वैदिक ज्योतिष में, लग्न उस क्षण को कहते हैं जिस क्षण आत्मा धरती पर अपनी नयी देह से संयुक्त होती है। व्यक्ति के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदित हो रही होती है उसके कोण को लग्न कहते हैं।
जन्म कुण्डली में 12 भाव होते है। इन 12 भावों में से प्रथम भाव को लग्न कहा जाता है। इसका निर्धारण बालक के जन्म के समय पूर्वी क्षितिज में उदित होने वाली राशि के आधार पर किया जाता है। सरल शब्दों में इसे इस प्रकार समझा जा सकता है। यदि पूरे आसमान को 360 डिग्री का मानकार उसे 12 भागों में बांटा जाये तो 30 डिग्री की एक राशि निकलती है। इन्ही 12 राशियों में से कोई एक राशि बालक के जन्म के समय पूर्व दिशा में स्थित होती है। यही राशि जन्म के समय बालक के लग्न भाव के रूप में उभर कर सामने आती है।
एक लग्न समय लगभग दो घंटे का होता है। इसलिये दो घंटे के बाद लग्न समय स्वत: बदल जाता है। कुण्डली में अन्य सभी भावों की तुलना में लग्न को सबसे अधिक महत्व पूर्ण माना जाता है। लग्न भाव बालक के स्वभाव, रुचि, विशेषताओ और चरित्र के गुणों को प्रकट करता है। मात्र लग्न जानने के बाद किसी व्यक्ति के स्वभाव व विशेषताओं के विषय में 50% जानकारी दी जा सकती है।
ज्योतिष में लग्न कुंडली का बड़ा महत्व है। व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में जो राशि उदित होती है, उसे ही उसके लग्न की संज्ञा दी जाती है। कुंडली के प्रथम भाव को लग्न कहते हैं। प्रत्येक लग्न के लिए कुछ ग्रह शुभ होते हैं, कुछ अशुभ।। यदि लग्न भाव में 1 अंक लिखा है तो व्यक्ति का लग्न मेष होगा। इसी प्रकार अगर लग्न भाव में 2 है तो व्यक्ति का लग्न वृ्षभ होगा। अन्य लग्नों को इसी प्रकार समझा जा सकता है।
जन्म कुण्डली का लग्न मेरुदंड है ।
ज्योतिषीय दृष्टि से हमारी स्थिति लग्न मे है। हमारे जन्म समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि जितने अंश, कला, विकला पर उदय हो रही है वही हमारा लग्न है। ज्योतिष मे इसे प्रथम भाव या क्षितिज भी कहते है। वेदो मे सूर्य चंद्र के आलावा शेष पांच ग्रह मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि और द्वादश राशियो का उल्लेख नही है, इससे स्पष्ट है कि प्राचीन युग मे लग्न पद्धति के बजाय और कोई अन्य पद्धति रही होगी। वर्तमान मे भारतीय और पाश्चात्य दोनो ही ज्योतिष मे लग्न ascendant पद्धति कुण्डली बनाने मे प्रमुख और सर्वमान्य है।
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लग्न
भ चक्र के 360 अंश यानि वृत्त अर्थात द्वादश राशि क्रमशः एक के बाद एक पूर्वी क्षितिज पर उदय होती है। यह क्रम 24 घंटे या 60 घटी मे पूर्ण होकर पुनः प्रारम्भ हो जाता है और यही क्रम अनवरत चलता रहता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व स्थिर तारे की परिक्रमा 23 घण्टे, 56 मिनिट 4.091 सेकण्ड करती है और इसी परिक्रमा के कारण सम्पूर्ण आकाश पूर्वी क्षितिज पर उदय होता प्रतीत होता है।
पूर्वी क्षितिज पर उदित राशि ही लग्न है। (लग्न का शाब्दिक अर्थ है लगा हुआ) द्वादश राशिया ही द्वादश लग्न है। राशियो का मान 30 अंश ही है, परन्तु पृथ्वी का भ्रमण मार्ग दीर्घ अंडाकार है। पृथ्वी अपनी धुरी पर 23 अंश 26 कला, (26 से 30 कला तक) झुकी हुई है। इसका उत्तरीय भाग धुव्र तारे उत्तर दिशा की ओर हमेशा झुका रहता है इसी कारण विभिन्न अक्षाशो पर लग्नो का उदय मान समान नही है।
निरक्ष देश यानि शून्य अक्षांश अर्थात भूमध्य रेखा पर लग्नो के उदय काल यानि राशियो के उदय मान मे अल्प ही अंतर है। हम जैसे ही उत्तर की ओर बढ़ते है मेष-वृषभ-मिथुन, मकर-कुम्भ-मीन इन छः लग्नो का उदय मान कम होता जाता है, शेष छः लग्नो का उदय मान बढ़ता जाता है। दक्षिण की ओर इसका विपरीत होता है।
भूमध्य रेखा (विषवत रेखा या लंका) पर मेष, कन्या, तुला, मीन का उदय मान 4 घटी 39 पल, वृष, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ का उदय मान 4 घटी 59 पल 10 विपल, मिथुन, कर्क धनु, मकर का उदय मान 5 घटी 21 पल, 50 विपल है। उत्तर से दक्षिण मे राशियो का उदय मान विपरीत होगा। अतएव उत्तर अक्षांश की लग्न सारणियो से दक्षिण अक्षांश का लग्न स्पष्ट करने हेतु क्रिया विपरीत होगी।
लग्न विवेक
