Kaalsarp yog/kalsarp dosh causes and remedies कालसर्प योग कारण लक्षण उपाय
जिस राशि के जिस नक्षत्र के जिस चरण में राहू हो और उसी अंश पर यदि चन्द्रमा हो तभी काल सर्पदोष हो सकता है अन्यथा नहीं !
कुंडली में कालसर्प योग तब घटित होता है जब सारे ग्रह राहू एवं केतु के मध्य आ जाते है. राहू एवं केतु सदा एक दूसरे से 180 अंश क़ी दूरी पर रहते है. अर्थात एक दूसरे के आमने सामने ही रहते है. कुंडली में मात्र 12 ही भाव होते है. कालार्प योग के द्वारा सात भाव या घर तों घेर लिये गये. अब बचे 5 भाव. अर्थात इन पांचो भावो के लिये कालसर्प योग हो गया. अर्थात 12 में से पांच तों 100 में कितना? अर्थात लगभग 45% लोग कालसर्प दोष से युक्त हो जायेगें. यदि अंशो के आधार पर देखा जाय तों लगभग 179 अंश का दायरा इस कालसर्प योग के अधीन आ जाएगा और इस प्रकार आधे लोग इस दोष से घिर जायेगें यह न तों तर्कपूर्ण है और नहीं संभव किसी भी राशि के लिये काल सर्प योग तभी होता है जब उस राशि पर ही राहू हो और उससे तथा केतु के मध्य सारे ग्रह हो जाएँ तों काल सर्प योग होता है. उस पर भी यदि याम्यध्रुव अर्थात South Pole से उत्तरवर्ती स्थित राशि पर राहू हो तथा सौम्य ध्रुव या नोर्थ पोले से दक्षिणवर्ती केतु हो या दूसरे शब्दों में जन्म लग्न ही जन्म राशि हो या जन्म समय में जन्म राशि केंद्र में हो तों कालसर्प योग तभी हो सकता है जब चन्द्रमा से सूर्य 90 अंशो के दायरे के मध्य या उसी के साथ हो अन्यथा इस अवस्था में भी कालसर्प योग नहीं हो सकता है. "योग समन्वय", "योग वैवर्त", "मार्तण्ड याग", एवं वृहत्पाराशरी में इसका उल्लेख मिलता है
आचार्य रामानुजम के शब्दों में- "खेट्वन्ग़ाभरणम सर्पो इन्द्वीलग्ने केन्द्रस्थो वा रविर्युतिः. अपर्युतिः ग्रहाणाम कुरुते सौम्ये याम्यायनेपिवा"
अर्थात सर्प का मुख जिस राशि पर पड़े और उसके मुँह के आगे कोई दूसरा ग्रह न पड़े. तथा शेष ग्रहों को राहू या सर्प अपनी पूंछ में लपेट कर रखा हो, तों काल सर्प योग होता है. दूसरे शब्दों में समस्त ग्रह राहू एवं केतु के मध्य हो तथा जिस राशि में सर्प का मुँह अर्थात राहू पड़े उस राशि के लिये ही केवल सर्पदोष होगा. इस प्रकार राहू-केतु के मध्य सारे ग्रहों के होने के बावजूद भी मात्र उसी व्यक्ति के लिये काल सर्प होगा जिस व्यक्ति के जन्म नक्षत्र के जिस चरण में राहू होगा. महर्षि देवहूत के शब्दों में यह कहा गया है कि जिस राशि के जिस नक्षत्र के जिस चरण में राहू हो और उसी अंश पर यदि चन्द्रमा हो तभी काल सर्पदोष हो सकता है.अन्यथा नहीं. महर्षि का यह कथन बहुत ही सटीक है. तथा वैदिक, वैज्ञानिक एवं तार्किक रूप से सत्य भी है. वास्तव में जब सारे ग्रह राहू एवं केतु के मध्य में आ जाते है तब बनने वाला काल सर्प योग यक्ति विशेष के लिये 1/120000 ही होता है. अर्थात बारह हज़ार लोगो में एक व्यक्ति इसके प्रभाव में आता है. किन्तु भूखंड के सम्बन्ध में यही अनुपात 1/12 का हो जाता है. अर्थात बारहवें अक्षांश एवं देशांतर के मध्य दुर्घटना या कोई अशुभ या अप्रिय घटना जन्म लेगी ही |
आपकी कुण्डली में कालसर्प योग है इस बात का पता कुण्डली में ग्रहों की स्थिति को देखकर पता चलता है लेकिन कई बार जन्म समय एवं तिथि का सही ज्ञान नहीं होने पर कुण्डली ग़लत हो जाती है. इस तरह की स्थिति होने पर कालसर्प योग आपकी कुण्डली में है या नहीं इसका पता कुछ विशेष लक्षणो से जाना जा सकता है.
