प्राप्त होता है । वेदों के साक्षात् कृतवर्मा ऋषियों ने सृष्टि विज्ञान को भली भांति समझा और लोक कल्याणार्थ इसका प्रचलन किया ।
सूर्य सिद्धान्त (जो गणित ज्योतिष का सच्चा और सुप्रसिद्ध ग्रन्थ है, जिसके रचयिता मय नामक महाविद्वान् थे ) में लिखा है –
अल्पावशिष्टे तु कृतयुगे मयो नाम महासुरः अर्थात् कृतयुग (सतयुग) जब कुछ बचा हुआ था, तब मय नामक विद्वान् ने यह ग्रन्थ बनाया ।
आज से इक्कीस लाख, पैंसठ सहस्र अड़सठ (२१, ६५,०६८) वर्ष पुराना यह ग्रन्थ है । क्योंकि वर्तमान कलियुग के पांच सहस्र अड़सठ (५०६८) वर्ष बीत चुके ।
इस से पूर्व आठ लाख चौंसठ सहस्र (८,६४,०००) वर्ष द्वापर के, बारह लाख छियानवें सहस्र (१२,९६,०००) वर्ष त्रेता युग के बीत चुके हैं ।
इन सबको मिलाकर २१६५०६८ वर्ष पुराना तो कम से कम यह सूर्य सिद्धान्त नामक ग्रन्थ है ।
कुछ समय इस में सतयुग के अन्त का भी मिलाया जा सकता है । लाखों वर्ष पुराने इस ज्योतिष के ग्रन्थ में भी सृष्टि की आयु वेद के अनुसार ही लिखी है –
युगानां सप्ततिः सैका मन्वन्तरमिहोच्यते । कृताब्दसंख्यस्तस्यान्ते सन्धिः प्रोक्तो जलप्लवः ॥ ससन्धयस्ते मनवः कल्पे ज्ञेयाश्चतुर्दश । कृतप्रमाणः कल्पादौ सन्धिः पञ्चदशः स्मृतः ॥
अर्थात् इकहत्तर (७१) चतुर्युगियों को एक मन्वन्तर कहते हैं । एक कल्प में सन्धिसहित ऐसे-ऐसे चौदह मन्वन्तर होते हैं । कल्प के प्रारम्भ में तथा प्रत्येक मन्वन्तर के अन्त में जो सन्धि हुवा करती है वह भी एक सतयुग के वर्षों के समान अर्थात् सत्रह लाख अठाईस सहस्र (१७,२८,०००) वर्षों की होती है । इस प्रकार एक कल्प में पन्द्रह सन्धियां होती हैं । इसकी गणना निम्न प्रकार से हुई – चतुर्युगी अथवा महायुग नामयुग युग के वर्षों की निश्चित संख्या’ १ सतयुग (कृतयुग) १७,२८००० वर्ष २ त्रेतायुग १२,९६,००० वर्ष ३ द्वापर युग ८,६४००० वर्ष ४ कलियुग ४,३२००० वर्ष कुल योग ४३,२०,००० वर्ष तेतालीस लाख बीस सहस्र वर्षों की एक चतुर्युगी होती है जिसका नाम महायुग भी है । यहां यह स्मरण रखना चाहिये कि कलियुग से दुगुना द्वापर, तीन गुणा त्रेता और चार गुणा सतयुग (कृतयुग) होता है । उपर्युक्त एक सहस्र महायुग का एक कल्प होता है जो कि सृष्टि की आयु है । इस का वर्णन सूर्य सिद्धान्त में निम्न प्रकार से है –
इत्थं युगसहस्रेण भूतसंहारकारकः । कल्पं ब्राह्ममहः प्रोक्तं शर्वरी तस्य तावती ॥
वह जगद्विधाता परमेश्वर एक सहस्र महायुग तक इस सृष्टि को स्थित रखता है । इसी काल को एक ब्राह्म दिन कहते हैं । इसी का नाम एक कल्प है । जितना काल एक ब्राह्म दिन का होता है उतना ही ब्राह्मरात्रि अर्थात् प्रलयकाल होता है । इस गणना को मन्वन्तरों के अनुसार इस प्रकार गिनते हैं । तेतालीस लाख बीस सहस्र वर्षों का एक महायुग अथवा एक चतुर्युगी । इन इकहत्तर चतुर्युगियों का नाम एक मन्वन्तर । इसका काल तीस करोड़ सड़सठ लाख बीस सहस्र (३०,६७, २०,०००) वर्ष हुवा । यह काल सन्धि रहित मन्वन्तरों का हुवा । चौदह मन्वन्तरों के अन्त की चौदह सन्धियां तथा सर्गादि की एक सन्धि ये कुल मिलाकर पन्द्रह सन्धियां हुईं । एक सन्धि का काल एक कृतयुग जितना अर्थात् सतरह लाख, अठाईस हजार वर्ष (१७, २८,०००) होता है। इस प्रकार पन्द्रह सन्धियों का काल दो करोड़, उनसठ लाख और बीस सहस्र वर्ष हुवा । इस को चौदह मन्वन्तरों के पूर्वोक्त ४२९४०८०००० काल में जोड़ने से सृष्टि की आयु ४,३२,००००००० वर्ष ठीक हो जाती है । महर्षि व्यास जी ने महाभारत में इस विषय में उल्लेख किया है –
सहस्रयुगपर्यन्तमहर्यद्ब्रह्मणो विदुः । रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जनाः ॥
(गीता अ० ८, श्लोक १७) एक हजार चतुर्युगियों तक एक ब्राह्म दिवस होता है तथा उतनी ही बड़ी उसकी ब्राह्मरात्रि भी होती है । यहां सृष्टि और प्रलय की आयु का वर्णन दूसरे प्रकार से कर दिया है|
हिन्दू ब्रह्माण्डीय समय चक्र सूर्य सिद्धांत के पहले अध्याय के श्लोक 11–23 में आते हैं।[1]:
(श्लोक 11) वह जो कि श्वास (प्राण) से आरम्भ होता है, यथार्थ कहलाता है; और वह जो त्रुटि से आरम्भ होता है, अवास्तविक कहलाता है। छः श्वास से एक विनाड़ी बनती है। साठ श्वासों से एक नाड़ी बनती है।
