अगर आपके जीवन में कोई परेशानी है, जैसे: बिगड़ा हुआ दांपत्य जीवन , घर के कलेश, पति या पत्नी का किसी और से सम्बन्ध, निसंतान माता पिता, दुश्मन, आदि, तो अभी सम्पर्क करे. +91-8602947815

meri shadi kab hogi Meri shadi kab hogi मेरी शादी कब होगी When will I get married ?

Meri shadi kab hogi मेरी शादी कब होगी When will I get married ?

ज्योतिष की सहायता से आप यह जान सकते हैं कब और कहां होगी आपकी शादी ज्‍योतिष के अनुसार विवाह कब होगा, कैसे होगा और किससे होगा ये सब हमारी जन्‍मकुंडली में बैठे ग्रहों पर निर्भर करता है। ग्रहों का हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है और हम कब क्‍या कर रहे हैं और हमारा विवाह किससे होगा या विवाह के पश्‍चात् तलाक हो जाएगा या फिर हमें वैवाहिक सुख मिल पाएगा या नहीं, ये सब हमारी जन्‍मकुंडली के ग्रहों पर निर्भर करता है।

कब होगी शादी When will I get married
कई लोगों की शादी कम उम्र में ही हो जाती है तो कुछ लोगों को अपना जीवनसाथी देर से मिलता है जिस वजह से उनका मन परेशान रहता है। हर किसी के मन में ये सवाल जरूर आता है कि उनकी शादी कहां और कब होगी। जैसा कि हमने पहले भी आपको बताया कि ज्‍योतिषश की मदद से आप जान सकते हैं कि आपकी शादी कब होगी ? इस बात को लेकर ज्‍योतिष में कुछ बिंदु निर्धारित किए गए हैं जिससे आप जान सकते हैं कि आपकी शादी कब और कहां होगी। इसके अलावा ये भी पता लगाया जा सकता है कि आपकी शादी घर से कितनी दूरी पर होगी।

विवाह को प्रभावित करने वाले कारक
लग्न-----जातक के जीवन की  महत्वपूर्ण घटनाएं
द्धितीय भाव / स्वामी -----परिवार
पंचम भाव/स्वामी -------प्रेम  प्रसंग
सप्तम भाव /स्वामी -------विवाह ,जीवन साथी
एकादश  भाव / स्वामी ------- जीवन की आशा /इच्छाएं
वृहस्पति----महिलाओं  के लिए विवाह का कारक
शुक्र ------ पुरुषों के लिए विवाह का कारक


विवाह कब होगा ? Meri shaadi kab hogi मेरी शादी कब होगी गोचर में वृहस्पति और शनि की दृष्टि लग्न से या चन्द्रमा से सप्तम भाव/स्वामी के ऊपर हो | इस डबल गोचर से उसी  समय विवाह होने की सम्भावना प्रबल हो जाती है । इसके साथ  साथ यदि  गोचर के मंगल की दृष्टि भी  लग्न से या चन्द्रमा से सप्तम भाव/स्वामी पर पड़े तो विवाह होने का समय 75 दिनों के अंदर होता है ऐसा अनुमान किया जा सकता है ।

2,7,11   भाव के स्वामी जब जब गोचर में 2,7,11  भाव  में आ जाएँ तो उस समय शादी होने की सम्भावना होती है । ये तीनों ग्रह गोचर में 2,7,11  भाव में अलग अलग या एक  साथ आ जाए तब भी यही निष्कर्ष रहता है ।

विवाह के कारक ग्रह वृहस्पति या  शुक्र जब गोचर में सप्तम भाव में आ जाते हैं या सप्तमेश पर  दृष्टि डालते हैं तब भी विवाह होने की सम्भावना रहती है ।

2/7/11 भाव के स्वामी की दशा/अंतर्दशा में विवाह  संपन्न हो सकता है ।

सप्तमेश की दशा/अंतर्दशा में विवाह होने की सम्भावना बढ़ जाती है ।

जिस वर्ष शनि और गुरु दोनों सप्तम भाव या लग्न को देखते हों, तब विवाह के योग बनते हैं। सप्तमेश की महादशा-अंतर्दशा या शुक्र-गुरु की महादशा-अंतर्दशा में विवाह का प्रबल योग बनता है। सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश के साथ बैठे ग्रह की महादशा-अंतर्दशा में विवाह संभव है।

