Shani sade sati charan it's effect and remedies साढेसाती के चरण प्रभाव व उपाय
Phases of Shani Sade Sati
Rising Phase, Peak Phase and Setting Phase Sade sati
General introduction of Shani and it's sade sati phases in Astrology: पुराणों के अनुसार शनि को सूर्य और छायां का पुत्र और यमराज एवं यमुना का भाई माना गया है। शनि का रंग नीला माना गया है। यदि यमलोक के “अधिपति” यमराज हैं, तो शनि को वहां का “दंडाधिकारी” कहा जाता है।
General introduction of Shani and it's sade sati phases in Astrology: पुराणों के अनुसार शनि को सूर्य और छायां का पुत्र और यमराज एवं यमुना का भाई माना गया है। शनि का रंग नीला माना गया है। यदि यमलोक के “अधिपति” यमराज हैं, तो शनि को वहां का “दंडाधिकारी” कहा जाता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार साढ़े साती, शनि ग्रह (नवग्रहों में से एक ग्रह) की साढ़े सात साल तक चलने वाली एक तरह की ग्रह दशा है। खगोलशास्त्र और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सौरमंडल में मौजूद सभी ग्रह एक राशि से दूसरे राशि में घूमते रहते हैं। इन सब में शनि ग्रह सबसे धीमी गति से घूमने वाला ग्रह है।
यह एक से दूसरी राशि तक गोचर करने में ढाई वर्ष का समय लेता है। गोचर करते हुए शनि ग्रह किसी व्यक्ति की जन्म राशि या नाम की राशि में स्थित होता है, वह राशि, उससे अगली राशि और बारहवीं स्थान वाली राशि पर साढ़े साती का प्रभाव होता है। तीन राशियों से होकर गुजरने में इसे सात वर्ष और छः महीने मतलब साढ़े सात वर्ष का समय लगता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार इसे ही शनि की साढ़े साती के नाम से जाना जाता है।
साढ़ेसाती क्या है? What is Shani Sade Sati ?
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार साढ़े साती तब बनती है जब शनि गोचर में जन्म चन्द्र से प्रथम, द्वितीय और द्वादश भाव से गुजरता है। शनि एक राशि से गुजरने में ढ़ाई वर्ष का समय लेता है इस तरह तीन राशियों से गुजरते हुए यह साढ़े सात वर्ष का समय लेता है जो साढ़े साती कही जाती है। सामान्य अर्थ में साढ़े साती का अर्थ हुआ सात वर्ष छ: मास।
जन्म चंद्र से जब गोचर का शनि बारहवें भाव में आता है तब व्यक्ति की साढ़ेसाती का प्रभाव आरंभ हो जाता है. यह साढ़ेसाती का पहला चरण माना जाता है. अब जन्म चंद्र के ऊपर शनि आता है तब दूसरा चरण और जन्म चंद्र से दूसरे भाव में शनि का गोचर होने पर साढ़ेसाती का अंतिम व तीसरा चरण होता है |
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य श्री गोविन्द जी के अनुसार शनि की साढ़े साती सभी के लिए हानिकारक नहीं होती, शनि अपनी प्रथम ढैय्या Rising phase में शनि मस्तिष्क पर (सिर) पर सवार रहता है जिससे वायु कुपित होकर मस्तिष्क विकार उत्पन्न करती है जातक सही निर्णय नहीं ले पता और हानि उठाता है, दूसरी ढैय्या Peak Phase में शनि जातक के उदर में (पेट) में अवस्थित होकर शरीर के मध्य भाग में रोग उत्पन्न करता है एवं तीसरी ढैय्या Setting Phase में उतरता शनि जातक के पैरों पर आ जाता है व् पैरों में घुटनों के जोडों पर कष्ट देता है
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य श्री गोविन्द जी के अनुसार शनि की साढ़े साती सभी के लिए हानिकारक नहीं होती, शनि अपनी प्रथम ढैय्या Rising phase में शनि मस्तिष्क पर (सिर) पर सवार रहता है जिससे वायु कुपित होकर मस्तिष्क विकार उत्पन्न करती है जातक सही निर्णय नहीं ले पता और हानि उठाता है, दूसरी ढैय्या Peak Phase में शनि जातक के उदर में (पेट) में अवस्थित होकर शरीर के मध्य भाग में रोग उत्पन्न करता है एवं तीसरी ढैय्या Setting Phase में उतरता शनि जातक के पैरों पर आ जाता है व् पैरों में घुटनों के जोडों पर कष्ट देता है
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य श्री गोविन्द जी के अनुसार जब साढ़ेसाती का आरंभ होता है तब उस समय शनि जिस नक्षत्र में है उसे देखें और जन्म चंद्रमा जिस नक्षत्र में है उसे देखें, यदि जन्म नक्षत्र गोचर के शनि के नक्षत्र से अशुभ नक्षत्रों में है तब अशुभ फल मिलते हैं अन्यथा नहीं, आइए देखें कब-कब अशुभ फलों की प्राप्ति होती है |
यदि जन्म नक्षत्र पहला, दूसरा या तीसरा होता है तब हानि होने की संभावना बनती है, कई प्रकार के खतरे व्यक्ति को बने रह सकते हैं, अवांछित घटनाएँ हो सकती हैं.
