Tantra Aur Jyotish | तंत्र और ज्योतिष
ज्योतिष अनुसार साधना चयन
तंत्र-मंत्र मे ज्योतिष का बहुत महत्व है क्योंकि आज कल मंत्र जाप करने वाले साधक/साधिका सिर्फ मंत्र जाप मे मेहनत करते है और परिणाम स्वरुप जब उन्हे असफलता प्राप्त हो तो वह निराश हो जाते है
कुंडली मे स्थित ग्रहयोग से ये जानना आसान है के हमें कौनसी साधना में मंत्र में या तंत्र में सफलता प्राप्त होगी
जब तक सही ज्ञान नहीं प्राप्त होगा तब तक जीवन मे भटकना चलता रहेगा, इसलिये तंत्र के इस क्षेत्र मे हमे ग्रह, नक्षत्र और योग को जानना जरुरी है
जैसे मान लिजिये कोई महाकाली साधना कर रहा है और उसको कोई ग्रह साधना मे बाधक हो तो वह साधक सफलता प्राप्त करने हेतु चाहे कितना भी मेहनत कर ले उसको सफलता शीघ्र नही प्राप्त होती है और नाही साधना मे उसको कोई अनुभुती प्राप्त होती है
इस संसार मे बहोत सारे दिव्य मंत्र है जिनका असर तुरंत परिणामदायक होता है फिर भी लोगो को उन मंत्रो से लाभ नही मिल पाता है
आपको यह ज्ञान होना चाहिए कि हमारे नसीब मे कौनसी सिद्धी है और उसके लिये क्या उपाय करने होगे,कौनसे मंत्र का जाप करने से वो सिद्धी मिलेगी
1)आपके जीवन मे कौनसे भगवान की आराधना करने से आपकी इच्छाये पूर्ण होगी?
2)किस प्रकार के मंत्रो मे आप को जीवन मे सफलता मिलेगा उदाहरण शाबर,अघोर,वैदिक या तान्त्रोत्क मंत्र से?
3)आपके कुंडली मे येसा कौनसा ग्रह है जिसके जाप करने से आपके इह जन्म एवं पूर्व जन्म दोष का नाश होगा?
4)वह कौनसा ग्रह है आपके कुंडली मे जिसके कृपा से आपको प्रत्येक क्षेत्र मे सफलता मिलेगी?
5)आनेवाले एक वर्ष मे कौनसे मुहूर्त मे कौनसा मंत्र जाप करे,जो आपके लिये सिद्धीप्रद हो?
6)कौनसी सिद्धी आपके नसीब मे है?
7)अगर आप लंबे समय से कोई मंत्र जाप कर रहे है तो उसमे क्या उपाय करने से आपको सिद्धी मिलेगी जो अब तक नही मिली?
संपूर्ण ब्रह्माण्ड १२ राशियों और २७ नक्षत्रों में विभाजित है , और हमारी जन्म कुंडली को भी उसी काल पुरुष का ही रूप मान कर १२ भागो में विभक्त किया गया है और इन्ही भागो में जिन्हें स्थान या भाव भी कहा जाता है, में ये नौ ग्रह स्थित हो कर अपना प्रभाव दिखाते हैं. प्रत्येक भाव में जो भी राशि होती है उस राशि का स्वामी भावेश कहलाता है . इन भावों में ग्रहों की स्थिति ही तो जीवन के ऐसे ऐसे खेल दिखाती है की बस पूछो मत ....................
और इन खेलों का पता हमें चलता कहाँ से हैं ..... हाँ भाई उसी लग्न स्थान से जो की जातक या पृथ्वी का प्रतीक है जन्म कुंडली में , और जहाँ से खड़ा होकर जातक देख सकता है भिन्न भिन्न स्थानों पर अवस्थित ग्रहों का प्रभाव . याद रखिये जन्मकुंडली की सत्यता और शुद्धता का निर्धारण गर्भ कुंडली या बीज कुंडली के द्वारा होता हैं अन्यथा सामान्य कुंडलियाँ तो मात्र दिल को बहलाने के ही काम आती हैं जिनके द्वारा ज्योतिष के अधिकांश सिद्धांत अनुमान मात्र ही रह जाते हैं ..... कारण साफ़ है क्योंकि जन्म समय की सत्यता कैसे की जाये , कैसे सही जन्म समय का निर्धारण किया जाये ....... ये अत्यंत ही दुष्कर कार्य है. अब जब जन्म समय ही शुद्ध नहीं होगा तो उस समय पर आधारित जन्मकुंडली से भला सही फल कथन कैसे किया जा सकता है . तब तो आपके द्वारा किया गया फलित मात्र अनुमान ही तो रह जायेगा ना.