विवाह के अन्य योग निम्नानुसार हैं-
(1) लग्नेश, जब गोचर में सप्तम भाव की राशि में आए।
(2) जब शुक्र और सप्तमेश एक साथ हो, तो सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में।
(3) लग्न, चंद्र लग्न एवं शुक्र लग्न की कुंडली में सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में।
(4) शुक्र एवं चंद्र में जो भी बली हो, चंद्र राशि की संख्या, अष्टमेश की संख्या जोड़ने पर जो राशि आए, उसमें गोचर गुरु आने पर।
(5) लग्नेश-सप्तमेश की स्पष्ट राशि आदि के योग के तुल्य राशि में जब गोचर गुरु आए।
(6) दशमेश की महादशा और अष्टमेश के अंतर में।
(7) सप्तमेश-शुक्र ग्रह में जब गोचर में चंद्र गुरु आए।
(8) द्वितीयेश जिस राशि में हो, उस ग्रह की दशा-अंतर्दशा में।


विवाह का भाव
जन्‍मकुंडली का सातवां भाव विवाह एवं प्रेम का कारक है। इसके अलावा ये भाव पत्‍नी, ससुराल और गुप्‍त व्‍यापार के लिए भी माना जाता है। अगर इस भाव को कोई पापग्रह देख रहा है, उसमें कोई अशुभ राशि बैठी है या ऐसा कोई योग बन रहा है तो उस स्‍त्री का जीवनसाथी चरित्रहीन होता है।

अगर किसी स्‍त्री की कुंडली के सप्‍तम भाव में पाप ग्रह है या कोई शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं पड़ रही है तो उस स्‍त्री के पति की मृत्‍यु जल्‍दी हो जाती है या वो ही अपने पति की मौत का कारण बनती है।

सप्‍तम भाव से जानें विवाह के योग
ज्‍योतिषशास्‍त्र के अनुसार जन्‍मकुंडली में 12 भाव होते हैं और ये भाव किसी ना किसी तरह हमारे जीवन से संबंधित होते हैं। कुंडली का सप्‍तम भाव विवाह का कारक होता है। आपका विवाह किससे होगा, कब होगा और आपका वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा, ये सब आपकी कुंडली में सप्‍तम भाव की स्थिति पर निर्भर करता है।

घर से कितनी दूरी पर होगी शादी
अगर किसी जातक की कुंडली के सातवे भाव यानि की विवाह के घर में वृषभ, सिंह, वृश्‍ि और कुंभ राशि बैठी है तो उस व्‍यक्‍ति की शादी अपने घर से 90 किलोमीटर के दायरे में होगी। वहीं अगर यहां पर चंद्र, शुक्र और गुरु बैठे हैं तो ऐसे में लड़की की शादी अपने ही घर के आसपास होती है।

कुंडली के सप्‍तम भाव में मेष, कर्क, तुला और मकर राशि स्थित है तो आपकी शादी 200 किमी के अंदर होगी। इस भाव में मिथुन, कन्‍या, धनु या मीन राशि है तो शादी घर से 80 से 100 किमी की दूरी पर होती है।

किस उम्र में होगा विवाह
अगर आपकी जन्‍मकुंडली के सातवे भाव में बुध या कोई पाप ग्रह जैसे राहु, केतू, मंगल शनि से दृष्‍ट या इने साथ ना हो तो ऐसे में आपका विवाह 22 साल की उम्र से पहले ही हो जाता है। वहीं सप्‍तम भाव में बुध बैठा हो तो उस जातक का विवाह 22 से 25 साल की उम्र में होता है। अगर राहु या शनि का प्रभाव हो तो 27 की उम्र में विवाह होता है।


