नक्षत्र तंत्र
पूजन में नक्षत्रों का महत्व
ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड के अनुसार भगवान नारायण ने नारद जी से देवी पूजन के लिए कुछ नक्षत्रों की महत्ता का वर्णन किया। नारायण कहते हैं, आर्द्रा नक्षत्र में देवी को जगाएं और मूल नक्षत्र में आवाहन करें। देवी की पूजा का विसर्जन उत्तराषाढ़ नक्षत्र में करें।
नवमी तिथि जिस दिन आर्द्रा नक्षत्र हो, इस दिन देवी को जाग्रत करके जो मनुष्य पूजा करता है, उसे सौ सालों तक पूजा का फल मिलता है। उत्तराषाढ़ नक्षत्र में देवी की पूजा से वाजपेय यज्ञ फल की प्राप्ति होती है। देवी अथर्वशीर्ष के अनुसार अश्विनी नक्षत्र युक्त मंगलवार को देवी की पूजा से मृत्यु तुल्य कष्ट भी दूर हो जाते हैं।
नक्षत्र एवं उनके प्रकार
नक्षत्र :
आकाश में कई लघु तारा समूह आकृति में अश्व, स्वान, सर्प, मृग, हाथी, जैसे दिखाई देते हैं उन्हें नक्षत्र कहते हैं | ये नक्षत्र पृथ्वी मार्ग में चन्द्र द्वारा तय की गयी दूरी प्रकट करते हैं | एक नक्षत्र १३ अंश २०’ कला का होता है | प्रत्येक नक्षत्र चार चरण का होता है अतः नक्षत्र के एक चरण की दूरी १३ अंश २०’ कला /४ = ३ अंश २०’कला होती है | सवा दो नक्षत्र अर्थार्त ९ चरण की एक राशि होती है | चन्द्र २.२५ दिन में एक राशि पार कर लेता है यानी ३० अंश पार कर लेता है| सत्ताईस दिन में सभी १२ राशियाँ और २७ नक्षत्र पार कर लेता है | चन्द्र यात्रा मार्ग में कुल २७ नक्षत्र हैं मगर ज्योतिषाचार्यों का मत है कि उत्तरा-आषाढ़ नक्षत्र की अंतिम १५ घटी और श्रवण नक्षत्र की प्रथम ४ घटी कुल १९ घटी का अभिजीत नामक एक २८ वां नक्षत्र भी है | यह सभी शुभ कार्यों के लिए अच्छा रहता है
स्वभाव के आधार पर नक्षत्रों को सात श्रेणियों में बाँटा गया है :
१. स्थिर नक्षत्र : रोहिणी, उत्तर-फाल्गुनी,उत्तरा-आषाढ़, उत्तरा-भाद्रपद,(४,१२,२१,२६) ये चार नक्षत्र स्थिर होते हैं | भवन निर्माण, कृषि कार्य, ग्रह प्रवेश, नौकरी ज्वायन करना, उपनयन संस्कार आदि के लिए शुभ होते हैं |
२. चर(चंचल) नक्षत्र : पुनर्वशु, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा,(७,१५,२२,२३,२४,) ये पांच नक्षत्र चर अथवा चंचल प्रकृति के होते हैं | मोटरकार चलाना या खरीदना, घुड़सवारी करना, यात्रा करना आदि गतिशील कार्यों के लिए शुभ रहते हैं |
३. क्रूर(उग्र) नक्षत्र : भरनी, मघा, पूर्वा-फाल्गुनी, पूर्वा-आषाढ़, पूर्वा-भाद्रपद, (२,१०,११,२०,२५) ये पांच नक्षत्र क्रूर अथवा उग्र प्रकृति के होते हैं | सर्जरी करना, भट्टे लगाना, अस्त्र-शस्त्र चलाना व्यापार करना, खोज कार्य करना, शोध कार्य करना, मारपीट करना, आग जलाना, आदि के लिए शुभ रहते हैं |
