नक्षत्र विचार Nakshatra Vichaar
नक्षत्र ग्रह विप्राणां  वीरुधां चाप्यशेषतः |
सोमं राज्ये दधह्रह्याम यज्ञानां तमसामापि ||
(श्री विष्णु पुराण)
श्री विष्णु पुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं ही नक्षत्र रूपा हैं जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ है | इन्हीं 27  नक्षत्रों का भोग चन्द्र द्वारा किये जाने पर चैत्र आदि एक चन्द्र  मास पूर्ण होता है |सभी पुराणों में नक्षत्रों के महत्व तथा शुभाशुभ फल का वर्णन किया गया है | ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों का उपयोग बालक/बालिका के जन्म के समय शुभाशुभ विचार , नामकरण, मुहूर्त विचार,ग्रह चार,मेलापक तथा जातक के अन्य सभी शुभ अशुभ फल विचारने के लिए किया जाता है | अग्नि पुराण,नारद पुराण ,गरुड़ पुराण मत्स्य पुराण तथा अन्य पुराणों तथा बृहत्संहिता,भद्रबाहु संहिता ,नारद संहिता ,वशिष्ठ संहिता आदि  में नक्षत्रों का वर्णन निम्न प्रकार से वर्णित है 
नक्षत्रों के देवता और नाम के प्रथम अक्षर
प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं | प्रत्येक चरण का एक अक्षर निश्चित है | बालक /बालिका का जन्म नक्षत्र के जिस चरण में होता है उस से सम्बंधित अक्षर पर उसका नामकरण किया जाता है|
| नक्षत्र का नाम | नक्षत्र का देवता | नक्षत्र के चार चरणों के नाम | 
| अश्वनी | अश्वनी कुमार | चू चे चो ला | 
| भरणीं | यम | ली लू ले लो | 
| कृतिका | अग्नि | अ इ उ ए | 
| रोहिणी | ब्रह्मा | ओ वा वी वू | 
| मृगशिरा | चन्द्र | वे वो का की | 
| आर्द्रा | शिव | कु घ ड० छ | 
| पुनर्वसु | अदिति | के को हा ही | 
| पुष्य | बृहस्पति | हु हे हो डा | 
| आश्लेषा | सर्प | डी डू डे डो | 
| मघा | पितर | मा मी मू मे | 
| पूर्वाफाल्गुनी | भग | मो हा टी टू | 
| उत्तराफाल्गुनी | अर्यमा | हे हो पा पी | 
| हस्त | सूर्य | पु ष ण ठ | 
| चित्रा | त्वष्टा | पे पो रा री | 
| स्वाति | पवन | रू रे रो ता | 
| विशाखा | इन्द्राग्नि | ती तू ते तो | 
| अनुराधा | मित्र | ना नी नु ने | 
| ज्येष्ठा | इंद्र | नो या यी यु | 
| मूल | राक्षस | ये यो भा भी | 
| पूर्वाषाढ़ | जल | भू ध फ ढ | 
| उत्तराषाढ | विश्वेदेव | भे भो जा जी | 
| श्रवण | विष्णु | खी खू खे खो | 
| धनिष्ठा | वसु | गा गी गु गे | 
| शतभिषा | वरुण | गो सा सी सू | 
| पूर्वा भाद्रपद | रूद्र | से सो दा दी | 
| उत्तरा भाद्रपद | अहिर्बुध्न्य | `दु थ झ ञ | 
| रेवती | पूषा | दे दो चा ची | 
अग्नि पुराण के अनुसार प्रति मास अपने जन्म नक्षत्र के दिन नक्षत्र देवता का विधिवत पूजन अर्चन करने से उस महीने का फल शुभ रहता है और कष्ट की निवृति होती है |जन्म नक्षत्र ज्ञात न हो तो प्रचलित नाम के पहले अक्षर से नाम नक्षत्र ज्ञात करें और उस नक्षत्र के देवता की पूजा करें
उर्ध्वमुख नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