यदि चौथे, पांचवें, छठे या सातवें स्थान पर आता है तब विजय खुशियाँ तथा सफलताएँ मिलती है|
आठवें, नवें, दसवें, ग्यारहवें, बारहवें या तेरहवें स्थान पर होने से अवांछनीय परिवर्तन, थकाने वाली लंबी यात्राएँ|
चौदहवाँ, पंद्रहवाँ, सोलहवाँ, सत्रहवाँ या अठारहवें स्थान पर होने से धन संपत्ति का आगमन होता है, व्यक्ति को शुभ समाचार मिलते है, भाग्यशाली होता है, अन्य लोगों से सहायता मिलती है|
उन्नीसवाँ या बीसवाँ नक्षत्र होने पर व्यक्ति को मिश्रित परिणाम मिलते हैं|
इक्कीसवाँ, बाईसवाँ अथवा तेईसवाँ नक्षत्र होने पर व्यक्ति के लिए शुभ रहता है. अच्छे परिणाम मिलने की संभावनाएँ बनती हैं|
चौबीसवाँ या पच्चीसवाँ नक्षत्र होने पर व्यक्ति को सुख सुविधाएँ मिलती है|
छब्बीसवाँ या सत्ताईसवाँ नक्षत्र होने पर व्यक्ति को शारीरि, मानसिक तथा आर्थिक सभी प्रकार की चिन्ताएँ घेरे रहती हैं|
प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य श्री गोविन्द जी के मतानुसार साढ़ेसाती का परिणाम चंद्र राशि पर निर्भर करता है, चंद्र राशि यदि शनि का मित्र है या शनि की राशि में चंद्रमा है अथवा चंद्रमा उच्च राशि में है अन्य किसी शुभ स्थिति में है तब साढ़ेसाती के परिणाम शुभ होते हैं !
मूर्ति निर्णय की विवेचना गोचर के फलों को देखने के लिए की जाती है. इसे हम शनि, राहु अथवा बृहस्पति के लिए देख सकते हैं कि इनका गोचर व्यक्ति विशेष के लिए कैसा रहेगा? जब भी कोई ग्रह राशि परिवर्तन करता है तब उस समय का गोचर का चंद्रमा देखें कि कहाँ है. अब अपने जन्म चंद्रमा से गोचर के चंद्रमा की गणना करें कि वह कौन सी राशि में पड़ता है.
यदि जन्म चंद्रमा से गोचर का चंद्रमा पहली, छठी या ग्यारहवीं राशि में होता है तब स्वर्ण मूर्ति होती है. यह स्वर्ण मूर्ति सबसे अधिक शुभ परिणाम देती हैं.
यदि दूसरी, पांचवीं या नवीं राशि में हो तब रजत मूर्ति होती है. यह भी शुभ परिणाम देती है लेकिन स्वर्ण से कुछ कम होते हैं.
यदि तीसरी, सातवीं या दसवीं राशि हो तब ताम्र मूर्ति होती है.यह ज्यादा शुभ नहीं होती है.