४. मिश्र (साधारण) नक्षत्र : कृतिका, विशाखा,(३,१६) ये दो नक्षत्र मिश्र अथवा साधारण प्रकृति के होते हैं | बिजली सम्बन्धी कार्य, दवाई बनाने का कार्य, लोहा भट्टी, गैस भट्टी, भाप इंजन आदि के कार्य करने शुभ रहते हैं |
५. लघु नक्षत्र : अश्विनी, पुष्य, हस्त,(१,८,१३,) ये तीन नक्षत्र लघु प्रकृति के होते हैं | नाटक, नौटंकी,रूपसज्जा, गायन, दूकान,शिक्षा,लेखन,प्रकाशन, आभूषण, आदि के कार्यों को करने के लिए शुभ रहते हैं |
६. मृदु (मित्रवत) नक्षत्र : मृगशिरा,चित्रा, अनुराधा, रेवती,(५,१४,१७,२७) ये चार नक्षत्र मृदु अथवा मित्रवत प्रकृति के होते हैं | कपडे बनाना, सिलाई कार्य,खेल, आभूषण बनवाना, सेवा कार्य,व्यापार,सत्संग आदि कार्य करना शुभ रहते हैं |
७. तीक्ष्ण (दारुण) नक्षत्र : आद्रा,आश्लेषा,ज्येष्ठा, मूल,(६,९,१८,१९) ये चार नक्षत्र तीक्ष्ण अथवा दुखदायी प्रकृति के होते हैं |लड़ाई-झगड़े करना, जानवरों को वश में करना, कोई हानिकारक कार्य करना, जादू-टोना करना आदि कार्य शुभ रहते हैं |
शुभाशुभ फल के आधार पर नक्षत्रों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है |
१. शुभ फलदायी नक्षत्र : १,४,८,१२,१३,१४,१७,२१,२२,२३,२४,२६,२७, कुल १३ नक्षत्र शुभ फलदायी होते हैं |
२. मध्यम फलदायी नक्षत्र : ५,७,१०,१६, कुल चार नक्षत्र मध्यम फलदायी होते हैं |
३. अशुभ फलदायी नक्षत्र : २,३,६,९,११,१५,१८,१९,२०,२५, कुल १० नक्षत्र अशुभ फलदायी होते हैं |
चोरी गयी वस्तु प्राप्ति अथवा अप्राप्ति के आधार पर नक्षत्रों को चार भागों में बाँटा गया है :
१. अंध लोचन नक्षत्र : ४,७,१२,१६,२०,२३,२७, ये सात अंध लोचन नक्षत्र कहलाते हैं | इन नक्षत्रों में खोई या चोरी गई वस्तु पूर्व दिशा में जाती या होती है एवं शीघ्र/ जल्दी मिल जाती है |
२. मंद लोचन नक्षत्र :१,५,९,१३,१७,२१,२४, ये सातनक्षत्र मंद लोचन नक्षत्र कहलाते हैं | खोई हुई वस्तु या चोरी गई वस्तु पश्चिम दिशा में जाती या होती है एवं प्रयत्न करने पर मिल जाती है |
३. मध्य लोचन नक्षत्र :२,६,१०,१४,१८,२५, ये छः नक्षत्र मध्य लोचन नक्षत्र कहलाते हैं | इन नक्षत्रों में चोरी गई या खोई वस्तु दक्षिण दिशा में जाती या होती है तथा सूचना मिलने या मालूम होने पर भी नहीं मिलती है |
४. सुलोचन नक्षत्र :३,८,११,१५,१९,२२,२६, ये सात नक्षत्र सुलोचन नक्षत्र कहलाते हैं | इन नक्षत्रों में चोरी गई या खोई वस्तु उत्तर दिशा में जाती या होती है | उत्तर दिशा में जाने वाली वस्तु की न तो कोई जानकारी या सूचना मिलती है और न ही वो वस्तु वापिस मिलती है |
प्रत्येक नक्षत्र का एक मूल स्वभाव होता है. उस के अनुरूप उस नक्षत्र में कुछ एक उपाय करके आप अपने कार्य सुनिश्चित रूप से फलदायक बना सकते हैं.