कालसर्प के लक्षण (Signs you have Kalsarp Yoga)
कालसर्प योग से पीड़ित होने पर स्वप्न में मरे हुए लोग आते हैं. मृतकों में अधिकांशत परिवार के ही लोग होते हैं. इस योग से प्रभावित व्यक्ति को सपने में अपने घर पर परछाई दिखाई देती है. व्यक्ति को ऐसा लगता है मानो कोई उसका शरीर और गला दबा रहा है. सपने में नदी, तालाब, समुद्र आदि दिखाई देना भी कालसर्प योग से पीड़ित होने के लक्षण हैं.
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस योग से प्रभावित व्यक्ति समाज एवं परिवार के प्रति समर्पित होता है वे अपनी निजी इच्छा को प्रकट नहीं करते और न ही उन्हें अपने सुख से अधिक मतलब होता है. इनका जीवन संघर्ष से भरा होता है. बीमारी या कष्ट की स्थिति में अकेलापन महसूस होना और जीवन बेकार लगना ये सभी इस योग के लक्षण हैं.
इस प्रकार की स्थिति का सामना अगर आपको करना पड़ रहा है तो संभव है कि आप इस योग से पीड़ित हैं. इस योग की पीड़ा को कम करने के लिए इसका उपचार कराएं.
कालसर्प योग कारण (Cause of Kalsarpa Yoga)
कर्म फल की बात सभी शास्त्र और धर्म में बताया गया है. हम जैसा कर्म करते है उसी के अनुरूप हमें फल मिलता है. कालसर्प योग के पीछे भी यही मान्यता और धारणा है. मान्यताओं के अनुसार कालसर्प योग उस व्यक्ति की कुण्डली में बनता है जिसने पूर्व जन्म में सांप को मारा हो या किसी बेकसुर जीव को इतना सताया हो कि उसकी मृत्यु हो गयी हो. इसके अलावा यह भी माना जाता है कि जब व्यक्ति की प्रबल इच्छा अधूरी रह जाती है तब व्यक्ति अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए पुनर्जन्म लेता है और ऐसे व्यक्ति को भी इस योग का सामना करना होता है.
कालसर्प योग शांति (Remedies of Kalsarp Yoga)
कालसर्प योग के अनिष्टकारी प्रभाव से बचने के लिए शास्त्रो में जो उपाय बताए गये हैं उनके अनुसार प्रतिदिन पंचाक्षरी मंत्र "ऊँ नम शिवाय अथवा महामृत्युंजय मंत्र का 108 जप करना चाहिए. काले अकीक की माला से राहु ग्रह का बीज मंत्र 108 बार जप करना चाहिए. शनिवार के दिन पीपल की जड़ को जल से सिंचना चाहिए. नागपंचमी के दिन व्रत रखकर नाग देव की पूजा करनी चाहिए. मोरपंखधारी भगवान श्री कृष्ण की पूजा करनी चाहिए. शनिवार या पंचमी तिथि के दिन 11 नारियल बहते जल में प्रवाहित करने चाहिए. धातु से बने 108 नाग नागिन के जोड़े बहते जल में प्रवाहित करने चाहिए. सोमवार के दिन किसी विद्वान पंडित से रूद्राभिषेक कराना चाहिए. कालसर्प गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए. इन उपायों से काल सर्प और सर्प योग के अनिष्टकारी प्रभाव में कमी आती है और जीवन में इनके कारण आने वाले अवरोधों का सामना नहीं करना होता है.
