(i) पवित्र करण : (मार्जन) (अगले मंत्र को पढते हुए
कुशा से अपने और पूजन सामग्री को जल से सींचे)
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स
बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
(ii) आचमन :  ॐ केशवाय नमः।  ॐ नारायणाय नमः।  ॐ माधवाय नमः।
(एक-एक कुल तीन आचमन करें
हथेली पर कुछ बुंदे जल की रख कर मनीबंध से पीयें पानी बस गले तक ही जाये।) ॐ हृषीकेशाय नमः। (दाँये हाथ के अँगुष्ठ मूल
से होठ पोंछे) ॐ गोविन्दाय नमः। (अपनी बाँई ओर हाथ धो ले)
2. आसन शुद्धि : (आसन पर जल छोड़कर उसे छूते हुए निम्न मंत्र पढ़े)
ॐ पृथ्वी! त्वया धृता लोका
देवि! त्वं विष्णुना
धृता। त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥
3. पवित्र धारण (अंगूठी या कुश की पवित्र पहने अंगूठी पहले से पहनी हुई हो तो स्पर्श करें)
ॐ पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण
सूर्यस्य रश्मिभिः। 
तस्त ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयमः॥
4- nhid tyk;sa A    
5.
रक्षा विधान : (बाएं हाथ में पीली सरसों अथवा चावल लेकर दाहिने हाथ
से ढंक दें तथा निम्न  मंत्र से दशों
दिशाओं मैं पीली सरसों छिटकें)
अपक्रामन्तु
भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशा। सर्वेषामवरोधेन ब्रह्मकर्म समारभे।
अपसर्पन्तु ते
भूताः ये भूताः भूमिसंस्थिताः। ये भूता विनकर्तारस्ते नष्टन्तु शिवाज्ञया।   
6. संकल्प (हाथ में जल अक्षत आदि लेकर पूजा का संकल्प करें)
“ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु, ॐ अद्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि
द्वितीयपरार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पै वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे
कलिप्रथमचरणे भूर्लोकेजम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखंडे आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे ……नगरे/ग्रामे………..संवत्सरे श्री सूर्ये……………..(उत्तरायण/दक्षिणायने) …………….ऋतौ महामाँगल्यप्रद
मासोत्तमे शुभ………मासे……पक्षे……तिथौ……वासरे..…गोत्रोत्पन्नः……….वर्माऽहं मम आत्मनः श्रुतिस्मृति पुराणोक्त फलप्राप्त्यर्थं च श्रीमन् …………. प्रीत्यर्थम्” यथालब्धोपचारैस्तदीयं पूजनं करिष्ये।'' इसके पश्चात् हाथ का जलाक्षतादि छोड़ देवें।
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ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च। हाथ के अक्षत को गणेश जी पर चढ़ा दें। पुनः अक्षत लेकर गणेशजी की दाहिनी ओर गौरी जी का आवाहन करें।
गौरी का आवाहन - ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन।   ससस्त्यश्वकः   सुभद्रिकां 
काम्पीलवासिनीम्।। हेमाद्रितनयां देवीं वरदां शङ्करप्रियाम्।  लम्बोदरस्य जननीं गौरीमावाहयाम्यहम्।।                         ॐभूर्भुवः स्वः गौर्यै नमः, गौरीमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च। 
प्रतिष्ठा-   ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ ँ समिमं दधातु। विश्वे देवास इह  मादयन्तामो 3 म्प्रतिष्ठ।।   अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च।  अस्यै   
देवत्वमर्चायै  मामहेति  च  कश्चन।। गणेशाम्बिके !   सुप्रतिष्ठिते   वरदे भवेताम्।
प्रतिष्ठापूर्वकम् आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः। (आसन के लिए अक्षत   पुष्प समर्पित करे)।
पाद्य, अर्ध्य, आचमनीय, स्नानीय और पुनराचमनीय हेतु जल समर्पित करे ।
1॰ ध्यान  2. आवाहन  3. 
 
 
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