रोहिणी ,आर्द्रा, पुष्य ,उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ ,श्रवण ,धनिष्ठा ,शतभिषा ,उत्तरा भाद्रपद ये नौ नक्षत्र उर्ध्वमुख अर्थात ऊपर मुख वाले हैं | इन में विवाह आदि मंगल कार्य,राज्याभिषेक ,ध्वजारोहण,मंदिर निर्माण,बाग़-बगीचे लगवाना ,चार दीवारी बनवाना ,गृह निर्माण आदि कार्य करवाना शुभ रहता है |
अधोमुखी नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
कृतिका, भरणीं ,आश्लेषा, विशाखा, मघा ,मूल, पूर्वाषाढ़ ,पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वा भाद्रपद ये नौ नक्षत्र अधोमुख अर्थात नीचे मुख वाले हैं | इन में तालाब कुएं खुदवाना ,नलकूप लगवाना ,चिकित्सा कर्म, विद्याध्ययन ,खनन,लेखन कार्य,शिल्प कार्य, भूमि में गड़े पदार्थों को निकालने का कार्य करना शुभ रहता है |
तिर्यङ्मुख नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
अनुराधा, मृगशिरा ,चित्रा, हस्त, ज्येष्ठा, पुनर्वसु ,अश्वनी, स्वाति, रेवती ये नौ नक्षत्र सामने मुख वाले हैं  जिन में यात्रा करना ,खेत में हल जोतना ,पत्राचार करना ,सवारी करना ,वाहन निर्माण आरम्भ करना शुभ है |
ध्रुव संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी ,उत्तराषाढ ,उत्तरा भाद्रपद ये चार नक्षत्र ध्रुव नक्षत्र हैं जिनमें क्रय-विक्रय करना ,हल जोतना ,बीज बोना आदि कार्य करना शुभ हैं |
क्षिप्र संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
हस्त,अश्वनी,पुष्य ये तीन नक्षत्र क्षिप्र संज्ञक हैं  जिनमें यात्रा करना ,दुकान लगाना,शिल्प कार्य,रति कार्य,ज्ञान अर्जन करना शुभ है |
साधारण संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
विशाखा तथा कृतिका साधारण नक्षत्र हैं जिनमे सभी कार्य किये जा सकते हैं |
चर संज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
धनिष्ठा ,पुनर्वसु,शतभिषा ,स्वाति तथा श्रवण नक्षत्र चार संज्ञक हैं जिन में यात्रा करना ,बाग- बगीचे लगाना ,तथा परिवर्तन शील कार्य करना शुभ है |
मृदुसंज्ञक नक्षत्र तथा उसमें सफल होने वाले कार्य
मृगशिरा ,अनुराधा,चित्रा,रेवती मृदु नक्षत्र हैं जिनमें आभूषण निर्माण,खेल कूद,नवीन वस्त्र धारण करना ,गीत-संगीत से सम्बंधित कार्य करना शुभ रहेगा |
नक्षत्रों की अन्धाक्षादि संज्ञाएँ
रोहिणी नक्षत्र से आरम्भ करके क्रमशः चार चार नक्षत्र अंध,मंद,मध्य,तथा सुलोचन नक्षत्र कहलाते हैं | अंध नक्षत्र में खोई  वस्तु बिना विशेष प्रयत्न के पुनः प्राप्त हो जाती है | मंद नक्षत्र में खोई वस्तु प्रयत्न करने पर बड़ी कठिनता से मिलती है | मध्य  नक्षत्र में खोई वस्तु का पता तो चल जाता है पर प्राप्ति नहीं होती | सुलोचन नक्षत्र में खोई  वस्तु का न तो पता चलता है और न ही प्राप्ति होती है | स्पष्टार्थ चक्र अवलोकन करें
| अन्धाक्ष नक्षत्र | मंदाक्ष नक्षत्र | मध्याक्ष नक्षत्र | सुलोचन नक्षत्र | 
|---|---|---|---|
| रोहिणी | मृगशिरा | आर्द्रा | पुनर्वसु | 
| पुष्य | आश्लेषा | मघा | पूर्वाफाल्गुनी | 
| उत्तरा फाल्गुनी | हस्त | चित्रा | स्वाति | 
| विशाखा | अनुराधा | ज्येष्ठा | मूल | 
| पूर्वाषाढ़ | उत्तराषाढ | अभिजित | श्रवण | 
| धनिष्ठा | शतभिषा | पूर्वाभाद्रपद | उत्तराभाद्रपद | 
| रेवती | अश्वनी | भरणी | कृतिका | 
