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आत्मकारक ग्रह क्या है (what is Atmakaraka planet)

  

(Soul Significator planet in Astrology)

आत्मकारक ग्रह जैमिनी ज्योतिष में सबसे अधिक उपयोग किया जाता है| बृहत् पराशर ऋषि ने भी इसके बारे में अपने ग्रन्थ बृहत् पराशर होरा शास्त्र में इसके विषय में लिखा है|



” जन्म पत्रिका में जो भी ग्रह सबसे अधिक डिग्री वाला हो उसे आत्माकारक ग्रह माना जाता है|” जन्म पत्रिका में कुल नौ ग्रह है उसमे से राहू और केतु के अलावा के जो सात ग्रह है उसमे से जिस भी ग्रह की डिग्री सबसे अधिक होती है वह उस पत्रिका के लिए आत्माकारक ग्रह माना जाता है|


आत्माकारक = आत्मा + कारका


एक ऐसा ग्रह जो जन्म पत्रिका में जातक की आत्मा को दर्शाता है(Soul Representer) ऐसे ग्रह को आत्माकारक ग्रह कहा जाता है|


एक उदहारण से समजते है ज्योतिष में आत्माकारक कैसे देखते है

निचे दी गयी ग्रहों की स्थिति राहुल गांधी के जन्मपत्रिका की है जिसमे सभी ग्रह और उनकी डिग्री की स्थिति दी गयी है|


Planet Degree

Sun 4° 14′ 22.84″

Moon 2° 15′ 34.71″

Mars 17° 49′ 22.81″

Mercury 15° 36′ 34.42″

Jupiter (R) 2° 39′ 49.22″

Venus 9° 40′ 48.75″

Saturn 24° 28′ 48.49″

Rahu 12° 53′ 14.97″

Ketu 12° 53′ 14.97″

इस पत्रिका में सबसे अधिक डिग्री पर शनि ग्रह(Saturn) ग्रह है जो की 24 डिग्री और 28 मिनिट पर है| सबसे अधिक डिग्री के होने पर यह ग्रह जन्म पत्रिका के आत्माकारक ग्रह बनता है|


आत्माकारक ग्रह का ज्योतिष में महत्व: Importance

ज्योतिष में सात मुख्य ग्रह में से कोई भी ग्रह आत्माकारक ग्रह बन सकता है| जो की अपने साथ कुछ पूर्व जन्म के कर्म को साथ लेकर चलता है और इस जन्म में आत्मा को कौनसी इच्छाओं है उसे भी यह दर्शाता है| अलग अलग ग्रह के आत्मा करक ग्रह के बनने पर उसका विवरण अलग होता है|


आत्माकारक ग्रह के माध्यम से हम अपने जीवन का वास्तविक मूल्य क्या है और जीवन का असली ध्येय क्या होना चाहिए हमें किस क्षेत्र के साथ हमारे पूर्व जन्म के कर्म जुड़े हुए है ये सभी बाते जानी जा सकती है| इसके माध्यमसे हम जीवन में मटेरियल और आध्यात्मिक विषय की क्या भूमिका हैं उसे जान सकते है|


आपकी आत्मा किस और जाना चाहती है और आपके जन्म पत्रिका के अन्य ग्रह आपको किस और ले जाना चाहते है उसे आसानी से समजा जा सकता है| ज्योतिष में अलग अलग ग्रह के आत्मा कारक बनने पर क्या विश्लेषण किया जा सकता है उसे समजते है|


अलग अलग ग्रह की आत्माकारक ग्रह के रूप में भूमिका (Different planets as Aatmakaraka)

जब सूर्य जन्म पत्रिका में आत्माकारक ग्रह बनता है तब जातक सफलता, आत्म महत्व, प्रसिद्धि, शक्तिकीकी चाहना रखता है क्योंकि उसकी आत्मा इस और इशारा करती है| अच्छे आध्यात्मिक मार्ग के लिए आपको अहंकार का त्याग करना चाहिए और, विनम्रता, सहनशीलता से व्यवहार करना चाहिए|


जब चन्द्र ग्रह आत्मकारक बनता है तब व्यक्ति को भावनाओं, खुशी, प्यार और करुणा सबसे अधिक असर करती है| ऐसे व्यक्ति को अनजान व्यक्ति को अच्छे से समजना चाहिए और किसी पर आसानी से भरोषा नहीं करना चाहिए| सच और गलत भावाना के बिच अंतर करना सिखाना होगा|