अश्विनी
इस नक्षत्र के दिन बिल्व वृक्ष का पत्ता एक वर्णी गाय के दूध के साथ पियें तो बाँझ के भी पुत्र होता है.
भरणी
इस नक्षत्र में जिसके घर चोरी हुई हो उस घर में पान लगाकर डालें तो खोयी वास्तु के मिलने कि सम्भावना बन जाती है.
कृतिका
इस नक्षत्र के दिन प्याज के पौधे का एक पत्ता एक वर्णी गाये के दूध में पियें तो सर्व रोग शांत होते हैं.
इस नक्षत्र के दिन थूहर का मूल हाथ में बांधें तो वाक् सिद्धि होती है.
पुष्य
इस नक्षत्र में मूल लाने कि विधि से शंख पुष्पी की मूल लाकर चांदी की डिब्बी में डाल कर तिजोरी में रखने से धन-धान्य की वृद्धि होती है.
अश्लेषा
इस नक्षत्र में बरगद का पत्ता अनाज रखने की जगह पर रखे तो व्यापर में लाभ होता है.
मघा
इस नक्षत्र में बेर की झाड़ी का पत्ता हाथ में बांधने से मंत्र साधना में सहायता प्राप्त होती है.
पूर्वाफाल्गुनी
इस नक्षत्र में बहेड़े का पत्ता जिस किसी के घर में रख दिया जाये तो उस घर पर मूठ नहीं चलती.
उत्तराफाल्गुनी
इस नक्षत्र में उत्तर दिशा की और से व्याघ्रनखी (पानी में कमल की भांति उगनेवाला पौधा) की मूल लाकर स्त्री के कमर में बांध देने से प्रदर रोग दूर हो जाता है.
विशाखा
पौष मास में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को जब यह नक्षत्र आये तो पीपल को न्यौत आयें. चतुर्दशी को इसकी मूल ले आयें. नग्न होकर स्नान कर, धूप देकर हाथ में बांधें तो प्रेत तंग न करे.
रोहिणी
श्रावण कृष्ण पक्ष में जब यह नक्षत्र आये उस समय तालाब, जोहड या कुएं पर जाये. जब पानी का घड़ा या बर्तन भरकर कोई महिला जाऐ उस समय पूरे भरे घड़े या बर्तन से जो पानी छलक कर गिरे उस पानी को यदि प्राप्त करके जिस महिला को पीला दे उसे गर्भ रह जायेगा.
ज्येष्ठा
इस नक्षत्र में अडूसा (Pellitory Root) के मूल को लाकर धुप देकर स्र्त्री की कमर में बाँध दे तो रुका हुआ मासिक धर्म फिर चालु हो जायेगा.
उत्तराफाल्गुनी,उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढ़
इनमें से किसी भी नक्षत्र में अपामार्ग (चिरचिटा) की मूल को उत्तर दिशा से लाकर सर पर धारण करने से द्यूत व वाद-विवाद में विजय होती है.
मूल
इस नक्षत्र में ताड़ वृक्ष की मूल लाएं तो मूल लाते ही पितृ दोष दूर हो.
श्रवण
इस नक्षत्र में काले अरण्ड का मूल लाकर स्त्री के गले में डालें तो संतान प्राप्ति हो.
इसी नक्षत्र में बेंत की लकड़ी का टुकड़ा दाहिने हाथ पर बाँध ने से युद्ध में विजय प्राप्त हो.
शतभिषा
इस नक्षत्र में रक्त गुंजा की मूल हाथ में बांधें तो सर्व कार्य में सफल हो.