लड़की की कुंडली में गुरु और लड़के की कुंडली में शुक्र को जीवनसाथी का प्रतीक माना जाता है परंतु हम देखें तो शायद शादी के समय का सही अनुमान ना लगा पाए क्योंकि इन दोनों ग्रहों के अस्त होने के दौरान यह ग्रह निर्बल होते हैं और निर्बल ग्रह शादी नहीं करवाते। इसलिए परंपरागत नियमों का आना जाना तो लगा रहता है ख़ास बात तब है जब आपको शादी की भविष्यवाणी करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण ग्रह स्थिति का पता चल जाए।

किसी स्त्री की कुंडली का सप्तम भाव विवाह का कारक स्थान माना जाता है। अलग-अलग लग्न के अनुसार इस भाव की राशि और स्वामी भी बदल जाते हैं। अत: यहां जैसी राशि रहती है, व्यक्ति का जीवन साथी भी वैसा ही होता है।

फलित शास्त्र के अनुसार लड़की की जन्म लग्न कुंडली में लग्न से सप्तम भाव उसके जीवन, पति, दाम्पत्य जीवन तथा वैवाहिक संबंधों का भाव है। इस भाव से उसके होने वाले पति का कद, रंग, रूप, चरित्र, स्वभाव, आर्थिक स्थिति, व्यवसाय या कार्यक्षेत्र, परिवार से संबंध कि आदि की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यहां सप्तम भाव के आधार पर कन्या के विवाह से संबंधित विभिन्न तथ्यों का विश्लेषण प्रस्तुत है

बाल्यावस्था में शादी

यदि किसी लड़की या लड़के की जन्मकुंडली में बुध स्वराशि मिथुन या कन्या का होकर सप्तम भाव में बैठा हो, तो विवाह बाल्यावस्था में होगा।

शादी 13 से 18 साल की उम्र में

यदि जातक या जातका की जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में सप्तमेश बुध हो और वह पाप ग्रह से प्रभावित न हो, तो शादी 13 से 18 वर्ष की आयु सीमा में होता है।

सप्तम भाव में सप्तमेश मंगल

यदि जातक या जातका की जन्म लग्न कुंडली में सप्तम भाव में सप्तमेश बुध हो और वह पाप ग्रह से प्रभावित न हो, तो शादी 18 वर्ष के अंदर होगी।

22 साल की उम्र में विवाह

चंद्रमा सप्तमेश होकर पापी ग्रह से प्रभावित हो, तो विवाह 22 वर्ष की आयु में होगा

25 साल की उम्र में विवाह

शुक्र ग्रह युवा अवस्था का द्योतक है। सप्तमेश शुक्र पापी ग्रह से प्रभावित हो, तो 25 वर्ष की आयु में विवाह होगा।

27 से 28 साल की उम्र में शादी

बृहस्पति सप्तम भाव में सप्तमेश होकर पापी ग्रहों से प्रभावित न हो, तो शादी 27-28 वें वर्ष में होगी।

30 साल की उम्र में विवाह

सप्तम भाव को सभी ग्रह पूर्ण दृष्टि से देखते हैं तथा सप्तम भाव में शुभ ग्रह से युक्त हो कर चर राशि हो, तो जातिका का विवाह 30 वर्ष की आयु में संपन्न हो जाता है।

कितनी दूर होगा कन्या का ससुराल?

लड़की का ससुराल कितनी दूर होगा, उसके पति का मकान कहां होगा, शहर में या गांव में। साथ ही आपको बतायेंगे कि पति का अपना मकान होगा या नहीं।

कैसे- ज्योतिष की विधा भृगु संहिता से यह पता लगाया जा सकता है। इसके अनुसार किसी स्त्री की कुंडली का सप्तम भाव विवाह का कारक स्थान माना जाता है। अलग-अलग लग्न के अनुसार इस भाव की राशि और स्वामी भी बदल जाते हैं। अत: यहां जैसी राशि रहती है, व्यक्ति का जीवन साथी भी वैसा ही होता है।

प्रत्येक राशि में 9 अक्षर होते हैं। राशि स्वामी यदि शत्रुक्षेत्री हो, तो प्रथम, द्वितीय अक्षर, सम राशि का हो, तो तृतीय,चतुर्थ अक्षर मित्रक्षेत्री हो, तो पंचम, षष्ठम अक्षर, अपनी ही राशि का हो तो सप्तम, अष्टम अक्षर, उच्च क्षेत्री हो, तो नवम अक्षर प्रसिद्ध नाम होगा।