मंगल ग्रह आत्मकारक बनता है तब आक्रामकता, जुनून, विजय, और साहसिक कार्य करने की और झुकाव रहता है| स्वभाव हमेशा ही आक्रामक रहता है| इन्हें हार-जीत के चक्रव्यूह से बचाना चाहिए, धैर्य के साथ काम करना चाहिए, हिंसा से भी परहेज करना चाहिए|


जब बुध ग्रह आत्मकारक बनता है और शुभ हो तब वह जातक को बौद्धिकता और, श्रेष्ठता प्रदान करता है| इन्हें जीवन में सच्चाई का सामना करना सीखना होगा|


गुरु ग्रह आत्मकारक बनता है तब आत्मा का झुकाव बच्चो और आध्यात्मिकता जैसे गुरु सम्बन्धी तत्व की और रह सकता है|


शुक्र ग्रह आत्मकारक बनता है तब जातक सेक्स, रिश्ते, विलासिता, कामुकता की और झुक सकता है| ऐसे जातक को कामुकता को नियंत्रित करना सिखाना होगा|


शनि ग्रह आत्मकारक बनता है तब कर्तव्य, लोकतंत्र हार्ड वर्क और शुद्र की और जीवन का झुकाव रहता है| ऐसे जातक को दूसरो के दुखो को दूर करने का कार्य करना चाहिए|


जैमिनी ज्योतिष कुण्डली (Horoscope according to Jaimini Astrology) का विश्लेषण करने के लिए कारकों को प्रमुखता दी गई है. इसके अनुसार प्रत्येक ग्रह ज़िन्दगी के विभिन्न कार्यक्रमों में से किसी न किसी कार्यक्रम के होने का संकेत देता है. कारकांश ग्रह कुण्डली में जिस भाव में विराजमान होता है उसी के अनुरूप यह परिणाम देता है.


जैमिनी ज्योतिष के प्रमुख कारक (Main Karakas in Jaimini Astrology)

जैमिनी ज्योतिष में कारकों का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता है. कारक के द्वार ग्रहों की स्थिति और उनके द्वारा मिलने वाले फलों की पुष्टि भी बहुत अधिक संभव हो पाती है. यहां यह कारक एक दूसरे के साथ मिलकर शुभाशुभ योगों का निर्माण करते हैं. किसी भी जातक की कुण्डली में जब किसी अच्छे शुभ कारक की दशा आती है तो उस स्थिति में जातक को अपने जीवन में सकारात्मक फलों की प्राप्ति भी होती है. वहीं दूसरी ओर जब व्यक्ति के जीवन में किसी अशुभ एवं खराब कारक की दशा का आरंभ होता है तो जीवन में उत्तार-चढा़व अधिक होता है.


कारकों को कैसे जानें

जैमिनी ज्योतिष में राहु और केतु को कारकों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है. जैमिनी ज्योतिष में सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र ओर शनि को कारक की श्रेणी में रखा गया है. यह सभी सात ग्रह कुण्डली में किसी न किसी कारक का प्रतिनिधित्व करते हैं. कारकों का निर्धारण ग्रहों के अंशों के आधार पर ही होता है. 


कोई भी ग्रह किसी भी भाव का कारक बन सकता है और कारक का स्वरुप एवं उसकी स्थिति ही जातक के जीवन में कई प्रकार के परिवर्तन एवं फलों के देने वाली होती है. सबसे अधिक डिग्री(अंश) वाला ग्रह आत्मकारक बनता है, इसी तरह बाकि दूसरे ग्रह क्रम से अमात्यकारक, भ्रातृकारक, मातृकारक, पुत्रकारक, ज्ञातिकारक और सबसे कम डिग्री(अंश) वाला ग्रह दाराकारक बनता है. 


अगर इस स्थान पर किसी ग्रह की डिग्री(अंश) समान निकल जाते हैं तो उस स्थिति में मिनिटों के आधार पर हम देखेंगे की किसी पहले रखा जाए और किसे बाद में. इस प्रकार जैमिनी ज्योतिष कारकों का पता लग जाने के बाद फलित किया जाना संभव हो पाता है.


आत्मकारक (Atmakarak in Jaimini Astrology)

सभी ग्रहों में आत्मकारक (Atmakarak) सबसे प्रमुख होता है. यह ग्रह समस्त ग्रहों में सबसे अधिक डिग्री पर होता है. आत्मकारक ग्रह को विशेषतौर पर अच्छा होना चाहिए क्योंकि, कुण्डली (Jaimini Astrology Horoscope) में इसकी स्थिति काफी मायने रखती है. इसका कमज़ोर अथवा बल होना व्यक्ति विशेष के जीवन के विषय में काफी कुछ बयान करता है. सूर्य को इसका प्राकृतिक ग्रह माना गया है.