राशि या नक्षत्र समूह का उदय. क्षितिज पर लगना, लग्न शब्द से कहा गया है। क्रान्ति वृत्त के अश्वनी नक्षत्र से रेवती पर्यन्त 30-30 अंश तुल्य सामान भाग है। इसमे जो नक्षत्र समूह है वे ही मेष मीन राशियो के नाम से व्यवहृत है।
01- नक्षत्रो के समूह को राशि का अवयय (शरीर बिम्ब) तथा उसके बीच मे क्रांति वृत्त को उसका स्थान माना गया है। क्षितिज मे स्थान और अवयय दोनो का उदय होता है। किन्तु पृथ्वी स्थित मानव पर अवयय (बिम्ब) के उदय होने से ही उनकी किरण का शुभ अशुभ प्रभाव पड़ता है, स्थान उदय से नही पड़ता है। यदि स्थान और बिम्ब का उदय साथ-साथ होता, तो बिम्बीय और स्थानीय लग्न समान माना जाता लेकिन ऐसा नही होता है।
02- जहा क्रांति वृत्तीय 12 राशियो का उदय होता है वहा राशियो को उदय मान तुल्य नही है। किसी अक्षांश पर कुछ ही राशियो का उदय होता है। किसी स्थान पर अहोरात्र में एक ही राशि क्षितिज पर लगती है तो अन्यत्र 12 राशियो का उदय का उदय एक साथ हो जाता है।
60 अक्षांश के बाद लग्न
03- अक्षांश 60 तक तो सभी रशिया क्रम से उदय होती है। किन्तु 63 अक्षांश से राशियो के कुछ भाग लग्न नही बनते है। इसी प्रकार जब साम्पातिक काल 18 घंटे हो, तब 66 अंश 33 कला पर 8 राशि 7 अंश से 2 राशि 7 अंश का लग्न होता है। इसके बाद के उत्तरी अक्षांशो पर लग्न एकदम छः राशि कूद जाता है। कुछ अक्षांशो पर लग्न बनता ही नही है। (एन सी लाहिरी की टेबल ऑफ़ असेंडेंट्स के प्रष्ट 98 पर असेंडेंट्स ऑफ़ सरटन हायर लेटीट्यूड दिए है। इससे इन अक्षांशो पर लग्न कहा, कितना होता है यह स्पष्ट है।)
04- अतः क्रांति वृत्त का सम्पूर्ण प्रदेश सबके क्षितिज मे नही लगता। फिर क्रान्ति वृत्तीय लग्न से द्वादश भावो की कल्पना कैसे की जा सकती है ? विद्जन होरा लग्न तो ढाई घटी सिद्ध लेते है और लग्न भाव लग्न के बजाय स्थानीय लग्न लेते है, यह प्रत्यक्ष विरुद्ध है। जब होरा लग्न ढाई घटी का तो भाव लग्न (पूर्ण राशि मान) पांच घटी का सिद्ध होगा।
05- ज्योतिष की रचना पृथ्वी स्थित प्राणी मात्र के लिए है। वही पुराणकारो ने समस्त पृथ्वी को मर्त्य (मानव) लोक कहा है। किन्तु कुछ विद्जन या ज्योतिषाचार्य 66 अंश तक ही मानव लोक मानते है, जहा दिन व रात्रि का मान 60 घटी होता है, यह तथ्य भ्रामक है। हमारी स्थिति लग्न मे है। राशियो के अवयय (बिम्ब) का उदय भू मंडल पर रहने वाले सभी मानव के क्षितिज मे होता है, ऐसा बिम्बीय लग्न मे होता है।
लग्न प्रकार
लग्न के दो रूप प्रतिपादित किये गये है। 01- स्थानीय लग्न, 02- बिम्बीय लग्न। स्थापक आचार्य वराहमिहिर के समय तक उपरोक्त प्रकार के लग्नो का उपयोग दृष्ट फलार्थ और अदृष्ट फलार्थ का उपयोग होता रहा।
➧ स्थानीय लग्न दृष्ट फलार्थ : जैसे - दृक क्षेपादि, नक्षत्रादि बिम्बोदयास्त, ग्रहण आदि।
➧ बिम्बीय लग्न अदृष्ट फलार्थ : जैसे - जातक का शुभाशुभ, ताजिक, यात्रा, विवाह आदि।
पश्चात यवन कल्पित क्रान्ति वृत्तीय लग्न का उपयोग होने लगा जो आज तक प्रचलित है। इस प्रकार 60 अंश उत्तर/दक्षिण ही लग्न बनता है। फिर इससे आगे जो मानव रहते है उनका क्या ? किस प्रकार लग्न साधन किया जाय ? इसका निराकरण बिम्बीय (भाव) लग्न से हो सकता है।
बिम्बीय या भाव लग्न साधन : भचक्र या द्वादश रशियाे का उदय अहोरात्र मे हो जाता है, तब एक राशि का उदय 5 घटी मे होगा। अतः भाव लग्न पांच घटी और होरा लग्न ढाई घटी का होगा। इसलिए जातक के इष्ट घटी, पल को छः गुना करने पर जो गुणन फल आवे उसके राशि अंश कला विकला बनाले, इसमे औदयिक सूर्य के राशि अंश कला विकला जोड़ने पर योग फल स्पष्ट लग्न होगा। औदयिक सूर्य यानि सूर्योदय के समय का स्पष्ट सूर्य।
स्थानीय लग्न साधन : यह समस्त ज्योतिष कार्य मे सर्वमान्य सर्वाधिक प्रचलित लग्न प्रकार है। इसमे भुक्त भोग्यांश विधि, इष्ट व औदयिक सूर्य (भारतीय पद्धति) विधि, साम्पातिक काल (पाश्चात्य पद्धति) विधि है। इनमे वर्तमान मे साम्पातिक काल विधि ज्यादा प्रचलित है। भुक्त भोग्यांश विधि प्रचलन मे नही है।
इष्ट, औदयिक सूर्य विधि : इसे भारतीय पद्धति भी कहते है। इसके लिये जन्म तारीख, जन्म समय, जन्म स्थान के अक्षांश देशांश, स्थानिक सूर्योदय, औदयिक सूर्य, लग्न सारणी की आवश्यकता होती है। स्थानिक सूर्योदय से जन्म समय तक के घण्टा मिनिट का घटी पल बनाले, यह इष्ट घटी पल होगा। औदयिक सूर्य के घटी पल लग्न सारणी से लेवे। इष्ट घटी पल मे औदयिक सूर्य के घटी पल जोड़े। योगफल का लग्न सारणी से प्राप्त राशि अंश कलादि लग्न होगा। इसमे अयनांश संस्कार करने पर स्पष्ट लग्न होगा।
