तुलसी जी का महतव
तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करने से पापों से मुक्ति मिलती है. यानी रोजाना तुलसी का पूजन करना मोक्षदायक माना गया है.यही नहीं तुलसीपत्र से पूजा करने से भी यज्ञ, जप, हवन करने का पुण्य प्राप्त होता है. पर यह तभी संभव है, जब आप पूरी आस्था के साथ तुलसी जी की सेवा कर पाते हैं. पूजा का सही-विधान जानने के साथ-साथ तुलसी के प्रति आदर रखना भी जरूरी है. पद्म पुराण में कहा गया है की नर्मदा दर्शन गंगा स्नान और तुलसी पत्र का संस्पर्श ये तीनो समान पुण्य कारक है वैसे तो प्रतिदिन तुलसी जी की सेवा पूजा की जाती है परन्तु"सोमवती अमावस्या, कार्तिक शुक्ला एकादशी" पर तुलसी जी की विशेष पूजा की जाती है
"दर्शनं नार्मदयास्तु गंगास्नानं विशांवर
तुलसी दल संस्पर्श: सम्मेत त्त्रयं"
ऐसा भी वर्णन आता है की जो लोग प्रातः काल में गत्रोत्थान पूर्वक अन्य वस्तु का दर्शन ना कर सर्वप्रथम तुलसी का दर्शन करते है उनका अहोरात्रकृत पातक सघ:विनष्ट हो जाता है.
पदम पुराण में कहा गया है –
“तुलसी जी के दर्शन मात्र से सम्पूर्ण पापों की राशि नष्ट हो जाती है,उनके स्पर्श से शरीर पवित्र हो जाता है,उन्हे प्रणाम करने से रोग नष्ट हो जाते है,सींचने से मृत्यु दूर भाग जाती है,तुलसी जी का वृक्ष लगाने से भगवान की सन्निधि प्राप्त होती है,और उन्हे भगवान के चरणो में चढाने से मोक्ष रूप महान फल की प्राप्ति होती है.”
अंत काल के समय ,तुलसीदल या आमलकी को मस्तक या देह पर रखने से नरक का द्वार , आत्मा के लिए बंद हो जाता है
धात्री फलानी तुलसी ही अन्तकाले भवेद यदि
मुखे चैव सिरास्य अंगे पातकं नास्ति तस्य वाई --
कार्तिक मास की देव प्रबोधिनी एकादशी को तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है.उस दिन तुलसी जी का विवाह शलिग्राम भगवान से किया जाता है. इसमें चमत्कारिक गुण मौजूद होते हैं. कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवउठनी अथवा देवोत्थान एकादशी के साथ ही विवाह आदि मंगल कार्यों का आरम्भ हो जाता है. प्रत्येक आध्यात्मिक कार्य में तुलसी की उपस्थिति बनी रहती है. वर्ष भर तुलसी का उपयोग होता है. सारे माहों में कार्तिक माह में तुलसी पूजन विशेष रुप से शुभ माना गया है.
वैष्णव विधि-विधानों में तुलसी विवाह तथा तुलसी पूजन एक मुख्य त्यौहार माना गया है. कार्तिक माह में सुबह स्नान आदि से निवृत होकर तांबे के बर्तन में जल भरकर तुलसी के पौधे को जल दिया जाता है. संध्या समय में तुलसी के चरणों में दीपक जलाया जाता है. कार्तिक के पूरे माह यह क्रम चलता है. इस माह की पूर्णिमा तिथि को दीपदान की पूर्णाहुति होती है.
१. - गरुड़ पुराण में कहा गया है कि किसी के मुख मस्तक अथवा कर्णद्वय में तुलसी पत्र को देखकर यमराज अथवा उसके पापों को विदुरित कर देते है.तुलसी भक्षण करने से चंद्रायण, तप्तकृच्छ, ब्रह्कुर्त्य व्रत, से भी अधिक देह शुद्ध होती है.
२. - स्कंध पुराण में कहा गया है - स्वयं श्री विष्णु स्वर्णमय अथवा पद्म राग मनिमय यहाँ तक कि रत्न खचित विविध शुभ पुष्प को परित्याग करके तुलसी पत्र ग्रहण करते है व्याध भी यदि तुलसी पत्र भक्षण करके देह त्याग करता है तो उसके देह्स्थ पाप भस्मीभूत हो जाते है.जिस प्रकार शुक्ल और कृष्ण वर्ण जल अर्थात गंगा और यमुना का जल पातक को विनष्ट करता है उसी प्रकार रामा और श्यामा तुलसी पत्र भक्षण से सर्वभिलाषा सिद्ध होती है .