जो व्यक्ति कालसर्प योग में होते हैं वे सांप से भयभीत रहते हैं. इन्हें सांप काटने का डर लगा रहता है. सपने में शरीर पर सांप लिपटा होना दिखाई देना या सांप का सपना आना यह भी इस योग के लक्षण हैं. ऊँचाई पर जाने पर अनजाना भय सताना, घबराहट और बेचैनी होना तथा सुनसान स्थानों पर जाने से मन में भय आना कालसर्प का लक्षण माना जाता है.
जन्म कुण्डली में राहु और केतु की विशेष स्थिति से बनने वाले कालसर्प योग एक ऐसा योग है जो जातक के पूर्व जन्म के किसी जघन्य अपराध के दंड या शाप के फलस्वरूप उसकी कुंडली में परिलक्षित होता है। व्यावहारिक रूप से पीड़ित व्यक्ति आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान तो होता ही है, मुख्य रूप से उसे संतान संबंधी कष्ट होता है। या तो उसे संतान होती ही नहीं, या होती है तो वह बहुत ही दुर्बल व रोगी होती है। उसकी रोजी-रोटी का जुगाड़ भी बड़ी मुश्किल से हो पाता है। धनाढय घर में पैदा होने के बावजूद किसी न किसी वजह से उसे अप्रत्याशित रूप से आर्थिक क्षति होती रहती है।
तरह तरह के रोग भी उसे परेशान किये रहते हैं बुरे प्रभाव जीवन में तरह-तरह से बाधा पैदा कर सकते हैं। पूरी तरह से मेहनत करने पर भी अंतिम समय में सफलता से दूर हो सकते हैं। कालसर्प योग को लेकर यह धारणा बन चुकी है कि यह दु:ख और पीड़ा देने वाला ही योग है।
जबकि इस मान्यता को लेकर ज्योतिष के जानकार भी एकमत नहीं है। हालांकि यह बात व्यावहारिक रुप से सच पाई गई है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु के बीच सारे ग्रहों के आने से कालसर्प योग बन जाता हैं। उस व्यक्ति का जीवन असाधारण होता है। उसके जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव देखे जाते है।वास्तव में कालसर्प योग के असर से कभी व्यक्ति को जीवन में अनेक कष्टों से दो-चार होना पड़ सकता है तो कभी यही योग ऊंचें पद, सम्मान और सफलता का कारण भी बन जाता है। इस तरह माना जा सकता है कि कालसर्प योग हमेशा पीड़ा देने वाला नहीं होता है।ज्योतिष विज्ञान के अनुसार कालसर्प योग का शुभ-अशुभ फल राशियों के स्वभाव और तत्व पर पर निर्भर करता है।
ज्योतिष विज्ञान अनुसार छायाग्रहों यानि दिखाई न देने वाले राहू और केतु के कारण कुण्डली में बने कालसर्प योग के शुभ होने पर जीवन में सुख मिलता है, किंतु इसके बुरे असर से व्यक्ति जीवन भर कठिनाईयों से जूझता रहता है राहु शंकाओं का कारक है और केतु उस शंका को पैदा करने वाला इस कारण से जातक के जीवन में जो भी दुख का कारण है वह चिरस्थाई हो जाता है,इस चिरस्थाई होने का कारण राहु और केतु के बाद कोई ग्रह नही होने से कुंडली देख कर पता किया जाता है,यही कालसर्प दोष माना जाता है,यह बारह प्रकार का होता है। दोष शांति का अचूक काल सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी नाग पूजा का विशेष काल है। यह घड़ी ज्योतिष विज्ञान की दृष्टि से भी बहुत अहम मानी जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि के देवता शेषनाग हैं। इसलिए यह दिन बहुत शुभ फल देने वाला माना जाता है। नागपंचमी के दिन कालसर्प दोष शांति के लिए नाग और शिव की विशेष पूजा और उपासना जीवन में आ रही शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानियों और बाधाओं को दूर कर सुखी और शांत जीवन की राह आसान बनाती है।
राहु केतु मध्ये सप्तो विध्न हा काल सर्प सारिक:।
सुतयासादि सकलादोषा रोगेन प्रवासे चरणं ध्रुवम।।
कालसर्प योग के प्रकार
मूलरूप से कालसर्प योग के बारह प्रकार होते हैं इन्हें यदि 12 लग्नों में विभाजित कर दें तो 12 x 12 =144 प्रकार के कालसर्प योग संभव हैं I परन्तु 144 प्रकार के कालसर्प योग तब संभव हैं जब शेष 7 ग्रह राहु से केतु के मध्य स्थित होँ I यदि शेष 7 ग्रह केतु से राहु के मध्य स्थित होँ, तो 12 x 12 = 144 प्रकार के कालसर्प योग संभव हैं I इसी प्रकार से कुल 144 + 144 = 288 प्रकार के कालसर्प योग स्थापित हो सकते हैं ईन सभी प्रकार के कालसर्प योगों का प्रतिफल एकदूसरे से भिन्न होता है I मूलरूप से कालसर्प योगों के बारह प्रकार हैं जो विश्वविख्यात सर्पों के नाम पर आधारित हैं.