यदि चौथी, आठवीं या बारहवीं राशि हो तब लौह मूर्ति होती है. यह मूर्ति सबसे अधिक अशुभ परिणाम देती है
शनि की ढ़ैय्या | Shani Dhaiyya
शनि द्वारा एक राशि में व्यतीत किया गया समय शनि की ढ़ैय्या कहलाता है. यह ढ़ैय्या जन्म चंद्रमा से शनि के चतुर्थ या अष्टम भाव में होने पर होती है.
कंटक शनि या अर्धाष्टम शनि | Kantak or Adharshtam Saturn
जब गोचर का शनि जन्म चंद्रमा से चतुर्थ भाव में गोचर करता है तब इसे कंटक शनि अथवा अर्धाष्टम शनि कहते हैं.
अष्टम शनि | Ashtam Saturn
जब गोचर का शनि जन्म चंद्र से आठवें भाव से गुजरता है तब इसे अष्टम शनि कहते हैं.
प्रत्येक राशि में शनि अलग-अलग फल देता है इसलिए जरूरी नहीं है कि साढ़ेसाती के समय व्यक्ति को पूरे साढ़ेसात साल तक परेशानी एवं कष्ट उठाना होगा. जिस राशि में शनि गोचर करते हैं उस राशि से शनि के सम्बन्ध के अनुसार साढ़ेसात सालों में व्यक्ति को अच्छे बुरे एवं मिश्रित फल प्राप्त हो सकते हैं. इसलिए शनि के प्रकोप से भयभीत नहीं होना चाहिए.
आपकी जिन्दगी में शनि साढेसाती की अवधि कब कब है, साढ़ेसाती के दौरान शनि के फल का विचार (Understanding Saturn's Impact during Sadesati)
साढ़ेसाती के समय शनि कष्टकारी होंगे यह सोचकर कभी भी भयभीत नहीं होना चाहिए बल्कि पहले यह समझ लेना चाहिए कि शनि उनके लिए शुभ फलदायी हैं अथवा कष्टकारी. इस स्थिति को जन्मकुण्डली में शनि की अवस्था से जाना जा सकता है. शनि यदि जन्म कुण्डली में स्वराशि में है तो शढ़ेसाती काल में आने वाली चुनौतियों का सामना व्यक्ति आसानी से कर पाता है इस समय व्यक्ति उन्नति भी करता है. शनि उच्च राशि में बैठा हो तथा योगकारी भी हो तब भी साढ़ेसाती में व्यक्ति को कष्ट की अनुभूति नहीं होती है (If Saturn is exalted or Yogakarak there are no problems during Sadesati). शनि अपने नवमांश में वर्गोत्तम होने पर साढ़ेसाती की अवधि में कष्ट की बजाय उन्नति एवं सुख प्रदान करता है.
साढ़ेसाती के समय उन्हें ही कष्ट की अनुभूति होती है जिनकी कुण्डली में शनि नीच राशि में बैठा होता है. शत्रु राशि में बैठा शनि भी साढ़ेसाती की अवधि में मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट देता है. नवमांश में शनि के शुभ नहीं होने पर भी साढ़ेसाती एवं ढैय्या के समय कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि शनि अशुभ और कष्टकारी ग्रह नहीं है. यह न्यायकर्ता हैं सभी के साथ न्याय करते हैं. जो अच्छे कर्म करते हैं उन्हें शनि उन्नति देता है तथा जो ग़लत काम करते हैं उन्हें सजा भी देता है.
