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अग्नि सूक्तं Agni Suktam

अग्नि सूक्तं Agni Suktam


Agni Suktam is the first hymn in the oldest of the vedas, the Rig Veda and is addressed to Agni, the fire-god, who is considered a cosmic power, who protects and guides human beings towards perfection.  

अग्नि सूक्तं सबसे पहले वेद ऋग्वेद की सबसे पहली ऋचा है ,यह अग्नि को संबोधित करके गयी है ,अग्नि के देव को , जिन्हें ब्रह्माण्ड की शक्ति माना जाता है ,जो की रक्षा करने वाली है , मनुष्यों को पूर्णता की ओर प्रेरित करती है 


अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवं रत्वीजम |
होतारं रत्नधातमम ||
aghnimīḷe purohitaṃ yajñasya devaṃ ṛtvījam |
hotāraṃ ratnadhātamam ||

1 I glorify Agni, the chosen Priest, God, the divine,minister of sacrifice,
offerer and possessor of wealth.
हम अग्नि की प्रशंसा करते हैं ,जो कि चुने हुए पुरोहित हैं ,दिव्य हैं ,यज्ञ के मंत्री हैं ,सम्पति के स्वामी और दाता हैं



अग्निः पूर्वेभिर्र्षिभिरीड्यो नूतनैरुत |
स देवानेह वक्षति ||
aghniḥ pūrvebhirṛṣibhirīḍyo nūtanairuta |
sa devāneha vakṣati ||

2  Agni is Worthy to be praised by living as by ancient seers.
May Agni brings the Gods here.
अग्नि प्रशंसा के योग्य हैं ,पुरातन ऋषियों के द्वारा और आज के जीवों के द्वारा भी , अग्निदेव देवताओं को यहाँ पर ले आयें



अग्निना रयिमश्नवत पोषमेव दिवे-दिवे |
यशसं वीरवत्तमम ||
aghninā rayimaśnavat poṣameva dive-dive |
yaśasaṃ vīravattamam ||

3 Man obtains ever increasing wealth,through Agni,  also fame and progeny.
अग्नि के द्वारा मनुष्य सदैव बढ़ने वाली संपत्ति , यश ,वंश  को प्राप्त कर लेता है



अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि |
स इद्देवेषु गछति ||
aghne yaṃ yajñamadhvaraṃ viśvataḥ paribhūrasi |
sa iddeveṣu ghachati ||

4 Oh Agni, the perfect sacrifice which you surround,
that certainly reaches to the Gods.
हे अग्नि ,यज्ञ जिस  की आहुति को आप ग्रहण कर रहे हैं , वह अवश्य ही देवताओं तक पहुँच जायेगा



अग्निर्होता कविक्रतुः सत्यश्चित्रश्रवस्तमः |
देवो देवेभिरा गमत ||
aghnirhotā kavikratuḥ satyaścitraśravastamaḥ |
devo devebhirā ghamat ||

5 May Agni, possessor of immense wisdom Priest, he who is true, most gloriously divine,
The God, come here with the Gods.
 हे अग्नि , महान बुद्धि के स्वामी पुरोहित , आप सत्य हैं ,सबसे तेजोमयी , दिव्य हैं ,परम तत्त्व हैं ,आप देवताओं के साथ यहाँ पधारिये




यदङग दाशुषे तवमग्ने भद्रं करिष्यसि |
तवेत तत सत्यमङगिरः ||
yadaṅgha dāśuṣe tvamaghne bhadraṃ kariṣyasi |
tavet tat satyamaṅghiraḥ ||

6 Whatever blessing, oh Agni, you will grant to your worshipper,
That, Aṅgiras, is indeed your essence.{In the Rigveda, Agni is sometimes referred to as Angiras or as a descendant of Angiras (RV 1.1).}
 हे अग्नि , आप जो  भी कृपा अपने भक्त पर करते हैं ,अंगिरस  अवश्य ही आपका सार है



उप तवाग्ने दिवे-दिवे दोषावस्तर्धिया वयम |
नमो भरन्त एमसि ||
upa tvāghne dive-dive doṣāvastardhiyā vayam |
namo bharanta emasi ||

7 Oh Agni, dispeller of the night, we come near to you day by day with prayer,thought
Bringing thee reverence, we come
 हे अग्नि ,रात्रि को  दूर करने वाले , हम दिन पर दिन  आपके समीप आ रहे हैं , अपने विचारों  और प्रार्थनाओं से , आपकी वंदना करते हुए



राजन्तमध्वराणां गोपां रतस्य दीदिविम |
वर्धमानंस्वे दमे ||
rājantamadhvarāṇāṃ ghopāṃ ṛtasya dīdivim |
vardhamānaṃsve dame ||

8 Oh Agni,Ruler of sacrifices, guard of Law eternal, radiant One,
Increasing in thine own abode we approach near you.
हे अग्नि यज्ञों के राजा/स्वामी ,सनातन सत्य ,प्रकाशमयी ,अपने तेज में  निरंतर वृद्धि को प्राप्त होने वाले  , हम आपके समीप आ रहे हैं



स नः पितेव सूनवे.अग्ने सूपायनो भव |
सचस्वा नः सवस्तये ||
sa naḥ piteva sūnave.aghne sūpāyano bhava |
sacasvā naḥ svastaye ||

9 Oh Agni please be accesible to us,just as a father to his son:
Agni, be with us for our well being.
हे अग्नि , कृपया आप हमें उपलब्ध होईये , जिस प्रकार एक पिता अपने पुत्र को होता है , हे अग्नि आप हमारे भले के लिए हमारे साथ रहिये

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