(12) और साठ नाड़ियों से एक दिवस (दिन और रात्रि) बनते हैं। तीस दिवसों से एक मास (महीना) बनता है। एक नागरिक (सावन) मास सूर्योदयों की संख्याओं के बराबर होता है।
(13) एक चंद्र मास, उतनी चंद्र तिथियों से बनता है। एक सौर मास सूर्य के राशि में प्रवेश से निश्चित होता है। बारह मास एक वर्ष बनाते हैं। एक वर्ष को देवताओं का एक दिवस कहते हैं।
(14) देवताओं और दैत्यों के दिन और रात्रि पारस्परिक उलटे होते हैं। उनके छः गुणा साठ देवताओं के (दिव्य) वर्ष होते हैं। ऐसे ही दैत्यों के भी होते हैं।
(15) बारह सहस्र (हज़ार) दिव्य वर्षों को एक चतुर्युग कहते हैं। यह तैंतालीस लाख बीस हज़ार सौर वर्षों का होता है।
(16) चतुर्युगी की उषा और संध्या काल होते हैं। कॄतयुग या सतयुग और अन्य युगों का अन्तर, जैसे मापा जाता है, वह इस प्रकार है, जो कि चरणों में होता है:
(17) एक चतुर्युगी का दशांश को क्रमशः चार, तीन, दो और एक से गुणा करने पर कॄतयुग और अन्य युगों की अवधि मिलती है। इन सभी का छठा भाग इनकी उषा और संध्या होता है।
(18) इकहत्तर चतुर्युगी एक मन्वन्तर या एक मनु की आयु होते हैं। इसके अन्त पर संध्या होती है, जिसकी अवधि एक सतयुग के बराबर होती है और यह प्रलय होती है।
(19) एक कल्प में चौदह मन्वन्तर होते हैं, अपनी संध्याओं के साथ; प्रत्येक कल्प के आरम्भ में पंद्रहवीं संध्या/उषा होती है। यह भी सतयुग के बराबर ही होती है।
(20) एक कल्प में, एक हज़ार चतुर्युगी होते हैं और फ़िर एक प्रलय होती है। यह ब्रह्मा का एक दिन होता है। इसके बाद इतनी ही लम्बी रात्रि भी होती है।
(21) इस दिन और रात्रि के आकलन से उनकी आयु एक सौ वर्ष होती है; उनकी आधी आयु निकल चुकी है और शेष में से यह प्रथम कल्प है।
(22) इस कल्प में, छः मनु अपनी संध्याओं समेत निकल चुके, अब सातवें मनु (वैवस्वत: विवस्वान (सूर्य) के पुत्र) की सत्ताईसवीं चतुर्युगी बीत चुकी है।
(23) वर्तमान में, अट्ठाईसवीं चतुर्युगी का द्वापर युग बीत चुका है तथा कलियुग का ५११९वां वर्ष प्रगतिशील है। कलियुग की कुल अवधि ४,३२,००० वर्ष है।
महायुग हिन्दू समय मापन की एक वृहत इकाई है। एक महायुग चार युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग) को मिलाकर बनता है। इसका परिमाण १२००० मानव वर्ष होता है।
देवताओं की काल गणना
360 मानव दिवस = एक दिव्य दिवस
30 दिव्य दिवस = 1 दिव्य मास
12 दिव्य मास = 1 दिव्य वर्ष
दिव्य जीवन काल = 100 दिव्य वर्ष = 36000 मानव वर्ष
विष्णु पुराण के अनुसार काल-गणना विभाग, विष्णु पुराण भाग १, तॄतीय अध्याय के अनुसार:
2 अयन (छः मास अवधि, ऊपर देखें) = 360 मानव वर्ष = एक दिव्य वर्ष
4,000 + 400 + 400 = 4,800 दिव्य वर्ष = 1 कॄत युग
3,000 + 300 + 300 = 3,600 दिव्य वर्ष = 1 त्रेता युग
2,000 + 200 + 200 = 2,400 दिव्य वर्ष = 1 द्वापर युग
1,000 + 100 + 100 = 1,200 दिव्य वर्ष = 1 कलि युग
12,000 दिव्य वर्ष = 4 युग = 1 महायुग (दिव्य युग भी कहते हैं)
लोकानामन्तकृत्कालः कालोन्यः कल्नात्मकः |
स द्विधा स्थूल सुक्ष्मत्वान्मूर्त श्चामूर्त उच्यते ||
अर्थात – एक प्रकार का काल संसार का नाश करता है और दूसरे प्रकार का कलानात्मक है अर्थात जाना जा सकता है | यह भी दो प्रकार का होता है (१) स्थूल और (२) सूक्ष्म | स्थूल नापा जा सकता है इसलिए मूर्त कहलाता है और जिसे नापा नहीं जा सकता इसलिए अमूर्त कहलाता है |
ज्योतिष में प्रयुक्त काल (समय) के विभिन्न प्रकार :
प्राण (असुकाल) – स्वस्थ्य मनुष्य सुखासन में बैठकर जितनी देर में श्वास लेता व छोड़ता है, उसे प्राण कहते हैं |
६ प्राण = १ पल (१ विनाड़ी)
६० पल = १ घडी (१ नाडी)
६० घडी = १ नक्षत्र अहोरात्र (१ दिन रात)
अतः १ दिन रात = ६०*६०*६ प्राण = २१६०० प्राण
इसे यदि आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो
१ दिन रात = २४ घंटे = २४ x ६० x ६० = ८६४०० सेकण्ड्स
अतः १ प्राण = 86400/२१६०० = ४ सेकण्ड्स
अतः एक स्वस्थ्य मनुष्य को सुखासन में बैठकर श्वास लेने और छोड़ने में ४ सेकण्ड्स लगते हैं |
प्राचीन काल में पल का प्रयोग तोलने की इकाई के रूप में भी किया जाता था |
१ पल = ४ तौला (जिस समय में एक विशेष प्रकार के छिद्र द्वारा घटिका यंत्र में चार तौले जल चढ़ता है उसे पल कहते हैं | )
