अगर आपके जीवन में कोई परेशानी है, जैसे: बिगड़ा हुआ दांपत्य जीवन , घर के कलेश, पति या पत्नी का किसी और से सम्बन्ध, निसंतान माता पिता, दुश्मन, आदि, तो अभी सम्पर्क करे. +91-8602947815

Vaastu Pujan Vidhi Vaastu Shanti (वास्तु शांति पूजा विधि)


वास्तु शांति पूजा विधि

आप जिस ढंग से वास्तु शांति की पूजा करते या करवाते हैं उसे वास्तु की पूजा विधि कहा जाता है। हालांकि वास्तुशास्त्र में कई प्रकार की विधियां  उपाय वास्तु शांति के लिये बताये गये हैं लेकिन यह मुख्यत दो तरह से होती है पहली उपयुक्त पूजा विधि और दूसरी सांकेतिक पूजा विधि।

उपयुक्त पूजा के लिये स्वस्तिवचनगणपति स्मरणसंकल्पश्री गणपति पूजनकलश स्थापनपूजनपुनःवचनअभिषेकशोडेशमातेर का पूजनवसोधेरा पूजनऔशेया मंत्रजापनांन्देशरादयोग्ने पूजनक्षेत्रपाल पूजनअग्ने सेथापननवग्रह स्थापन पूजनवास्तु मंडला पूजलस्थापनग्रह हवनवास्तु देवता होमपूर्णाहुतित्रिसुत्रेवस्तेनजलदुग्धाराध्वजा पताका स्थापनगतिविधिवास्तुपुरुष-प्रार्थनादक्षिणासंकल्पब्राम्हण भोजनउत्तर भोजनअभिषेकविसर्जन आदि प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। वहीं सांकेतिक पूजा में कुछ प्रमुख क्रियाएं ही संपन्न की जाती हैं जिन्हें नजरअंदाज  किया जा सके। लेकिन वास्तु शांति के स्थायी उपाय के लिये विद्वान ब्राह्मण से पूरे विधि विधान से उपयुक्त पूजा ही करवानी चाहिये।