भवन या हवेली में ससुराल
तृतीयेश के शत्रुक्षेत्री होने से जिस राशि में हो उससे चतुर्थ राशि वाले का ससुराल हवेली या भवन में होता है।

गांव में ससुराल
यदि तृतीय से शत्रु राशि में हो और तृतीय भाव में शत्रु राशि में पड़ा हो ,तो दसवीं राशि वाली कन्या का ससुराल गांव में होता है।

नगर में होगा मकान
लड़की की जन्म लग्न कुंडली में उसके लग्न भाव से तृतीय भाव पति का भाग्य स्थान होता है। स्वामी के स्वक्षेत्री या मित्रक्षेत्री होने से पंचम और राशि वृद्धि से या तृतीयेश से पंचम जो राशि होती है उस राश‍ि की कन्या का ससुराल नगर में होता है।

पति का अपना मकान
लड़की की कुंडली में दसवां भाव उसके पति का भाव होता है। दशम भाव अगर शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो, या दशमेश से युक्त या दृष्ट हो, तो पति का अपना मकान होता है।

पति का मकान बहुत विशाल
राहु, केतु, शनि, से भवन बहुत पुराना होगा। मंगल ग्रह में मकान टूटा होगा। सूर्य, चंद्रमा, बुध, गुरु एवं शुक्र से भवन सुंदर, सीमेंट का दो मंजिला होगा। अगर दशम स्थान में शनि बलवान हो, तो मकान बहुत विशाल होगा।

ससुराल की दूरी 90 किमी के अंदर
सप्तम भाव में अगर वृष, सिंह, वृश्चिक या कुंभ राशि स्थित हो, तो लड़की की शादी उसके जन्म स्थान से 90 किलोमीटर के अंदर ही होगी।

200 किमी के अंदर ससुराल
यदि सप्तम भाव में चंद्र, शुक्र तथा गुरु हों,तो लड़की की शादी जन्म स्थान के समीप होगी। यदि सप्तम भाव में चर राशि मेष, कर्क, तुला या मकर हो, तो विवाह उसके जन्म स्थान से 200 किलोमीटर के अंदर होगा।


80 से 100 किमी की दूरी पर ससुराल
अगर सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु या मीन राशि स्थित हो, तो विवाह जन्म स्थान से 80 से 100 किलोमीटर की दूरी पर होगा।

विदेश में पति या ससुराल
यदि सप्तमेश सप्तम भाव से द्वादश भाव के मध्य हो,तो विवाह विदेश में होगा या लड़का शादी करके लड़की को अपने साथ लेकर विदेश चला जाएगा।

केसा होगा जीवनसाथी—-????

कन्याकी शादी में सबसे अधिक चिन्ता उसके होने वाले पति के विषय में होती है किवह कैसा होगा. सप्तम भाव और सप्तमेश विवाह में महत्वपूर्ण होता है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सप्तम भाव में शुभ ग्रह यानी चन्द्र,गुरू,शुक्रया बुध हो अथवा ये ग्रह सप्तमेश हों अथवा इनकी शुभ दृष्टि इस भाव पर होनेपर कन्या का होने वाला पति कन्या की आयु से सम यानी आस पास होता है. यहदिखने में सुन्दर होता है. सूर्य,मंगल,शनि अथवा राहु,केतु सप्तम भावमें हों अथवा इनका प्रभाव इस भाव पर हो तब वर गोरा और सुन्दर होता है औरकन्या से लगभग5वर्ष बड़ा होता है. कन्या की कुण्डली में सूर्य अगरसप्तमेश है तो यह संकेत है कि पति सरकारी क्षेत्र से सम्बन्धित होगा. चन्द्रमा सप्तमेश होने पर पति मध्यम कदकाठी का और शांति चित्त होता है. सप्तमेश मंगल होने पर पति बलवान परंतु स्वभाव से क्रोधी होता है. मध्यमकदकाठी का ज्ञानवान और पुलिस या अन्य सरकारी क्षेत्र में कार्यरत होता है. सप्तम भाव में शनि अगर उच्च राशि का होता है तब पति कन्या से काफी बड़ाहोता है और लम्बा एवं पतला होता है. नीच का शनि होने पर पति सांवला होताहै.