जितने समय में मनुष्य की पलक गिरती है उसे निमेष कहते हैं |
१८ निमेष = १ काष्ठा
३० काष्ठा = १ कला = ६० विकला
३० कला = १ घटिका
२ घटिका = ६० कला = १ मुहूर्त
३० मुहूर्त = १ दिन
इस प्रकार १ नक्षत्र दिन = ३० x २ x ३० x ३० x 18 = ९७२००० निमेष
उपरोक्त गणना सूर्य सिद्धांत से ली गयी है किन्तु स्कन्द पुराण में इसकी संरचना कुछ भिन्न मिलती है | उसके अनुसार
१५ निमेष = १ काष्ठा
३० काष्ठा = १ कला
३० कला = १ मुहूर्त
३० मुहूर्त = १ दिन रात
इसके अनुसार
१ दिन रात = ३० x ३० x ३० x १५ = ४०५०० निमेष
यहाँ हम सूर्य सिद्धांत को ज्यादा प्रमाणित मानते हैं क्योंकि वो विशुद्ध ज्योतिष ग्रन्थ है और उसकी गणना भी ज्योतिषी द्वारा ही की गयी है जबकि स्कन्द पुराण में मात्र अनुवाद मिलता है जो गलत भी हो सकता है क्योंकि कोई आवश्यक नहीं की अनुवादक ज्योतिषी भी हो |
अब
१ दिन = २१६०० प्राण = ८६४०० सेकण्ड्स = ९७२००० निमेष
१ प्राण = ९७२०००/२१६०० = ४५ निमेष
१ सेकंड = ९७२०००/८६४०० = ११.२५ निमेष
सौर मास, चन्द्र मास, नाक्षत्रमास और सावन मास – ये ही मास के चार भेद हैं । सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है । सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय ही सौरमास है । (सूर्य मंडल का केंद्र जिस समय एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, उस समय दूसरी राशि की संक्रांति होती है | एक संक्रांति से दूसरी संक्राति के समय को सौर मास कहते हैं | १२ राशियों के हिसाब से १२ ही सौर मास होते हैं | ) यह मास प्रायः तीस-एकतीस दिन का होता है । कभी कभी उनतीस और बत्तीस दिन का भी होता है । चन्द्रमा की ह्र्वास वृद्धि वाले दो पक्षों का जो एक मास होता है, वही चन्द्र मास है । यह दो प्रकार का होता है – शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होकर अमावस्या को पूर्ण होने वाला ‘जमांत’ मास मुख्य चंद्रमास है । कृष्ण प्रतिपदा से पूर्णिमा तक पूरा होने वाला गौण चंद्रमास है । यह तिथि की ह्र्वास वृद्धि के अनुसार २९, २८, २७ एवं ३० दिनों का भी हो जाता है ।
सूर्य जब पृथ्वी के पास होता है (जनवरी के प्रारंभ में ) तब उसकी कोणीय गति तीव्र होती है और जब पृथ्वी से दूर होता है (जुलाई के आरम्भ में) तब इसकी कोणीय गति मंद होती है | जब कोणीय गति तीव्र होती है तब वह एक राशि शीघ्र पार कर लेता है और सौर मास छोटा होता है, इसके विपरीत जब कोणीय गति मंद होती है तब सौर मास बड़ा होता है |
सौर मास का औसत मान = ३०.४४ औसत सौर दिन
जितने दिनों में चंद्रमा अश्वनी से लेकर रेवती के नक्षत्रों में विचरण करता है, वह काल नक्षत्रमास कहलाता है । यह लगभग २७ दिनों का होता है । सावन मास तीस दिनों का होता है । यह किसी भी तिथि से प्रारंभ होकर तीसवें दिन समाप्त हो जाता है । प्रायः व्यापार और व्यवहार आदि में इसका उपयोग होता है । इसके भी सौर और चन्द्र ये दो भेद हैं । सौर सावन मास सौर मास की किसी भी तिथि को प्रारंभ होकर तीसवें दिन पूर्ण होता है । चन्द्र सावन मास, चंद्रमा की किसी भी तिथि से प्रारंभ होकर उसके तीसवें दिन समाप्त माना जाता है ।
नोट १ : यहाँ पर नक्षत्र एवं राशियों को संक्षेप में लिखा गया है, इनके बारे में विस्तृत चर्चा खगोल अध्ययन में की जाएगी जहाँ पर इनके बारे में सम्पूर्ण व्याख्या दी जाएगी
तिथि – चन्द्रमा आकाश में चक्कर लगाता हुआ जिस समय सूर्य के बहुत पास पहुच जाता है उस समय अमावस्या होती है | ( जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बिलकुल मध्य में स्थित होता है तब वह सूर्य के निकटतम होता है |) अमावस्या के बाद चंद्रमा सूर्य से आगे पूर्व की ओर बढ़ता जाता है और जब १२० अंश आगे हो जाता है तब पहली तिथि (प्रथमा) बीतती है | १२० से २४० अंश का जब अंतर रहता है तब दूज रहती है | २४० से २६० तक जब चंद्रमा सूर्य से आगे रहता है तब तीज रहती है | इसी प्रकार जब अंतर १६८०-१८O० तक होता है तब पूर्णिमा होती है, १८O०-१९२० तक जब चंद्रमा आगे रहता है तब १६ वी तिथि (प्रतिपदा) होती है | १९२०- २O४० तक दूज होती है इत्यादि | पूर्णिमा के बाद चंद्रमा सूर्यास्त से प्रतिदिन कोई २ घडी (४८ मिनट) पीछे निकालता है |