साढ़े साती का असर Effects of sade sati
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि एक पापी ग्रह होता है, किसी भी जातक की कुंडली में इसकी उपस्थिति अशुभ और व्यक्ति को नुकसान पहुँचाने वाली मानी जाती है। शनि साढ़े साती की गणना चंद्र राशि पर आधारित होती है। शनिदेव को 'कर्मफल दाता' रूप में माना गया है। ऐसा कहा जाता है मनुष्य जो भी कर्म करेगा उसका फल शनिदेव उसे देते हैं। इसलिए हर किसी को शनि से डरने की जरूरत नहीं है।जिन जातकों की कुंडली में शनि शुभ होता है, उन लोगों के लिए साढ़े साती का समय काफी फलदायक होती है और इस दौरान वैसे लोग बहुत तरक्की करते हैं।
साढ़े साती के समय अगर आपके काम रुकने लगे और लाख परिश्रम के बाद भी सफलता नहीं प्राप्त हो, तो इसका मतलब है कि यह शनिदेव का प्रकोप है जो आपको पीड़ित कर रहा है। ऐसी स्थिति में जातक शनिदेव को खुश करने के उपाय करके अपने नुकसान और हो रही परेशानियों को कम कर सकता है।
साढ़े साती के चरण Sade sati ke charan
अगर किसी व्यक्ति को यह मालूम हो जाये की उसकी राशि में शनि की साढ़े साती चल रही है, तो यह सुनकर ही वह व्यक्ति मानसिक दबाव में आ जाता है। आने वाले समय में किस तरह की घटनाओं का सामना उसे करना पड़ेगा उसे ले कर तरह-तरह के विचार मन में आने लगते है।
शनि की साढ़े साती को लेकर अक्सर यह बात कही जाती है कि इसका प्रभाव केवल बूरा होता है जबकि ऐसा नहीं है इस आर्टिकल की शुरुआत में ही हमने आपको बताया था कि शनि देवता को कर्मदेव भी कहते है जो आपको आपके कर्मों के अनुसार फल देते हैं, इसीलिए इसका प्रभाव क्या होगा यह जातक के कर्मों पर निर्भर करता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, यदि शनि ग्रह किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के बारहवें, पहले, दूसरे और जन्म के चंद्र के ऊपर से होकर गुजरे तो उसे शनि की साढ़े साती कहते हैं। शनि के इस भ्रमण को तीन अलग-अलग चरणों में बांटा गया है। इन तीनों अवधि में से दूसरा चरण व्यक्ति के लिए सबसे कष्टदायी माना जाता है।
इसके अलावा शनि की साढ़े साती तीनों चरणों में निम्न रुप से प्रभाव डाल सकती है–
पहला या प्रथम चरण
प्रथम चरण में शनि जातक के मस्तक पर रहता है। इसमें व्यक्ति को आर्थिक कठिनाईओं का सामना करना पड़ता है, जितनी आमदनी होती है उससे ज्यादा खर्च होते हैं। व्यक्ति को नींद से जुड़ी समस्याओं साथ ही और भी प्रकार की स्वास्थ समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सोचे गए कार्य पूरे नहीं होते और धन से जुड़ी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है। दाम्पत्य जीवन में कठिनाईयां आती हैं और मानसिक चिंताओं में बढ़ोतरी होती है।
दूसरा या द्वितीय चरण
साढ़े साती की इस अवधि में व्यक्ति को व्यवसायिक तथा पारिवारिक जीवन में उतार-चढाव का सामना करना पड़ता है। जातक को अपने रिश्तेदारों से कष्ट प्राप्त होते है। उसे घर -परिवार से दूर रहना साथ ही लम्बी यात्राओं पर भी जाना पड़ सकता है। व्यक्ति को शारीरिक रोगों को भोगना पड़ सकता है। धन-संपति से जुड़े मामले भी परेशान कर सकते हैं। इस चरण में समय पर मित्रों का सहयोग नहीं मिलता है और किसी भी कार्य को करने के लिए सामान्य से अधिक कोशिश करनी पड़ती है। इन सब के अलावा वह आर्थिक परेशानियां से भी घिरा रह सकता है।
तीसरा या तृतीय चरण
साढ़े साती के तीसरे चरण में व्यक्ति को भौतिक सुखों का लाभ नहीं मिलता और उसके अधिकारों में कमी आती है। जितनी आमदनी होती है उससे ज्यादा खर्च होते हैं। स्वास्थय से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। संतान से विचारों में भिन्नता उत्पन्न ही जाती है और वाद-विवाद के योग बनते है। अगर संक्षेप में देखे तो यह अवधि व्यक्ति के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। जिस लोगों की जन्म राशि में शनि की साढ़े साती का तीसरा चरण चल रहा हो, वैसे लोगों को किसी भी तरह के वाद-विवाद से बच कर रहना चाहिए।