साम्पातिक काल से लग्न साधन : अर्वाचीन पद्धतियो के अन्यत्र साम्पातिक काल पद्धति से स्थानीय लग्न साधन सरल, सुगम और शुद्ध है। इसके लिये जन्म तारीख, जन्म समय, जन्म स्थान के अक्षांश देशांश, साम्पातिक काल, साम्पातिक काल से साधित लग्न सारणी की आवश्यकता होती है। इसमे प्रामाणिक समय standard time S T को मध्यम स्थानिक समय L M T मे परवर्तित कर उपयोग किया जाता है।
साम्पातिक काल - इसे नाक्षत्र काल भी कहते है। यह समय नक्षत्रो की गति से सम्बन्ध रखता है। प्रत्येक नाक्षत्र दिन 23 घण्टा, 56 मिनिट, 4. 091 सेकण्ड का होता है। इसकी गति 10 सेकण्ड प्रति घंटा या 4 मिनिट प्रति दिन (3 मिनिट 56.55636 सेकंड) है। यह मेष संक्राति या वसंत सम्पत पर शून्य होता है। तत्पश्चात्य 4 मिनिट से अधिक या कम प्रतिदिन बढ़ाता है। यह सूर्य काल या सावन दिन से 4 मिनिट कम होता है। मध्यान्ह काल का नाक्षत्र काल दशम का विषुवांश है। प्रत्येक देशांश पर ⅔ सेकण्ड या 0.66 पश्चिम के लिए जोड़ना और पूर्व के लिए घटना पड़ता है।
मध्यम स्थानिक समय - यह प्रामाणिक समय IST (स्टेंडर्ड टाइम) से बनाया जाता है। प्रामाणिक समय के देशांश से जन्म स्थान के देशांश अंतर को देशांश प्रमाण 4 मिनिट प्रत्येक देशांश पूर्व हो, तो घटाने और पश्चिम हो, तो जोड़ने पर मध्यम स्थानिक समय (लोकल मीन टाइम L M T) होगा।
विधि : संस्कारित साम्पात्तिक काल (साम्पात्तिक काल ± समय गति संस्कार ± देशांश संस्कार ) मे स्पष्ट स्थानिक समय (प्रमाणिक समय ± समय संस्कार) जोड़े। योगफल विषुव काल होगा (RAMC) यह 24 से अधिक हो, तो इसमे से 24 घटाये। इस विषुव काल से स्वस्थान की साम्पात्तिक काल से साधित लग्न सारणी से लग्न स्पष्ट करे, इसमे अयनांश संस्कार करने पर निरयण स्थानिक लग्न होगा।
आजकल कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर से जन्म पत्रिका बनाने का प्रचलन है। यह सरल, सुगम, त्रुटि व परिश्रम रहित है। भारत मे अधिकतर सॉफ्टवेयर दृश्य गणित पर आधारित है। इनमे निरयण पद्धति हेतु चित्रा पक्षीय अयनांश ही लेवे।
द्वादश लग्न फल
मेष लग्न : इसका स्वामी मंगल है। सूर्य इस राशि मे उच्च और शनि नीच का होता है। जातक दुर्बल, अभिमानी, वाचाल, बुद्धिमान, तेज स्वभाव वाला, रजोगुणी, चंचल, स्त्रियो से द्वेष रखने वाला, धर्मात्मा, अल्प संतान वाला, कुल दीपक, उदार वृत्ति वाला होता है। जातक को 1, 3, 6, 8, 15, 21, 36, 40, 45, 56, 63 इन वर्षो मे शारारिक कष्ट, अवनति, धन हानि होती है। तथा 16, 20, 28, 34, 41, 48, 51 इन वर्षो मे भाग्य वृद्धि, धन लाभ, वाहन सुख आदि प्राप्त होते है।
मेष लग्न विभूतिया : श्री हनुमान, राजा कंश, पृथ्वी राज चौहान, टीपू सुल्तान, दादा भाई नौरोजी (पारसी, भारत के वयोवृद्ध पुरुष) गुलजारीलाल नंदा (पूर्व प्रधान मंत्री) बीनाराय (अभिनेत्री) अशोककुमार (अभिनेता) सौरव गांगुली (क्रिकेटियर) कपिलदेव (क्रिकेटियर)
वृषभ लग्न : इसका स्वामी शुक्र है। इस राशि मे चन्द्रमा उच्च का होता है। जातक गौर वर्ण, स्त्रियोचित स्वभाव वाला, मधुर भाषी, शौकीन, उदार, रजोगुणी, ऐश्वर्यवान, अच्छी संगती मे बैठने वाला, पुत्र रहित, लम्बे दांत व कुंचित केश वाला, पूर्णायु और 36 की आयु बाद दुःख भोगने वाला होता है। 1, 28, 35, 36, 44, 61 वे वर्ष मे शारारिक कष्ट व हानि होती है यानि ये वर्ष अशुभ होते है। 18, 21, 25, 28, 32, 35, 40, 43, 45, 48, 52 वे वर्ष शुभ लाभप्रद होते है।
वृषभ लग्न विभूतिया : श्रीकृष्ण, नाना फडणवीस (मराठा पेशवा सल्तनत मंत्री) सर जगदीशचंद्र बोस (रेडियो और माइक्रोवेव वैज्ञानिक) जार्ज बर्नार्डशा (प्रसिद्ध लेखक, राजनीतिज्ञ) सोहराब मोदी (चलचित्र दिग्दर्शक) सुश्री लतामंगेशकर (पार्श्वगायिका, भारतरत्न) निकिता खुश्चेव (राजनीतिज्ञ, सोवियत संघ रशिया)
मिथुन लग्न : इसका स्वामी बुध है। इसमे मतान्तर से राहु उच्च और केतु नीच का माना जाता है। जातक गेहुंआ रंग वाला, गोल चहरे वाला, हास्य रस मे प्रवीण, गायन-वाद्य रसिक, स्त्रियो की अभिलाषा वाला, विषयासक्त, शिल्पज्ञ, चतुर, परोपकारी, गणितज्ञ, तीर्थ यात्रा करने वाला, प्रथम और अंतिम अवस्था मे सुखी लेकिन मध्यावस्था मे दुखी, 32 से 35 अवस्था मे भाग्योदय वाला, मध्यमायु होता है। 4, 10, 14, 24, 26, 38, 58 वे वर्ष मे शारीरिक व अन्य प्रकार के कष्ट, व्याधिया होती है। 20, 25, 29, 32, 33, 40, 43, 48 वे वर्ष शुभ होते है व नाना प्रकार के सुख मिलते है।