चन्द्र मासों के नाम इस प्रकार हैं – चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष या मृगशिरा, पौष, माघ और फाल्गुन |
देवताओं का एक दिन – मनुष्यों के एक वर्ष को देवताओं के एक दिन माना गया है । उत्तरायण तो उनका दिन है और दक्षिणायन रात्रि । पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव पर देवताओं के रहने का स्थान तथा दक्षिणी ध्रुव पर राक्षसों के रहने का स्थान बताया गया है | साल में २ बार दिन और रात सामान होती है | ६ महीने तक सूर्य विषुवत के उत्तर और ६ महीने तक दक्षिण रहता है | पहली छमाही में उत्तरी गोल में दिन बड़ा और रात छोटी तथा दक्षिण गोल में दिन छोटा और रात बड़ी होती है | दूसरी छमाही में ठीक इसका उल्टा होता है | परन्तु जब सूर्य विषुवत वृत्त के उत्तर रहता है तब वह उत्तरी ध्रुव (सुमेरु पर्वत पर) ६ महीने तक सदा दिखाई देता है और दक्षिणी ध्रुव पर इस समय में नहीं दिखाई पड़ता | इसलिए इस छमाही को देवताओ का दिन तथा राक्षसों की रात कहते हैं | जब सूर्य ६ महीने तक विषुवत वृत्त के दक्षिण रहता है तब उत्तरी ध्रुव पर देवताओं को नहीं दिख पड़ता और राक्षसों को ६ महीने तक दक्षिणी ध्रुव पर बराबर दिखाई पड़ता है | इसलिए हमारे १२ महीने देवताओं अथवा राक्षसों के एक अहोरात्र के समान होते हैं |
देवताओं का १ दिन (दिव्य दिन) = १ सौर वर्ष
देवताओं का १ दिन (दिव्य दिन) = १ सौर वर्ष
दिव्य वर्ष – जैसे ३६० सावन दिनों से एक सावन वर्ष की कल्पना की गयी है उसी प्रकार ३६० दिव्य दिन का एक दिव्य वर्ष माना गया है | यानी ३६० सौर वर्षों का देवताओं का एक वर्ष हुआ | अब आगे बढ़ते हैं |
१२०० दिव्य वर्ष = १ चतुर्युग = १२०० x ३६० = ४३२००० सौर वर्ष
चतुर्युग में सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग होते हैं | चतुर्युग के दसवें भाग का चार गुना सतयुग (४०%), तीन गुना (३०%) त्रेतायुग, दोगुना (२०%) द्वापर युग और एक गुना (१०%) कलियुग होता है |
अर्थात १ चतुर्युग (महायुग) = ४३२०००० सौर वर्ष
१ कलियुग = ४३२००० सौर वर्ष
१ द्वापर युग = ८६४६०० सौर वर्ष
१ त्रेता युग = १२९६००० सौर वर्ष
१ सतयुग = १७२८००० सौर वर्ष
जैसे एक अहोरात्र में प्रातः और सांय दो संध्या होती हैं उसी प्रकार प्रत्येक युग के आदि में जो संध्या होती है उसे आदि संध्या और अंत में जो संध्या आती है उसे संध्यांश कहते हैं | प्रत्येक युग की दोनों संध्याएँ उसके छठे भाग के बराबर होती हैं इसलिए एक संध्या (संधि काल ) बारहवें भाग के सामान हुई | इसका तात्पर्य यह हुआ कि
कलियुग की आदि व अंत संध्या = ३६०० सौर वर्ष वर्ष
द्वापर की आदि व् अंत संध्या = ७२००० सौर वर्ष
त्रेता युग की आदि व अंत संध्या = १०८००० सौर वर्ष
सतयुग की आदि व अंत संध्या = १४४००० सौर वर्ष
अब और आगे बढ़ते हैं |
७१ चतुर्युगों का एक मन्वंतर होता है, जिसके अंत में सतयुग के समान संध्या होती है | इसी संध्या में जलप्लव् होता है | संधि सहित १४ मन्वन्तरों का एक कल्प होता है, जिसके आदि में भी सतयुग के समान एक संध्या होती है, इसलिए एक कल्प में १४ मन्वंतर और १५ सतयुग के सामान संध्या हुई |
अर्थात १ चतुर्युग में २ संध्या
१ मन्वंतर = ७१ x ४३२०००० = ३०६७२०००० सौर वर्ष
मन्वंतर के अंत की संध्या = सतयुग की अवधि = १७२८००० सौर वर्ष
= १४ x ७१ चतुर्युग + १५ सतयुग
= ९९४ चतुर्युग + (१५ x ४)/१० चतुर्युग (चतुर्युग का ४०%)
= १००० चतुर्युग = १००० x १२००० = १२०००००० दिव्य वर्ष
= १००० x ४३२०००० = ४३२००००००० सौर वर्ष
ऐसा मनुस्मृति में भी मिलता है किन्तु आर्यभट की आर्यभटीय के अनुसार
१ कल्प = १४ मनु (मन्वंतर)
१ मनु = ७२ चतुर्युग
और आर्यभट्ट के अनुसार
१४ x ७२ = १००८ चतुर्युग = १ कल्प
जबकि सूर्य सिद्धांत से १००० चतुर्युग = १ कल्प
जो की ब्रह्मा के १ दिन के बराबर है | इतने ही समय की ब्रह्मा की एक रात भी होती है | इस समय ब्रह्मा की आधी आयु बीत चुकी है, शेष आधी आयु का यह पहला कल्प है | इस कल्प के संध्या सहित ६ मनु बीत गए हैं और सातवें मनु वैवस्वत के २७ महायुग बीत गए हैं तथा अट्ठाईसवें महायुग का भी सतयुग बीत चूका है |
इस समय २०१३ में कलियुग के ५०४७ वर्ष बीते हैं |
महायुग से सतयुग के अंत तक का समय = १९७०७८४००० सौर वर्ष