वनस्पति और नक्षत्र विशेष में उनके चमत्कार
नक्षत्र और वनस्पति के संयोग से विविध कार्य सम्पादन
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[१] मृगशिरा नक्षत्र में महुवा वृक्ष की जड़ लाकर रखें तो चोरी नहीं होती है |
[२] स्वाति नक्षत्र में मोगरा की जड़ लेकर भैस के दूध में घिसकर पीने से काला रंग गोरा हो जाता है |
[३] मघा नक्षत्र में पीपल की जड़ लेकर पास में रखें तो रात्री में बुरे सपने नहीं आते हैं |
[४] उत्तराषाढा नक्षत्र में कलाग्रामा की जड़ लेकर हाथ में बांधे तो पहलवान से युद्ध में जीत सकता है |
[५]पुष्य नक्षत्र में नागरबेल की जड़ लेकर पास में रखने पर दुष्ट व्यक्ति से भय कम होता है |
[६]अनुराधा नक्षत्र में चमेली की जड़ को लाकर सर पर रखने से शत्रु मित्र हो जाते हैं |
[७]उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में नीम की जड़ को लाकर पास रखने पर लड़की होने की बजाय लड़का होता है |
[८]हस्त नक्षत्र रविवार के दिन अन्धाहुली को लेकर उच्च व्यक्ति के माथे पर डाले तो उच्च व्यक्ति वश में होता है और बुरा व्यक्ति भी प्यार करने लगता है |
[९]भरनी नक्षत्र में शंखाहुली की जड़ लाकर ताबीज में रखने पर स्त्री वश में होती है |
[१०] पुनर्वसु नक्षत्र में मेहंदी की जड़ को लेकर पास रखने पर अपने शरीर से अच्छी सुगंध आती है |
[११]विशाखा नक्षत्र में बबूल की जड़ को लाकर पास में रखने पर चरी प्रकाशित नहीं होता है |
[१२] हस्त नक्षत्र में चम्पा की जड़ लाकर गले में बांधने से भूत प्रेत नहीं लगता है |
[१३]मूल नक्षत्र में गूलर की जड़ लेकर पास रखने पर दूसरों का द्रव्य मिलता है |
[१४] शतभिषा नक्षत्र में केले की जड़ लेकर शहद के साथ पीने पर ताप नहीं होता है |
[१५]कृतिका नक्षत्र में रोहिस की जड़ लाकर पास में रखने पर अग्नि से भय कम होता है |
[१६]आश्लेषा नक्षत्र में धतूरा की जड़ लेकर घर की देहली में रखने पर सांप घर में नहीं आता है |
[१७] पुर्वाषाढा नक्षत्र में शहतूत की जड़ लेकर स्त्री को पिलाने पर योनी संकोच नहीं होती है |
[१८]पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में आम की जड़ लाकर दूध में घिसकर पिलाने से बाँझ स्त्री को पुत्र प्राप्त हो सकता है |
[१९]उत्तराषाढा नक्षत्र में पीपल की जड़ लेकर पास में रखने पर मनुष्य युद्ध में जीत जाता है |
[२०]रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि में नग्न होकर ,नगद बावची की जड़ लाकर पास में रखने पर वीर्य नहीं चलता है |
[२१]आर्द्रा नक्षत्र में अर्क की जड़ लाकर ताबीज में डालकर पास में रखने पर झूठी बात सच हो सकती है |
[२२]चित्रा नक्षत्र में गुलाब की जड़ लेकर पास में रखे तो शरीर में कष्ट नहीं होता है |
[२३]श्रवण नक्षत्र में आंवले की जड़ ,नागार्बेल के रस में पिए तो स्त्री नवयौवन प्राप्त करती है |
[२४]रेवती नक्षत्र में बड की जड़ लेकर माथे पर रखे तो दृष्टि चौगुनी होती है |
भरणी
देवता - यम, स्वामी - शुक्र, राशि - मेष 13 । 20 से 26 । 40 अंश
भारतीय खगोल मे यह दूसरा नक्षत्र है। इसके तीन तारे है। यह क्रूर, निर्दयी, सक्रीय, कर्मठ, कृतवाच्य नक्षत्र है। मुहूर्त ज्योतिष मे यह क्षति नक्षत्र है। इसमे दूसरो की हानि करना, छल-कपट, धोखा देना, विध्न डालना आदि कर्म सिद्ध होते है।
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