Kumbh Lagna/कुम्भ लग्न
कुम्भ राशि का अधिपति शनि है। शनि काले रंग का पाप ग्रह है । कुम्भ राशि का चिन्ह जल से भरा हुआ घड़ा है। अतः इस राशि वाले पुरूष की आकृति घड़े के समान गोल व वाणी घड़े के समान गम्भीर व गहरी होती है। ऐसे व्यक्ति प्रायः बाहरी दिखावे में ज्यादा विश्वास रखते हैं। ये भीतर से खोखले व बाहरी दिखावे में सुन्दर दिखलाई पड़ते हैं।
कुम्भ राशि वाला व्यक्ति का प्रायः मध्यम कद , गेहुए वर्ण, गोल सिर, दीर्घकाय, तोंद-युक्त, गम्भीर वाणी बोलने वाला व्यक्ति होता है। यह राशि पुरूष जाति, स्थिर संज्ञक व वायु तत्व प्रधान होती है इसलिए कुम्भ राशि वाले पुरूष का प्राकृतिक स्वभाव विचारशील, शांत चित्त, धर्मभीरू तथा नवीन आविष्कारों का प्रजनन है। कुम्भ राशि में जन्में जातक का चेहरा दर्शनीय तथा होंठ एवं कपोल सुन्दर होते है। इनकी विचारधारा दार्शनिक होती है। दूसरों की सहायता करके ऐसे जातक प्रायः प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।
इनकी स्मरणशक्ति तथा मानसिक शक्ति बड़ी प्रबल हेाती है। कुम्भ राशि के जातक खरी-खरी कह देने में नहीं हिचकिचाते हैं और ऐसा करते समय देश, काल और परिस्थिति का भी ध्यान नहीं रखते। इन्हें जीवन में अधिकतर विपदाओं का सामना करना पड़ता है। संघर्षरत रहकर ही इनके जीवन का निर्णय हो पाता है। कठिन से कठिन विपत्ति में भी ये घबराते नहीं। इनका दाम्पत्य जीवन साधारण ही होता है।
धनिष्ठा नक्षत्र में जन्मे कुम्भ राशी के जातक भीतर ही भीतर कष्ट सहते है परन्तु बाहर उसकी आह तक नहीं निकालते। ये पूरी तरह से रहस्यवादी व्यक्ति होते है। व्यापारी क्षेत्र में अपनी पूंजी का फैलाव सही पूंजी से कई गुना अधिक करते हैं। इनकी वास्तविकता को पहचाना पाना बड़ा कठिन हो जाता है। ये बड़ा से बडा जोखिम लेने में नहीं हिचकिचाते।
सामान्यतया कुम्भलग्न में उत्पन्न जातक स्वस्थ, बलवान एवं चंचल एवं व्यक्तित्व आकर्षक होता है जिससे अन्य जन इनसे प्रभावित रहते हैं। ये स्वभाव से ही प्रगतिशील एवं क्रांतिकारी विचारधारा से युक्त होते है तथा पुराने रीति रिवाजों को कम ही स्वीकार करते हैं। अन्य जनों के प्रति इनके मन में स्नेह एवं सहानुभूति का भाव विद्यमान रहता है . साहित्य एवं कला में रूचि के साथ-साथ ये उत्तम वक्ता भी होते हैं।
कुम्भ लग्न में जन्मे जातक अपने हृदय में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं रखते हैं तथा इनका सांसारिक दृष्टिकोण भी विशाल होता है । अध्ययन के प्रति इनकी रूचि रहती है तथा परिश्रम पूर्वक विभिन्न शास्त्रों का ज्ञान अर्जित करके एक विद्वान के रूप में सामाजिक मान-प्रतिष्ठा एवं सम्मान अर्जित करते है। दिल से कम और दिमाग से अधिक विचार करते हुए यह अपने जीवन में कई महतवपूर्ण कार्य करते हैं तथा धनैश्वर्य वैभव एवं भौतिक सुख संसाधानों को अर्जित करके आनन्दपूर्वक इनका उपभोग भी करते हैं।
शनि से प्रभावित होने के कारण मन में अस्थिरता का भाव रहेगा । आपकी दृष्टि छोटी से छोटी गलतियों को पकड़ने में सक्षम होती है, तथा अन्य जनों को प्रभावित करके उनके विषय में पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने में आप अक्सर सफल होते हैं.कुम्भ लग्न में जन्मे जातक आकर्षक, पराक्रमी तथा तेजस्वी होते हैं परन्तु यदा-कदा उग्रता के प्रदर्शन से आपको अनावश्यक समस्याओं तथा परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
आर्थिक रूप से आपकी स्थिति सामान्यतया अच्छी रहेगी तथा आप आवश्यक मात्रा में धन एवं लाभ अर्जित करने में समर्थ होंगे। आपको नई जगहों पर जाना बेहद प्रिय है तथा अवसर मिलते ही यात्रा आदि पर अपना समय व्यतीत करते हैं. । धन व्यय भी आप स्वतंत्र भाव से करते हैं लेकिन उत्तम आय होने के कारण इसका कोई विशेष दुष्प्रभाव नहीं होगा।
तमोगुणी राशि होने के कारण इस राशि वालों को गुस्सा कम करते हैं और करते हैं तो फिर गांठ बांध लेते है। आप एकान्त प्रिय व्यक्ति है तथा कुछ हद तक स्वार्थी भी हैं. अगर आपका जन्म धनिष्ठा नक्षत्र में हुआ है तो आप सरल स्वभाव वाले, उदार हृदय व स्नेहयुक्त व्यवहार वाले व्यक्ति है.