मिथुन लग्न विभूतिया : जगतगुरु आद्य शंकराचार्य, मुरारजी देसाई (पूर्व प्रधानमंत्री) ज्यो.पं.सूर्यनारायण व्यास, (पद्मश्री, उज्जैन) अनिल विश्वास (संगीत निर्देशक) दलाई लामा (बौद्ध धर्मगुरु) डॉ. अलबर्ट आइन्स्टाइन (वैज्ञानिक) जी मार्कोनी (इटालियन रेडियो अविष्कारक)
कर्क लग्न : इसका स्वामी चन्द्रमा है। इस राशि मे गुरु उच्च और मंगल नीच का होता है। जातक हस्वकाय, कुटिल स्वभाव, स्थूल शरीर, स्त्रियो के वशीभूत, धनिक, जलाशय प्रेमी, मित्र द्रोही, शत्रुओ से पीड़ित, कन्या संतति वाला, व्यापारी, स्वस्थान त्यागकर अन्य स्थानवासी, 16-17 की उम्र में भाग्योदय प्राप्त करने वाला, व्यसनी होता है। 5, 25, 40, 48, 62 वे वर्ष मे शारीरिक कष्ट होते है। 18, 22, 28, 32, 42, 48 वे वर्ष मे सफलता, उन्नति, लाभ होता है। प्रायः इस लग्न वालो को दाम्पत्य जीवन का पूर्ण सुख नही मिलता है।
कर्क लग्न विभूतिया : श्रीराम, श्री बुद्धदेव, सम्राट विक्रमादित्य, श्री रामानुज, लोकमान्य तिलक, पं.जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, श्रीमती इंदिरा गांधी, श्रीमती सोनिया गाँधी, के आर नारायण (पूर्व राष्ट्रपति) सद्दाम हुसैन (तानाशाह राष्ट्रपति इराक) माधुरी दीक्षित (सिनेतारिका) मेरेलीन मेनरो (हॉलीवुड अभिनेत्री)
सिंह लग्न : इसका स्वामी सूर्य है। इस राशि मे कोई भी ग्रह उच्च अथवा नीच का नही होता है। जातक पराक्रमी लम्बे हाथ-पैर वाला, चौड़े वक्ष वाला, पतली कमर वाला, ताम्र वर्णी, तेज स्वाभाव वाला, क्रोधी, वेदांत का ज्ञाता, घुड़सवारी प्रेमी, अस्त्र-शस्त्र चलने में निपुण, उदार वृत्ति, साधु सेवा मे रत, प्रथम और अंतिम अवस्था मे सुखी मध्यावस्था मे दुखी होता है। 21 या 28 वर्ष की अवस्था मे भाग्योदय होता है। वर्ष 20, 21, 22, 28, 34, 36, 42, 51 वे शुभ और 5, 13 26, 36, 38 वे वर्ष मे कष्ट, रोग, व्याधि आदि होते है।
सिंह लग्न विभूतिया : सम्राट सिकंदर, बादशाह अकबर, छत्रपति शिवाजी, माधवराव पेशवा, गुरु नानक, सरोजिनी नायडू (नाइटेंगल आफ इंडिया) डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी, भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र, एंड्रू जॉन्सन (17 वे अमेरिकन राष्ट्रपति) राजीव गाँधी (पूर्व प्रधान मंत्री) सनत जयसूर्या (क्रिकेटियर) विनोद खन्ना (अभिनेता)
कन्या लग्न : इसका स्वामी बुध है। इस राशि मे राहु स्वक्षेत्री माना जाता है। यह बुध की उच्च राशि भी है। इसमे शुक्र नीच का माना जाता है। जातक जिज्ञासु, श्रृंगार प्रिय, बड़े नेत्र वाला, स्थूल तथा सामान्य शरीर वाला, अल्प व प्रिय भाषी, स्त्री के वशीभूत, चतुर, गणितज्ञ, भ्रमणशील, कन्या संतति उत्पन्न करने वाला, धर्म मे रुचिवान, गंभीर स्वभाव वाला, मन की बात किसी से नही कहने वाला, बाल्यावस्था मे सुखी, मध्यावस्था मे सामान्य, वृद्धावस्था मे दुःखी होता है। 23-24 से 36 पर्यन्त भाग्योदय से धन-ऐश्वर्य प्राप्त करने वाला होता है। वर्ष 20, 28, 32 से 36, 40, 48, 51, 53 शुभ और 16, 23, 36, 45 वर्ष अशुभ कष्ट दायक होते है।
कन्या लग्न विभूतिया : बादशाह शांहजहां, बेरिस्टर जमनादास मेहता, सी के नायडू (क्रिकेटियर) सरसेठ हुकमचन्द (इन्दौर) मुकेश (पार्श्वगायक) दादा साहब फालके, हैरी एस ट्रूमैन (अमेरिकन राष्ट्रपति विश्वयुद्ध 2) ज्योति बासु (मुख्यमंत्री, पश्चिमी बंगाल) पी व्ही नरसिम्हाराव (पूर्व प्रधान मंत्री)
तुला लग्न : इसका स्वामी शुक्र है। इस राशि मे सूर्य नीच और शनि उच्च का होता है। जातक सतोगुणी, गौरवर्ण, परोपकारी, देवता-तीर्थ मे प्रीति रखने वाला, स्त्रियो का द्रोही, मोटी नासिका वाला, व्यापारी, ज्योतिषी, वीर्य विकारी, प्रथम अवस्था मे दुःखी, मध्यावस्था मे सुखी, अन्त्यावस्था में सामान्य, मध्यमायु होता है। 31 या 32 वर्ष की आयु मे भाग्य वृद्धि होती है। 18, 22, 27, 29, 31, 32, 38, 40, 48, 51 वे वर्ष शुभ और 15, 30, 35, 50, 62, 64 वे वर्ष अशुभ होते है।