यदि सही जन्म कुंडली हो तो फल कथन भी सत्य होगा और सत्य होगा जीवन के प्रत्येक पक्षों का दिग्दर्शन भी .
( चित्र में जनम कुंडली में जो भाव क्रमाक दिए गए हैं ,ये बदलते नहीं हैं ये स्थाई हैं , हाँ ये जरूर हैं की ,ज्योतिष की गणित के हिसाब से इन भाव में आने वाले अंक बदल जाते हैं. (जनम के समय के अनुसार ).अब आप पचम और नवम भाव देख सकते हैं,आप अपनी कुडली में lagna भाव स्थान पर क्या अंक लिखा हैं उन्हें देख ले, आप अपनी लग्न जान गए हैं.प्रिय मित्र यदि १ लिखा हैं तो मेष हैं, २ लिखा हैं तो वृषभ ,कृपया लिस्ट के अनुसार देख ले.)
इस लेख का आशय मात्र जातक की कुंडली के साधना पक्षों का अध्यन करना ही है , जिससे ये जाना जा सकता है की किस ग्रह स्थिति से कैसी साधना और किस पद्धति में सफलता मिलती है , इसकी जानकारी मात्र हो जाये. ये सूत्र सद्गुरुदेव द्वारा प्रदान किये गए हैं . जो की साधक को अपनी कुंडली देख कर सही पद्धति का निर्धारण करना सिखाते हैं( याद रखिये ये निर्धारण स्वयं के द्वारा का है क्यूंकि यदि हम गुरु के चरणों में उपस्थित होकर प्रार्थना करते हैं तो वो बिना किसी कुंडली के भी आपको उस पद्धति से परिचित करा देते हैं).
पिछले किसी लेख में मैंने आपको पंचम और नवम भाव से इष्ट का निर्धारण बताया था , आज हम कई अनछुए और नवीन सूत्रों के द्वारा अपने आध्यात्मिक जीवन का अध्यन करेंगे. तो शुरुआत करते हैं जन्म लग्न द्वारा इष्ट के निर्धारण से ......
1. मेष लग्न – सूर्य,दत्तात्रेय , गणेश
2. वृषभ- कुलदेव ,शनि
3. मिथुन-कुलदेव , कुबेर
4. कर्क- शिव, गणेश
5. सिंह- सूर्य
6. कन्या- कुलदेव
7. तुला- कुलदेवी
8. वृश्चिक- गणेश
9. धनु- सूर्य ,गणेश
10. मकर - कुबेर,हनुमंत,कुलदेव,शनि
11. कुम्भ- शनि, कुलदेवी,हनुमान
12. मीन- दत्तात्रेय,शिव,गणेश
यदि जन्मकुंडली में बलि ग्रह हो........
सूर्य तो व्यक्ति शक्ति उपासना कर अभीष्ट पाता है,
चंद्र हो तो तामसी साधनों में रूचि रखता है,
मंगल हो शिव उपासना
बुध हो तो तंत्र साधना में
गुरु हो तो साकार ब्रह्मोपासना में
शुक्र हो तो मंत्र साधना में
शनि हो तो मन्त्र तंत्र में निष्णात व विख्यात
इसी प्रकार..............
प्रथम भाव या चंद्रमा पर शनि की दृष्टि हो तो जातक सफल साधक होता है.
चंद्रमा नवम भाव में किसी भी ग्रह की दृष्टि से रहित हो तो व्यक्ति श्रेष्ट सन्यासी होता है.
दशम भाव का स्वामी सातवे घर में हो तो तांत्रिक साधना में सफलता मिलती है
नवमेश यदि बलवान होकर गुरु या शुक्र के साथ हो तो सफलता मिलती ही है.
दशमेश दो शुभ ग्रहों के मध्य हो तब भी सफलता प्राप्त होती है .
यदि सभी ग्रह चंद्रमा और ब्रहस्पति के मध्य हो तो तंत्र के बजाय मंत्र साधना ज्यादा अनुकूल रहती है .
केन्द्र या त्रिकोण में सभी ग्रह हो तो प्रयत्न करने पर सफलता मिलती ही है.