ऐसे जातक कल्पनाशील, भावुक एवं महत्वकांक्षी भी होते है, किन्तु महत्वाकांक्षाऐं बहुत कम पूरी हो पाती है। एकान्त में पड़े रहना अथवा किसी पहाडी स्थान या वन्य प्रदेश में घूमने-फिरने की इनकी रूचि होती है। ऐसे जातक आवश्यक पड़ने पर ही किसी कार्य को करते हैं तथा इनकी उन्नति एवं अवनति आकस्मिक रूप से हुआ करती है।
धार्मिकता की भावना में अल्पता रहीत है एवं यह आधुनिक विचारों के होते है।धर्म के प्रति आपके मन में श्रद्धा रहेगी परन्तु धार्मिक कार्य-कलापों एवं अनुष्ठानों को कभी कभार ही सम्पन्न करेंगे। लेकिन तीर्थ यात्रा पर जाने में सदा हे रूचि बनी रहती है।
कुम्भ लग्न के जातक का व्यक्तित्व व् विशेषताएँ। Kumbh Lagn jatak – Aquarius Ascendent
कुम्भ लग्न के जातक राशि स्वामी शनि होने से धर्मपरायण , दूसरों की सहायता सहायता करने में आनंद पाने वाले होते हैं । वायु तत्व से स्वतंत्र विचारक होते हैं व् स्थिर स्वाभाव आपके विचारों में मौलिकता दर्शाता है । चिन्ह कुम्भ दर्शाता है की आपके भीतर की स्थिति क्या है ये कोई भांप नहीं पाता । कभी कभी तो कुम्भ राशि के जातक की बातें साथ में रहने वाले लोगों को असंभव सी जान पड़ती हैं , जो बाद में सही साबित होती हैं । इन जातकों में पूर्वभास की क्षमता गजब की होती है । किसी भी वक्तव्य के दूरगामी परिणाम को पहले ही भांप लेते हैं । इनका नजरिया दुसरे लोगों को कम ही भाता है । इनका नजरिया समझना सबके बस की बात नहीं है । इसलिए बहुत से विरोधी अनायास ही खड़े हो जाते हैं । इन तथ्यों के अलावा लग्नेश कुंडली में कहां या किसके साथ स्थित है , लग्न में कौन कौन से गृह हैं , ये काऱक हैं या मारक हैं , लग्न पर काऱक मारक ग्रहों की दृष्टि व् नक्षत्रों का विस्तृत विवेचन करने पर ही जातक के वास्तविक चरित्र के करीब पहुंचा जा सकता है ।
कुम्भ लग्न के नक्षत्र Aquarius Lagna nakshtras :
कुम्भ राशि भचक्र की ग्यारहवें स्थान पर आने वाली राशि है । राशि का विस्तार 300 अंश से 330 अंश तक फैला हुआ है । धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरणों, शतभिषा के चरों चरण व् पूर्वा भाद्रपद के तीन चरणों से कुम्भ लग्न बनता है ।
लग्न स्वामी : शनि
लग्न चिन्ह : घड़ा
तत्व: वायु
जाति: शूद्र
स्वभाव : स्थिर
अराध्य/इष्ट : माँ दुर्गा
कुम्भ लग्न के लिए शुभ/कारक ग्रह – Ashubh Grah / Karak grah Kumbh Lagn – Aquarius Ascendant
शनि Saturn :
लग्नेश होने से कुम्भ लग्न में एक कारक गृह बनता है ।
गुरु Jupiter :
दुसरे व् ग्यारहवें का स्वामी होता है । अतः यहां एक कारक गृह है ।
शुक्र Venus :
चौथे व् नवें भाव का स्वामी होने से कुम्भ लग्न में अति योग कारक गृह है ।
बुद्ध Mercury :
पांचवें , आठवें भाव का स्वामी होने से अति योग कारक गृह होता है ।
मंगल Mars :
तीसरे व् दसवें का स्वामी है । कुम्भ लग्न में एक सम गृह होता है ।
कुम्भ लग्न के लिए अशुभ/मारक ग्रह – Ashubh Grah / Marak grah Kumbh Lagn – Aquarius Ascendant
चंद्र Moon :
छठे भाव का स्वामी होने से कुम्भ लग्न में एक मारक गृह बनता है ।
सूर्य Sun :
सातवें भाव का स्वामी होने से यहां एक मारक गृह बनता है ।
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कुम्भ लग्न के लिए शुभ रत्न | Auspicious Gemstones for Aquarius Ascendant
लग्नेश शनि, चौथे व् नवें भाव का स्वामी शुक्र व् पंचमेश बुद्ध कुंडली के कारक गृह हैं ! अतः इनसे सम्बंधित रत्न नीलम, हीरा रत्न पन्ना रत्न धारण किया जा सकता है! इस लग्न कुंडली में मंगल तीसरे व् दसवें का स्वामी होकर एक सम गृह बनता है! कुछ विशेष परिस्थियों में मूंगा भी धारण किया जा सकता है । ध्यान देने योग्य है की किसी भी कारक या सम गृह के रत्न को धारण किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए ये देखना अति आवश्यक है की गृह विशेष किस भाव में स्थित है ! यदि वह गृह विशेष तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है या नीच राशि में पड़ा हो तो ऐसे गृह सम्बन्धी रत्न कदापि धारण नहीं किया जा सकता है । कुछ लग्नो में सम गृह का रत्न कुछ समय विशेष के लिए धारण किया जाता है, फिर कार्य सिद्ध हो जाने पर निकल दिया जाता है! इसके लिए कुंडली का उचित निरिक्षण किया जाता है! उचित निरिक्षण या जानकारी के आभाव में पहने या पहनाये गए रत्न जातक के शरीर में ऐसे विकार पैदा कर सकते हैं जिनका पता लगाना डॉक्टर्स के लिए भी मुश्किल हो जाता है |
