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फलित ज्योतिष में ग्रह किस नक्षत्र में है यह महत्वपूर्ण है जांचना

फलित ज्योतिष में ग्रह किस नक्षत्र में है यह महत्वपूर्ण है जांचना !


अक्सर जन्मकुंडली के योग या ग्रहो आदि की जांच करने पर हम ज्यादातर ग्रहो की राशि स्थिति, शुभ-अशुभ स्थिति, आदि देखते है जो ठीक भी है लेकिन ग्रहो की नक्षत्र स्थिति की जांच ज्यादा नही करते और ग्रह किस नक्षत्र में है, किस ग्रह के नक्षत्र में कोई ग्रह बैठा है, नक्षत्र स्वामी किस भाव का स्वामी है आदि इस बात का प्रभाव बहुत गहरा पड़ता है किसी भी ग्रह के फलादेश पर।अगर 10जातको की कुंडली मे किसी ग्रह की स्थिति राशि, भाव आदि अनुसार एक जैसी है लेकिन नक्षत्र की स्थिति सबकी अलग है तो फलादेश में ऐसे ग्रह के बहुत फर्क पड़ेगा क्योंकि ग्रह जिस नक्षत्र में बैठा है वह ग्रह उस नक्षत्र के स्वामी का पूरी तरह से प्रभाव लेकर फल देता है,कैसे ? ,

इसको कुछ उदाहरणों से समझाता हूँ।

#उदाहरण1:- कन्या लग्न की कुंडली मे यदि प्रोफेशन मतलब नोकरी/व्यापार आदि की बात करे तब यहाँ हमे दसवे भाव के स्वामी जो कि यहाँ बुध बनेगा उसका अध्ययन करना पड़ेगा, दसवे भाव का स्वामी बुध माना शनि के नक्षत्र उत्तराभाद्रपद, पुष्य, अनुराधा इन तीनो में से किसी भी नक्षत्र में हो तब जातक की नोकरी या व्यापार पर शनि का प्रभाव जरूर होगा, शनि और जिन भावो का इस कुंडली में स्वामी जैसे कि 5वे और 6वे भाव का स्वामी है तो इन दोनों भावों का और शनि का प्रभाव बुध पर होगा क्योंकि बुध पंचमेश षष्ठेश शनि के नक्षत्र में है तो जातक शनि संबंधी या 5वे/6वे भाव के अनुसार जो कार्य क्षेत्र होते है उसका प्रभाव भी प्रोफेशन पर जातक के होगा अब चाहे बुध का शनि से कोई युति/दृष्टि या स्थान परिवर्तन हो या न हो। 

#उदाहरण2:- माना कोई कुंडली का कारक ग्रह या दो से 3 ग्रह मिलकर राजयोग बना रहे हो (राजयोग मतलब केंद्र त्रिकोण स्वामी ग्रहो का संबंध) लेकिन इज राजयोग 8वे भाव या 6वे भाव के स्वामी के नक्षत्र में बने मतलब जो बजी ग्रह राजयोग बना रहे वह ग्रह या उनमें से एक या दो ग्रह 6 या 8वे भाव के स्वामी के नक्षत्र में होंगे तो राजयोग में कही न कही संघर्ष पैदा हो जाएगा मिलना जैसा कि होता भी है कई जातको को उनकी कुंडली मे राजयोग होकर भी बहुत संघर्ष के बाद उसका शुभ फल मिलता है तो यहा नक्षत्र का स्वामी अशुभ भावों का स्वामी होने से राजयोग पर भी कुछ नकारात्मक प्रभाव डालता है लेकिन ऐसा राजयोग दूसरे, 11वे,4वे,5वे,7वे,9वे,10वे आदि शुभ भावो के नक्षत्र में बने मतलब जिस नक्षत्र राजयोग या शुभ योग बनाकर ग्रह बैठे है वह यदि इन शुभ भावों का स्वामी होगा तो ऐसी स्थिति में नक्षत्र का प्रभाव बहुत अच्छा रहेगा ग्रहो पर।इसी तरह कोई ग्रह अपने मित्र या शत्रु, पाप, क्रूर यव शुभ ग्रह के नक्षत्र में होने कब भी प्रभाव पड़ता है कहने कब मतलब है कि कोई भी ग्रह है वह किस ग्रह के नक्षत्र में जाकर बैठा है और वह ग्रह किस भाव आदि का स्वामी है आदि का नवग्रहों के फलादेश पर बहुत गहरा असर पड़ता है, ग्रहो की नक्षत्र स्थिति की स्थिति बहुत ज्यादस ग्रहो को प्रभावित करती है उसी के अनुसार फल मिलते है। इस तरह आपके नवग्रह किन नक्षत्रों, और भवव के स्वामी, ग्रहो के नक्षत्र में है इसका प्रभाव बहुत ज्यादा फल मिलने में रहता है।

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