इन तीन चरणों के अलावा, दो चरण और भी होते हैं हैं, जिन्हें अशुभ माना जाता है। ये दो चरण भी शनि "पारगमन" के कारण होते हैं जो आमतौर पर "शनि ढैया" के नाम से जाना जाता है।
साढ़े साती या शनि दोष के उपाय
Sade sati shani dosh remedies
साढ़े साती के दौरान ग्रह शनि को खुश करने के लिए प्रत्येक शनिवार को भगवान शनि की पूजा करना सबसे अच्छा उपाय है।
आप साढ़े साती के दोषपूर्ण प्रभाव को कम करने के लिए ज्योतिषीय सलाह लेने के बाद नीलम जैसे रत्न पहन सकते हैं।
प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ना भी उपयोगी हो सकता है।
शनि ग्रह मंत्र को 80,000 बार सुशोभित करें।
अपने दाहिने हाथ की मध्य उँगली में लोहे की अंगूठी पहनें, ध्यान रहे कि यह अंगूठी घोड़े की नाल से बनी होनी चाहिए।
"शिव पञ्चाक्षरि" और महा मृत्युंजय मंत्र को पढ़ते हुए भगवान शिव की पूजा करें।
शनिवार को गरीबों और जरूरतमंद लोगों को भोजन और वस्त्र आदि दें। कला चना, सरसों का तेल, लोहे का सामान, काले कपड़े, कंबल, भैंस, धन आदि जैसी चीज़ों का दान किया जाना चाहिए।
हर शनिवार तांबा और तिल के तेल को शनि देव पर चढ़ाएं।
शनि देव को खुश करने के लिए हर शनिवार दूध या पानी डालें।
रोज़ाना "शनि स्तोत्र" का पाठ करें।
प्रतिदिन "शनि कवचम" का उच्चारण करें।
कौवे को अनाज और बीज खिलाएं।
काली चींटियों को शहद और चीनी खिलाएं।
भिखारी और शारीरिक रूप से विकलांग को दही-चावल का दान करें।
साढ़े साती की अवधि के दौरान किन गतिविधियों से बचना चाहिए?
साढ़े साती एक ऐसी अवधि है जो मानव मन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। आइए देखें कि साढ़े साती चरण के दौरान हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए: -
हमें किसी भी जोखिम से भरे कार्य को करने से बचना चाहिए।
साढ़े साती के दौरान हमें घर पर या कार्य स्थल पर किसी भी तरह के तर्क-वितर्क से बचना चाहिए।
ड्राइविंग करते समय हमें सतर्क रहना चाहिए।
हमें रात्रि के समय अकेले यात्रा करने से बचना चाहिए।
हमें किसी भी औपचारिक या कानूनी समझौते में फंसने से बचना चाहिए।
हमें शनिवार और मंगलवार को शराब बिलकुल नहीं पीनी चाहिए।
हमें शनिवार और मंगलवार को काले कपड़े या चमड़े के सामान खरीदने से बचना चाहिए।
हमें किसी भी तरह के अवैध या गलत चीज़ों में भाग लेने से बचना चाहिए।
शनि को ज्योतिष में सबसे अधिक अनिष्टकारी ग्रह माना जाता है। हालांकि, यह हमेशा सच नहीं होता है, शनि आपके कार्यों और कर्मों के आधार पर न्याय करता है। यदि आप अच्छे कर्म करते हैं, तो यह निश्चित रूप से आपको उसका फल प्रदान करता है। हाँ आपके अच्छे कर्मों का परिणाम आने में देरी जरूर हो सकती है, लेकिन यह निश्चित रूप से आपको प्राप्त होता है। साढ़े साती मानव जाति के लिए हमेशा से ही भय और उत्सुकता भरा विषय रहा है। शनि साढ़े साती लोगों को अच्छे और बुरे दोनों तरह के समयों का अनुभव कराती है।
शनि मूल रूप से आपके धैर्य की परीक्षा लेते हुए आपको आपके कर्मों का फल देता है। अतः हम शनि को एक "न्यायधीश" की तरह मान सकते हैं जो हमे हमारे कर्मों के अनुसार फल देता है। हमें उम्मीद है कि यह साढ़े साती कैलकुलेटर आपके लिए फायदेमंद होगा और आशा करते है कि हमारे द्वारा दी गयी जानकारी आपके लिए फायदेमंद रहेगी। शनि देव की कृपा आप पर सदैव बनी रहे।
साढ़ेसाती का शुभ तथा अशुभ समय | Auspicious and Inauspicious Time For Sadesati
चंद्र राशि | चंद्र से बारहवाँ शनि | चंद्र पर शनि | चंद्र से दूसरे भाव में शनि |
---|---|---|---|
मेष | मध्यम | अशुभ | शुभ |
वृष | अशुभ | शुभ | शुभ |
मिथुन | शुभ | अतिशुभ | अशुभ |
कर्क | शुभ | अशुभ | अशुभ |
सिंह | अशुभ | अशुभ | शुभ |
कन्या | अशुभ | शुभ | अतिशुभ |
तुला | शुभ | अतिशुभ | अशुभ |
वृश्चिक | शुभ | अशुभ | मध्यम |
धनु | शुभ | मध्यम | शुभ |
मकर | शुभ | मध्यम | शुभ |
कुंभ | शुभ | अशुभ | मध्यम |
मीन | शुभ | मध्यम | अशुभ |
दशरथकृत शनि स्तोत्र Dasharath krit shani Stotra