यदि कल्प के आरम्भ से अब तक का समय जानना हो तो ऊपर सतयुग के अंत तक के सौर वर्षों में त्रेता के १२८६००० सौरवर्ष, द्वापर के ८६४००० सौर वर्ष तथा कलियुग के ५०४७ वर्ष और जोड़ देने चाहिए |
बीते हुए ६ मन्वन्तरों के नाम हैं – (१) स्वायम्भुव (२) स्वारोचिष (३) औत्तमी (४) तामस (५) रैवत (६) चाक्षुष | वर्तमान मन्वंतर का नाम वैवस्वत है | वर्तमान कल्प को श्वेत कल्प कहते हैं, इसीलिए हमारे संकल्प में कहते हैं –
प्रवर्तमानस्याद्य ब्राह्मणों द्वितीय प्रहरार्धे श्री श्वेतवराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथम चरणे ……………बौद्धावतारे वर्तमानेस्मिन वर्तमान संवत्सरे अमुकनाम वत्सरे अमुकायने अमुक ऋतु अमुकमासे अमुक पक्षे अमुक तिथौ अमुकवासरे अमुकनक्षत्रे संयुक्त चन्द्रे …. ….. तिथौ ………
एक सौर वर्ष में १२ सौर मास तथा ३६५.२५८५ मध्यम सावन दिन होते हैं परन्तु १२ चंद्रमास ३५४.३६७०५ मध्यम सावन दिन का होता है, इसलिए १२ चंद्रमासों का एक वर्ष सौर वर्ष से १०.८९१७० मध्यम सावन दिन छोटा होता है | इसलिए कोई तैंतीस महीने में ये अंतर एक चंद्रमास के समान हो जाता है | जिस सौर वर्ष में यह अंतर १ चंद्रमास के समान हो जाता है उस सौर वर्ष में १३ चंद्रमास होते हैं | उस मास को अर्धमास या मलमास कहा जाता है | यदि ऐसा न किया जाये तो चंद्रमास के अनुसार मनाये जाने वाले त्यौहार पर्व इत्यादि भिन्न भिन्न ऋतुओं में मुसलमानी त्यौहारों की तरह भिन्न भिन्न ऋतुओं में पड़ने लगे |
किस घंटे (होरा) का स्वामी कौन ग्रह है यह जानने के लिए वह क्रम समझ लेना चाहिए जिस क्रम से घंटे के स्वामी बदलते हैं | शनि ग्रह पृथ्वी से सब ग्रहों से दूर है, उस से निकटवर्ती बृहस्पति है, बृहस्पति से निकट मंगल, मंगल से निकट सूर्य, सूर्य से निकट शुक्र, शुक्र से निकट बुध और बुध से निकट चंद्रमा है | इसी क्रम से होरा के स्वामी बदलते हैं | यदि पहले घंटे का स्वामी शनि है तो दूसरे घंटे का स्वामी बृहस्पति, तीसरे घंटे का स्वामी मंगल, चौथे का सूर्य, पांचवे का शुक्र, छठे का बुध, सातवें का चन्द्रमा, आठवें का फिर शनि इत्यादि क्रमानुसार हैं | परन्तु जिस दिन दिन पहले घंटे का स्वामी शनि होता है उस दिन का नाम शनिवार होना चाहिए | इसलिए शनिवार के दूसरे घंटे का स्वामी बृहस्पति, तीसरे घंटे का स्वामी मंगल इत्यादि हैं | इस प्रकार सात सात घंटे के बाद स्वामियों का वही क्रम फिर आरम्भ होता है | इसलिए शनिवार के २२वें घंटे का स्वामी शनि, २३वें का बृहस्पति, २४वें का मंगल और २४वें के बाद वाले घंटे का स्वामी सूर्य होना चाहिए | परन्तु यहाँ २५वां घंटा अगले दिन का पहला घंटा है जिसका स्वामी सूर्य है इसलिए शनिवार के बाद रविवार आता है | इसी प्रकार रविवार के २५वें घंटे यानी अगले दिन के पहले घंटे का स्वामी चन्द्रमा होगा इसलिए उसे चंद्रवार या सोमवार कहते हैं | इसी प्रकार और वारों का नामकरण हुआ है |
इससे यह स्पष्ट होता है कि शनिवार के बाद रविवार और रविवार के बाद सोमवार और सोमवार के बाद मंगलवार क्यों होता है | शनि से रवि चौथा ग्रह है और रवि से चौथा ग्रह है और रवि से चंद्रमा चौथा ग्रह है अतः प्रत्येक दिन का स्वामी उसके पिछले दिन के स्वामी से चौथा ग्रह है |
मैटोनिक चक्र – मिटन ने ४३३ ई.पू. में देखा कि २३५ चंद्रमास और १९ सौर वर्ष अर्थात १९x१२ = २२८ सौर मासों में समय लगभग समान होता है, इनमें लगभग १ घंटे का अंतर होता है |
१९ सौर वर्ष = १९ x ३६५.२५ = ६९३९.७५ दिवस
२३५ चन्द्र मास = २३५x२९.५३१ = ६९३९.७८५ दिवस
इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रत्येक १९ वर्ष में २२८ सौर मास और लगभग २३५ चन्द्र मास होते हैं अर्थात ७ चन्द्र मास अधिक होते हैं | चन्द्र और सौर वर्षों का अगर समन्वय नहीं करे तब लगभग ३२.५ सौर वर्षों में, ३३.५ चन्द्र वर्ष हो जायेंगे | अगर केवल चन्द्र वर्ष से ही चलें तब अगर दीपावली नवम्बर में आती है तब १९ वर्षों में यह ७ मास पहले अर्थात अप्रेल में आ जाएगी और इन धार्मिक त्यौहारों का ऋतुओं से कोई सम्बन्ध नहीं रह जायेगा | इसलिये भारतीय पंचांग में इसका ख्याल रखा जाता है |
क्षयमास – मलमास या अधिमास की भांति क्षयमास भी होता है | सूर्य की कोणीय गति नवम्बर से फरवरी तक तीव्र हो जाती है और इसकी इसकी संक्रांतियों के मध्य समय का अंतर कम हो जाता है | इन मासों में कभी कभी जब संक्रांति से कुछ मिनट पहले ही अमावस्या का अंत हुआ हो, तब मास का क्षय हो जाता है |