1अनंत कालसर्प योग
2 कुलिक कालसर्प योग
3 वासुकि कालसर्प योग
4 शंखपाल कालसर्प योग
5पदम कालसर्प योग
6 महापदम कालसर्प योग
7 तक्षक कालसर्प योग
8 कारकोटक कालसर्प योग
9 शंखचूड़ कालसर्प योग
10 घातक कालसर्प योग 11विषधर कालसर्प योग 12 शेषनाग कालसर्प योग .
कालसर्प दोष और कष्ट ?
1.अनंत कालसर्प योग- यदि लग्न में राहु एवं सप्तम् में केतु हो, तो यह योग बनता है. जातक कभी शांत नहीं रहता. झूठ बोलना एवं षड़यंत्रों में फंस कर कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाता रहता है.
2.कुलिक कालसर्प योग- यदि राहु धन भाव में एवं केतु अष्टम हो, तो यह योग बनता है. इस योग में पुत्र एवं जीवन साथी सुख, गुर्दे की बीमारी, पिता सुख का अभाव एवं कदम कदम पर अपमान सहना पड़ सकता है.
3.वासुकी कालसर्प योग- यदि कुंडली के तृतीय भाव में राहु एवं नवम भाव में केतु हो एवं इसके मध्य सारे ग्रह हों, तो यह योग बनता है. इस योग में भाई-बहन को कष्ट, पराक्रम में कमी, भाग्योदय में बाधा, नौकरी में कष्ट, विदेश प्रवास में कष्ट उठाने पड़ते हैं.
4.शंखपाल कालसर्प योग- यदि राहु नवम् में एवं केतु तृतीय में हो, तो यह योग बनता है. जातक भाग्यहीन हो अपमानित होता है, पिता का सुख नहीं मिलता एवं नौकरी में बार-बार निलंबित होता है.
5. पद्म कालसर्प योग- अगर पंचम भाव में राहु एवं एकादश में केतु हो तो यह योग बनता है, इस योग में संतान सुख का अभाव एवं वृद्धा अवस्था में दुखद होता है. शत्रु बहुत होते हैं, सट्टे में भारी हानि होती है.
6.महापद्म कालसर्प योग- यदि राहु छठें भाव में एवं केतु व्यय भाव में हो, तो यह योग बनता है इसमें पत्नी विरह, आय में कमी, चरित्र हनन का कष्ट भोगना पड़ता है.
7.तक्षक कालसर्प योग- यदि राहु सप्तम् में एवं केतु लग्न में हो तो यह योग बनता है. ऐसे जातक की पैतृक संपत्ति नष्ट होती है, पत्नी सुख नहीं मिलता, बार-बार जेल यात्र करनी पड़ती है.
8.कर्कोटक कालसर्प योग- यदि राहु अष्टम में एवं केतु धन भाव में हो, तो यह योग बनता है. इस योग में भाग्य को लेकर परेशानी होगी. नौकरी की संभावनाएं कम रहती है, व्यापार नहीं चलता, पैतृक संपत्ति नहीं मिलती और नाना प्रकार की बीमारियां घेर लेती हैं.