गुरु, मंगल और बुध का सम्बन्ध बनता हो तो सफलता मिलती है .
शुक्र व बुध नवम भाव में हो तो ब्रह्म साक्षात्कार होता है.
सूर्य उच्च का होकर लग्न के स्वामी के साथ हो तो व्यक्ति श्रेष्ट साधक होता है .
लग्न के स्वामी पर गुरु की दृष्टि हो तो मन्त्र मर्मज्ञ होता है.
दशम भाव का स्वामी दशम में ही हो तो साकार साधनों में सफलता मिलती है.
दशमेश शनि के साथ हो तो तामसी साधनों में सफलता मिलती है.
राहु अष्टम का हो तो व्यक्ति अद्भुत व गोपनीय तंत्र में प्रयत्नपूर्वक सफलता पा सकता है.
पंचम भाव से सूर्य का सम्बन्ध बन रहा हो तो शक्ति साधना में सफलता मिलती है.
नवम भाव में मंगल का सम्बन्ध तो शिवाराधक होकर सफलता पाता है.
नवम में शनि स्वराशि स्थित हो तो वृद्धावस्था में व्यक्ति प्रसिद्द सन्यासी बनता है.
ज्योतिष / जन्म कुंडली के अनुसार जपिये शाबर मन्त्र—
शाबर मन्त्रों के सम्बन्ध में कुछ लोग यह कहते हैं कि उन्होंने शाबर-मन्त्र ‘जप’ कया, किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ । वास्तव में ‘मन्त्र-सिद्धि’ न हो, तो जप दो बार या तीन बार करना चाहिए । फिर भी मन्त्र-सिद्धि न हो, तो उसके लिए अन्य कारणों को खोजना चाहिए ।
मन्त्र-सिद्धि न होने के बहुत से कारण हैं । एक कारण ग्रहों की दशा है । ‘ज्योतिष-विद्या’ के अनुसार ग्रहों की दशा ज्ञात करें । शाबर मन्त्र का जप किया जाए, तो साधना में सिद्धि अवश्य मिलती है । जिन लोगों को मन्त्र-साधना में निष्फलता मिली है, उनके लिए तो ज्योतिष विद्या का अवलम्बन उपयोगी है जी, साथ ही जो लोग मन्त्र साधना करने के लिए उत्सुक हैं, वे भी ज्योतिष विद्या का अवलम्बन लेकर यदि साधना प्रारम्भ करें, तो उन्हें विशेष सफलता प्राप्त हो सकती है ।
अस्तु, साधना-काल में जन्म-लग्न-चक्र के अनुसार कौन ग्रह अनुकूल है या कौन ग्रह प्रतिकूल है, यह जानना बहुत महत्त्व-पूर्ण है । साधना को यदि कर्म समझा जाए, तो जन्म-चक्र का दशम स्थान उसकी सफलता या असफलता का सूचक है । प्रायः ज्योतिषी नवम-स्थान को मुख्य मानकर साधना की सिद्धि या असिद्धि या उसका बलाबल नियत करते हैं । साधना में चूँकि कर्म अभिप्रेत है, अतः जन्म-चक्र का दशम स्थान का विचार उचित होगा । वैसे कुछ लोग पञ्चम स्थान को भी महत्त्व देते हैं ।
ज्योतिष के नियमानुसार साधक के जन्म-चक्र के नवम स्थान में जिस ग्रह का प्रभाव होता है, वैसी ही प्रकृति वह धारण करता है । इससे यह ज्ञात होता है कि साधक की प्रकृति सात्त्विक होगी या राजसिक या तामसिक ।
जन्म चक्र में यदि ‘गुरु, बुध, मंगल′ एक साथ होते हैं, तो साधक सगुण उपासना में प्रवृत्त होता है । जन्म चक्र में गुरु के साथ यदि बुध है, तो साधक सात्त्विक देवी-देवताओं की उपासना में प्रवृत्त होता है । ऐसे ही यदि दशमेश नवम स्थान में होता है, तो साधक सात्त्विक – देवोपासक बनता है ।
जन्म चक्र के आधार पर सात्त्विक उपासना के मुख्य-मुख्य योग इस प्रकार हैं –
१॰ दशमेश उच्च हो और साथ में बुध और शुक्र हो ।
२॰ लग्नेश दशम स्थान में हो ।
३॰ दशमेश नवम स्थान में हो और पाप-दृष्टि से रहित हो ।
४॰ दशमेश दशम स्थान या केन्द्र में हो ।