| शीघ्र लाभ होगा | कष्टपूर्वक विलम्ब से प्राप्ति | पता चलेगा पर प्राप्ति नहीं होगी | पदार्थ की प्राप्ति नहीं होगी | 
कुलाकुल संज्ञक नक्षत्र तथा उनके फल
अश्वनी, कृतिका ,मृगशिरा ,पुष्य,चित्रा,मूल ,उत्तराफाल्गुनी,उत्तराषाढ,उत्तराभाद्रपद, श्रवण,धनिष्ठा ,मघा,पूर्वाफाल्गुनी, विशाखा कुल संज्ञक नक्षत्र हैं जिन में अदालत में मुकद्दमा दायर करने वाला व्यक्ति हार जाता है तथा युद्ध के लिए प्रयाण करने वाले की पराजय होती है | रोहिणी, ज्येष्ठा,रेवती,पुनर्वसु, स्वाति,हस्त,अनुराधा ,भरणीं,पूर्वा भाद्रपद ,आश्लेषा अकुल संज्ञक नक्षत्र हैं जिनमें आक्रमणकारी शत्रु पर विजय  प्राप्त करता है और अदालत में मुकद्दमा दायर करने वाला व्यक्ति जीत जाता है| आर्द्रा ,शतभिषा,पूर्वाषाढ़ कुलाकुल नक्षत्र है जिनमें मुकद्दमा दायर करने अथवा युद्ध आरम्भ करने पर दोनों पक्षों में संधि की संभावना रहती है |
नक्षत्रों की भूकंप आदि संज्ञाएँ
विचारणीय काल में सूर्य जिस नक्षत्र में स्थित हो उस से पांचवें को विद्युत्, सातवें नक्षत्र को भूकंप, आठवें को शूल, दसवें को अशनि, चौदहवें की निर्घातपात  ,पन्द्रहवें को दण्ड,अठारहवें को केतु,उन्नीसवें को उल्का, इक्कीसवें की मोह,बाइसवें की निर्घात,तेइसवें की कंप,चौबीसवें की कुलिश तथा पच्चीसवें की परिवेश संज्ञा होती है इन नक्षत्रों में कार्य आरम्भ करने पर प्रायः सफलता नहीं मिलती |
नक्षत्र एवम् वार के योग से उत्पन्न शुभाशुभ मुहूर्त
अश्वनी आदि 27 नक्षत्रों तथा रवि आदि 7 वारों के संयोग से उत्पन्न शुभाशुभ प्रभाव देने वाले योगों का विभिन्न पुराणों और संहिताओं में वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है ——–
औत्पातिक योग  
निम्नलिखित  वार तथा नक्षत्र के योग से औत्पातिक योग होता है जिनमें यात्रा तथा अन्य शुभ कार्य आरम्भ करने से उत्पात,रोग,हानि होने की संभावना रहती है |
| वार | नक्षत्र | 
| रविवार | विशाखा अनुराधा ज्येष्ठा | 
| सोमवार | पूर्वाषाढ़ उत्तराषाढ श्रवण | 
| मंगलवार | धनिष्ठा शतभिषा पूर्वा भाद्रपद | 
| बुधवार | अश्वनी भरणीं रेवती | 
| गुरूवार | रोहिणी मृगशिरा आर्द्रा | 
| शुक्रवार | पुष्य आश्लेषा मघा | 
| शनिवार | उत्तराफाल्गुनी हस्त चित्रा | 
अमृत योग
रविवार को मूल,सोमवार को श्रवण ,मंगलवार को उत्तरा भाद्रपद,बुधवार को कृतिका,गुरूवार को पुनर्वसु, शुक्रवार को पूर्वा फाल्गुनी तथा शनिवार को स्वाति नक्षत्र हो तो अमृत योग होता है जो सभी कार्यों में सिद्धि प्रदायक होता है |
सिद्धि योग
रविवार को हस्त ,सोमवार को मृगशिरा  ,मंगलवार को अश्वनी ,बुधवार को अनुराधा ,गुरूवार को पुष्य , शुक्रवार को रेवती तथा शनिवार को रोहिणी  नक्षत्र हो तो सिद्धि योग होता है जो सभी कार्यों में सिद्धि देने वाला  होता है |
विष योग
रविवार को भरणी  ,सोमवार को चित्रा   ,मंगलवार को उत्तराषाढ ,बुधवार को धनिष्ठा  ,गुरूवार को शतभिषा , शुक्रवार को रोहिणी तथा शनिवार को रेवती नक्षत्र हो तो विष योग होता है जो अपने नाम के अनुसार  सभी कार्यों में अशुभ फलदायक होता है |
आनन्दादि योग