9.शंखचूड़ कालसर्प योग- यदि राहु सुख भाव में एवं केतु कर्म भाव में हो, तो यह योग बनता है. ऐसे जातक के व्यवसाय में उतार-चढ़ाव एवं स्वास्थ्य खराब रहता है
10.घातक कालसर्प योग- यदि राहु दशम् एवं केतु सुख भाव में हो तो यह योग बनता है. ऐसे जातक संतान के रोग से परेशान रहते हैं, माता या पिता का वियोग होता है. .
11.विषधर कालसर्प योग- यदि राहु लाभ में एवं केतु पुत्र भाव में हो तो यह योग बनता है. ऐसा जातक घर से दूर रहता है, भाईयों से विवाद रहता है, हृदय रोग होता है एवं शरीर जर्जर हो जाता है.
12.शेषनाग कालसर्प योग- यदि राहु व्यय में एवं केतु रोग में हो, तो यह योग बनता है. ऐसे जातक शत्रुओं से पीड़ित हो शरीर सुखित नहीं रहेगा, आंख खराब होगा एवं न्यायालय का चक्कर लगाता रहेगा.
काल सर्प योग में जन्मे जातक में प्रायः निम्नलिखित लक्षण पाए जाते है।
1- सपने में उसे नदी, तालाब,कुए,और समुद्र का पानी दिखाई देता है।
2- सपने में वह खुद को पानी में गिरते एवं उससे बाहर निकलने का प्रयास करते करते हुए देखता है।
3- रात को उल्टा होकर सोने पर ही चेन की नींद आती है |
4- सपने में उसे मकान अथवा पेरो से फल आदि गिरते दिखाई देता है।
5- पानी से ओर ज्यादा ऊंचाई से डर लगता है |
6- मन में कोई अज्ञात भय बना रहता है |
7- वह खुद को अन्य लोगो से झगड़ते हुए देखता है।
8- उन्हें बुरे सपने आते है जिसमे अक्सर साँप दिखाई देता है।
9- यदि वह संतानहीन हो तो उसे किसी स्त्री के गोद में मृत बालक दिखाई देता है।
10- - सपने उसे विधवा स्त्रीयां दिखाई पड़ती है।
11- नींद में शरीर पर साप रेंगता महसूस होता है।
12- श्रवन मास में मन हमेशा प्रफुलित रहता है |
ये कुछ प्रमुख लक्षण है जों किसी भी कालसर्प वाले जातक में दिखाई देते है कहने का मतलब यह की इन मे से सभी लक्षण नहीं हों तो भी काफी लक्षण मिलते है | इसलिए जिसकी भी कुंडली में कालसर्प योग हों वो छोटे उपाय करे ओर जीवन में खुशियों का आनंद ले |
कालसर्प दोष भंग के लिए दैनिक छोटे उपाय
1 108 राहु यंत्रों को जल में प्रवाहित करें।
2 सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
3 शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर अष्टधातु या चांदी का स्वस्तिक लगाएं और उसके दोनों ओर धातु निर्मित नाग.।
4 अमावस्या के दिन पितरों को शान्त कराने हेतु दान आदि करें तथा कालसर्प योग शान्ति पाठ कराये।
5 शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्रा अभिमंत्रित कर धारण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लायें।
6. हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान पर सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।.
7 शनिवार को पीपल पर शिवलिंग चढ़ाये व मंत्र जाप करें (ग्यारह शनिवार )
8 सवा महीने देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें।
9 काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके उसकी नित्य प्रति पूजा करें ।
10 सोमवार को शिव मंदिर में चांदी के नाग की पूजा करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रध्दापूर्वक बहते पानी में नागदेवता का विसर्जन करें।
11 श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
12 प्रत्येक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर - हर हर महादेव' कहते हुए अभिषेक करें। हर रोज श्रावण के महिने में करें।
13. सरल उपाय- कालसर्प योग वाला युवा श्रावण मास में प्रतिदिन रूद्र-अभिषेक कराए एवं महामृत्युंजय मंत्र की एक माला रोज करें।
14 यदि रोजगार में तकलीफ आ रही है अथवा रोजगार प्राप्त नहीं हो रहा है तो पलाश के फूल गोमूत्र में डूबाकर उसको बारीक करें। फिर छाँव में रखकर सुखाएँ। उसका चूर्ण बनाकर चंदन के पावडर में मिलाकर शिवलिंग पर त्रिपुण्ड बनाएँ। 41 दिन दिन में नौकरी अवश्य मिलेगी।.
