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दुर्गा स्तुति Durga Stuti

दुर्गा स्तुति Durga Stuti 

Durga Stuti is in Sanskrit. It is from Shri MahaBhagwat MahaPurana. Durga Stuti is by Holy Vedas. Veda Ruchas say that Hey Durge ! you have created these three worlds by your own will. Brahma, Vishnu and Mahesh; the three Gods are your creations for taking care of the world. Nobody is there who has created you and nobody can describe you and your gunas. God Vishnu by doing your devotion and by your blessings destroys demons and protects the world. God Shiva was able to drink the Kalkut poison by holding your leg on his heart. Mata! Nobody is able to describe you, your Gunas and your charitra. I n the end it is said that Mata! All gods worship you. Please bless the world and your creation. 

दुर्गा स्तुतिः
श्रुतय ऊचुः
दुर्गे विश्वमपि प्रसीद परमे सृष्ट्यादिकार्यत्रये 
ब्रम्हाद्याः पुरुषास्त्रयो निजगुणैस्त्वत्स्वेच्छया कल्पिताः ।
नो ते कोऽपि च कल्पकोऽत्र भुवने विद्येत मातर्यतः 
कः शक्तः परिवर्णितुं तव गुणॉंल्लोके भवेद्दुर्गमान् ॥ १ ॥
त्वामाराध्य हरिर्निहत्य समरे दैत्यान् रणे दुर्जयान् 
त्रैलोक्यं परिपाति शम्भुरपि ते धृत्वा पदं वक्षसि ।
त्रैलोक्यक्षयकारकं समपिबद्यत्कालकूटं विषं 
किं ते वा चरितं वयं त्रिजगतां ब्रूमः परित्र्यम्बिके ॥ २ ॥
या पुंसः परमस्य देहिन इह स्वीयैर्गुणैर्मायया 
देहाख्यापि चिदात्मिकापि च परिस्पन्दादिशक्तिः परा ।
त्वन्मायापरिमोहितास्तनुभृतो यामेव देहास्थिता 
भेदज्ञानवशाद्वदन्ति पुरुषं तस्यै नमस्तेऽम्बिके ॥ ३ ॥
स्त्रीपुंस्त्वप्रमुखैरुपाधिनिचयैर्हीनं परं ब्रह्म यत् 
त्वत्तो या प्रथमं बभूव जगतां सृष्टौ सिसृक्षा स्वयम् ।
सा शक्तिः परमाऽपि यच्च समभून्मूर्तिद्वयं शक्तित-
स्त्वन्मायामयमेव तेन हि परं ब्रह्मापि शक्त्यात्मकम् ॥ ४ ॥
तोयोत्थं करकादिकं जलमयं दृष्ट्वा यथा निश्चय- 
स्तोयत्वेन भवेद्ग्रहोऽप्यभिमतां तथ्यं तथैव ध्रुवम् ।
ब्रह्मोत्थं सकलं विलोक्य मनसा शक्त्यात्मकं ब्रह्म त-  
च्छक्तित्वेन विनिश्चितः पुरुषधीः पारं परा ब्रह्मणि ॥ ५ ॥
षट्चक्रेषु लसन्ति ये तनुमतां ब्रह्मादयः षट्शिवा-
स्ते प्रेता भवदाश्रयाच्च परमेशत्वं समायान्ति हि ।
तस्मादीश्वरता शिवे नहि शिवे त्वय्येव विश्वाम्बिके 
त्वं देवि त्रिदशैकवन्दितपदे दुर्गे प्रसीदस्व नः ॥ ६ ॥
॥ इति श्रीमहाभागवते महापुराणे वेदैः कृता दुर्गास्तुतिः सम्पूर्णा ॥
हिंदी अनुवाद (देवी स्तोत्ररत्नाकर गोरखपूर गीताप्रेस धन्यवाद सहित)
वेदोनें कहा
१) दुर्गे ! आप सम्पूर्ण जगत्पर कृपा करे । परमे आपने ही अपने गुणोंके द्वारा स्वेच्छानुसार सृष्टि आदि तीनों कार्योंके लिये ब्रह्मा आदि तीनों देवोंकी रचना की है, इसलिये इस जगतमें आपको रचनेवाला कोई भी नहीं है । मातः आपके दुर्गम गुणोंका वर्णन करनेमें इस लोकमें भला कौन समर्थ हो सकता है ।
२) भगवान् विष्णु आपकी आराधनाके प्रभावसे ही दुर्जय दैत्योंको युद्धस्थलमें मारकर तीनों लोकोंकी रक्षा करते हैं । भगवान् शिवने भी अपने हृदयपर आपका चरण धारण कर तीनों लोकोंका विनाश करनेवाले कालकूट विषका पान कर लिया था । तीनों लोकोंकी रक्षा करनेवाली अम्बिके ! हम आपके चरित्रका वर्णन कैसे कर सकते हैं ।
३) जो अपने गुणोंसे मायाके द्वारा इस लोकमें साकार परम पुरुषके देहस्वरुपको धारण करती हैं और जो पराशक्ति ज्ञान तथा क्रियाशक्तिके रुपमें प्रतिष्ठित हैं; आपकी उस मायासे विमोहित शरीरधारी प्राणी भेदज्ञानके कारण सर्वान्तरात्माके रुपमें विराजमान आपको ही पुरुष कह देते है; अम्बिके ! उन आप महादेवीको नमस्कार है । 

४) स्त्री-पुरुषरुप प्रमुख उपाधिसमूहोंसे रहित जो परब्रह्म है, उसमें जगतकी सृष्टिके निमित्त सर्वप्रथम सृजनकी जो इच्छा हुई, वह स्वयं आपकी ही शक्तिसे हुई और वह पराशक्ति भी स्त्री-पुरुषरुप दो मूर्तियोंमे आपकी शक्तिसे ही विभक्त हुई है । इस कारण वह परब्रह्म भी मायामय शक्तिस्वरुप ही है ।
५-६) जिस प्रकार जलसे उत्पन्न ओले आदिको देखकर मान्यजनोंको यह जल ही है -ऐसा ध्रुव निश्चय होता है, उसी प्रकार ब्रह्मसे ही उत्पन्न इस समस्त जगत्को देखकर यह शक्त्यात्मक ब्रह्म ही है - ऐसा मनमें विचार होता है और पुनः परात्पर परब्रह्ममें जो पुरुषबुद्धि है, वह भी शक्तिस्वरुप ही है, ऐसा निश्चित होता है ।
जगदम्बिके ! देहधारियोंके शरीरमें स्थित षट्चक्रोंमे ब्रह्मादि जो छः विभूतियॉं सुशोभित होती हैं, वे प्रलयान्तमें आपके आश्रयसे ही परमेशपदको प्राप्त होती हैं । इसलिये शिवे ! शिवादि देवोंमे स्वयंकी ईश्वरता नहीं है, अपितु वह तो आपमें ही है । देवि ! एकमात्र आपके चरणकमल ही देवताओंके द्वारा वन्दित हैं । दुर्गे ! आप हमपर प्रसन्न हों ।

॥ इस प्रकार श्रीमहाभागवतमहापुराणके अन्तर्गत वेदोंद्वारा की गयी दुर्गास्तुति सम्पूर्ण हुई ॥  
Durga Stuti दुर्गा स्तुतिः

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