जिस चंद्रमास (एक अमावस्या के अंत से दूसरी अमावस्या के अंत तक) में दो संक्रांतियों आ जाएँ, उसमें एक मास का क्षय हो जाता है | यह कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष और माघ इन चार मास में ही होता है अर्थात नवम्बर से फरवरी तक ही हो सकता है |
अब संक्षिप्त में राशियों और नक्षत्रों के बारे में चर्चा करते हैं ताकि आगे जब ग्रहों और नक्षत्रों के बारे में कोई सन्दर्भ आये तो हमें उसमें कोई उलझन न हो |
राशिचक्र – सूर्य जिस मार्ग से चलता हुआ आकाश में प्रतीत होता है उसे कान्तिवृत्त कहते हैं | अगर इस कान्तिवृत्त को बारह भागों में बांटा जाये तो हर एक भाग को राशि कहते हैं अतः ऐसा वृत्त जिस पर नौ ग्रह घूमते हुए प्रतीत होते हैं (ज्योतिष में सूर्य को भी ग्रह ही माना गया है ) राशीचक्र कहलाता है | इसे हम ऐसे भी कह सकते हैं की पृथ्वी के पूरे गोल परिपथ को बारह भागों में विभाजित कर उन भागों में पड़ने वाले आकाशीय पिंडों के प्रभाव के आधार पर पृथ्वी के मार्ग में बारह किमी के पत्थर काल्पनिक रूप से माने गए हैं |
अब हम जानते हैं की एक वृत्त ३६० अंश में बांटा जाता है | इसलिए एक राशी जो राशिचक्र का बारहवां भाग है, ३० अंशो की हुई | यानी एक राशि ३० अंशों की होती है | राशियों का नाम उनकी अंशों सहित इस प्रकार है |
कला | राशी |
०-३० | मेष |
३०-६० | वृष |
६०-९० | मिथुन |
९०-१२० | कर्क |
१२०-१५० | सिंह |
१५०-१८० | कन्या |
१८०-२१० | तुला |
२१०-२४० | वृश्चिक |
२४०-२७० | धनु |
२७०-३०० | मकर |
३००-३३० | कुम्भ |
३३०-३६० | मीन |
नक्षत्र – आकाश में तारों के समुदाय को नक्षत्र कहते हैं | आकाश मंडल में जो असंख्य तारिकाओं से कही अश्व, शकट, सर्प, हाथ आदि के आकार बन जाते हैं, वे ही नक्षत्र कहलाते हैं | (जिस प्रकार पृथ्वी पर एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी मीलों में या कोसों में नापी जाती है उसी प्रकार आकाश मंडल की दूरी नक्षत्रों में नापी जाती है |) राशि चक्र ( वह वृत्त जिस पर ९ ग्रह घूमते हुए प्रतीत होते हैं | ) को २७ भागों में विभाजित करने पर २७ नक्षत्र बनते हैं |
पृथ्वी के कुल ३६० अंश के परिपथ को नक्षत्रों के लिए २७ भागों में बांटा गया है ( जैसे राशियों के लिए १२ भागों में बांटा गया है |) अतः प्रत्येक नक्षत्र ३६०/२७ = १३ मिनट २० सेकंड = ८०० अंश का होगा | इसके उपरान्त भी नक्षत्रों को चार चरणों में बांटा गया है | प्रत्येक चरण १३ मिनट २० सेकंड/ ४ = ३ मिनट २० सेकंड = २०० अंश का होगा | क्योंकि एक राशि ३० अंश की होती है अतः हम कह सकते हैं कि सवा दो नक्षत्र अर्थात ९ चरण अर्थात ३० अंश की एक राशि होती है |
पृथ्वी के कुल ३६० अंश के परिपथ को नक्षत्रों के लिए २७ भागों में बांटा गया है ( जैसे राशियों के लिए १२ भागों में बांटा गया है |) अतः प्रत्येक नक्षत्र ३६०/२७ = १३ मिनट २० सेकंड = ८०० अंश का होगा | इसके उपरान्त भी नक्षत्रों को चार चरणों में बांटा गया है | प्रत्येक चरण १३ मिनट २० सेकंड/ ४ = ३ मिनट २० सेकंड = २०० अंश का होगा | क्योंकि एक राशि ३० अंश की होती है अतः हम कह सकते हैं कि सवा दो नक्षत्र अर्थात ९ चरण अर्थात ३० अंश की एक राशि होती है |
नक्षत्रों के नाम –
१. अश्विनी २. भरिणी ३. कृत्तिका ४. रोहिणी
५. मृगशिरा ६. आर्द्रा ७. पुनर्वसु ८. पुष्य
९. आश्लेषा १०. मेघा ११. पूर्वा फाल्गुनी १२. उत्तरा फाल्गुनी
१३. हस्त १४. चित्रा १५. स्वाति १६. विशाखा
१७. अनुराधा १८. ज्येष्ठा १९. मूल २०. पूवाषाढा
२१. उत्तराषाढा २२. श्रवण २३. धनिष्ठा २४. शतभिषा
२५. पूर्वाभाद्रपद २६. रेवती
अभिजीत को २८वां नक्षत्र माना गया है | उत्तराषाढ़ की आखिरी १५ घटियाँ और श्रवण की प्रारंभ की ४ घटियाँ, इस प्रकार १९ घटियों के मान वाला अभिजीत नक्षत्र होता है | यह समस्त कार्यों में शुभ माना जाता है |
सूक्ष्मता से समझाने के नक्षत्र के भी ४ भाग किये गए हैं, जो चरण कहलाते हैं | प्रत्येक नक्षत्र का एक स्वामी होता है |
अश्विनी – अश्विनी कुमार भरणी – काल कृत्तिका – अग्नि
रोहिणी – ब्रह्मा मृगशिरा – चन्द्रमा आर्द्रा – रूद्र