15 शिवलिंग पर प्रतिदिन मीठा दूध उसी में भाँग डाल दें, फिर चढ़ाएँ इससे गुस्सा शांत होता है, साथ ही सफलता तेजी से मिलने लगती है।
16 किसी शुभ मुहूर्त में ओउम् नम: शिवाय' की 21 माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्रा आदि श्रध्दापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प शिवलिंग पर समर्पित करें।
17 शत्रु से भय है तो चाँदी के अथवा ताँबे के सर्प बनाकर उनकी आँखों में सुरमा लगा दें, फिर शिवलिंग पर चढ़ा दें, भय दूर होगा व शत्रु का नाश होगा।
18 यदि पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका में क्लेश हो रहा हो, आपसी प्रेम की कमी हो रही हो तो भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या बालकृष्ण की मूर्ति जिसके सिर पर मोरपंखी मुकुट धारण हो घर में स्थापित करें एवं प्रतिदिन उनका पूजन करें एवं ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम: शिवाय का यथाशक्ति जाप करे। कालसर्प योग की शांति होगी।
19 किसी शुभ मुहूर्त में मसूर की दाल तीन बार गरीबों को दान करें।
20 किसी शुभ मुहूर्त में सूखे नारियल के फल को बहते जल में तीन बार प्रवाहित करें तथा किसी शुभ मुहूर्त में शनिवार के दिन बहते पानी में तीन बार कोयला भी प्रवाहित करें
21 मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करें।
22 महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और श्रावण महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करें।
23 मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करें।
24 86 शनिवार का व्रत करें और राहु,केतु व शनि के साथ हनुमान की आराधना करें। शनिवार को श्री शनिदेव का तैलाभिषेक करें
25 नव नाग स्तोत्रा का एक वर्ष तक प्रतिदिन पाठ करें।
26 प्रत्येक बुधवार को काले वस्त्रों में उड़द या मूंग एक मुट्ठी डालकर, राहु का मंत्रा जप कर भिक्षाटन करने वाले को दे दें। यदि दान लेने वाला कोई नहीं मिले तो बहते पानी में उस अन्न हो प्रवाहित करें। 72 बुधवार तक करने से अवश्य लाभ मिलता है।
27 कालसर्प योग हो और जीवन में लगातार गंभीर बाधा आ रही हो तब किसी विद्वान ब्राह्मण से राहु और केतु के मंत्रों का जप कराया जाना चाहिए और उनकी सलाह से राहु और केतु की वस्तुओं का दान या तुलादान करना चाहिए।)-
28 शिव के ही अंश बटुक भैरव की आराधना से भी इस दोष से बचाव हो सकता है।
29 प्रथम पूज्य शिव पुत्र श्री गणेश को विघ्रहर्ता कहा जाता है। इसलिए कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए गणेश पूजा भी करनी चाहिए।
30-पुराणों में बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण ने कालिय नाग का मद चूर किया था। इसलिए इस दोष शांति के लिए श्री कृष्ण की आराधना भी श्रेष्ठ है।
31विद्यार्थीजन सरस्वती जी के बीज मंत्रों का एक वर्ष तक जाप करें और विधिवत उपासना करें।
32 एक वर्ष तक गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करें !
