शाबर मन्त्र और ज्योतिष Shabar Mantra Aur Jyotish
ज्योतिष / जन्म कुंडली के अनुसार शाबर मन्त्र—
शाबर मन्त्रों के सम्बन्ध में कुछ लोग यह कहते हैं कि उन्होंने शाबर-मन्त्र ‘जप’ कया, किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ । वास्तव में ‘मन्त्र-सिद्धि’ न हो, तो जप दो बार या तीन बार करना चाहिए । फिर भी मन्त्र-सिद्धि न हो, तो उसके लिए अन्य कारणों को खोजना चाहिए ।
मन्त्र-सिद्धि न होने के बहुत से कारण हैं । एक कारण ग्रहों की दशा है । ‘ज्योतिष-विद्या’ के अनुसार ग्रहों की दशा ज्ञात करें । शाबर मन्त्र का जप किया जाए, तो साधना में सिद्धि अवश्य मिलती है । जिन लोगों को मन्त्र-साधना में निष्फलता मिली है, उनके लिए तो ज्योतिष विद्या का अवलम्बन उपयोगी है जी, साथ ही जो लोग मन्त्र साधना करने के लिए उत्सुक हैं, वे भी ज्योतिष विद्या का अवलम्बन लेकर यदि साधना प्रारम्भ करें, तो उन्हें विशेष सफलता प्राप्त हो सकती है ।
अस्तु, साधना-काल में जन्म-लग्न-चक्र के अनुसार कौन ग्रह अनुकूल है या कौन ग्रह प्रतिकूल है, यह जानना बहुत महत्त्व-पूर्ण है । साधना को यदि कर्म समझा जाए, तो जन्म-चक्र का दशम स्थान उसकी सफलता या असफलता का सूचक है । प्रायः ज्योतिषी नवम-स्थान को मुख्य मानकर साधना की सिद्धि या असिद्धि या उसका बलाबल नियत करते हैं । साधना में चूँकि कर्म अभिप्रेत है, अतः जन्म-चक्र का दशम स्थान का विचार उचित होगा । वैसे कुछ लोग पञ्चम स्थान को भी महत्त्व देते हैं ।
ज्योतिष के नियमानुसार साधक के जन्म-चक्र के नवम स्थान में जिस ग्रह का प्रभाव होता है, वैसी ही प्रकृति वह धारण करता है । इससे यह ज्ञात होता है कि साधक की प्रकृति सात्त्विक होगी या राजसिक या तामसिक ।
जन्म चक्र में यदि ‘गुरु, बुध, मंगल′ एक साथ होते हैं, तो साधक सगुण उपासना में प्रवृत्त होता है । जन्म चक्र में गुरु के साथ यदि बुध है, तो साधक सात्त्विक देवी-देवताओं की उपासना में प्रवृत्त होता है । ऐसे ही यदि दशमेश नवम स्थान में होता है, तो साधक सात्त्विक – देवोपासक बनता है ।
जन्म चक्र के आधार पर सात्त्विक उपासना के मुख्य-मुख्य योग इस प्रकार हैं –
१॰ दशमेश उच्च हो और साथ में बुध और शुक्र हो ।
२॰ लग्नेश दशम स्थान में हो ।
३॰ दशमेश नवम स्थान में हो और पाप-दृष्टि से रहित हो ।
४॰ दशमेश दशम स्थान या केन्द्र में हो ।
५॰ दशमेश बुध हो तथा गुरु बलवान और चन्द्र तृतीय हो ।
६॰ दशमेश व लग्न की युति हो ।
७॰ दशमेश व लग्नेश का स्वामी एक ही हो ।
८॰ दशमेश यदि शनि है, तो साधक तामसी बुद्धिवाला होता हुआ भी उच्च साधक व तपस्वी बनता है । यदि शनि राहु के साथ हो, तो रुचि तामसिक उपासना में अधिक लगेगी ।
९॰ सूर्य, शुक्र अथवा चन्द्र यदि दशमेश हो, तो जातक दूसरे की सहायता से ही उपासक बनता है ।
१०॰ पञ्चम स्थान परमात्मा से प्रेम का सूचक होता है । पञ्चम और नवम स्थान यदि शुभ लक्षणों से युक्त होते है, तो जातक अति सफल उपासक बनता है ।
११॰ पञ्चम स्थान में पुरुष ग्रहों का यदि प्रभाव रहता है, तो जातक पुरुष देव-देवताओं का उपासक बनता है । यदि स्त्री ग्रहों का विशेष प्रभाव होता है, तो जातक स्त्री-देवता या देवी की उपासना में रुचि रखता है । पञ्चम स्थान में सूर्य की स्थिति से यह ज्ञात होता है कि जातक शक्ति का कैसा उपासक बन सकता है ।