पुनर्वसु – अदिति पुष्य – बृहस्पति आश्लेषा – सर्प
मघा – पितर पूर्व फाल्गुनी – भग उत्तराफाल्गुनी – अर्यता
हस्त – सूर्य चित्रा – विश्वकर्मा स्वाति – पवन
विशाखा – शुक्राग्नि अनुराधा – मित्र ज्येष्ठा – इंद्र
मूल – निऋति पूर्वाषाढ़ – जल उत्तराषाढ़ – विश्वेदेव
श्रवण – विष्णु धनिष्ठा – वसु शतभिषा – वरुण
पूर्वाभाद्रपद – आजैकपाद उत्तराभाद्रपद – अहिर्बुधन्य रेवती – पूषा
अभिजीत – ब्रह्मा
नक्षत्रों के फलादेश भी स्वामियों के स्वभाव गुण के अनुसार जानना चाहिए |
Srishthi means creation.
Sthithi means continuation and laya means dissolution.
Each time cycle begins with creation, continues for certain duration of time and then dissolves into nothingness. After a brief respite, the cycle begins all over again. These three aspects of time are under the control of the Trinity, Brahma, Vishnu and Siva. Brahma is responsible for creation, Vishnu for existence and Siva for dissolution. We can see the same divisions in a day also. Each day is created in the early hours, continues throughout the day and then finally dissolves into darkness. We can see the same pattern in life also, as childhood, adulthood and old age.
The Hindu calculation of time comes to us from sage Ganita who is mentioned in the Manusmriti and the Mahabharata. He calculated the duration of each cycle of creation in human years. He divided the cosmic time into Kalpas, which is a day and night in the time and space of Brahma. It is considered to be equal to 8.64 billion years (Vishnu Purana). Each Kalpa consists of two Artha Kalpas of 4.32 billion years each. They are the day and night of Brahman. Each Kalpa is further divided into 1000 maha yugas. Each maha yuga is again divided into four yugas, namely krita yuga, treat yuga, dvapara yuga and kali yuga. Their duration varies. Krita yuga the first in the series has the longest duration of 1.728 million years and kali yuga, which is the last and the current, has a duration of only 432000 years. The durations of other divisions are mentioned in the table at the bottom of this article.
The lifespan of Brahma is considered 100 Brahma years, which is known as Maha Kalpa or Parardha. It is equal to 311.04 trillion human years.
A day in the life of gods is equal to one year upon earth. It is divided into day and night. The day is known as uttarayana and the night as dakshinayana. They are equal to 180 days each.
In Hindu tradition there is another division of time called manvantara. A manavantara is the period during which the earth is ruled by a particular Manu, the father of man. The word 'man' comes from the Sanskrit word Manu. According to tradition, a new Manu manifests at the beginning of each manvantara to produce a new race of human beings. Each manvantara lasts for about 71 mahayugas or approximately 308 million years. In each manvantara along with Manu appear seven seers or rishis and one Indra. In all 14 Manus appear in each Kalpa over a period of 1000 mahayugas in succession. The current Manu is 7th in the line and is known as Vaivasvata Manu.
The life of Brahma is 120 divine years called Mahakalpa. Everyday he creates 14 Manus one by one and they create and control the world. So there are fourteen Manus in one divine day called Kalpa of Brahma.
The life of each Manu is called Manvantara and it has 71 eras of four quarters. Each quarter is has four Yugas – Krita or Satya, Treta, Dvapara and Kali. The following are the complete calculations of Vedic units of time and periods.
India has given the idea of the smallest and the largest measure of time.