तुला लग्न विभूतिया : लंकेश्वर रावण, महत्मा ईसा, सम्राट नेपोलियन, बादशाह जहाँगीर, महारानी लक्ष्मीबाई (झांसी) आचार्य विनोबा भावे, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, डॉ. राजेंद्रप्रसाद (राष्ट्रपति) गोपालकृष्ण गोखले (ग्लेडस्टोन, भारत) राजकपूर (अभिनेता) दिलीपकुमार (अभिनेता) अडोल्फ हिटलर (जर्मन तानाशाह) विन्सेन्ट चर्चिल (प्रधान मंत्री, इंग्लैंड द्वितीय विश्वयुद्ध) जॉन एफ कैनेडी (राष्ट्रपति, अमेरिका) अटल बिहारी बाजपेयी (प्रधान मंत्री, भारत) आइजेक न्यूटन (वैज्ञानिक, गुरुत्वाकर्षण और गति का सिद्धांतक)
वृश्चिक लग्न : इसका स्वामी मंगल है। इस राशि मे चन्द्रमा नीच का होता है। कोई ग्रह उच्च का नही होता है। जातक हस्व काय, स्थूल शरीर, गोल नेत्र, चौड़ी छाती वाला, निंदक, सेवा कर्म करने वाला, कपटी, पाखंडी, झूठ बोलने वाला, भ्राताओ का द्रोही, कटु स्वाभाव, भिक्षावृत्ति करने वाला, तमोगुणी, पराये मन की बात जानने वाला, ज्योतिषी, दया रहित होता है। प्रथमावस्था मे दुखी, मध्यावस्था मे सुखी, पूर्णायु होता है। 20 से 24 वे वर्ष में भाग्योदय होता है। वर्ष 18, 21, 22, 27, 32, 34, 36, 42, 43, 48, 49 वे शुभ उन्नति करक और 11, 28, 38, 52, 62 वे वर्ष अशुभ कष्ट कारक होते है।
वृश्चिक लग्न विभूतिया : श्री गणेश, वल्ल्भाचार्य महप्रभु, सी राजगोपालाचार्य (अन्तिम गवर्नर जनरल, भारत) लालबहादुर शास्त्री (पूर्व प्रधान मंत्री) दोराबजी टाटा (टाटा ग्रुप के संस्थापक, शूरवीर ब्रिटिश इंडिया) प्रेमनाथ (अभिनेता) बेनिटो मुसोलिनी (फासिस्ट नेता, इटली द्वितीय विश्वयुद्ध) माधवराव सिंधिया (कांग्रेसी नेता) लालकृष्ण अडवाणी (पूर्व गृहमंत्री) डॉ. ऍम एस गिल (मुख्य चुनाव आयुक्त) श्री सत्यसाई बाबा (पुच्चपुट्टी) नरेंद्र मोदी (प्रधानमंत्री)
धनु लग्न : इसका स्वामी गुरु है। इसमे केतु मतान्तर से उच्च का माना जाता है। जातक सतोगुणी, अच्छे स्वभाव वाला, बड़े दांत वाला, धनिक, ऐश्वर्यवान, कवि, लेखक, प्रतिभावान, व्यापारी, यात्रा करने वाला, विद्वान, महात्माओ की सेवा करने वाला, पिंगल वर्ण, पराक्रमी, अल्प संतान वाला, प्रेम से वशीभूत होने वाला होता है। प्रथमावस्था मे सुख भोगने वाला, वृद्धावस्था मे धन-ऐश्वर्य से परिपूर्ण और 23-24 वे वेश मे धन लाभी होता है। 17, 19, 27, 29, 36, 42 54 वे वर्ष शुभ और 2, 10, 18, 31 38, 62, 67 वे वर्ष अशुभ होते है।
धनु लग्न विभूतिया : वासुदेवानंद सरस्वती (टेम्बे स्वामी, दत्तात्रय के अवतार) मोहम्मद गौरी (मुसलमानी साम्राज्य छोड़कर गजनी वापस गया) , व्ही के कृष्णमेनन (रक्षामंत्री भारत-चीन युद्ध) ईश्वरचंद विद्यासागर दार्शनिक शिक्षा शास्त्री) सचिन तेंदुलकर (क्रिकेटियर) श्रीमती मार्गरेटथेचर (भूतपूर्व प्रधानमंत्री, ब्रिटेन) रेखा (अभिनेत्री) कीरो (हस्तरेखाविद) हीरो हिटो (सम्राट, जापान)
मकर लग्न : इसका स्वामी शनि है। इस राशि मे गुरु नीच व मंगल उच्च का होता है। जातक तमोगुणी, सुन्दर नेत्र वाला, पाखंडी, आलसी, खर्चीला, भीरु, अपने धर्म से विमुख, स्त्रियो मे आसक्त, कवि, निर्लज्ज होता है। प्रथमावस्था मे सामान्य, मध्यावस्था मे दुखी, पूर्णायु और अंत मे सुख भोगने वाला होता है। 5, 13, 27, 36, 46, 57, 62 वे वर्ष अशुभ, कष्ट दायक और 20, 22, 29, 32, 40, 43, 50, 53 वे वर्ष शुभ फल दायक होते है।
मकर लग्न विभूतिया : सम्राट हर्षवर्धन, महाराणा प्रताप, मेहर बाबा (आध्यात्मिक गुरु, हनुमान का अवतार) महावीर स्वामी (जैन 24 वे तीर्थंकर) राजर्षि पुरुसोत्तमदास टंडन (भारत रत्न, हिन्दी राष्ट्रभाषा के लिए योगदान) गुरु गोलवलकर (आर एस एस) व्ही शांताराम (दिग्दर्शक) टी एन शेषन (मुख्य चुनाव आयुक्त) सुनील गावस्कर (क्रिक्रेटियर) काशीराम व सुश्री मायावती (दलित नेता) डायना (वेल्स की राजकुमारी)
कुम्भ लग्न : इसका स्वामी शनि है। इसमे कोई भी ग्रह उच्च अथवा नीच का नही होता है। जातक रजोगुणी, छोटी गर्दन वाला, अभिमानी, द्वेष युक्त, गंजे सिर वाला, ऊँचे शरीर वाला, पर स्त्रियो का अभिलाषी होता है। यह प्रथमावस्था मे दुखी, मध्यावस्था मे सुखी, अंतिम अवस्था मे धन, पुत्र, भूमि को भोगने वाला होता है। 24-25 वर्ष की अवस्था मे भाग्योदय होता है। इसके 18 से 22, 27, 34, 42, 50, 52 वे वर्ष शुभ 2, 28, 33, 48, 64 वे वर्ष कष्ट दायक अशुभ होते है।