१२॰ नवम स्थान में या नवम स्थान के ऊपर मंगल की दृष्टि होती है, तो जातक भगवान् शिव की उपासना करता है । कुछ लोग मंगल को गनुमान् जी का स्वरुप मानते हैं । अतः इससे हनुमान् जी की उपासना बताते हैं । ऐसे ही कुछ लिगों का मत है कि गुरु-ग्रह के बल से शिव जी की उपासना में सफलता मिलती है । नवम स्थान में शनि होने से कुछ लोग तामसिक उपासनाओं में रुचि बताते हैं । नवम स्थान में शनि होने पर श्री हनुमान् जी का सफल उपासक बना जा सकता है ।
इस प्रकार ज्योतिष शास्त्र में उपासना सम्बन्धी अनेक योग हैं । शाबर मन्त्र को सिद्ध करने में कौन-कौन-से योग महत्त्व-पूर्ण हैं, इससे सम्बन्धी कुछ योग इस प्रकार हैं –
१॰ नवम स्थान में शनि हो, तो साधक शाबर मन्त्र में अरुचि रखता है अथवा वह शाबर-साधना सतत नहीं करेगा । यदि वह शाबर साधना करेगा, तो अन्त में उसको वैराग्य हो जाएगा ।
२॰ नवम स्थान में बुध होने से जातक को शाबर मन्त्र की सिद्धि में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है अथवा शाबर मन्त्र की साधना में प्रतिकूलताएँ आएँगी ।
३॰ पञ्चम स्थान के ऊपर यदि मंगल की दृष्टि हो, तो जातक कुल-देवता, कुल-देवी का उपासक होता है । पञ्चम स्थान के ऊपर गुरु की दृष्टि हो, तो साधक शाबर साधना में विशेष सफलता मिलती है । पञ्चम स्थान पर सूर्य की दृष्टि हो तो साधक सूर्य या विष्णु की उपासना में सफल होता है । यदि राहु की दृष्टि हो, तो वह भैरव उपासक बनता है । इस प्रकार के साधक को यदि पथ-निर्देशन नहीं मिलता, तो वह निम्न स्तर के देवी-देवताओं की उपासना करने लगता है ।
४॰ ज्योतिष विद्या का प्रसिद्ध ग्रन्थ “जैमिनि-सूत्र” है । इसके प्रणेता महर्षि जैमिनि है । इस ग्रन्थ से उपासना सम्बन्धी उत्तम मार्ग-दर्शन मिलता है यथा –
क॰ सबसे अधिक अंशवाले ग्रह को आत्मा-कारक ग्रह कहते हैं । नवमांश में यदि यदि आत्मा-कारक शुक्र हो, तो जातक लक्ष्मी की साधना करता है । ऐसे जातक को लक्ष्मी देवी के मन्त्र की साधना से लाभ-ही-लाभ मिलता है ।
ख॰ नवमांश में यदि आत्मा-कारक मंगल होता है, तो जातक भगवान् कार्तिकेय की उपासना से लाभान्वित होता है ।
ग॰ बुध व शनि से भगवान् विष्णु और गुरु के बलाबल से भगवान् सदा-शिव की उपासना लाभदायक होती है ।
घ॰ राहु से तामसिक देवी-देवताओं की उपासना सिद्ध होती है ।
ङ॰ शनि के उच्च-कोटि के होने पर साधक को उच्च-कोटि की सिद्धि सहज में मिलती है । इसके विपरित यदि शनि निम्न-कोटि का होता है, साधना की सिद्धि में विलम्ब होता है ।
च॰ जन्म-चक्र में यदि द्वादश स्थान में राहु होता है, तो साधक परमात्मा के साक्षात्कार हेतु उत्साहित रहता है । ऐसे बन्धुओं को मन्त्र-तन्त्र-यन्त्र की सिद्धि द्वारा भौतिक लाभ-प्राप्ति से दूर रहना चाहिए, क्योंकि द्वादश स्थान मोक्ष-प्राप्ति का सूचक है । द्वादश स्थान में राहु के होने से वह साधना की सिद्धि में सहायक और लाभ-प्रद रहता है ।
छ॰ दशम स्थान में यदि सूर्य हो, तो साधक को भगवान् राम की उपासना करनी चाहिए और दशम स्थान में यदि चन्द्र हो, तो कृष्ण की उपासना करनी चाहिए ।
ज॰ सधम स्थान में यदि गुरु हो, तो साधक अन्तः-प्रेरणा या अन्तः-स्फुरण से उपासना करता है और सफल होता है ।
शाबर मंत्र रहस्य
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शाबर मंत्रों को जगाने की विधि
