गङ्गेच यमुने चैव गोदावरी सरस्वति । नर्मदा सिन्धु कावेरी जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥
गंगा सिंधु सरस्वति च यमुना गोदावरि नर्मदा । कावेरि शरयू महेन्द्रतनया चर्मण्वती वेदिका ।।
क्षिप्रा वेत्रवती महासुरनदी ख्याता जया गण्डकी । पूर्णा:पूर्णजलै:समुद्रसहिता:कुर्वन्तु मे मंगलम् ।।
Meaning: May rivers Ganga, Sindhu, Saraswati, Yamuna, Godavari, Narmada, Kaveri, Sharyu, Mahendratanaya, Chambala, Vedika, Kshipra, Vetravati (a rivulet), chiefly the Mahasurnadi, Jaya and Gandaki become sacred and absolute, and along with the sea, shower benevolence on me.
क्षिप्रा वेत्रवती महासुरनदी ख्याता जया गण्डकी । पूर्णा:पूर्णजलै:समुद्रसहिता:कुर्वन्तु मे मंगलम् ।।
Meaning: May rivers Ganga, Sindhu, Saraswati, Yamuna, Godavari, Narmada, Kaveri, Sharyu, Mahendratanaya, Chambala, Vedika, Kshipra, Vetravati (a rivulet), chiefly the Mahasurnadi, Jaya and Gandaki become sacred and absolute, and along with the sea, shower benevolence on me.
श्री गंगा जी की स्तुति -
गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम् । त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ।।
10 Important Name of Ganga and Their Meaning in Hindi : हिंदू धर्म में गंगा नदी का विशेष स्थान है, इसे माँ स्वरुप माना जाता है। ग्रंथों में गंगा के अनेकों नाम का विवरण मिलता है, गंगा स्त्रोत में भी गंगा के 108 नाम बताए गए है। यहाँ हम आपको गंगा के 10 मुख्य नाम और उन्हें रखे जाने के सही कारण या कहानी के बारे में बता रहे है-
1. जान्हवी – एक बार जह्नु ऋषि यज्ञ कर रहे थे और गंगा के वेग से उनका सारा सामान बिखर गया। गुस्से में उन्होंने गंगा का सारा पानी पी लिया। जब गंगा ने क्षमा मांगी तो उन्होंने अपने कान से उन्हें वापस बाहर निकाल दिया और अपनी बेटी माना। इसलिए इन्हें जान्हवी कहा जाता है।
2. शिवाया – गंगा नदी को शिवजी ने अपनी जटाओं में स्थान दिया है। इसलिए इन्हें शिवाया कहा गया है।
3. पंडिता – ये नदी पंडितों के सामान पूजनीय है इसलिए गंगा स्त्रोत में इसे पंडिता समपूज्या कहा गया है।
4. मुख्या – गंगा भारत की सबसे पवित्र और मुख्य नदी है। इसलिए इसे मुख्या भी कहा जाता है।
5. हुगली – हुगली शहर के पास से गुजरने के कारण बंगाल क्षेत्र में इसका नाम हुगली पड़ा। कोलकत्ता से बंगाल की खाड़ी तक इसका यही नाम है।
6. उत्तर वाहिनी – हरिद्वार से फर्रुखाबाद , कन्नौज, कानपुर होते हुए गंगा इलाहाबाद पहुंचती है। इसके बाद काशी (वाराणसी) में गंगा एक वलय लेती है, जिससे ये यहां उत्तरवाहिनी कहलाती है।
7. मंदाकिनी – गंगा को आकाश की और जाने वाली माना गया है इसलिए इसे मंदाकिनी कहा जाता है। आकाश में फैले पिंडों व तारों के समुह को जिसे आकाश गंगा कहा जाता है। वह गंगा का ही रूप है।
8. दुर्गाय – माता गंगा को दुर्गा देवी का स्वरुप माना गया है। इसलिए गंगा स्त्रोत में इन्हें दुर्गाय नमः भी कहा गया है।
9. त्रिपथगा – गंगा को त्रिपथगा भी कहा जाता है। त्रिपथगा यानी तीन रास्तों की और जाने वाली। यह शिव की जटाओं से धरती, आकाश और पाताल की तरफ गमन करती है।
10. भागीरथी – पृथ्वी पर गंगा का अवतरण राजा भागीरथ की तपस्या के कारण हुआ था। इसलिए पृथ्वी की ओर आने वाली गंगा को भागीरथी कहा जाता है।
गंगा माता का कथन है कि स्नान करते वक्त कोई चाहे जहां भी मेरा स्मरण करेगा, मैं वहां के जल में आ जाऊंगी. स्नान करते वक्त गंगा के उन कथनों को इस श्लोक के रूप में पढ़ना चाहिए !
नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा। विष्णुपादाब्जसम्भूता गंगा त्रिपथगामिनी।।
भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी। द्वादशैतानि नामानि यत्र यत्र जलाशय। स्नानोद्यत: स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम्।
vkse~ ueks xaxk;S fo'o#i.;S ukjk;.;S ueks ue % !
नमो भगवते दशपापहराये गंगाये नारायण्ये रेवत्ये शिवाये दक्षाये अमृताये विश्वरुपिण्ये नंदिन्ये ते नमो नम:
(यानि भगवती दशपाप हरने वाली गंगा, नारायणी, रेवती, शिवा, दक्षा, अमृता, विश्वरुपिणी, नंदनी को नमस्कार।)।
ओम नम: शिवाये नारायण्ये दशहराये गंगाये स्वाहेति
fEkV~Vh vfHkeaf=r djus dk ea= %&
Ganga stotra
देवि! सुरेश्वरि! भगवति! गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे ।
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥ १ ॥
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥ १ ॥
भागीरथिसुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ २ ॥
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ २ ॥
हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥ ३ ॥
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥ ३ ॥
तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गंगे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥ ४ ॥
मातर्गंगे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥ ४ ॥
पतितोद्धारिणि जाह्नवि गंगे खंडित गिरिवरमंडित भंगे ।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्ये ॥ ५ ॥
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्ये ॥ ५ ॥
कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवति कृततरलापांगे ॥ ६ ॥
पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवति कृततरलापांगे ॥ ६ ॥
तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे ॥ ७ ॥
नरकनिवारिणि जाह्नवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे ॥ ७ ॥
पुनरसदंगे पुण्यतरंगे जय जय जाह्नवि करुणापांगे ।
इंद्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ ८ ॥
इंद्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ ८ ॥
रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम् ।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥ ९ ॥
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥ ९ ॥
अलकानंदे परमानंदे कुरु करुणामयि कातरवंद्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुंठे तस्य निवासः ॥ १० ॥
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुंठे तस्य निवासः ॥ १० ॥
वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवाश्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ॥ ११ ॥
अथवाश्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ॥ ११ ॥