वास्तु-पूजन विधि :-
वास्तु शांति के लिए जोयज्ञ होगा वह भी वास्तु पुरुष का आहार होगानिश्चय ही यज्ञोत्सव में दी गई बलि भी तुम्हें आहार रूप में प्राप्त होगी। ऐसा कहने पर वह (अंधकासुरवास्तु नामक प्राणी प्रसन्न हो गया। इसी कारण तभी से जीवन में शांति के लिए वास्तु पूजा का आरंभ हुआ।
वास्तु मण्डल का निर्माण एवं वास्तु-पूजन विधि:
उत्तम भूमि के चयन के लिए तथा वास्तु मण्डल के निर्माण के लिए सर्वप्रथम भूमि पर अंकुरों का रोपण कर भूमि की परीक्षा कर लेंतदनंतर उत्तम भूमि के मध्य में वास्तु मण्डल का निर्माण करें। वास्तु मण्डल के देवता 45 हैंउनके नाम इस प्रकार हैं- 1. शिखी 2. पर्जन्य 3. जयंत 4. कुलिशायुध 5. सूर्य 6. सत्य 7. वृष 8. आकश 9. वायु 10. पूषा 11. वितथ 12. गहु  13. यम 14. गध्ं ार्व 15. मगृ राज 16. मृग 17. पितृगण 18. दौवारिक 19. सुग्रीव 20. पुष्प दंत 21. वरुण 22. असुर 23. पशु 24. पाश 25. रोग 26. अहि 27. मोक्ष 28. भल्लाट 29. सामे 30. सर्प 31. 
अदिति 32. दिति 33. अप 34. सावित्र 35. जय 36. रुद्र 37. अर्यमा 38. सविता 39. विवस्वान् 40. बिबुधाधिप 41. मित्र 42. राजपक्ष्मा 43. पृथ्वी धर 44. आपवत्स 45. ब्रह्मा। इन 45 देवताओं के साथ वास्तु मण्डल के बाहर ईशान कोण में चर कीअग्नि कोण में विदारीनैत्य कोण में पूतना तथा वायव्य कोण में पाप राक्षसी की स्थापना करनी चाहिए। मण्डल के पूर्व में स्कंददक्षिण में अर्यमापश्चिम में जृम्भक तथा उत्तर में पिलिपिच्छ की स्थापना करनी चाहिए। इस प्रकार वास्तु मण्डल में 53 देवी-देवताओं की स्थापना होती है। इन सभी का विधि से पूजन करना 
चाहिए। मंडल के बाहर ही पूर्वादि दस दिशाओं में दस दिक्पाल देवताओं की स्थापना होती है। इन सभी का विधि से पूजन करना चाहिए। मंडल के बाहर ही पूर्वादि दस दिशाओं में दस दिक्पाल देवताओंइंद्रअग्नियमनिऋृतिवरुणवायुकुबेरईशानब्रह्मा तथा अनंत की यथास्थान पूजा कर उन्हें नैवेद्य निवेदित करना चाहिए। वास्तु मंडल की रेखाएं श्वेतवर्ण से तथा मध्य में कमल रक्त वर्ण से निर्मित करना चाहिए। शिखी आदि 45 देवताओं के कोष्ठकों को रक्तवर्ण से अनुरंजित करना चाहिए। पवित्र स्थान पर लिपी-पुती डेढ़ हाथ के प्रमाण की भूमि पर पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण दस-दस रेखाएं खींचें। इससे 81 कोष्ठकों के वास्तुपद चक्र का निर्माण होगा। इसी प्रकार 9-9 रेखाएं खींचने से 64 पदों का वास्तुचक्र बनता है। वास्तु मण्डल के पूर्व लिखित 45 देवताओं के पूजन के मंत्र इस प्रकार हैंऊँ शिख्यै नमःऊँ पर्जन्यै नमःऊँ जयंताय नमःऊँ कुलिशयुधाय नमःऊँ सूर्याय नमःऊँ सत्याय नमःऊँ भृशसे नमःऊँ आकाशाय नमःऊँ वायवे नमःऊँ पूषाय नमःऊँ वितथाय नमःऊँ गुहाय नमःऊँ यमाय नमःऊँ गन्धर्वाय नमःऊँ भृंग राजाय नमः,, ऊँ मृगाय नमःऊँ पित्रौ नमःऊँ दौवारिकाय नमःऊँ 
सुग्रीवाय नमःऊँ पुष्पदंताय नमःऊँ वरुणाय नमःऊँ असुराय नमःऊँ शेकाय नमःऊँ पापहाराय नमःऊँ रोग हाराय नमःऊँ अदियै नमःऊँ मुख्यै नमःऊँ भल्लाराय नमःऊँ सोमाय नमःऊँ सर्पाय नमःऊँ अदितयै नमःऊँ दितै नमःऊँ आप्ये नमःऊँ सावित्रे नमःऊँ जयाय नमःऊँ रुद्राय नमःऊँ अर्यमाय नमःऊँ सवितौय नमःऊँ विवस्वते नमःऊँ बिबुधाधिपाय नमःऊँ मित्राय नमःऊँ राजयक्ष्मै नमःऊँ पृथ्वी धराय नमःऊँ आपवत्साय नमःऊँ ब्रह्माय नमः। इन मंत्रों द्वारा वास्तु देवताओं का विधिवत पूजन हवन करने के पश्चात् ब्राह्मण को दान दक्षिणा देकर संतुष्ट करना चाहिए। तदनंतर वास्तु मण्डलवास्तु कुंडवास्तु वेदी का निर्माण कर मण्डल के ईशान कोण में कलश स्थापित कर गणेश जी एवं कुंड के मध्य में विष्णु जीदिक्पालब्रह्मा आदि का विधिवत पूजन करना चाहिए। अंत में वास्तु पुरुष का ध्यान निम्न मंत्र द्वारा करते हुए उन्हें अघ्र्यपाद्यआसनधूप आदि समर्पित करना चाहिए।
वास्तु पुरुष मंत्र
वास्तोष्पते प्रति जानीहृस्मान्त्स्वावेशो अनमीवो भवान्। यत् त्वेमहे प्रति 
तन्नो जुषस्वं शं नो’’ भव द्विपेद शं चतुषपदे।।
कलश पूजन:
वास्तु पूजन में किसी विद्वान ब्राह्मण द्वारा कलश स्थापना एवं कलश पूजन अवश्य करवाना चाहिए। कलश में जल भरकर नदी संगम की मिट्टीकुछ वनस्पतियां तथा जौ और तिल छोड़ें। नीम अथवा आम्र पल्लवों से कलश के कंठ का परिवेष्टन करें। उसके ऊपर श्रीफल की स्थापना करें। कलश का स्पर्श करते हुए (मन में ऐसी भावना करें कि उसमें सभी पवित्र तीर्थों का जल हैउसका आवाहन पूजन करें। अपनी सामथ्र्य के अनुसार वास्तु मंत्र का जाप करें तत्पश्चात् ब्राह्मण और गृहस्थ मिलकर अपने घर में उस जल से अभिषेक करें। हवन एवं पूर्णाहुति देकर सूर्य देव को भी अघ्र्य प्रदान करेंअंत में ब्राह्मण को सुस्वादुमीठाउत्तम भोजन कराकरदक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद ग्रहण कर घर में प्रवेश करें और स्वयं भी बंधु-बांधवों के साथ भोजन करें। इस प्रकार जो व्यक्ति वास्तु पूजन कर अपने नवनिर्मित गृह में निवास करता है उसे अमरत्व प्राप्त होता है तथा उसके गृहस्थ एवं पारिवारिक जीवन में रोगकष्टभयबाधाअसफलता इत्यादि का प्रवेश नहीं होता है तथा ऐसे गृह में निवास करने वाले प्राणी प्राकृतिक एवं दैवीय आपदाओं तथा उपद्रवों से सदा बचे रहते हैं और ‘वास्तु पुरुष’ एवं वास्तु देवताओं की कृपा से उनका सदैव कल्याण ही होता है।

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...