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द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण की आज्ञा से अर्जुन ने पशुपति अस्त्र की प्राप्ति के लिए भगवान शिव का तप किया! एक दिन भगवान शिव एक शिकारी का भेष बनाकर आये और जब पूजा के बाद अर्जुन ने सुअर पर बाण चलाया तो ठीक उसी वक़्त भगवान शिव ने भी उस सुअर को तीर मारा, दोनों में वाद विवाद हो गया और शिकारी रुपी शिव ने अर्जुन से कहा, मुझसे युद्ध करो जो युद्ध में जीत जायेगा सुअर उसी को दीया जायेगा! अर्जुन और भगवान शिव में युद्ध शुरू हुआ, युद्ध देखने के लिए माँ पार्वती भी शिकारी का भेष बना वहां आ गयी और युद्ध देखने लगी! तभी भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा जिसका रोज तप करते हो वही शिकारी के भेष में साक्षात् खड़े है! अर्जुन ने भगवान शिव के चरणों में गिरकर प्रार्थना की और भगवान शिव ने अर्जुन को अपना असली स्वरूप दिखाया!
अर्जुन भगवान शिव के चरणों में गिर पड़े और पशुपति अस्त्र के लिए प्रार्थना की! शिव ने अर्जुन को इच्छित वर दीया, उसी समय माँ पार्वती ने भी अपना असली स्वरूप दिखाया! जब शिव और अर्जुन में युद्ध हो रहा था तो माँ भगवती शिकारी का भेष बनाकर बैठी थी और उस समय अन्य शिकारी जो वहाँ युद्ध देख रहे थे उन्होंने जो मॉस का भोजन किया वही भोजन माँ भगवती को शिकारी समझ कर खाने को दिया! माता ने वही भोजन ग्रहण किया इसलिए जब माँ भगवती अपने असली रूप में आई तो उन्होंने ने भी शिकारीओं से प्रसन्न होकर कहा ”हे किरातों! मैं प्रसन्न हूँ, वर मांगो!” इसपर शिकारीओं ने कहा ”हे माँ हम भाषा व्याकरण नहीं जानते और ना ही हमें संस्कृत का ज्ञान है और ना ही हम लम्बे चौड़े विधि विधान कर सकते है पर हमारे मन में भी आपकी और महादेव की भक्ति करने की इच्छा है, इसलिए यदि आप प्रसन्न है तो भगवान शिव से हमें ऐसे मंत्र दिलवा दीजिये जिससे हम सरलता से आप का पूजन कर सके!
माँ भगवती की प्रसन्नता देख और भीलों का भक्ति भाव देख कर आदिनाथ भगवान शिव ने शाबर मंत्रों की रचना की! यहाँ एक बात बताना बहुत आवश्यक है कि नाथ पंथ में भगवान शिव को ”आदिनाथ” कहा जाता है और माता पार्वती को ”उदयनाथ” कहा जाता है! भगवान शिव जी ने यह विद्या भीलों को प्रदान की और बाद में यही विद्या दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ को मिली, उन्होंने इस विद्या का बहुत प्रचार प्रसार किया और करोड़ो शाबर मंत्रों की रचना की! उनके बाद गुरु गोरखनाथ जी ने इस परम्परा को आगे बढ़ाया और नव नाथ एवं चौरासी सिद्धो के माध्यम से इस विद्या का बहुत प्रचार हुआ! कहा जाता है कि योगी कानिफनाथ जी ने पांच करोड़ शाबर मंत्रों की रचना की और वही चर्पटनाथ जी ने सोलह करोड़ शाबर मंत्रों की रचना की! मान्यता है कि योगी जालंधरनाथ जी ने तीस करोड़ शाबर मंत्रों की रचना की! इन योगियों के बाद अनन्त कोटि नाथ सिद्धो ने शाबर मंत्रों की रचना की !यह शाबर मंत्रों की विद्या नाथ पंथ में गुरु शिष्य परम्परा से आगे बढ़ने लगी, इसलिए शाबर मंत्रों चाहे किसी भी प्रकार का क्यों ना हो उसका सम्बन्ध किसी ना किसी नाथ पंथी योगी से अवश्य होता है! अतः यह कहना गलत ना होगा कि शाबर मंत्र नाथ सिद्धो की देन है!