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकंठनिभाय च |नमः कालाग्नि रूपाय कृतान्ताय च वै नमः ||
नमो निर्मोसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च | नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ||
नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः | नमो दीर्घाय शुष्काय कालद्रंष्ट नमोस्तुते||
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरिक्ष्याय वै नमः| नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने ||
नमस्ते सर्व भक्षाय बलि मुख नमोस्तुते|सूर्य पुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ||
अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोस्तुते| नमो मंद गते तुभ्यम निंस्त्रिशाय नमोस्तुते ||
तपसा दग्धदेहाय नित्यम योगरताय च| नमो नित्यम क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः||
ज्ञानचक्षुर्नमस्ते ऽस्तु कश्यपात्मजसूनवे |तुष्टो ददासि वै राज्यम रुष्टो हरसि तत्क्षणात ||
देवासुर मनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा | त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः||
प्रसादं कुरु में देव वराहोरऽहमुपागतः ||
पद्म पुराण में वर्णित शनि के दशरथ को दिए गए वचन के अनुसार जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक शनि की लोह प्रतिमा बनवा कर शमी पत्रों से उपरोक्त स्तोत्र द्वारा पूजन करके तिल ,काले उडद व लोहे का दान प्रतिमा सहित करता है तथा नित्य विशेषतः शनिवार को भक्ति पूर्वक इस स्तोत्र का जाप करता है उसे दशा या गोचर में कभी शनि कृत पीड़ा नहीं होगी और शनि द्वारा सदैव उसकी रक्षा की जायेगी |
Phases of Shani Sade Sati
Rising Phase, Peak Phase and Setting Phase Sade sati
Saturn is a slow moving planet .Passing over one sign, Saturn takes two years and six months’ time. Saturn takes 30 years to make one round of the zodiac.When Saturn transits through the 12th house in a horoscope from the natal Moon, the period of Sade sati (7 years and 6 months) starts .Sade Sati is the sum of transit periods in three consecutive signs(2.5 years+2.5 years+2.5 years). Popularly known as Rising +peak+setting sade sati. The most effective is the time when Saturn is transiting over natal Moon(Peak).
The first phase of Sade sati (rising or Chadhati) is related to close relatives. The second phase related to domestic front and also business front. The third Phase related to children, family, health and physical suffering. Saturn is the causing factors of (karaka) hard work, discipline, Old age and Authority.
The first Phase of Sade sati start when Saturn transit over the 12 th place from Natal Moon. Saturn continue transit over this place for 2years and 6 months. If the moon sign of a native is Aries, then, when Saturn transit over Pieces sign, the first phase of sade sati will start for the native.
It will continue for 7 years and 6 months till Saturn complete its transition over Taurus (Pieces+ Aries +Taurus).
When Saturn transit over the first place or ascendant of the horoscope in Moon Ascendant (Chandra Lagna Kundali), the sade sati known as Janma Shani or the second phase of Sadhe sati. It continue for 2 years and 6 months.
When Saturn transit over the second place, the third phase of Sade sati will start .It continue for 2 years 6 months.
Saturn is the friend of Venus, Mercury.
Sun, Moon and Mars are the enemies of Saturn.
Saturn is neutral with Jupiter.
The Paya of Saturn is most important to consider the effect of sade sati whether negative or positive.