५॰ दशमेश बुध हो तथा गुरु बलवान और चन्द्र तृतीय हो ।
६॰ दशमेश व लग्न की युति हो ।
७॰ दशमेश व लग्नेश का स्वामी एक ही हो ।
८॰ दशमेश यदि शनि है, तो साधक तामसी बुद्धिवाला होता हुआ भी उच्च साधक व तपस्वी बनता है । यदि शनि राहु के साथ हो, तो रुचि तामसिक उपासना में अधिक लगेगी ।
९॰ सूर्य, शुक्र अथवा चन्द्र यदि दशमेश हो, तो जातक दूसरे की सहायता से ही उपासक बनता है ।
१०॰ पञ्चम स्थान परमात्मा से प्रेम का सूचक होता है । पञ्चम और नवम स्थान यदि शुभ लक्षणों से युक्त होते है, तो जातक अति सफल उपासक बनता है ।
११॰ पञ्चम स्थान में पुरुष ग्रहों का यदि प्रभाव रहता है, तो जातक पुरुष देव-देवताओं का उपासक बनता है । यदि स्त्री ग्रहों का विशेष प्रभाव होता है, तो जातक स्त्री-देवता या देवी की उपासना में रुचि रखता है । पञ्चम स्थान में सूर्य की स्थिति से यह ज्ञात होता है कि जातक शक्ति का कैसा उपासक बन सकता है ।
१२॰ नवम स्थान में या नवम स्थान के ऊपर मंगल की दृष्टि होती है, तो जातक भगवान् शिव की उपासना करता है । कुछ लोग मंगल को गनुमान् जी का स्वरुप मानते हैं । अतः इससे हनुमान् जी की उपासना बताते हैं । ऐसे ही कुछ लिगों का मत है कि गुरु-ग्रह के बल से शिव जी की उपासना में सफलता मिलती है । नवम स्थान में शनि होने से कुछ लोग तामसिक उपासनाओं में रुचि बताते हैं । नवम स्थान में शनि होने पर श्री हनुमान् जी का सफल उपासक बना जा सकता है ।
इस प्रकार ज्योतिष शास्त्र में उपासना सम्बन्धी अनेक योग हैं । शाबर मन्त्र को सिद्ध करने में कौन-कौन-से योग महत्त्व-पूर्ण हैं, इससे सम्बन्धी कुछ योग इस प्रकार हैं –
१॰ नवम स्थान में शनि हो, तो साधक शाबर मन्त्र में अरुचि रखता है अथवा वह शाबर-साधना सतत नहीं करेगा । यदि वह शाबर साधना करेगा, तो अन्त में उसको वैराग्य हो जाएगा ।
२॰ नवम स्थान में बुध होने से जातक को शाबर मन्त्र की सिद्धि में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है अथवा शाबर मन्त्र की साधना में प्रतिकूलताएँ आएँगी ।
३॰ पञ्चम स्थान के ऊपर यदि मंगल की दृष्टि हो, तो जातक कुल-देवता, कुल-देवी का उपासक होता है । पञ्चम स्थान के ऊपर गुरु की दृष्टि हो, तो साधक शाबर साधना में विशेष सफलता मिलती है । पञ्चम स्थान पर सूर्य की दृष्टि हो तो साधक सूर्य या विष्णु की उपासना में सफल होता है । यदि राहु की दृष्टि हो, तो वह भैरव उपासक बनता है । इस प्रकार के साधक को यदि पथ-निर्देशन नहीं मिलता, तो वह निम्न स्तर के देवी-देवताओं की उपासना करने लगता है ।
४॰ ज्योतिष विद्या का प्रसिद्ध ग्रन्थ “जैमिनि-सूत्र” है । इसके प्रणेता महर्षि जैमिनि है । इस ग्रन्थ से उपासना सम्बन्धी उत्तम मार्ग-दर्शन मिलता है यथा –
क॰ सबसे अधिक अंशवाले ग्रह को आत्मा-कारक ग्रह कहते हैं । नवमांश में यदि यदि आत्मा-कारक शुक्र हो, तो जातक लक्ष्मी की साधना करता है । ऐसे जातक को लक्ष्मी देवी के मन्त्र की साधना से लाभ-ही-लाभ मिलता है ।
ख॰ नवमांश में यदि आत्मा-कारक मंगल होता है, तो जातक भगवान् कार्तिकेय की उपासना से लाभान्वित होता है ।
ग॰ बुध व शनि से भगवान् विष्णु और गुरु के बलाबल से भगवान् सदा-शिव की उपासना लाभदायक होती है ।