| क्रम | रविवार | सोमवार | मंगलवार | बुधवार | गुरूवार | शुक्रवार | शनिवार | आनन्दादि योग | शुभाशुभ फल | 
| 1. | अश्वनी | मृगशिरा | आश्लेषा | हस्त | अनुराधा | उत्तराषाढ | शतभिषा | आनंद | सिद्धि | 
| 2. | भरणीं | आर्द्रा | मघा | चित्रा | ज्येष्ठा | अभिजित | पूर्वाभाद्रपद | कालदंड | मृत्यु | 
| 3. | कृतिका | पुनर्वसु | पूर्वा फाल्गुनी | स्वाति | मूल | श्रवण | उत्तरा भाद्रपद | धूम्र | असुख | 
| 4. | रोहिणी | पुष्य | उत्तरा फाल्गुनी | विशाखा | पूर्वाषाढ़ | धनिष्ठा | रेवती | धाता | सौभाग्य | 
| 5. | मृगशिरा | आश्लेषा | हस्त | अनुराधा | उत्तराषाढ | शतभिषा | अश्वनी | सौम्य | सुख | 
| 6. | आर्द्रा | मघा | चित्रा | ज्येष्ठा | अभिजित | पूर्वा भाद्रपद | भरणीं | ध्वांक्ष | धनक्षय | 
| 7. | पुनर्वसु | पूर्वा फाल्गुनी | स्वाति | मूल | श्रवण | उत्तरा भाद्रपद | कृतिका | ध्वज | सौभाग्य | 
| 8. | पुष्य | उत्तरा फाल्गुनी | विशाखा | पूर्वाषाढ़ | धनिष्ठा | रेवती | रोहिणी | श्रीवत्स | संपदा | 
| 9. | आश्लेषा | हस्त | अनुराधा | उत्तराषाढ | शतभिषा | अश्वनी | मृगशिरा | वज्र | क्षय | 
| 10. | मघा | चित्रा | ज्येष्ठा | अभिजित | पूर्वा भाद्रपद | भरणीं | आर्द्रा | मुद्गर | धनक्षय | 
| 11. | पूर्वा फाल्गुनी | स्वाति | मूल | श्रवण | उत्तरा भाद्रपद | कृतिका | पुनर्वसु | छत्र | राजसम्मान | 
| 12. | उत्तरा फाल्गुनी | विशाखा | पूर्वाषाढ़ | धनिष्ठा | रेवती | रोहिणी | पुष्य | मित्र | पुष्टि | 
| 13. | हस्त | अनुराधा | उत्तराषाढ | शतभिषा | अश्वनी | मृगशिरा | आश्लेषा | मानस | सौभाग्य | 
| 14. | चित्रा | ज्येष्ठा | अभिजित | पूर्वा भाद्रपद | भरणीं | आर्द्रा | मघा | पद्म | धनागम | 
| 15. | स्वाति | मूल | श्रवण | उत्तरा भाद्रपद | कृतिका | पुनर्वसु | पूर्वा फाल्गुनी | लुम्ब | धनहानि | 
| 16. | विशाखा | पूर्वाषाढ़ | धनिष्ठा | रेवती | रोहिणी | पुष्य | उत्तरा फाल्गुनी | उत्पात | संकट | 
| 17. | अनुराधा | उत्तराषाढ | शतभिषा | अश्वनी | मृगशिरा | आश्लेषा | हस्त | मृत्यु | मृत्यु | 
| 18. | ज्येष्ठा | अभिजित | पूर्वाभाद्रपद | भरणीं | आर्द्रा | मघा | चित्रा | काण | क्लेश | 
| 19. | मूल | श्रवण | उत्तरा भाद्रपद | कृतिका | पुनर्वसु | पूर्वा फाल्गुनी | स्वाति | सिद्धि | कार्यसिद्धि | 
| 20. | पूर्वाषाढ़ | धनिष्ठा | रेवती | रोहिणी | पुष्य | उत्तरा फाल्गुनी | विशाखा | शुभ | कल्याण | 
| 21. | उत्तराषाढ | शतभिषा | अश्वनी | मृगशिरा | आश्लेषा | हस्त | अनुराधा | अमृत | राजसम्मान | 
| 22. | अभिजित | पूर्वा भाद्रपद | भरणीं | आर्द्रा | मघा | चित्रा | ज्येष्ठा | मूसल | धन हानि | 
| 23. | श्रवण | उत्तरा भाद्रपद | कृतिका | पुनर्वसु | पूर्वा फाल्गुनी | स्वाति | मूल | गद | विद्यालाभ | 
| 24. | धनिष्ठा | रेवती | रोहिणी | पुष्य | उत्तरा फाल्गुनी | विशाखा | पूर्वाषाढ़ | मातंग | कुलवृद्धि | 
| 25. | शतभिषा | अश्वनी | मृगशिरा | आश्लेषा | हस्त | अनुराधा | उत्तराषाढ | रक्ष | महावृद्धि | 