There are 4 types of Paya–
Gold
Silver
Copper
Iron
Silver and Copper paya is considered as good, whereas Gold and Iron Paya is not considered to be good.
Following are the result of Saturn when transit (sade sati) over different moon sign (rashi) in general .But the lordship of Saturn in Horoscope and the Sad bala of Saturn must also be taken into consideration.
RASHI 12HOUSE/1st PHASE 1HOUSE/2nd PHASE 2HOUSE/3rd PHASE
MESH/ARIES VERY BAD NORMAL GOOD
BRISABH/TAURUS BAD GOOD GOOD
MITHUN/GEMINI GOOD BOTH GOOD& BAD BAD
KARKA/CANCER GOOD BOTH GOOD&BAD BAD
SIMHA/LEO BAD BAD GOOD
KANYA/VIRGO BAD GOOD VERYGOOD
TULA/LIBRA GOOD VERY GOOD VERY BAD
BRISCHIK/SCORPIO BEST NOT GOOD OK
DHANU/SAGITARIUS BAD GOOD OK
MAKAR/CAPRICORN GOOD OK BEST
KUMBH/AQUARIUS GENERAL GOOD GOOD
MEEN/PIECES GOOD GOOD BAD
So, according to the relation with other planets, Saturn give result.
Following is the chart (table) about when Saturn transit over which rashi and the sade sati begin on which rashi occupied person. Suppose a native has occupied Mesh/Aries rashi, so when Saturn transit over Meen or pieces rashi , Sade sati will begin for that native. Second phase will start when Saturn transit over Mesh or Aries rashi and the third phase will start when Saturn transit over the Brisabh /Taurus rashi.
RASHI 1st PHASE 2nd PHASE 3rd PHASE
Mesh/Aries Meen/Pieces Mesh/Aries Brisabh/Taurus
Brisabh/Taurus Mesh/Aries Brisabh/Taurus Mithun/Gemini
Mithun/Gemini Brisabh/Taurus Mithun/Gemini Kark/Cancer
Karka/Cancer Mithun/Gemini Kark/Cancer Simha/Leo
Simha/Leo Karka/cancer Simha/Leo Kanya/Virgo
Kanya/Virgo Simha/Leo Kanya/Virgo Tula/Libra
Tula/Libra Kanya/Virgo Tula/Libra Brischik/Scorpio
Brischik/Scorpio Tula/Libra Brischik/Scorpio Dhanu/Sagittarius
Dhanu/Sagittarius Brischik/Scorpio Dhanu/Sagitarius Makar/Capricorn
Makar/Capricorn Dhanu/Sagittarius Makar/Capricorn Kumbh/Aquarius
Kumbh/Aquarius Makar/Capricorn Kumbh/Aquarius Meen/Pieces
Meen/Pieces Kumbh/Aquarius Meen/Pieces Mesh/Aries
The first phase of sade sati —
Saturn has three aspects (3rd, 7th and 10th from its placement).
When Saturn transit over 12th house of the horoscope from natal Moon, the Sade Sati for Moon sign will start. From this house Saturn aspect —
Second house (3rd aspect),
Sixth house (7th aspect), and
Ninth house (10th aspect).
So the effect of Sade Sati will be on 12th (transit), 2nd, 6th and 9th houses.
Saturn is a planet of Separation. So, where it is placed in the horoscope, during Sade sati, it will separate the native from that matter. For example–If Saturn is placed in second place, it will separate or keep away the native from family.
The aspect of Saturn is malefic(poison). So, the seventh aspect(180 degree) is very harmful to the native .The special aspect of Saturn is Third aspect and tenth aspect .In retrograde condition Saturn affect the ninth or tenth place from where it has placed in Birth chart.
When Saturn transit over the twelfth house, Saturn affect the 12th house matter .So the expenditure of the native will increase due to investment which will turn fruitless later, on hospitalization or on foreign tour. Twelfth place reveal —spouse‘s health, ancestral property, grandmother, monetary loss, demotion, left eye or ear, sorrow, fine, long treatment, Confinement and Restlessness. The separation tendency of Saturn make the native to stay away from family or decrease companion of spouse .So all these matter get affected during the first phase of Sade sati.