शाबर मंत्रों के मुख्य पांच प्रकार है –
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1. प्रबल शाबर मंत्र – इस प्रकार के शाबर मंत्र कार्य सिद्धि के लिए प्रयोग होते है, इन में प्रत्यक्षीकरण नहीं होता! केवल जिस मंशा से जप किया जाता है वह इच्छा पूर्ण हो जाती है! इन्हें कार्य सिद्धि मंत्र कहना गलत ना होगा! यह मंत्र सभी प्रकार के कर्मों को करने में सक्षम है! अतः इस प्रकार के मंत्रों में व्यक्ति देवता से कार्य-सिद्धि के लिए प्रार्थना करता है, साधक एक याचक के रूप में देवता से याचना करता है!
2. बर्भर शाबर मंत्र – इस प्रकार के शाबर मंत्र भी सभी प्रकार के कार्यों को करने में सक्षम है पर यह प्रबल शाबर मंत्र से अधिक तीव्र माने जाते है ! बर्भर शाबर मंत्र में साधक देवता से याचना नहीं करता अपितु देवता से सौदा करता है! इस प्रकार के मंत्रों में देवता को गाली, श्राप, दुहाई और धमकी आदि देकर काम करवाया जाता है! देवता को भेंट दी जाती है और कहा जाता है कि मेरा अमुक कार्य होने पर मैं आपको इसी प्रकार भेंट दूंगा! यह मंत्र बहुत ज्यादा उग्र होते है!
3. बराटी शाबर मंत्र – इस प्रकार के शाबर मंत्र में देवता को भेंट आदि ना देकर उनसे बलपूर्वक काम करवाया जाता है! यह मंत्र स्वयं सिद्ध होते है पर गुरु-मुखी होने पर ही अपना पूर्ण प्रभाव दिखाते है! इस प्रकार के मंत्रों में साधक याचक नहीं होता और ना ही सौदा करता है! वह देवता को आदेश देता है कि मेरा अमुक कार्य तुरंत करो! यह मन्त्र मुख्य रूप से योगी कानिफनाथ जी के कापालिक मत में अधिक प्रचलित है! कुछ प्रयोगों में योगी अपने जुते पर मंत्र पढ़कर उस जुते को जोर-जोर से नीचे मारते है तो देवता को चोट लगती है और मजबूर होकर देवता कार्य करता है!
4. अढैया शाबर मंत्र – इस प्रकार के शाबर मंत्र बड़े ही प्रबल माने जाते है और इन मंत्रों के प्रभाव से प्रत्यक्षीकरण बहुत जल्दी होता है! प्रत्यक्षीकरण इन मन्त्रों की मुख्य विशेषता है और यह मंत्र लगभग ढ़ाई पंक्तियों के ही होते है! अधिकतर अढैया मन्त्रों में दुहाई और धमकी का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता पर फिर भी यह पूर्ण प्रभावी होते है!
5. डार शाबर मंत्र – डार शाबर मंत्र एक साथ अनेक देवताओं का दर्शन करवाने में सक्षम है जिस प्रकार “बारह भाई मसान” साधना में बारह के बारह मसान देव एक साथ दर्शन दे जाते है! अनेक प्रकार के देवी देवता इस मंत्र के प्रभाव से दर्शन दे जाते है जैसे “चार वीर साधना” इस मार्ग से की जाती है और चारों वीर एक साथ प्रकट हो जाते है! इन मन्त्रों की जितनी प्रशंसा की जाए उतना ही कम है, यह दिव्य सिद्धियों को देने वाले और हमारे इष्ट देवी देवताओं का दर्शन करवाने में पूर्ण रूप से सक्षम है! गुरु अपने कुछ विशेष शिष्यों को ही इस प्रकार के मन्त्रों का ज्ञान देते है!