कुम्भ लग्न विभूतिया : बादशाह ओरंगजेब, स्वामी विवेकानंद, बेरिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना (प्रथम गवर्नर जर्नल, पाकिस्तान) जयशंकर प्रसाद (विख्यात नाटककार) कुन्दनलाल सहगल (पार्श्वगायक) देवानंद (अभिनेता) साम्रागी एलिज़ाबेथ (इंग्लैंड) डॉ. व्ही व्ही रमन (ज्योतिषाचार्य) सीताराम केसरी (कांग्रेस अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री) श्रीमती सीरिमावो भंडारनायके (विश्व प्रथम महिला प्रधानमंत्री, श्रीलंका) मधुबाला (अभिनेत्री) अमिताभ बच्चन (अभिनेता) कार्लमार्क्स (जर्मन समाजवादी दार्शनिक)
मीन लग्न : इसका स्वामी गुरु है। इस राशि मे शुक्र उच्च का होता है। जातक सतोगुणी, बड़े नेत्र वाला, टोडी मे गड्डा, सामान्य शरीर वाला, प्रेमी, स्त्री के वशीभूत, विशाल मस्तिष्क वाला, रोगी, आलसी, विषयाशक्त, अकस्मात हानि उठाने वाला होता है। प्रथम अवस्था में सामान्य, मध्य मे दुःखी और अंत्य अवस्था मे सुख भोगने वाला होता है। 21-22 वे वर्ष मे भाग्योदय होता है। वर्ष 29, 21, 29, 34, 42, 43 50, 52 वे शुभ लाभ दायक तथा 8, 13, 36, 48, अशुभ कष्ट दायक होते है।
मीन लग्न विभूतिया : रामकृष्ण परमहंस (महान संत, विचारक) स्वामी रामतीर्थ (वेदांत दर्शन गुरु) रवीन्द्रनाथ टैगोर (भारत रत्न, विश्वकवि) आइजन हॉवर (अमेरिकन राष्ट्रपति) शबाना आज़मी (अभिनेत्री)
लग्नगत राशि फल
भारत मे जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि मे हो उसे जन्म राशि मानते है। यहा फलादेश लग्न मे रहने वाली राशि का है। यह तथ्य भिन्न है कि जो जन्म लग्न की राशि है वही जन्म राशि भी हो।
मेष लग्न फलादेश :
जातक रक्त गौर वर्ण, कफ प्रकृति, क्रोधी, कृतघ्न, मंदबुद्धि, स्त्री और नोकरो से पराजित, विदेश गमन करने वाला, कम भाई-बहन, बंधु (मित्र) वाला, ईर्ष्यालु, स्थान पदच्युत, चतुर, विशिष्ट, श्रेष्ट कार्य करने वाला होता है।
जातक विपरीत आचरण वाला, सहज मे मित्रो से ख्याति प्राप्त करने वाला, अल्पबुद्धि, कुमित्र वाला, डरपोक, स्थिर, धनवान, दुःखी, नीचकर्मी, शत्रु को पराजित करने वाला होता है। माता-पिता से अलग पैतृक संपत्ति नही प्राप्त करने वाला होता है। पत्नी सुकुमार, शीलवती, अपंग या किसी अंग मे रोग वाली होती है।
व्यवसाय - जातक उद्योग, व्यापार, कृषि मे सफलता पाता है। धातु या अग्नि कार्य में विशेष सफल होता है। मशीन, औजार, धातु के उत्पाद, कृषि-बागवानी, शल्य चिकित्सा, न्यायपालिका अथवा सेना, सुरक्षा या पुलिस या आरक्षी कार्यो से धन व आजीविका पाता है। मेष लग्न मे इंजीनियर, डाक्टर, अग्निशमन अधिकारी, यूनियन नेता, बेकरी या मिठाई या भट्टी पर काम करने वाले होते है।
वृषभ लग्न फलादेश :
वृषभ लग्न मे मानसिक रोगी, स्वजन से अपमानित, मित्रजनो का वियोग, कलह, दुःखी, शस्त्राघात, धनहानि, सुभग, यशस्वी, वस्त्राभूषण युक्त, अन्नलोभी, पत्नी व कन्या प्रिय, पैतृक सम्पति का अधिकारी होता है।
जातक दृढ़ वक्ष वाला, स्वजनो से कुचला जाने वाला, धर्म मे रूचि रखने वाला, कफ-वात जनित रोगो से पीड़ित, व्यापार, कृषि, जुवां, जल से धन प्राप्त करने वाला, स्थिर, चतुर, स्वयं पर निर्भर रहने वाला, कीर्ति प्राप्त करने वाला होता है। जातक की पत्नी प्रचण्डा, बंधुओ से दुर्वव्यहार करने वाली, वासना युक्त, कुयोनि वाली होती है।
व्यवसाय - मुनीम अथवा लेखापाल, धन लेनदेन, कलात्मक कार्य, रंगमंच, होटल प्रसाधन सामग्री, परिवहन, रत्न-आभूषण, भवन निर्माण, कृषि उत्पाद से आजीविका करता है। महिला सम्बन्धी काम में सफल होता है।
मिथुन लग्न फलादेश :
मिथुन लग्नोत्पन्न जातक मानी, स्वजनो का प्रिय, दाता, भोगी, धनी, कामी, दीर्घसूत्री, शत्रुओ को जीतने वाला, मधुर भाषी, शास्त्रार्थ व संगीत कला मे माहिर, भोग-विलास मे रत, काम के वशीभूत, श्रेष्ट स्त्री वाला, दो माताओ वाला, चतुर, श्रेष्ठ होता है।
जातक कम या अधिक अंग वाला, विशेष कार्य करने वाला, असहनशील, नीच कुटुंब में रहने वाला, कम भाई-बहन वाला, धन व धर्म मे आलसी, रोग सहने वाला, शत्रुओ का नाश करने वाला, अंतर्मुखी, शराबी, रत्न, सोना, भूमि से हिस्सा प्राप्त करने वाला, प्रसिद्ध वक्ता, विनय पूर्वक व्यवहार करने वाला होता है।
व्यवसाय - पढ़ने पढ़ाने और लिखने पढ़ने मे सफल होता है। लेखक, पत्रकार, सम्पादक, प्रोफ़ेसर या अध्यापक, संचार कार्य, डाक, दूरभाष, दूरदर्शन, रेडियो, पर्यटन प्रबंधक, यात्रा अभिकर्ता, वाणिज्य-व्यापार, साझेदारी, औषधि उद्योग, वस्त्र उद्योग से आजीविका करता है। आयत-निर्यातक, इंजीनियर, डाक्टर, लेखाधिकारी बनकर धन अर्जित करता है।