विविध ग्रहों के स्थान तथा भाव आदि के सम्बन्ध संयोग से अनेक योग बनते है. इनमें कुछ योग जन्म जात बन जाते है. किन्तु कुछ योग ग्रहों के गोचर से बनते है. इनमें कुछ योग अहित कारी एवं अशुभ होते है. तथा कुछ शुभ फल देने वाले होते है. यमघंट, विषकन्या, घात, केमद्रुम, कंटक, शकट, ग्रहण तथा कालसर्प आदि प्रमुख अशुभ योग है. हम यहाँ मुख्य रूप से कालसर्प योग का विवरण देगे. जब कुंडली में किसी भी भाव में सारे ग्रह राहू एवं केतु के एक ही तरफ आ जाते है तो काल सर्प योग होता है. इसमें भी यदि ग्रहण योग के साथ कालसर्प योग हो तो बहुत ही घातक एवं अरिष्टकारी होता है. इसके कुछ प्रमुख प्रकार निम्न प्रकार है.
अपोक्लिम- जब कालसर्प योग अपोक्लिम भाव से बनता है. तो यह अट्ठारह वर्ष क़ी अवस्था से ही अपना अशुभ परिणाम दिखाना शुरू कर देता है.
पणफर- जब कालसर्प योग पणफर से बनता है तो इसका अशुभ प्रभाव पांचवे साल से ही प्रकट होने लगता है.
लग्न- लग्न से बनने वाला कालसर्प योग पच्चीस वर्ष क़ी अवस्था से अपना अशुभ प्रभाव दिखाने लगता है.
त्रिकोण- त्रिकोण से बनने वाला कालसर्प योग शादी के ठीक बाद से ही अपना प्रभाव देना प्रारम्भ कर देता है.
मारक- दूसरे, सातवें तथा आठवे भाव से बनने वाला कालसर्प योग बहुत ही घातक होता है. इसका प्रभाव संतान, सम्पत्ती एवं सम्मान को बहुत ही नुकसान पहुचाता है.
वाराही संहिता के अनुसार यह 144 प्रकार से बनता है. महर्षि पाराशर ने भी इसे इतने ही प्रकार का बताया है. किन्तु रामानुजाचार्य तथा वाराह मिहिर ने इसे मात्र बारह प्रकार का ही बताया है. सामान्य रूप में इसे पारंपरिक प्रथा के अनुसार कम दोषपूर्ण बनाने के लिए जो उपाय किये जाते है. वे सर्वथा दोष पूर्ण है. नारियल लेकर उसके साथ एक सर्प को काले धागे में बाँध कर बहते पानी में प्रवाहित कर देना न तो कोई तांत्रिक पद्धति है और न ही कोई शास्त्रीय पद्धति.
ध्यान रहे, यदि न कर सकते हो तो सिरे से न करे. आधा अधूरा न करें. क्योकि कालसर्प योग तो जो हानि पहुचायेगा वह तो विकट होगा ही. यदि कही गलत या अशुद्ध या अपूर्ण तरह से इसे किया गया तो उसका अशुभ परिणाम कालसर्प योग से भी ज्यादा भयावह हो जाता है.
पहले यह निर्धारित करें कि कालसर्प योग किस श्रेणी का है. जिस भाव में जिस राशि से बना है उसके अंशो को लिख लें. उस समय जितने अंशो पर राहू हो वह भी लिखें. दोनों का अंतर निकाल लें. जो अंतर आये उससे अपनी वास्तविक एवं पूर्ण आयु में भाग दें. जितना परिणाम आये उतने रत्ती का पारासित (एक विशेष तरह का गोमेद) नग लें. उसे समुद्रफेन, माजूफल एवं कपूर के मिश्रण में ढक दें. ऊपर से अंगुल भर नाप का चांदी के सर्प को बिना बांधे रख दे. एक साबूत बिना छिले पानी वाले नारियल के ऊपर नीले एवं काले फूलो को रख कर उस पर राहू का मंत्र पढ़ते हुए घी मिश्रित शहद गिरायें. शहद क़ी मात्रा किसी भी हालत में दो छटाक से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. एक पान के पत्ते पर दो सुपारी रख कर उस पर थोड़ा सा दूध गिरायें. तथा पुनः राहू का मंत्र २८ बार पढ़ें. उसके बाद मिश्रण में रखे पारासित नग को मिश्रण के साथ हाथ में लेकर मुट्ठी बन्द कर लें. दूसरे हाथ में उस चांदी के सर्प को रख कर मुट्ठी बन्द कर लें. 