नाथ पंथ की महानता को देखकर बहुत से पाखंडी लोगों ने अपने आपको नाथ पंथी घोषित कर दिया है ताकि लोग उनकी बातों पर विश्वास कर ले! ऐसे लोगों से यदि यह पूछा जाये कि आप बारह पन्थो में से किस पंथ से सम्बन्ध रखते है? आपकी दीक्षा किस पीठ से हुयी है ? आपके गुरु कौन है? तो इन लोगों का उत्तर होता है कि मैं बताना जरूरी नहीं समझता क्योंकि इन लोगों को इस विषय में ज्ञान ही नहीं होता , पर आज के इस युग में लोग बड़े समझदार है और इन धूर्तों को आसानी से पहचान लेते है!
ऐसे महापाखंडीयो ने ही प्रचार किया है कि सभी शाबर मंत्र ”गोरख वाचा” है अर्थात गुरु गोरखनाथ जी के मुख से निकले हुए है पर मेरा ऐसे लोगों से एक ही प्रश्न है क्या जो मन्त्र कानिफनाथ जी ने रचे है वो भी गोरख वाचा है? क्या जालंधरनाथ जी के रचे मन्त्र भी गोरख वाचा है? इन मंत्रों की बात अलग है पर क्या मुस्लिम शाबर मंत्र भी गोरख वाचा है? ऐसा नहीं है मुस्लिम शाबर मंत्र मुस्लिम फकीरों द्वारा रचे गए है!
भगवान शिव ने सभी मंत्रों को किलित कर दिया पर शाबर मंत्र किलित नहीं है ! शाबर मंत्र कलियुग में अमृत स्वरूप है! शाबर मंत्र को सिद्ध करना बड़ा ही सरल है न लम्बे विधि विधान की आवश्यकता और न ही करन्यास और अंगन्यास जैसी जटिल क्रियाएँ! इतने सरल होने पर भी कई बार शाबर मंत्र का पूर्ण प्रभाव नहीं मिलता क्योंकि शाबर मंत्र सुप्त हो जाते है ऐसे में इन मंत्रों को एक विशेष क्रिया द्वारा जगाया जाता है!
शाबर मंत्र के सुप्त होने के मुख्य कारण –
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1. यदि सभा में शाबर मंत्र बोल दिए जाये तो शाबर मंत्र अपना प्रभाव छोड़ देते है!
2. यदि किसी किताब से उठाकर मन्त्र जपना शुरू कर दे तो भी शाबर मंत्र अपना पूर्ण प्रभाव नहीं देते!
3. शाबर मंत्र अशुद्ध होते है इनके शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता क्योंकि यह ग्रामीण भाषा में होते है यदि इन्हें शुद्ध कर दिया जाये तो यह अपना प्रभाव छोड़ देते है!
4. प्रदर्शन के लिए यदि इनका प्रयोग किया जाये तो यह अपना प्रभाव छोड़ देते है!
5. यदि केवल आजमाइश के लिए इन मंत्रों का जप किया जाये तो यह मन्त्र अपना पूर्ण प्रभाव नहीं देते !
ऐसे और भी अनेक कारण है ! उचित यही रहता है कि शाबर मंत्र को गुरुमुख से प्राप्त करे क्योंकि गुरु साक्षात शिव होते है और शाबर मंत्र के जन्मदाता स्वयं शिव है ! शिव के मुख से निकले मन्त्र असफल हो ही नहीं सकते !