कर्क लग्न फलादेश :
कर्क लग्नोत्पन्न जातक विषम स्वभाव वाला, अकेला नही रहने वाला, ब्राह्मण-देवताओ का भक्त, दया सहित दान करने वाला, वायु-कफ से पीड़ित, डरपोक, चंचल, दूसरो का धन भोगने वाला, पूज्यवान कुल वाला, दुष्ट पुत्र वाला, अच्छे भाई-बहन व श्रेष्ट कन्या वाला, वाचाल, कामी, बहुत आत्माओ को जीतने वाला होता है।
जातक कुलीन पत्नी वाला, धन-धान्य आभूषण से युक्त, साहसी, धैर्यवान, विदेश गामी, दुष्ट मित्रो वाला, हमेशा अहित एवं पापाचरण करने वाला, धर्मात्मा, भोगी, सबका प्रिय, धनवान, ईमानदार, संवेदनशील, भावुक, प्रतिभा संपन्न, परिश्रमी होता है।
व्यवसाय - रचनात्मक कार्यो मे सफल होता है। जल, परिवहन, समुद्री उत्पाद, रासायनिक द्रव्य, डेयरी या कपडा उद्योग, जवाहरात, स्वल्पाहार गृह से जीविका होती है। अभिनय, नृत्य, संगीत, नर्स, चिकित्सक, शस्त्र सञ्चालन, विस्फोटक पदार्थ, शास्त्र आदि से जीविकापार्जन होती है।
सिंह लग्न फलादेश :
सिंह लग्नोत्पन्न जातक भोगी, शत्रु को जीतने वाला, पतली कमर, पुष्ट व मांसल देह, उत्साही, रण मे पराक्रमी, वन-पर्वत घूमने वाला, भूख सहने वाला, कुटुम्ब का कार्य करने वाला, भाई, मित्रो मे चित्त रखने वाला होता है।
जातक आकर्षक, सिंह के सामान मुख वाला, नृपतुल्य, धैर्यवान, गम्भीर, साहसी, विलास प्रिय, अल्प भाषी, भाई-बंधु के प्रति दयालु, दुःख सहने मे अत्यंत क्रोधी, अभिमानी, आडम्बरी, खर्चीला, वायु रोग से पीड़ित, धर्म से विमुख, मांसाहारी, शिकार शौकीन होता है।
व्यवसाय - कार्यक्षेत्र मे उन्नति से महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करता है। स्वर्णाभूषण, कलाकृति, संगमरमर, प्रबंध व्यवस्था, सरकार, सेना, राजनीति, उद्योग, होटल, पशु प्रजनन, कृषि, वन उत्पाद से जीविका होती है। भूविज्ञान या तकनीक, अनुसन्धान, खेलकूद, अभिनय आदि से मान-सम्मान, धन-यश प्राप्त होता है।
कन्या लग्न फलादेश :
कन्या लग्नोत्पन्न जातक मृदुभाषी, दयावान, कामी, सुन्दर, सुभग, दान देने मे विनम्र, प्रेमी, स्वजाति मे पूज्य, बलवान, परिवार पालक, स्त्रियो का अहित करने वाला, पापी व शत्रु के विरुद्ध, क्रोधी, द्वेषी होता है।
जातक महिला अनुरागी, विलासी, साहसी, यश का इच्छुक, पर धन लोभी, घुमक्कड़, द्विस्वभाव वाला, मंदगति से संतान प्राप्त करने वाला, धर्मरत, अभिमानी, शास्त्र अनुवादक, सौभाग्य और गुणो से संपन्न, खुशमिजाज, अल्हड, सुरूप, सूरत प्रिय होता है।
व्यवसाय - बुद्धिबल आधारित हिसाब-किताब, लेखा, प्रबंध व्यवस्था, लेखन, पत्रकारिता, सर्वेक्षण, सांख्यकी संग्रह, सूचना प्रसारण, अभिनय या गायन, कला, आभूषण, वाहन, व्यापार से अर्थ कमाता है।
तुला लग्न फलादेश :
जातक बुद्धिमान, पंडित, सब कलाओ मे निपुण, धनी लोकमान्य, सुकर्म से जीविका करने वाला होता है। सफ़ेद, काला, लाल रंग प्रिय, अल्प आय वाला, विषयी, वक्ता, धर्म भीरु या धर्म मे रत, अत्यंत दुखी होता है।
जातक देश मे घुमने वाला, कफ-वायु से पीड़ित, इतिहास या पुराण ज्ञाता, कलह करने वाला, प्रिय पत्नी वाला, गुरु ब्राह्मण का कृतज्ञ व पूजक, कुलीन, पिता का प्रिय, सम्मानित, पापी, भाई-बंधु वाला, अल्प शक्तिवान, निर्बल शत्रु वाला, काव्य निपुण होता है।
व्यवसाय - न्यायाधीश, अभिभाषक, जोहरी, अभिनेता, दिग्दर्शक, निर्देशक आदि से जीविका होती है। सौन्दर्य प्रसाधन. सजावट, बहुमूल्य पोशाक विक्रय से धनोपार्जन होता है। फल, शब्जी, अनाज विक्रय, विमान या अंतरिक्ष कार्य, रबड़, प्लास्टिक उद्योग, वाहन चलन, मरम्मत कार्य धन दायक होते है।
वृश्चिक लग्न फलादेश :
जातक धनी, आत्मविश्वाशी, शूर, ज्ञानी, कुल मे श्रेष्ट, विवेकी, परिवार पोषक, रक्तल्पता के कारण पीतवर्णी, भूरे नेत्र, पित्त से पीड़ित, विश्वासघाती, माता का अनिष्ट करने वाला होता है।
जातक अचल साहसी, विषम स्वभावी, थोड़े भाई-बहन बंधु वाला, दूसरो का अन्न खाने वाला, महारोगी, शत्रुओ से झगड़ा करने वाला, शूरवीर, पर स्त्री गामी, राजसेवक, पाप से धनी, दूसरो पर आश्रित, दानी, समृद्ध नारी मे निरत, नाचने वाला होता है।
व्यवसाय - उद्योग, व्यापार, सुरक्षा, सेना, पुलिस, कर्मचारी, सेवक, रसायन, औषधि, विज्ञान, मन्त्र, तंत्र, गुप्त विद्या, कला, शासकीय कार्य, लोहा-स्पात कार्य, कोर्ट-कचहरी कार्य, दाल-मसाले, उपभोक्ता वस्तु से जीविका होती है। जहाजरानी, समुद्री तट, स्त्रियो से सम्बन्धी वस्तुओ का कारोबार लाभप्रद होता है।