108 बार राहू के मंत्र को पढ़ें. यह काम सिर्फ शनिवार को ही करें. राहू के १०८ मन्त्र पूर्ण हो जाने के बाद सर्प एवं उस पारासित को अच्छी तरह से धोकर एक ताम्बे क़ी थाली में रखें. तथा उसे धुप (अगरबत्ती नहीं) दिखायें. और अंत में उसे किसी शुद्ध जगह पर रख दें. यह क्रिया लगातार अगले शनिवार तक चलेगी. अगले शनिवार को अंत में कुंडली में जिस प्रधान ग्रह के साथ राहू हो उस ग्रह क़ी विधिवत पूजा करनी चाहिए. तथा अंत में राहू एवं जो ग्रह साथ में हो उसके 108 – 108 मंत्रो के साथ हवन कर दें. हवन में सिर्फ devadaaru, गुगुल, लोबान, अगरु, तगरु, काला तिल जौ एवं घी ही होना चाहिए. और कुछ भी नहीं. हवन समाप्त होने के बाद उसकी राख का तिलक करे. तथा उस पारासित नग क़ी अपनी क्षमता के अनुसार चांदी अथवा सोने में अंगूठी बनवाकर दाहिने हाथ क़ी बीच वाली मध्यमा अंगुली में शनिवार को धारण कर ले. इसको यदि समय रहते तत्काल करा लिया जाय तो इसकी क्षमता अर्थात कालसर्प योग के बढ़ने क़ी क्षमाता पर रोक लग जाती है. अन्यथा बाद में पूजा पाठ का प्रभाव बहुत ही देर से मिलता है. और यदि काम बिगड़ ही जाय तो पूजा पाठ का क्या फ़ायदा?
वास्तव में जिस राशि पर कालसर्प योग लगता है उसकी तीन अन्तः वाहिनियो का- Shisteo, bleyinero, nuclio का विकास सर्वथा रुक जाता है. क्योकि सब ग्रहों के राहू एवं केतु के एक तरफ बीच में एकत्र हो जाने के कारण सब क़ी ज्योति राहू क़ी विशाल काय छाया में लुप्त हो जाती है. Cynacobalmin, Riboflevin, Eliotysin, Titocondrin एवं Diclocynthalin का निर्माण धीरे धीरे पूर्णतया बाधित हो जाता है. क्योकि उपरोक्त जीवन के लिए पांचो अति आवश्यक तत्व समस्त ग्रहों के समेकित पुंजीभूत प्रकाश के संश्लेषण Synthesis से ही निर्मित होते है.
इसके निवारण क़ी एक मात्र विधि यही है कि जब स्वयं के शरीर से उत्सर्जित Sodium Tetrachloride के संपर्क में डाईथिलफास्फामाजाईन क्लोरेट (गुगुल एवं लोबान), मैथिल ग्लीआकजायिन (अगरु एवं तगरु), हेक्ट्रानईट्रीसिन (समुद्रफेन एवं माजूफल) तथा इथियो फास्फीन (कपूर) आ जाय. किन्तु आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में अभी इसको ज्यादा तवज्जो नहीं दिया जा रहा है. क्योकि उपरोक्त रासायनिक यौगिक अभी स्वतंत्र रूप से अपनी जटिलता के कारण उपलब्ध नहीं है. दूसरी बात यह है कि कालसर्प योग किसी एलोपैथ में किसी रोग के नाम से निदानित भी नहीं है. इसे मात्र एक ज्योतिषीय तथा भ्रामक प्रकरण माना जा रहा है.
अस्तु जो भी हो काल सर्प योग के निवारण का विधान जितना शीघ्र किया जाय उतना ही अच्छा प्रभाव प्राप्त होता है. किन्तु उससे भी ज्यादा आवश्यक है उसके विधि विधान क़ी शुद्धता एवं पूर्णता. और सबसे ऊपर है यह निर्धारित करना कि वास्तव में कालसर्प योग है भी या नहीं |
No comments:
Post a Comment