शाबर मंत्र के सुप्त होने का कारण कुछ भी हो इस विधि के बाद शाबर मन्त्र पूर्ण रूप से प्रभावी होते है !
|| मन्त्र ||
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सत नमो आदेश! गुरूजी को आदेश! ॐ गुरूजी! डार शाबर बर्भर जागे, जागे अढैया और बराट, मेरा जगाया न जागे तो तेरा नरक कुंड में वास! दुहाई शाबरी माई की! दुहाई शाबरनाथ की! आदेश गुरु गोरख को!
|| विधि ||
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इस मन्त्र को प्रतिदिन गोबर का कंडा सुलगाकर उसपर गूगल डाले और इस मन्त्र का १०८ बार जाप करे ! जब तक मन्त्र जाप हो गूगल सुलगती रहनी चाहिये ! यह क्रिया आपको २१ दिन करनी है, अच्छा होगा आप यह मन्त्र अपने गुरु के मुख से ले या किसी योग्य साधक के मुख से ले! गुरु कृपा ही सर्वोपरि है कोई भी साधना करने से पहले गुरु आज्ञा जरूर ले!
|| प्रयोग विधि ||
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जब भी कोई साधना करे तो इस मन्त्र को जप से पहले ११ बार पढ़े और जप समाप्त होने पर ११ बार दोबारा पढ़े मन्त्र का प्रभाव बढ़ जायेगा! यदि कोई मन्त्र बार-बार सिद्ध करने पर भी सिद्ध न हो तो किसी भी मंगलवार या रविवार के दिन उस मन्त्र को भोजपत्र या कागज़ पर केसर में गंगाजल मिलाकर अनार की कलम से या बड के पेड़ की कलम से लिख ले! फिर किसी लकड़ी के फट्टे पर नया लाल वस्त्र बिछाएं और उस वस्त्र पर उस भोजपत्र को स्थापित करे! घी का दीपक जलाये, अग्नि पर गूगल सुलगाये और शाबरी देवी या माँ पार्वती का पूजन करे और इस मन्त्र को १०८ बार जपे फिर जिस मन्त्र को जगाना है उसे १०८ बार जपे और दोबारा फिर इसी मन्त्र का १०८ बार जप करे! लाल कपडे दो मंगवाए और एक घड़ा भी पहले से मंगवा कर रखे! जिस लाल कपडे पर भोजपत्र स्थापित किया गया है उस लाल कपडे को घड़े के अन्दर रखे और भोजपत्र को भी घड़े के अन्दर रखे! दूसरे लाल कपडे से भोजपत्र का मुह बांध दे और दोबारा उस कलश का पूजन करे और शाबरी माता से मन्त्र जगाने के लिए प्रार्थना करे और उस कलश को बहते पानी में बहा दे! घर से इस कलश को बहाने के लिए ले जाते समय और पानी में कलश को बहाते समय जिस मन्त्र को जगाना है उसका जाप करते रहे! यह क्रिया एक बार करने से ही प्रभाव देती है पर फिर भी इस क्रिया को ३ बार करना चाहिये मतलब रविवार को फिर मंगलवार को फिर दोबारा रविवार को ! भगवान आदिनाथ और माँ शाबरी आप सबको मन्त्र सिद्धि प्रदान करे
ज्योतिष और शाबर
साधना-काल में जन्म-लग्न-चक्र के अनुसार ग्रहों की अनुकूलता जानना आवश्यक है। साधना भी एक प्रकार का कर्म है, अतः ‘दशम भाव’ उसकी सफलता या असफलता का सूचक है। साधना की प्रकृत्ति तथा सफलता हेतु पँचम, नवम तथा दशम भाव का अवलोकन उचित रहेगा।
१॰ नवम स्थान में शनि हो तो साधक शाबर मन्त्र में अरुचि रखता है या वह शाबर-साधना सतत नहीं करेगा। यदि वह ऐसा करेगा तो अन्त में उसको वैराग्य हो जाएगा।
२॰ नवम स्थान में बुध होने से जातक को शाबर-मन्त्र की सिद्धि में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
३॰ पँचम स्थान पर यदि मंगल की दृष्टि हो, तो जातक कुल-देवता, देवी का उपासक होता है।
४॰ पँचम स्थान पर यदि गुरु की दृष्टि हो, तो साधक को शाबर-साधना में विशेष सफलता मिलती है।
५॰ पँचम स्थान पर सूर्य की दृष्टि हो, तो साधक सूर्य या विष्णु की उपासना में सफल होता है।
६॰ यदि राहु की दृष्टि होती है, तो वह “भैरव” उपासक होता है। इस प्रकार के साधक को यदि पथ-प्रदर्शन नहीं मिलता, तो वह निम्न स्तर के देवी-देवताओं की उपासना करने लगता है।
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