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥ १२ ॥
गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥ १२ ॥
येषां हृदये गंगा भक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकंता पंझटिकाभिः परमानंदकलितललिताभिः ॥ १३ ॥
मधुराकंता पंझटिकाभिः परमानंदकलितललिताभिः ॥ १३ ॥
गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम् ।
शंकरसेवक शंकर रचितं पठति सुखीः तव इति च समाप्तः ॥ १४ ॥
शंकरसेवक शंकर रचितं पठति सुखीः तव इति च समाप्तः ॥ १४ ॥
श्रीगङ्गाष्टोत्तरशतनामावलिः
ॐ गङ्गायै नमः। ॐ त्रिपथगादेव्यै नमः। ॐ शम्भुमौलिविहारिण्यै नमः। ॐ जाह्नव्यै नमः। ॐ पापहन्त्र्यै नमः। ॐ महापातकनाशिन्यै नमः। ॐ पतितोद्धारिण्यै नमः। ॐ स्रोतस्वत्यै नमः। ॐ परमवेगिन्यै नमः। ॐ विष्णुपादाब्जसम्भूतायै नमः। ॐ विष्णुदेहकृतालयायै नमः। ॐ स्वर्गाब्धिनिलयायै नमः। ॐ साध्व्यै नमः। ॐ स्वर्णद्यै नमः। ॐ सुरनिम्नगायै नमः। ॐ मन्दाकिन्यै नमः। ॐ महावेगायै नमः। ॐ स्वर्णशृङ्गप्रभेदिन्यै नमः। ॐ देवपूज्यतमायै नमः। ॐ दिव्यायै नमः। ॐ दिव्यस्थाननिवासिन्यै नमः। ॐ सुचारुनीररुचिरायै नमः। ॐ महापर्वतभेदिन्यै नमः। ॐ भागीरथ्यै नमः। ॐ भगवत्यै नमः। ॐ महामोक्षप्रदायिन्यै नमः। ॐ सिन्धुसङ्गगतायै नमः। ॐ शुद्धायै नमः। ॐ रसातलनिवासिन्यै नमः। ॐ महाभोगायै नमः। ॐ भोगवत्यै नमः। ॐ सुभगानन्ददायिन्यै नमः। ॐ महापापहरायै नमः। ॐ पुण्यायै नमः। ॐ परमाह्लाददायिन्यै नमः। ॐ पार्वत्यै नमः। ॐ शिवपत्न्यै नमः। ॐ शिवशीर्षगतालयायै नमः। ॐ शम्भोर्जटामध्यगतायै नमः। ॐ निर्मलायै नमः। ॐ निर्मलाननायै नमः। ॐ महाकलुषहन्त्र्यै नमः। ॐ जह्नुपुत्र्यै नमः। ॐ जगत्प्रियायै नमः। ॐ त्रैलोक्यपावन्यै नमः। ॐ पूर्णायै नमः। ॐ पूर्णब्रह्मस्वरूपिण्यै नमः। ॐ जगत्पूज्यतमायै नमः। ॐ चारुरूपिण्यै नमः। ॐ जगदम्बिकायै नमः। ॐ लोकानुग्रहकर्त्र्यै नमः। ॐ सर्वलोकदयापरायै नमः। ॐ याम्यभीतिहरायै नमः। ॐ तारायै नमः। ॐ पारायै नमः। ॐ संसारतारिण्यै नमः। ॐ ब्रह्माण्डभेदिन्यै नमः। ॐ ब्रह्मकमण्डलुकृतालयायै नमः। ॐ सौभाग्यदायिन्यै नमः। ॐ पुंसां निर्वाणपददायिन्यै नमः। ॐ अचिन्त्यचरितायै नमः। ॐ चारुरुचिरातिमनोहरायै नमः। ॐ मर्त्यस्थायै नमः। ॐ मृत्युभयहायै नमः। ॐ स्वर्गमोक्षप्रदायिन्यै नमः। ॐ पापापहारिण्यै नमः। ॐ दूरचारिण्यै नमः। ॐ वीचिधारिण्यै नमः। ॐ कारुण्यपूर्णायै नमः। ॐ करुणामय्यै नमः। ॐ दुरितनाशिन्यै नमः। ॐ गिरिराजसुतायै नमः। ॐ गौरीभगिन्यै नमः। ॐ गिरिशप्रियायै नमः। ॐ मेनकागर्भसम्भूतायै नमः। ॐ मैनाकभगिनीप्रियायै नमः। ॐ आद्यायै नमः। ॐ त्रिलोकजनन्यै नमः। ॐ त्रैलोक्यपरिपालिन्यै नमः। ॐ तीर्थश्रेष्ठतमायै नमः। ॐ श्रेष्ठायै नमः। ॐ सर्वतीर्थमय्यै नमः। ॐ शुभायै नमः। ॐ चतुर्वेदमय्यै नमः। ॐ सर्वायै नमः। ॐ पितृसन्तृप्तिदायिन्यै नमः। ॐ शिवदायै नमः। ॐ शिवसायुज्यदायिन्यै नमः। ॐ शिववल्लभायै नमः। ॐ तेजस्विन्यै नमः। ॐ त्रिनयनायै नमः। ॐ त्रिलोचनमनोरमायै नमः। ॐ सप्तधारायै नमः। ॐ शतमुख्यै नमः। ॐ सगरान्वयतारिण्यै नमः। ॐ मुनिसेव्यायै नमः। ॐ मुनिसुतायै नमः। ॐ जह्नुजानुप्रभेदिन्यै नमः। ॐ मकरस्थायै नमः। ॐ सर्वगतायै नमः। ॐ सर्वाशुभनिवारिण्यै नमः। ॐ सुदृश्यायै नमः। ॐ चाक्षुषीतृप्तिदायिन्यै नमः। ॐ मकरालयायै नमः। ॐ सदानन्दमय्यै नमः। ॐ नित्यानन्ददायै नमः। ॐ नगपूजितायै नमः। ॐ सर्वदेवाधिदेवैः परिपूज्यपदाम्बुजायै नमः।