३. - जैसे अग्नि समस्त वन को जला देती है उसी प्रकार तुलसी भक्षण समस्त पापों को जला देता है.अमृत से आवला और तुलसी श्री हरि की वल्लभा है इनदोनो के स्मरण कीर्तन ध्यान और भक्षण करने से समस्त कामनाये पूर्ण होती है
४. - मृत्यु काल के समय मुख मस्तक और शरीर में आमलकी की फल और तुलसी पत्र विघमान हो तो कभी भी उसकी दुर्गति नहीं हो सकती. यदि कोई मानव पाप लिप्त होता है और कभी पुण्य अर्जन नहीं किया तो वह भी तुलसी भक्षण करके मुक्त हो जाता है.स्वयं भगवान ने कहा है कि शरीर त्याग करने से पूर्व यदि मुख में तुलसी पत्र डाल दिया जाये तो वह मेरे लोक में जाता है.
५. - ऐसा भी वर्णन आता है कि द्वादशी तिथि में उपवास करने पर दिन में पारण करते समय तुलसी पत्र भक्षण करने से अष्ट अश्वमेघ यज्ञानुष्ठान का फल मिल जाता है.
तुलसी दल और मंजरी चयन समय कुछ बातों का ख्याल रखें
१ . - तुलसी की मंजरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है। मंजरी तोड़ते समय उसमें पत्तियों का रहना भी आवश्यक माना गया है। तुलसी का एक-एक पत्ता तोड़ने के बजाय पत्तियों के साथ अग्रभाग को तोड़ना चाहिए. यही शास्त्रसम्मत भी है.प्राय: पूजन में बासी फूल और पानी चढ़ाना निषेध है, पर तुलसीदल और गंगाजल कभी बासी नहीं होते। तीर्थों का जल भी बासी नहीं होता।
२ . - निम्न मंत्र को बोलते हुए पूज्यभाव से तुलसी के पौधे को हिलाए बिना तुलसी के अग्रभाग को तोडे़. इससे पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है.
तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशवप्रिया।
चिनोमि केशवस्यार्थे वरदा भव शोभने।।
त्वदंगसंभवै: पत्रै: पूजयामि यथा हरिमृ।
तथा कुरु पवित्रांगि! कलौ मलविनाशिनि।।
३. - ब्रह्म वैवर्त पुराण में श्री भगवान तुलसी के प्रति कहते है - पूर्णिमा, अमावस्या , द्वादशी, सूर्यसंक्राति , मध्यकाल रात्रि दोनों संध्याए अशौच के समय रात में सोने के पश्चात उठकर, स्नान किए बिना,शरीर के किसी भाग में तेल लगाकर जो मनुष्य तुलसी दल चयन करता है वह मानो श्रीहरि के मस्तक का छेदन करता है.
४. - द्वादशी तिथि को तुलसी चयन कभी ना करे, क्योकि तुलसी भगवान कि प्रेयसी होने के कारण हरि के दिन -एकादशी को निर्जल व्रत करती है.अतः द्वादशी को शैथिल्य,दौबल्य के कारण तोडने पर तुलसी को कष्ट होता है.
५. - तुलसी चयन करके हाथ में रखकर पूजा के लिए नहीं ले जाना चाहिये शुद्ध पात्र में रखकर अथवा किसी पत्ते पर या टोकरी में रखकर ले जाना चाहिये.
इतने निषिद्ध दिवसों में तुलसी चयन नहीं कर सकते,और बिना तुलसी के भगवत पूजा अपूर्ण मानी जाती है अतः वारह पुराण में इसकी व्यवस्था के रूप में निर्दिष्ट है कि निषिद्ध काल में स्वतः झडकर गिरे हुए तुलसी पत्रों से पूजन करे.और अपवाद स्वरुप शास्त्र का ऐसा निर्देश है कि शालग्राम कि नित्य पूजा के लिए निषिद्ध तिथियों में भी तुलसी दल का चयन किया जा सकता है.