अमात्यकारक (Amatyakarak in Jaimini Astrology)

सभी ग्रहों में आत्मकारक (Amatyakarak) ग्रह के बाद जो सबसे अधिक डिग्री घेरता वह अमात्यकारक ग्रह माना जाता है. यूं तो अमात्यकारक (Amatyakarak) का कोई प्राकृतिक ग्रह नहीं माना जाता है फिर भी वैधानिक तौर पर बुध को प्राकृतिक अमात्यकारक (Amatyakarak) ग्रह का दर्जा प्राप्त है. अमात्यकारक ग्रह का संबंध व्यवसाय के रुप में देखा जाता है, इसके साथ ही इससे आर्थिक स्थिति, धार्मिक स्थिति, कार्य क्षेत्र की स्थिति को समझने में मदद मिलती है. आत्मकारक के पाप प्रभाव में होने पर जातक को जीवन में अमात्यकारक के शुभ फल मिलने में कमी आती है. दूसरी ओर अगर आत्मकारक बली ओर शुभ है तो व्यक्ति को जीवन में धन, मान सम्मान अच्छी नौकरी इत्यादि की प्राप्ति होती है.


भ्रातृ कारक (Bhratrukarak in Jaimini Astrology)

जैमिनी ज्योतिष कुण्डली (Jaimini Astrology Kundli) में आमात्यकारक ग्रह के बाद जिस ग्रह की डिग्री अधिक होती है उसे भ्रातृ कारक (Bhratrukarak) ग्रह माना जाता है. इसे व्यक्ति के भाई बहनों के कारक ग्रह के रूप में देखा जाता है. सभी ग्रहों में मंगल को भाई-बहनों का स्वामी ग्रह माना जाता है यही कारण है कि प्राकृतिक भ्रातृ कारक ग्रह के रूप में मंगल को स्वीकार किया जाता है.


मातृ कारक (Matrukarak in Jaimini Astrology)

भ्रातृ कारक से कम डिग्री वाले ग्रह को मातृ कारक ग्रह के रूप में मान्यता प्राप्त है. यह माता का स्वामी ग्रह माना जाता है. इसका प्राकृतिक ग्रह चन्द्रमा है. इस कारक के द्वारा जातक की माता के विषय में समझा जा सकता है. माता का सुख और माता की स्थिति के विषय में जाना जा सकता है. जन्म कुण्डली में मातृकारक ग्रह को चौथे भाव का स्थान प्राप्त है. इस भाव से जातक का आत्मिक सुख उसकी अपनी फैमली में स्थिति, शुरुआती शिक्षा जैसी चीजों का भी पता लगाया जा सकता है. यह भाव जातक के घर, वाहन, वस्त्र जैसी चीजों के सुख के बारे में भी बतात है. यह आपके भौतिक सुखों को दर्शाने वाला होता है और आप किस प्रकार स्वयं इसका कितना लाभ उठा पाते हैं इसकी जानकारी हमे मातृकारक से होती है.


पुत्र कारक (Putrakarak in Jaimini Astrology)

मातृ कारक से कम डिग्री वाले ग्रह को पुत्रकारक (Putrakarak) ग्रह कहा जाता है. इसे संतान का स्वामी ग्रह माना जाता है. इसका प्राकृतिक ग्रह गुरू है. यह पाँचवें स्थान पर आता है. यह जन्म कुण्डली में पाँचवें भाव का प्रतिनिधित्व करता है. कुण्डली का पांचवां भाव हमारी शिक्षा, संतान प्रेम संबंधों इत्यादि को भी दर्शाती है. अत: ऎसे में पुत्रकारक ग्रह की शुभता होने पर हमे इसके शुभ परिणाम मिल पाते हैं वहीं अगर यह अशुभ प्रभाव में होगा तो इस से संबंधित परेशानियां हमें झेलनी होंगी.


ज्ञातिकारक (Gnatikarak in Jaimini Astrology)

पुत्र कारक ग्रह के पश्चात जिस ग्रह की डिग्री कम होती है उसे ज्ञातिकारक (Gyatikarka) के नाम से जाना जाता है. इसे सम्बन्धों के स्वामी के रूप में स्थान प्राप्त है. भ्रातृ कारक की तरह इसका भी प्राकृति ग्रह मंगल है. जन्म कुण्डली का छठा भाव ज्ञातिकारक ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है. यह जीवन में आने वाले कष्ट, बीमारियों, लड़ाई झगड़ों, कानूनी कार्यवाही इत्यादि को बताता है. ज्ञातिकारक की दशा आने पर व्यक्ति के जीवन में अचानक से होने वाले घटना क्रम अधिक हो जाते हैं. इस दशा में व्यक्ति को मानसिक, आर्थिक व शारीरिक रुप से कष्ट इत्यादि झेलने पड़ जाते हैं.