केसी होगी जीवन साथी की आयु/इनकम ???

लड़कीकी जन्मपत्री में द्वितीय भाव को पति की आयु का घर कहते हैं. इस भाव कास्वामी शुभ स्थिति में होता है अथवा अपने स्थान से दूसरे स्थान को देखता हैतो पति दीर्घायु होता है. जिस कन्या के द्वितीय भाव में शनि स्थित हो यागुरू सप्तम भाव स्थित हो एवं द्वितीय भाव
को देख रहा हो वह स्त्री भीसौभाग्यशाली होती है यानी पति की आयु लम्बी होती है.

किस उम्र में होगी शादी..???
कन्या जब बड़ी होने लगती है तब माता पिता इस बात को लेकर चिंतित होने लगते हैंकि कन्या की शादी कब होगी. ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से कन्या की लग्नकुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी बुध हो और वह पाप ग्रहों से पीड़ित नहींहो तो कन्या की शादी किशोरावस्था पार करते करते हो जाती है. सप्तम भाव मेंसप्तमेश मंगल हो और वह पाप ग्रहों से प्रभावित है तब भी शादी किशोरावस्थापार करते करते हो जाती है. शुक्र ग्रह युवा का प्रतीक है. सप्तमेश अगरशुक्र हो और वह पाप ग्रहों से दृष्टि हो तब युवावस्था में प्रवेश करने केबाद कन्या की शादी हो जाती है. चन्द्रमा के सप्तमेश होने से किशोरावस्थापार कर कन्या जब यौवन के दहलीज पर कदम रखती है तब एक से दो वर्ष के अन्दरविवाह होने की संभावना प्रबल होती है. सप्तम भाव में बृहस्पति अगर सप्तमेशहोकर स्थित हो और उस पर पापी ग्रहों का प्रभाव नहीं हो तब विवाह समान्यउम्र से कुछ अधिक आयु में संभव है.