| 26. | पूर्वा भाद्रपद | भरणीं | आर्द्रा | मघा | चित्रा | ज्येष्ठा | अभिजित | चर | कार्यसिद्धि | 
| 27. | उत्तरा भाद्रपद | कृतिका | पुनर्वसु | पूर्वा फाल्गुनी | स्वाति | मूल | श्रवण | स्थिर | गृहारम्भ | 
| 28. | रेवती | रोहिणी | पुष्य | उत्तरा फाल्गुनी | विशाखा | पूर्वाषाढ़ | धनिष्ठा | प्रवर्द्धमान | विवाह | 
त्रिपुष्कर योग
त्रिपुष्कर योग
रवि, शनि तथा मंगलवार को भद्रा तिथि ( द्वितीया ,सप्तमी,द्वादशी )और तीन पाद एक ही  राशि में होने वाले नक्षत्र  कृतिका,पुनर्वसु,उत्तराफाल्गुनी,विशाखा ,उत्तराषाढ तथा पूर्वा भाद्रपद हो तो त्रिपुष्कर योग होता है जिसमें लाभ या हानि त्रिगुणित कही गयी है |
द्विपुष्कर योग  
रवि ,शनि  या मंगलवार को भद्रा तिथि (द्वितीया, सप्तमी,द्वादशी )और दो पाद एक ही  राशि में होने वाले नक्षत्र मृगशिरा ,चित्रा या धनिष्ठा हो तो द्विपुष्कर योग होता है जिसमें लाभ या हानि दुगनी होती है |
सिद्ध योग
शुक्रवार को नंदा तिथि ( प्रतिपदा ,षष्टि ,एकादशी ) , बुधवार को भद्रा तिथि ( द्वितीया ,सप्तमी,द्वादशी ) , मंगलवार को जया तिथि ( तृतीया ,अष्टमी,त्रयोदशी ), शनिवार को रिक्ता तिथि ( चतुर्थी ,नवमी,चतुर्दशी ) तथा गुरूवार को पूर्णा तिथि ( पंचमी,दशमी,पूर्णिमा ) हो तो सिद्ध योग होता है जिसमें सभी कार्यों में सिद्धि मिलती है |
दग्ध योग
सोमवार को एकादशी,मंगलवार को पंचमी ,बुधवार को तृतीया ,गुरूवार को षष्टि ,शुक्रवार को अष्टमी तथा शनिवार को नवमी हो तो दग्ध योग होता है जिसमें आरम्भ किये कार्य सफल नहीं होते |
संवर्त योग
रविवार को सप्तमी ,बुधवार को प्रतिपदा हो तो संवर्त योग होता है जो शुभ कार्यों में बाधक होता है |
चंडीशचंडायुध योग
विचारणीय काल में सूर्य जिस नक्षत्र में स्थित हो उस से तत्कालीन आश्लेषा,मघा,चित्रा अनुराधा रेवती या श्रवण नक्षत्र  तक की गणना करने पर जो संख्या आये वाही संख्या यदि अश्वनी नक्षत्र से तत्कालीन चन्द्र नक्षत्र की हो तो चंडीशचंडायुध योग होता है जिसमें शुभ कार्यों का आरम्भ वर्जित है |
पंचक नक्षत्र  
धनिष्ठा के अंतिम दो चरण ,शतभिषा,पूर्वा भाद्रपद ,उत्तरा भाद्रपद और रेवती इन पांच नक्षत्रों के समूह को पंचक कहा जाता है | ये पांचो  नक्षत्र  कुम्भ तथा मीन राशि के अंतर्गत हैं | पंचक लगने पर  लकड़ी और घास का संग्रह,दक्षिण दिशा की यात्रा ,मृतक का दाह संस्कार ,खाट बनवाना त्याज्य होता है | पंचकों में उपरोक्त कार्य करने पर अग्नि भय ,रोग,दण्ड ,हानि,और शोक होता है |
गण्डमूल नक्षत्र
पुराणों में गण्डमूल नक्षत्र
पुराणों में अनेक स्थानों पर गंडांत नक्षत्रों का उल्लेख किय गया है |   रेवती नक्षत्र की अंतिम चार घड़ियाँ ,अश्वनी नक्षत्र की पहली चार घड़ियाँ गंडांत कही गई हैं | मघा ,आश्लेषा ,ज्येष्ठा एवम मूल नक्षत्र भी गंडांत हैं | विशेषतः ज्येष्ठा तथा मूल के मध्य का एक प्रहर अत्यंत अशुभ फल देने वाला है | इस अवधि में उत्पन्न बालक /बालिका व उसके माता -पिता को जीवन का भय होता है | गंडांत नक्षत्रों  को सभी शुभ कार्यों में त्याग देना चाहिए | 28 वें दिन उसी नक्षत्र में गण्डमूल दोष की शांति कराने पर दोष की निवृति हो जाती है |