दारा कारक (Darakarak in Jaimini Astrology)

जिस ग्रह की डिग्री सबसे कम होती है उसे दारा कारक (Darakarak) कहते हैं. इसे जीवनसाथी का स्वामी ग्रह कहा जाता है. इसका प्राकृतिक ग्रह शुक्र है. यह सातवें भाव के कारकत्वों को दर्शाता है. जन्म कुण्डली का सातवां भाव विवाह एवं संबंधों, सहभागिता में किए जाने वाले काम, विदेश यात्रा, व्यक्ति की लोगों के मध्य स्थिति इत्यादि को समझने में इस भाव का महत्वपूर्ण योगदान होता है. साथ ही जिस ग्रह को इस भाव का प्रतिनिधित्व मिलता है वह भी इस भाव से मिलने वाले फलों पर अपना प्रभाव भी डालता है.

What is the significance of 'AtmaKarka Planet' in Vedic astrology?



first of all let me tell you where this concept of atmakarka came. There is a concept in astrology known as Jaimini Sutra or Jaimini astrology, in which different planets become karakas for different things in our life. Now what is this karaka, it means significance, each planet signify different things. Pandit Sanjay rath considered 8 (including Rahu) Karkas and K.N. Rao ji considered 7 karkas (excluding Rahu).. Ketu can never become karka because it is the planet of liberation , and the planet which help to liberate us can never signify any materialistic thing in our life..


now i will tell you what are this karkas: i will write them in order of their degrees ( highest to lowest):


The atma karaka (the indicator of self), planet with highest degree.

The amatya karaka (the indicator of career);

The bhatri karaka (the indicator of siblings and father);

The matri karaka (the indicator of mother and education);

The putri karaka (the indicator of children, intelligence and creativity);

The gnati karaka (the indicator of strife, disease, and spiritual sadhana);

And dara karaka, the indicator of marriage (and partnerships in general).

now coming back to the question, Atmakarka is the planet with highest degree which signifies the reason of our birth, higher the degree , higher the pending karmas will be there to fulfill, if someone have all the planets at very low degree , then it means the person have very less karma remain to fulfill, higher the degree of planets more the karma are remaining to fulfill in this lifetime.


now how to understand the significance, i will tell you what different planet signify when they become atmakarka.


1. Sun as AK indicates the native has to learn to overcome his ego and should become humble.


2. Moon as AK indicates that the native should be very caring and compassionate.


3. Mars as AK indicates that the native should refrain from all forms of violence and stick to the path of Ahimsa.


4. Mercury as AK indicates that the native should control his speech and be truthful at all times.


5. Jupiter as AK indicates that the native should always respect the Guru, husband and care for children.


6. Venus as AK indicates that the native must have a very clean character and refrain from illegitimate sex/lust.


7. Saturn as AK indicates that the native should not give sorrow to others and will have to share the sorrow of many others.


8. Rāhu as AK indicates that the native maybe cheated often and will still have to be free from guilt and clean their heart.


now what is the meaning when this atmakarka placed in different houses in navmansha:


If AK is in navāṁśa Lagna, the native belongs to a royal family/ is of noble birth and lineage. If navāṁśa Lagna Lord conjoins AK, then the native, although of humble origin shall rise to a high rank equal to a king. If the AK aspects navāṁśa Lagna, then Royal association shall be present from birth. The natural karaka of 1st house (Sun) should be strong to indicate the extent of Rājayoga.

If AK is in 2nd house, the native shall be very spiritual and a great saint. If Saturn is strong, the renunciation shall be complete whereas if Venus is strong the native shall perform severe austerities.

If AK is in 3rd house, the native shall be rich and successful in many undertakings. He shall be a friend of many powerful people.

If AK is in 4th house the native shall be a Karma Yogi. If the Moon and Jupiter are strong, he shall have fame whereas if the Sun is strong Rajyoga and a strong Saturn indicate a hard working person.

If AK is in 5th house the native is Dharma Parayana i.e. obeys the laws of his dharma diligently and is straightforward. If Sun is strong, he shall have many good yogas. Blessings of his father shall always protect him.