The 3rd aspect of Saturn fall on second house, the native may affected financially .The possibility of spending (saved) money happen by sudden incident .Food habit may change or the native may compel to have irregular meal. Digestive system may get affected .The speech of native may be very harsh. The native’s conversation may be misunderstood. Dispute may occur in family .General happiness will be disturbed.
As, Saturn is aspect 6th (7th aspect) house from 12th house (180 degree angle), the native’s health will be most affected during sade sati. The native may be in debt due to health reason and treatment. Internal enemies may harass. The native may be affected by conspirator. Intestine and waist need special care.
As, Saturn aspect 9th house from 12th house (10th aspect), the native’s luck will not support him/her in this time period .The relation with father may turn stern .If the native is pursuing any higher education ,the time is not favorable .The native may have a disliking for tradition or religion.
REMEDY—
Try to keep regularity in life.
Punctuality will help a lot.
Astrological remedy—
Chant shani Mantra”Om sham shanaischaraay namah”.
Chant Shani-bharya mantra daily.
Recite Hanuman Kawach daily in the evening.
2nd phase of Sade Sati —
When Saturn transit on natal moon/Chandra rashi, the second phase of Sade sati starts. Being a separator by nature Saturn will keep the native away from himself/herself, from siblings and from socialization. The native may be absent minded in these time period. Health of the native may need more care.
In Aries, Saturn is debilitated.so in a debilitated condition in enemy house, Saturn will not be able to do much harm to the native, so the second phase of sade sati for Aries will go both good and bad (normal).
The 3rd aspect of Saturn will fall on 3rd house. As a result the courage and braveness will be affected. The confidence of the native will deteriorate. The relation with sibling may also stern. Progress may slow down. Any competitive examination during this time period need more efforts and may be negative. Servants of the house may create problem. Body parts especially, hand, neck and shoulder need care.
The 7th aspect of Saturn fall on 7th house. 7th house of a horoscope is the place which cause death (marak sthan). So the health of the native and the health of spouse must be taken care of. Progress or improvement in life delayed. The relation with partner in business will hamper. Take care of Kidney and ovaries. Married life will get disturbance. The native may stay Away from spouse.
The 10th aspect of Saturn will fall on 10th house. The work place environment ,public life and establishment will be in problem. The native may lose interest in work. The standing in community may need more efforts.
Remedy—
Lead a disciplined life
Do not lie
Astrological Remedy—
Recite HANUAMAN CHALISA
Chant HANUMAN KAWACH (first recite ek mukhi Hanuman Kawach, then recite panch mukhi Hanuman Kawach)
Chant the mantra of Dakshin Kali, in the evening.
3rd phase of sade sati—
When Saturn transit over the sign next to natal moon sign the 3th phase of sade sati starts. The native may not save much. Family life may get disturbed. Either the native compel to tell lie or converse very rudely.
The 3rd aspect will affect 4th house. Fourth house is the house of immovable property. Relation with mother may not be very good. If mother in old age or suffering any serious health problem, the native may lose his/her mother.
Public relation may not be very interactive in this time period and popularity may decrease. Digestive system may need special care. If the native is a student or pursuing higher education, then he/she may not get the desired result. So, academic career need special attention. Home environment (family discord), Material happiness may be less. The health of Father- in- law may be a matter of concern or the relation with Father- in- law may be stern.
The 7th aspect of Saturn will affect 8th house. The native may be affected by mental tension due to paternal property dispute. The native’s resistance capacity may be decrease. The native should take care of muscular system, bladder and private parts of body. Quarrel, difficulties, frustration and infamy make the native very miserable.
The 10th aspect of Saturn will affect 11th house, so the income and source of income will be affected. Relation with elder sibling may not be good. The support from friends and elder siblings may be withdrawn. Any dispute with a permanent friend may make the native sad. Left ear need care.
Remedy—
Control over speech is needed.
Wise talk is advisable (Think before speak).
Astrological remedy—
Chant Shani mantra, “om sham shanaischaraay namah”.
Daily recite Hanuman Chalisha in the evening, once.
Visit Shani temple in Saturdays in this period of time.
Sadesati is the time when a person will face the reactions of his/her previous deeds.
These were the phases of Shani Sade Sati Rising Phase, Peak Phase and Setting Phase Sade sati and their effects on different zodiac and remedies.
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