जानिए तुलसी तोड़ने के निषेध समय
हमारे शास्त्रों में तुलसी तोड़ने निषेध समय बताएं गए है जो की इस प्रकार है :-
1 वैधृति और व्यतिपात - योगों में
2 रविवार, मंगलवार और शुक्रवार
3 द्वादशी, अमावस्या एवम् पूर्णिमा
4 दोनों संध्या काल में और रात्री में
5 बिना नहाये और जूता-चप्पल पहनकर भी तुलसी को न छुएं
किन्तु बिना तुलसी के भगवान की पूजा अपूर्ण मानी जाती है, अतःनिषेध काल में भी तुसली पौधे से स्वतः टूटी हुई पत्तियों का प्रयोग किया ज सकता है. शालग्राम की पूजा के लिए भी निषेध काल में तुलसी तोड़ी जा सकती है .
शालिग्राम के विभिन्न नाम – भगवान श्रीमन नारायण के नाम
01 – श्री विष्णु शालिग्राम
02 – जनार्धना शालिग्राम
03 – पढ़मनाभा शालिग्राम
04 – प्रजपथी शालिग्राम
05 – चक्रधर शालिग्राम
06 – त्रिविक्रमा शालिग्राम
07 – नारायण शालिग्राम
08 – श्रीधर शालिग्राम
09 – गोविन्द शालिग्राम
10 – मधु सूधना शालिग्राम
11 – नारासिम्हा शालिग्राम
12 – जलासयिना शालिग्राम
13 – वराह शालिग्राम
14 – रघु नन्दन शालिग्रामा
15 – वामन शालिग्राम
16 – माधव शालिग्राम
17 – सन्थन गोपाल शालिग्राम
18 – हयग्रिवा शालिग्राम
19 – लक्ष्मी नरसिम्ह शालिग्राम
20 – लक्ष्मी नारायण शालिग्राम
21 – रत्न गर्व ज्योति शालिग्राम
22 – कल्की शालिग्राम
23 – बुद्ध शालिग्राम
24 – परशुराम शालिग्राम
25 – राम शालिग्राम
26 – कृष्ण शालिग्राम
27 – विश्वम्भर शालिग्राम
28 – अस्टबक्र शालिग्राम
29 – अच्युत शालिग्राम
30 – स्वेत लक्ष्मी शालिग्राम
31 – मणि प्रभा शालिग्राम
32 – संकर्षण शालिग्राम
33 – नवब्युह शालिग्राम
34 – दश अवतार शालिग्राम
35 – प्रधुन्न शालिग्राम
36 – पुरुषोतम शालिग्राम
37 – अनिरुद्र शालिग्राम
38 – सुदर्शन और सुदर्शन-चक्र शालिग्राम
39 – बैकुण्ठ शिला (बैकुण्ठ शालिग्राम)
40 – केशब शालिग्राम
41 – दामोदर शालिग्राम
01 – श्री विष्णु शालिग्राम
02 – जनार्धना शालिग्राम
03 – पढ़मनाभा शालिग्राम
04 – प्रजपथी शालिग्राम
05 – चक्रधर शालिग्राम
06 – त्रिविक्रमा शालिग्राम
07 – नारायण शालिग्राम
08 – श्रीधर शालिग्राम
09 – गोविन्द शालिग्राम
10 – मधु सूधना शालिग्राम
11 – नारासिम्हा शालिग्राम
12 – जलासयिना शालिग्राम
13 – वराह शालिग्राम
14 – रघु नन्दन शालिग्रामा
15 – वामन शालिग्राम
16 – माधव शालिग्राम
17 – सन्थन गोपाल शालिग्राम
18 – हयग्रिवा शालिग्राम
19 – लक्ष्मी नरसिम्ह शालिग्राम
20 – लक्ष्मी नारायण शालिग्राम
21 – रत्न गर्व ज्योति शालिग्राम
22 – कल्की शालिग्राम
23 – बुद्ध शालिग्राम
24 – परशुराम शालिग्राम
25 – राम शालिग्राम
26 – कृष्ण शालिग्राम
27 – विश्वम्भर शालिग्राम
28 – अस्टबक्र शालिग्राम
29 – अच्युत शालिग्राम
30 – स्वेत लक्ष्मी शालिग्राम
31 – मणि प्रभा शालिग्राम
32 – संकर्षण शालिग्राम
33 – नवब्युह शालिग्राम
34 – दश अवतार शालिग्राम
35 – प्रधुन्न शालिग्राम
36 – पुरुषोतम शालिग्राम
37 – अनिरुद्र शालिग्राम
38 – सुदर्शन और सुदर्शन-चक्र शालिग्राम
39 – बैकुण्ठ शिला (बैकुण्ठ शालिग्राम)
40 – केशब शालिग्राम
41 – दामोदर शालिग्राम
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