कुंभ लग्न की कुंडली में मन का स्वामी चंद्र षष्ठ भाव का स्वामी होता है. यह जातक के रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, शंका, पीडा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी वणिक वॄति, साहुकारी, वकालत, व्यसन, ज्ञान, कोई भी अच्छा बुरा व्यसन इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में चंद्रमा के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
समस्त विश्व को प्रकाशित करने वाला सूर्य सप्तम भाव का स्वामी होकर जातक के लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, मॄत्यु मैथुन, चोरी, झगडा अशांति, उपद्रव, जननेंद्रिय, व्यापार, अग्निकांड इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में सूर्य के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
मंगल तृतीय और दशम भाव का स्वामी होता है. तॄतीयेश होने के कारण नौकर चाकर, सहोदर, प्राकर्म, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्य़ुटर, अकाऊंट्स, मोबाईल, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, खांसी, योग्याभ्यास, दासता इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है जबकि दशमेश होने के कारण यह जातक के राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, हवन, अनुष्ठान, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतॄत्व, विदेश यात्रा, पैतॄक संपति इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में मंगल के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
शुक्र चतुर्थ और नवम भाव का स्वामी होता है. चतुर्थेश होने के कारण यह जातक के माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह इत्यादि विषयों का कारक होता है. एवम नवमेश होने के कारण धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, मानसिक वृत्ति, भाग्योदय, शील, तप, प्रवास, पिता का सुख, तीर्थयात्रा, दान, पीपल इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है. कुंभ लग्न में एक केंद्र और एक त्रिकोण का स्वामी होकर शुक्र अतीव शुभ और राजयोग कारक ग्रह बन जाता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में शुक्र के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में अतयंत शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से न्य़ून शुभ फ़लों के साथ अधिक अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
बुध पंचम भाव का स्वामी होकर जातक के बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अनायस धन प्राप्ति, जुआ, लाटरी, सट्टा, जठराग्नि, पुत्र संतान, मंत्र द्वारा पूजा, व्रत उपवास, हाथ का यश, कुक्षी, स्वाभिमान, अहंकार इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में बुध के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
बृहस्पति एकादश भाव का स्वामी होकर जातक के लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, दासता, संतान हीनता, कन्या संतति, ताऊ, चाचा, भुवा, बडे भाई बहिन, भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी, बेईमानी इत्यादि का प्रतिनिधि होता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में बृहस्पति के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
शनि प्रथम और द्वादश भाव का स्वामी होता है. लग्नेश होने के नाते यह जातक के रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख दुख, विवेक, मष्तिष्क, व्यक्ति का स्वभाव, आकॄति और संपूर्ण व्यक्तित्व इत्यादि का प्रतिनिधि होता है जबकि द्वादशेश होने के कारण यह जातक के निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मूर्छा, कुत्ता, मछली, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लम्पटगिरी, परस्त्री गमन, व्यर्थ भ्रमण इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में शनि के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
राहु अष्टम भाव का स्वामी होकर यहां अष्टमेश होता है जिसके कारण उसे जातक के व्याधि, जीवन, आयु, मॄत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, गुह्य स्थान, जेलयात्रा, अस्पताल, चीरफ़ाड आपरेशन, भूत प्रेत, जादू टोना, जीवन के भीषण दारूण दुख इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व मिलता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में राहु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
केतु द्वितीय भाव का स्वामी होकर यहां जातक के कुल, आंख (दाहिनी), नाक, गला, कान, स्वर, हीरे मोती, रत्न आभूषण, सौंदर्य, गायन, संभाषण, कुटुंब इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में केतु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.
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