स्कन्द पुराण  के काशी खंड में सुलक्षणा नाम की कन्या का वर्णन है जिसका जन्म मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में हुआ था  तथा उस बाला के माता -पिता  दोनों का देहांत उस के जन्म  के कुछ समय के बाद ही हो गया था | नारद पुराण  के अनुसार मूल नक्षत्र के चतुर्थ चरण को छोड़ कर शेष चरणों में तथा ज्येष्ठा नक्षत्र के अंतिम चरण में  उत्पन्न संतान विवाहोपरांत अपने ससुर के लिए घातक होती है | ज्येष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न कन्या अपने जेठ के लिए  तथा विशाखा में उत्पन्न कन्या अपने देवर के लिए  अशुभ फल का संकेत कारक होती है |दिन में गंडांत नक्षत्र में उत्पन्न संतान पिता को रात्रि में माता को व संध्या काल में स्वयम को कष्ट कारक होता है |
ज्योतिष शास्त्र  में गण्डमूल नक्षत्र
फलित ज्योतिष के  जातक पारिजात ,बृहत् पराशर होरा शास्त्र ,जातकाभरणं इत्यादि सभी   प्राचीन ग्रंथों में गंडांत नक्षत्रों तथा उनके प्रभावों का वर्णन दिया गया है |अश्वनी ,आश्लेषा ,मघा ,ज्येष्ठा ,मूल तथा रेवती  नक्षत्र  गण्डमूल नक्षत्र हैं |
अश्वनी  नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो पिता को कष्ट तथा अन्य चरणों में शुभ होता है |
आश्लेषा  नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो शुभ ,दूसरे में धन हानि ,तीसरे में माता को कष्ट तथा चौथे में पिता को कष्ट होता है |यह फल पहले दो  वर्षों में ही मिल जाता है
मघा     नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो माता के पक्ष को हानि ,दूसरे में पिता को कष्ट तथा अन्य चरणों में शुभ होता है |   ज्येष्ठा  नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो बड़े भाई को कष्ट ,दूसरे में छोटे भाई को कष्ट, तीसरे में माता को कष्ट तथा चौथे में पिता को कष्ट होता है| यह फल पहले वर्ष में ही मिल जाता है |
ज्येष्ठा नक्षत्र एवम मंगलवार के योग में उत्पन्न कन्या अपने भाई के लिए घातक होती है |
मूल  नक्षत्र के पहले चरण  में जन्म हो तो पिता को कष्ट दूसरे में माता को कष्ट तीसरे में धन हानि तथा चौथे में शुभ होता है | मूल नक्षत्र व रवि वार के योग में उत्पन्न कन्या अपने ससुर का नाश करती है |यह फल पहले चार वर्षों में ही मिल जाता है
जातकाभरणं के अनुसार जन्म के समय  मूल नक्षत्र हो तथा कृष्ण  पक्ष की ३ ,१० या शुक्ल पक्ष की १४ तिथि हो एवम मंगल ,शनि या बुधवार हो तो सारे कुल के लिए अशुभ होता है |मूल नक्षत्र के साथ राक्षस ,यातुधान ,पिता ,यम व काल नामक मुहुर्तेशों  के काल में जन्म हो तो गण्डमूल दोष का प्रभाव अधिक विनाशकारी होता है |
रेवती  नक्षत्र के चौथे चरण  में जन्म हो तो माता -पिता के लिए अशुभ तथा अन्य चरणों में शुभ होता है |
अभुक्त मूल  ज्येष्ठा नक्षत्र की अंतिम दो घटियाँ तथा मूल नक्षत्र की आरम्भ  की दो घटियाँ अभुक्त मूल हैं जिनमें उत्पन्न बालक , कन्या  , कुल के लिए अनिष्टकारी होते हैं | इनकी शान्ति अति आवश्यक है |
 
 
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