धनु लग्न फलादेश :
जातक नीतिज्ञ, धनी, बुद्धिमान, लोकपूज्य कुल मे श्रेष्ट, पौत्रादि से युक्त, बुद्धिमानो से दूर रहने वाला, ब्रम्हतत्व का ज्ञाता, शत्रुहंता, पुष्ट देह, बड़ी आँखे, कुरूप नख, स्थूल भुजा, जाँघे, वक्ष वाला, सुन्दर नाक कान वाला होता है। जातक परोपकारी, शास्त्रो का ज्ञाता, क्रोधी, मृदुभाषी, कुलीन, सत्यवक्ता, स्वधन स्वयं के लिए उपयोग करने वाला, भाइयो का प्रिय, कला रत, शांतिपूर्वक शत्रुहंता, बहु पुत्रवान, कफ-वात, नेत्र-कान रोगी, नीच कार्य करने वाला, राजा या श्रेष्ठिजनो पर आश्रित होता है।
व्यवसाय - जातक अध्ययन, अध्यापन, प्रबंधन, परामर्श, दर्शन, प्राध्यापक, व्याख्याता, लेखक, प्रकाशक, पुस्तकालय अध्यक्ष, विधायक, मंत्री, सचिव, वकील, पुजारी से जीविकापार्जन करता है। यह सेना कमांडर, लेखाकार, इंजीनियर, चिकित्सक, घुड़सवार, खिलाडी, पशु चिकित्सक, ज्योतिषी भी होता है।
मकर लग्न फलादेश :
मकर लग्नोत्पन्न जातक नीच कर्म मे रत, आलसी, दुश्चरित्र, बहु संतानि, खर्चीला, मृग के सामान डरपोक, सुंदर, साहसी, कोमल प्रकृति, मादक नयन, शरीर पर बहुत रोम वाला, विस्तृत वक्ष, भूखा रहने वाला, वन-पर्वत घुमने वाला होता है।
जातक संगीत में रुचिवान, दुर्बल देह, घायल अंग वाला, पत्नी आलसी लेकिन सुन्दर, खर्चीला, धर्म हेतु प्रवासी, राज्य से कला द्वारा धनी, साहसी, अनेक पुत्री वाला, नीच कुटम्बी, स्त्रियो के वशीभूत, दुःखी धूर्त होता है।
व्यवसाय - जातक प्रभुता संपन्न, प्रतिष्ठित होता है। द्रव्य पदार्थ, समुद्री उत्पाद, रसायन या पेय पदार्थ, कृषि या बागवानी उपकरण विक्रय से आजीविका करता है। ये कुशल प्रबंधक, भवन निर्माता, दन्त चिकित्सक, ग्रामीण और कुटीर उद्योगी, बैंक अधिकारी, लोक कार्य प्रशासक, संघठन कर्ता होते है। कभी-कभी ईश्वर उपासना, ध्यान योग-समाधि, कथा वाचन से भी धन कमाते है।
कुम्भ लग्न फलादेश :
कुम्भ लग्नोत्पन्न जातक श्रेष्ट कुल का होकर हीन व मलिन कार्यरत, कलह करने वाला, स्वेच्छाचारी, क्रोधी, पिपासु (प्रश्न करने वाला) कफ-वायु से पीड़ित, भूसम्पदा हेतु चिंतित, दुर्जन, अपयशी, अधिक कर्मनिष्ठ, महा आलसी, जुएं और स्त्री मे रत, प्रवासी, खर्चीला, माता से त्यक्त होता है।
जातक निन्दित कर्मी, दुष्ट व्यवहारी, कलह करने वाली स्त्री प्राप्त करता है। मित्रो का हितेषी, धूर्तो से द्वेष करने वाला, कफ विकारी, परिश्रमी, स्थिर बुद्धि, दुष्ट व द्वेषी से मैत्री करने वाला, पर स्त्री रत, विदेश वासी, भाग्य मे उतार-चढाव और उलट-फेर सहने वाला, हताशा युक्त होता है।
व्यवसाय - जातक प्रतिभा संपन्न, बुद्धिजीवी होता है। विज्ञान, पुरातत्व, ज्योतिष, साहित्य, कम्प्यूटर के क्षेत्र मे सफल होता है। अग्नि शमन सेवा, विद्युत इंजीनियरी, सेना अथवा आयुध से जीविका होती है। अंतरिक्ष विज्ञान, रेडियो, दूरदर्शन, अनुसन्धान कार्य से धन व यश प्राप्त होता है। कोई-कोई जातक समाज सेवक, स्थानीय निकाय अधिकारी, लेखक, पायलेट होता है।
मीन लग्न फलादेश :
मीन लग्नोत्पन्न जातक रत्न सुवर्ण से परिपूर्ण, अल्पकामी, कृश शरीर, सोच विचार कर कार्य करने वाला, बुरे कर्मो मे रत, अपराधी, साहसी, धार्मिक, विनम्र, सुन्दर मुख मंडल वाला होता है।
जातक नृत्य और गायन कला मे निपुण, कन्या संतति वाला, अनुभवी, विश्वासी, कीर्तियुक्त, धनवान, बड़े कुटुंब वाला, असहनशील, तेजस्वी, उदार फल हेतु परिश्रमी, धैर्यशाली, करुणाशाली, निर्बल शत्रु वाला, लम्बे हाथ वाला, रोगी किन्तु शीघ्र स्वास्थ्य लाभी होता है। विष से मृत्यु या कष्ट को प्राप्त होता है।
व्यवसाय - जातक जल सम्बन्धी कार्य, समुद्र से आयत निर्यात, जलाशय या बांध निर्माण, जल व पेय पदार्थो से जीविकापार्जन करता है। होटल, रेस्टारेंट, अस्पताल, आध्यात्मिक चिकित्सा, कला अभिनय, फोटोग्राफी, सौन्दर्य प्रसाधन से धन अर्जित करता है।
जातक का रंगरूप, आचार-व्यवहार, गुण , दोष, योग्यता, व्यवसाय, आदि अभिरुचि का विचार चन्द्र लग्न से भी किया जाता है। लग्न जन्मकुंडली की आत्मा है। यदि लग्नेश की दृष्टि या युति लग्न से हो या लग्न शुभ गृह से दृष्ट हो या युत हो, तो स्वास्थ्य , धन , सुख पाता है।
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