॥इति श्री महाभागवते महापुराणे श्रीगङ्गाष्टोत्तरशतनामावलिः सम्पूर्णा॥
स्नान-दान का है विशेष महत्व
मान्यता है कि गंगा मैया के पावन जल के छीटे मात्र काया पर पडऩे से जन्म-जन्मांतर के पाप दूर हो जाते हैं। हिन्दू धर्मशास्त्र और पुराण इसकी पुष्टि करते हैं।
शास्त्रों के अनुसार गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है. इस दिन स्वर्ग से गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था, इसलिए इसे महापुण्यकारी पर्व के रूप में मनाया जाता है. इस दिन मोक्षदायिनी गंगा की पूजा की जाती है.
दान-पुण्य का महत्व
गंगा दशहरा के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है. इस दिन दान में सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दुगुना फल प्राप्त होता है. गंगा दशहरा के दिन किसी भी नदी में स्नान करके दान और तर्पण करने से मनुष्य जाने-अनजाने में किए गए कम से कम दस पापों से मुक्त होता है. इन दस पापों के हरण होने से ही इस तिथि का नाम गंगा दशहरा पड़ा है.
गंगा दशहरा के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है. इस दिन दान में सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दुगुना फल प्राप्त होता है. गंगा दशहरा के दिन किसी भी नदी में स्नान करके दान और तर्पण करने से मनुष्य जाने-अनजाने में किए गए कम से कम दस पापों से मुक्त होता है. इन दस पापों के हरण होने से ही इस तिथि का नाम गंगा दशहरा पड़ा है.
गंगा दशहरा व्रत और पूजन विधि
गंगा दशहरा का व्रत भगवान विष्णु को खुश करने के लिए किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन लोग व्रत करके पानी भी (जल का त्याग करके) छोड़कर इस व्रत को करते हैं. ग्यारस (एकादशी) की कथा सुनते हैं और अगले दिन लोग दान-पुण्य करते हैं. इस दिन जल का घट दानकरके फिर जल पीकर अपना व्रत पूर्ण करते हैं. इस दिन दान में केला, नारियल, अनार, सुपारी, खरबूजा, आम, जल भरी सुराई, हाथ का पंखा आदि चीजें भक्त दान करते हैं.
गंगा दशहरा का व्रत भगवान विष्णु को खुश करने के लिए किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन लोग व्रत करके पानी भी (जल का त्याग करके) छोड़कर इस व्रत को करते हैं. ग्यारस (एकादशी) की कथा सुनते हैं और अगले दिन लोग दान-पुण्य करते हैं. इस दिन जल का घट दानकरके फिर जल पीकर अपना व्रत पूर्ण करते हैं. इस दिन दान में केला, नारियल, अनार, सुपारी, खरबूजा, आम, जल भरी सुराई, हाथ का पंखा आदि चीजें भक्त दान करते हैं.
No comments:
Post a Comment