Krati = 34,000th of a second
The time taken to tear apart the softest petals of a lotus is called ‘TRUTI’
100 Trutis make 1 Lub
30 Lub make 1 Nimesh
27 Nimesh make 1 Guru Akshar
10 Guru Akshar Make 1 Pran
6 pran Vighatika make 1 Ghatika or Dand
60 Ghati make 1 day and night
That means, in a day and night, there are 17,49,60,000,00 Trutis
Thus, according to Western science, there are 86,400 seconds in a day and night, whereas in Indian science, a day and night consists of 17,49,60,000,00 Trutis.
According to another system, the division of time is
1 day or 24 hours = 60 Ghatis
1 Ghati = 60 Vighati (also called Pala or Kala)
1 Vighati = 60 Lipta or (also called Vipala or Vikala)
1 Lipta = 60 Vilipta
1 Vilipta = 60 Para
1 Para = 60 Tatpara
As a lot of charts made in the olden days mention the birth time in Ghatis and Vighatis the following is the conversion to remember:
5 Ghatis = 2 hours
5 Vighati = 2 minutes
Another system of time at micro level is
60 Tatparas = 1 Paras
60 Paras = 1 Vilipta
60 Vilipta = 1 Lipta
60 Lipta = 1 Ghatika (Dand)
60 Ghatika = 1 Day & Night)
Therefore, it is clear that there are 46,65,60,000,00 Tatparas in a day and night.
6.3. The Vedic Units of Time – Macro level
SATYUG 4,32,000 YEARS X 4 = 17,28,000 YEARS
TRETA 4,32,000 YEARS X 3 = 12,96,000 YEARS
DWAPAR 4,32,000 YEARS X 2 = 8,64,000 YEARS
KALIYUG 4,32,000 YEARS X 1 = 4,32,000 YEARS
1 MAHAYUG (GRAND TOTAL OF ALL THE YUGAS) = 4,320,000 YEARS
71 MAHAYUG = 43,20,000X71 = 1 MANVANTAR
1 MANVANTAR = 30,6720,000 YEARS
14 MANVANTAR = 4,294,080,000 YEARS
(There are 14 Manvantars)
The earth remains submerged in the water for the period of 8,64,000 years i.e. half the number of Satyug, before the start of each Manvantar, it also remains submerged in the water for the same number of years, i.e. 8,64,000 years, after the completion of each Manvantar.
So in 14 Manvantars the number of years
17,28,000 x 15 = 2,59,20,000
(Number of year in Satyug)
+ 14 Manvantar = 42,9, 40,80,000
1 Kalpa = 4320,000,000 years
One day & night of Brahma = 4,320,000 Mahayug x 100 = 4,320,00,000 years
Since the one moment in the life of Brahma is considered to be of our 100years, therefore the life of Brahma in 100 years will be
4,32,00,00,000 x 360 x 100 = 1,555,200,000,000 years
The Present Age of Cosmos according to the Vedic System is as follows:
There are 14 Manvantaras altogether. The present period is passing through the seventh Manvantara called Vaivaswata Manvantara.
One Manvantara consists of 71 Mahayugs, out of which 27 Mahayugs have already passed. We are passing through the first phase of the Kali Yuga which itself is the third Yuga of the 28th Mahayuga and which has come after the passing of Satya Yuga, Treta and Dwapar Yuga.
The time period of Manvantara (exclusive period, when the earth is submerged in water, in the beginning and in the end) = 306,720,000 years
1) Multiplying these years by 6 = 30,67,20,000 x 6 (Because we are in the midst of 7th Manvantara, of the Svetvaaraah Kalpa and 6 Manvantaras have already passed) = 1,8,0,300,000 years
The time period of Pralaya consists of 17,28,000 years since 7 Pralayas have passed, after the end of 6th Kalpa and before the beginning of 7th Kalpa, so 17,28,000x 7 = 12,096,000 years
Adding we have:
1,840,300,000 + 120 96 000 + 1,852,396,000 years
Therefore, after 1,85,24,16,000 years ‘VAIVASVAT MANVANTARA’ has started.
2) 27 Mahayugs with each Mahayuga consisting of 43,20,000 years. 43,20,000 x 27 = 116,640,000 years have passed
Total = 1,96,90,56,000 years
3) Now the time period of Kali Yuga in the 28th Yuga =
Time period of Satya Yuga = 17,28,000
Time period of Treta = 12,96,000
Time period of Dwapar = 8,64,000
TOTAL = 38,88,000
Since all the above three Yugas have already passed, it means that after 38,88,000 years, Kali Yuga came into existence.
4) Kali Yuga started on Bhadrapada, Krishnapaksha -13th day, in Vyatipaat yoga at midnight, in the Aashlesha Nakshatra and the age of the Kali Yuga has been fixed as 5101 years as till date that is Vikram Samvat 2057 = Shaka 1922 = 2000 AD.
Sum of all the three Yugs = the Sum of 27 Mahayugas and Manvantar + the time period of Kali Yuga till date.
Kalpa consist of 4,32,00,00,000 years and out of these 1,97,29,49,101 years have passed. Therefore, the earth’s existence, according to the calculations devised by our ancient sages, comes up to 1,97,29,49,101 years till date. It is interesting to note that according to scientific calculations, the age of the cosmos is estimated between 15 and 20 billion years.
The current yuga or epoch is known as Kaliyuga. It is the last in the cycle of the current mahayuga or great epoch. Its calculated duration is 432000 years. We are not sure presently whether we are at the beginning, in the middle or near the end of Kaliyuga. If we accept the theory that Kaliyuga began with the passing away of Lord Krishna some 6000 or 7000 years ago, then probably we are in the early phase of Kaliyuga and have a long way to go.
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