क्या विवाह मुहूर्त में जरूरी है त्रिबल शुद्धि ???
विवाह मुहूर्त के लिए मुहूर्त शास्त्रों में शुभ नक्षत्रों और तिथियों का विस्तार से विवेचन किया गया है। उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद,रोहिणी, मघा, मृगशिरा, मूल, हस्त, अनुराधा, स्वाति और रेवती नक्षत्र में, 2, 3, 5, 6, 7, 10, 11, 12, 13, 15 तिथि तथा शुभ वार में तथा मिथुन, मेष, वृष, मकर, कुंभ और वृश्चिक के सूर्य में विवाह शुभ होते हैं। मिथुन का सूर्य होने पर आषाढ़ के तृतीयांश में, मकर का सूर्य होने पर चंद्र पौष माह में, वृश्चिक का सूर्य होने पर कार्तिक में और मेष का सूर्य होने पर चंद्र चैत्र में भी विवाह शुभ होते हैं। जन्म लग्न से अथवा जन्म राशि से अष्टम लग्न तथा अष्टम राशि में विवाह शुभ नहीं होते हैं। विवाह लग्न से द्वितीय स्थान पर वक्री पाप ग्रह तथा द्वादश भाव में मार्गी पाप ग्रह हो तो कर्तरी दोष होता है, जो विवाह के लिए निषिद्ध है। इन शास्त्रीय निर्देशों का सभी पालन करते हैं, लेकिन विवाह मुहूर्त में वर और वधु की त्रिबल शुद्धि का विचार करके ही दिन एवं लग्न निश्चित किया जाता है। कहा भी गया है—
स्त्रीणां गुरुबलं श्रेष्ठं पुरुषाणां रवेर्बलम्।
तयोश्चन्द्रबलं श्रेष्ठमिति गर्गेण निश्चितम्।।
अत: स्त्री को गुरु एवं चंद्रबल तथा पुरुष को सूर्य एवं चंद्रबल का विचार करके ही विवाह संपन्न कराने चाहिए। सूर्य, चंद्र एवं गुरु के प्राय: जन्मराशि से चतुर्थ, अष्टम एवं द्वादश होने पर विवाह श्रेष्ठ नहीं माना जाता। सूर्य जन्मराशि में द्वितीय, पंचम, सप्तम एवं नवम राशि में होने पर पूजा विधान से शुभफल प्रदाता होता है। गुरु द्वितीय, पंचम, सप्तम, नवम एवं एकादश शुभ होता है तथा जन्म का तृतीय, षष्ठ व दशम पूजा से शुभ हो जाता है। विवाह के बाद गृहस्थ जीवन के संचालन के लिए तीन बल जरूरी हैं— देह, धन और बुद्धि बल। देह तथा धन बल का संबंध पुरुष से होता है, लेकिन इन बलों को बुद्धि ही नियंत्रित करती है। बुद्धि बल का स्थान सर्वोपरि है, क्योंकि इसके संवर्धन में गुरु की भूमिका खास होती है। यदि गृहलक्ष्मी का बुद्धि बल श्रेष्ठ है तो गृहस्थी सुखद होती है, इसलिए कन्या के गुरु बल पर विचार किया जाता है। चंद्रमा मन का स्वामी है और पति-पत्नी की मन:स्थिति श्रेष्ठ हो तो सुख मिलता है, इसीलिए दोनों का चंद्र बल देखा जाता है। सूर्य को नवग्रहों का बल माना गया है। सूर्य एक माह में राशि परिवर्तन करता है, चंद्रमा 2.25 दिन में, लेकिन गुरु एक वर्ष तक एक ही राशि में रहता है। यदि कन्या में गुरु चतुर्थ, अष्टम या द्वादश हो जाता है तो विवाह में एक वर्ष का व्यवधान आ जाता है।
चंद्र एवं सूर्य तो कुछ दिनों या महीने में राशि परिवर्तन के साथ शुद्ध हो जाते हैं, लेकिन गुरु का काल लंबा होता है। सूर्य, चंद्र एवं गुरु के लिए ज्योतिषशास्त्र के मुहूर्त ग्रंथों में कई ऐसे प्रमाण मिलते हैं, जिनमें इनकी विशेष स्थिति में यह दोष नहीं लगता। गुरु-कन्या की जन्मराशि से गुरु चतुर्थ, अष्टम तथा द्वादश स्थान पर हो और यदि अपनी उच्च राशि कर्क में, अपने मित्र के घर मेष तथा वृश्चिक राशि में, किसी भी राशि में होकर धनु या मीन के नवमांश में, वर्गोत्तम नवमांश में, जिस राशि में बैठा हो उसी के नवमांश में अथवा अपने उच्च कर्क राशि के नवमांश में हो तो शुभ फल देता है।
सिंह राशि भी गुरु की मित्र राशि है, लेकिन सिंहस्थ गुरु वर्जित होने से मित्र राशि में गणना नहीं की गई है। भारत की जलवायु में प्राय: 12 वर्ष से 14 वर्ष के बीच कन्या रजस्वला होती है। अत: बारह वर्ष के बाद या रजस्वला होने के बाद गुरु के कारण विवाह मुहूर्त प्रभावित नहीं होता अगर आपके विवाह में अनावश्‍यक देरी आ रही है या आपको वैवाहिक सुख नहीं मिल पा रहा है तो आप हमसे संपर्क कर सकते हैं !

शादी के योग जानने के लिए कई शादी के केलकुलेटर इंटरनेट पर उपलब्ध हैं उनसे केवल मनोरंजन की उम्मीद की जा सकती है यदि आपको अपनी शादी के विषय में जानना है तो एक बार हमसे संपर्क करें और हमें अपनी जन्मतिथि आदि का विवरण भेज कर एक बार अवश्य आजमाएं |
हम सभी जानते हैं कि विवाह एक महत्‍वूपर्ण और पवित्र बंधन है और अगर इस रिश्‍ते को लेकर आपके मन में कोई भी दुविधा या सवाल है तो आप नीचे बताए गए नंबर पर कॉल करके ज्‍योतिषाचार्य औरं पंडित जी से बात कर अपनी समस्‍या का समाधान पा सकते हैं।

किसी भी जानकारी के लिए Call करें :  8602947815

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...