घ॰ राहु से तामसिक देवी-देवताओं की उपासना सिद्ध होती है ।
ङ॰ शनि के उच्च-कोटि के होने पर साधक को उच्च-कोटि की सिद्धि सहज में मिलती है । इसके विपरित यदि शनि निम्न-कोटि का होता है, साधना की सिद्धि में विलम्ब होता है ।
च॰ जन्म-चक्र में यदि द्वादश स्थान में राहु होता है, तो साधक परमात्मा के साक्षात्कार हेतु उत्साहित रहता है । ऐसे बन्धुओं को मन्त्र-तन्त्र-यन्त्र की सिद्धि द्वारा भौतिक लाभ-प्राप्ति से दूर रहना चाहिए, क्योंकि द्वादश स्थान मोक्ष-प्राप्ति का सूचक है । द्वादश स्थान में राहु के होने से वह साधना की सिद्धि में सहायक और लाभ-प्रद रहता है ।
छ॰ दशम स्थान में यदि सूर्य हो, तो साधक को भगवान् राम की उपासना करनी चाहिए और दशम स्थान में यदि चन्द्र हो, तो कृष्ण की उपासना करनी चाहिए ।
ज॰ सधम स्थान में यदि गुरु हो, तो साधक अन्तः-प्रेरणा या अन्तः-स्फुरण से उपासना करता है और सफल होता है ।
साधना क्षेत्र में सफलता के कुछ विशेष ग्रह योग
प्रत्येक व्यक्ति की यह जानने की इच्छा होती है कि साधना के क्षेत्र में उसे कहाँ तक सफलता मिलेगी जिसके लिये ज्योतिष का सहारा लिया जा सकता है जिसके कुछ उदाहरण निम्न हैं :-
१. यदि जन्म-कुण्डली में बृहस्पति, मंगल एवं बुद्ध साथ हो या परस्पर दृष्टि हो तो वह व्यक्ति साधना क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है |
२. गुरु-बुद्ध दोनों ही नवम भाव में हो तो वह ब्रह्म साक्षात्कार कर सकने में सफल होता है |
३. सूर्य उच्च का होकर लग्नेश के साथ हो तो वह श्रेष्ठ साधक होता है |
४. यदि लग्नेश पर गुरु की दृष्टि हो तो वह स्वयं मंत्र स्वरुप हो जाता है, मंत्र उसके हाथों में खेलते हैं |
५. यदि दशमेश दशम स्थान में हो तो वह व्यक्ति साकार उपासक होता है |
६. दशमेश शनि के साथ हो तो वह व्यक्ति तामसिक उपासक होता है |
७. अष्टम भाव में राहू हो तो जातक अद्भुत मंत्र-साधक तांत्रिक होता है |
८. दशमेश का शुक्र या चन्द्रमा से सम्बन्ध हो तो वह दूसरों की सहायता से उपासना-साधना में सफलता प्राप्त करता है |
९. यदि पंचम स्थान में सूर्य हो, या सूर्य की दृष्टि हो तो वह शक्ति उपासना में पूर्ण सफलता प्राप्त करता है |
१०. यदि पंचम एवं नवम भाव में शुभ बली ग्रह हों तो वह सगुणोपासक होता है |
११. नवम भाव में मंगल हो या मंगल की दृष्टि हो तो वह शिवाराधना में सफलता पा सकता है |
१२. यदि नवम स्थान में शनि हो तो वह साधू बनता है | ऐसा शनि यदि स्वराशी या उच्चराशी का हो तो व्यक्ति वृद्धावस्था में विश्व प्रसिद्द सन्यासी होता है |
१३. जन्म-कुंडली में सूर्य बली हो तो शक्ति उपासना करनी चाहिए |
१४. चन्द्रमा बलि हो तो तामसी उपासना में सफलता मिलती है |
१५. मंगल बली हो तो शिवोपासना से मनोरथ प्राप्त करता है |
१६. बद्ध प्रबल हो तो तंत्र साधना में सफलता प्राप्त करता है |
१७. गुरु श्रेष्ठ हो तो साकार ब्रह्म उपासना से ख्याति मिलती है |
१८. शुक्र बलवान हो तो मंत्र साधना में प्रणता पाता है |
१९. शनि बलवान हो तो तंत्र एवं मंत्र दोनों में ही सफलता प्राप्त करता है |
२०. ये लग्न या चन्द्रमा पे दृष्टि हो तो जातक सफल साधक बन सकता है |