If AK is in 6th house, the native is diseased and troubled. Propitiate as per Saturn or Lord Satya Nārāyana, fast on full Moon days and speak the truth OM TAT SAT.

If AK is in 7th house, the native is blessed with a clean heart and many joys. If Venus is strong, marriage shall be a great blessing.

If AK is in 8th house, the native has many troubles and weaknesses. He is defeated in war. Propitiate as per Saturn or Lord Satya Nārāyana, fast on full Moon days and speak the truth OM TAT SAT.

If AK is in 9th house, the native is a very pious person and is wealthy and fortunate.

If AK is in 10th house, the native is blessed with a clean heart and good home. He shall be a pillar for his family and mother; the Moon in strength shall be an added blessing for this.

If AK is in 11th house, the native shall be brave, successful in war and capable of executing any task. If Mars is strong there shall be Rājayoga.

If AK is in 12th house the native is very rich and blessed by Lakshmi.

now some points on condition of atmakarka:


If a malefic planet is the ātmakāraka, it indicates a high level of spiritual development whereas a benefic planet as the ātmakāraka indicates a relatively lower level. Example: Rāhu was the ātmakāraka for Srila Prabhupada and Ramakrishna Paramhaṁśa.

The ātmakāraka invariably indicates suffering during its Vimśottari daśā, especially if a malefic. During the Nārāyaṇa daśā of the sign occupied by the ātmakāraka or those aspecting it, great achievements are made. If the native is spiritually inclined then the daśā of the ātmakāraka can be beneficial.

A retrograde ātmakāraka indicates a deep-rooted desire as being the cause of the birth. This has to be seen from the nature of the planet which becomes the AK. For example, if Mars is AK and retrograde, then there is a very strong desire related to succeeding in some battle or competition in this planet and the native will be dragged into innumerable fights and will be fighting all the time. The solution lies in finding the best self defense strategies based on Kārakāṁśa of which, Ahimsa is the greatest. Similarly, if Saturn is the retrograde AK then the desire would manifest in the native doing something related to the elders or old knowledge in new bottles. When retrograde, this desire is very strong and will be the cause of all direction in life. The other signification of Saturn is sorrow and if the native gives sorrow to others, especially elders and those who are like Guru, then know that he is running a bad time and a lot of sorrow is in his destiny (in any case). The best remedy for him would be to develop a stoic attitude towards the acts and words of others and keep prodding in his path. In this manner, the retrogression is to be understood.

Combustion of AK gives spiritual insight.

now i will tell you one intresting thing about atmakarka:


this planet also signify path of our career. why? because career is our karma, and karma is what our atma needs to fulfill in this lifetime. now how to read it. There is chart known as karkamansha chart, you can easily make your karkamansha chart by following method:


Once you figure out which planet is the atmakaraka, look at the sign placement of that planet in the navamsa chart.


example if i have my atmakarka in leo sign in d9(navmansha) chart, come back to your lagna chart, in lagna chart make that leo sign your ascendent,new chart is generated, that chart is known as karakamsa chart. this karkmansha have all its different story to tell.


if you don’t want to go in all this calculations than download an app known as astrosage, you will get all the chart directly. now coming back to our question.


Such placements of atmakarka give a much clear indication of the native's spiritual and professional life. Through the placement of atmakarka in karakamsa one can see what the soul or 'Atma' is desiring.


now look where this atmakarka is placed in karkamansha, work related to that house will be our profession, and the planet which help us or give us skills in work is amatyakarka ( 2nd highest degree planet) look where this planet is placed in karkmansha, that house related skills you need to develop and if that planet is strong it will help you in your profession.


example: if i have moon as my atmakarka which is placed in 9th house, then 9th house related career will be my profession. ie. teaching , learning , publishing etc, with the help of my imagination or emotionally connect with students etc, and if amtyakarka placed in 4th house then , i will teach from home or home based teaching may be the profession, just like this we have to look in karkamansha chart to see the career.



कारकों का शुभ और अशुभ फल

इन सभी सातों कारकों का जातक के जीवन में किसी न किसी रुप में प्रभाव बना ही रहता है. अगर ये कारक शुभ हों शुभ प्रभाव में हों तो व्यक्ति को सफलता दिलाने वाले होते हैं. लेकिन अगर ये कारक अशुभ प्रभाव में हों राहु/केतु से प्रभावित हों तो ऎसी स्थिति में जातक को जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है. कारकों की शुभाशुभ स्थिति को समझने के लिए कुण्डली और कारकों का बारीकी से अध्ययन करना अत्यंत आवश्यक होता हैl


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