२१. यदि चन्द्रमा नवम भाव में हो और उसपर किसी भी ग्रह की दृष्टि न हो तो वह व्यक्ति निश्चय ही सन्यासी बनकर सफलता प्राप्त करता है |
२२. दशम भाव में तीन ग्रह बलवान हों, वे उच्च के हों, तो निश्चय ही जातक साधना में सफलता प्राप्त करता है |
२३. दशम भाव का स्वामी सप्तम भाव में हो जातक तांत्रिक होता है |
२४. दशम भाव में उच्च राशी के बुद्ध पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक जीवन मुक्त हो जाता है |
२५. बलवान नवमेश गुरु या शुक्र के साथ हो तो व्यक्ति निश्चय ही साधना क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है |
२६. यदि दशमेश दो शुभ ग्रहों के बिच में हो तो जातक को साधना में सम्मान मिलता है |
२७. यदि वृषभ का चन्द्र गुरु-शुक्र के साथ केंद्र में हो तो व्यक्ति उपासना क्षेत्र में उन्नत्ति करता है |
२८. दशमेश लग्नेश पर परस्पर स्थान परिवर्तन योग यदि जन्म-कुण्डली में हो तो व्यक्ति निश्चय ही सिद्ध बनता है |
२९. यदि सभी ग्रह चन्द्र और गुरु के बीच हों तो व्यक्ति तांत्रिक क्षेत्र की अपेक्षा मंत्रानुष्ठान में विशेष सफलता प्राप्त कर सकता है |
३०. यदि केंद्र और त्रिकोण में सभी ग्रह हो तो साधक प्रयत्न कर किसी भी साधनों में सफलता प्राप्त कर सकता है |
यहाँ एक बात आपके सामने रखना चाहूँगा ,एक कहानी के माध्यम से, सत्य घटना हैं,दतिया के आदरणीय पूज्य स्वामीजी महाराज का एक शिष्य उनके पास आया और कहा की वह कई साल से छिन्नमस्ता साधना कर रहा हैं पर सफलता उसे नहीं मिल रही हैं, उसे जबाब मिला माँ बगलामुखी की साधना करो, साधक को एक ही रात में जो अनुभव हुए उससे वह तो हिल गया ,अगले दिन स्वामी जी से कारण पूछने पर की क्यों सालो साल छिन्नमस्ता माँ की साधना से फल नहीं मिला, यहाँ एक दिन में ही माँ बल्गामुखी से मिल गया, स्वामी जी ने कहा, बेटा तेरा अकाउंट tranfer कर दिया हैं और कुछ नहीं, साधक के फिर से पूछने पर उन्होंने कहा की माँ तो एक ही हैं, वास्तव में बेटा तू अपने कुल (घर ) में चल रही छिन्नमस्ता साधना को करता आया हैं, परन्तु पिछेले कई जन्मो के उसके संस्कार माँ बगलामुखी के थे. इसी कारन उन्होंने उसके द्वारा किये गए जप को बल्गामुखी माँ के जप में बदल दिया. अब आप लोग समझे ,की सदगुरुदेव की क्या आवश्यकता होती हैं और क्यों .
यहाँ तक की इस ब्लॉग के एक लेखक को पूज्य सदगुरुदेव जी ने माँ छिन्नमस्ता की साधन बताए थी, परन्तु उनसे वोह पत्र में लिखी बात भूल गए ,और वह माँ तारा की साधना करते रहे, कई वर्ष के बाद उन्हें वह पत्र मिला, अपनी गलती समझ कर उन्होंने सदगुरुदेव से बात की, परन्तु जबाब आया की माँ तारा की साधन ही करते रहो,बदलने की जरूरत नहीं हैं. वोह ये बात समझ नहीं पाए की पहले तो सदगुरुदेव ने कुछ और बोला था, अब क्योँ नहीं बदल सकते हैं, कई वर्षों के बाद उन्हें ये ज्ञात हुए की दस महाविद्या वास्तव में मूल रूप से तीन महाविद्या हैं और माँ छिन्नमस्ता ,का माँ तारा में ही समहिती करण माना जाता हैं.
तो अवलोकन कीजिये अपनी कुंडली का और देखिये क्या कहती है आपकी कुंडली ?
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